बुधवार, 11 जनवरी 2023

 ओशो अमेरिका जेल में 

ओशो 12 दिन अमेरिका की जेल में थे .. ना कोई आधार ना वारंट ना सबूत .. कुछ नही। फिर भी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने उन्हें जेल भिजवा दिया..और कहा कि हम आपको बिना सबूतों के भी अंदर रखेंगे ट्रायल के रूप में और कहेंगे कि आपने देश विदेश से अपने शिष्यों को बिना वीसा के अमेरिका लाकर अमेरिकी कानून का उल्लंघन किया है ..आपको ये साबित करने में कि आप निर्दोष हो 10 साल लग जायेंगे और तब तक आपका कम्यून आपके बिना नष्ट हो जायेगा या हम उसे तबाह कर देंगे .. और फिर हम आपको बाइज्जत आपके मुल्क भारत भेज देंगे...


वह ऐसा इसलिए कर रहा था क्योंकि ओशो का कम्यून बहुत बडे़ भू-क्षेत्र में फैला हुआ था। उसमें खुद का airport, हॉस्पिटल, स्कूल, कॉलेज सब था और वहाँ कोई भी मुद्रा नहीं चलती थी .. निःशुल्क था सब। सभी राजनीति से हटकर अपना आनन्दपूर्ण जीवन जी रहे थे.. लोगों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही थी ... जिससे रोनाल्ड रीगन डर गया...ओशो के शिष्यों को जब यह पता चला तो उन्होंने फूल भेजे जेल में भी और राष्ट्रपति भवन में भी .. जिस जेल में ओशो बंद थे वहाँ के जेलर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि मैंने पहली बार देखा जब किसी असंवैधानिक गिरफ्तारी का विरोध बिना हिंसा या उग्र प्रदर्शन के हुआ हो ..

उसने लिखा है कि वो 12 दिन मेरी जेल चर्च में बदल गई थी। अमेरिका के कोने कोने से ढेरों फूल, गुलदस्ते, गमले आ रहे थे। जब भी ओशो जेल से कोर्ट जाते, लोग उन्हें फूल भेंट करते। पूरा न्यायालय परिसर फूलों से भर गया था। जज हैरान थे, पूरे पुलिस कर्मी हैरान थे।

तब जजों ने ओशो से कहा ... हम सभी असामान्य रूप से चकित हैं, हमने स्पेशल फोर्सेस बुलवा कर रखी थीं क्योंकि आपके शिष्य लाखों में हैं। प्रदर्शन उग्र हो सकता था। पर यहाँ तो सब उम्मीद के विपरीत हो रहा है। यह कैसा विरोध है?

तब ओशो ने कहा ... यही मेरी दी हुई शिक्षा है, वो जैसा प्रदर्शन करेंगे असल में वह मुझे, मेरे आचरण और मेरी शिक्षा को ही व्यक्त करेंगे!!

ओशो ने भारत में रहते हुए इंदिरा, नेहरू, हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई एवं अन्य सभी धर्मों में व्याप्त कुरीतियों का खुलेआम विरोध किया। पर ना तो नेहरू ने उन्हें जेल भेजा। ना इंदिरा ने, ना मोरारजी ने, ना चरण सिंह ने, ना अन्य किसी ने .....


क्योंकि सभी ये बात जानते थे कि ये आदमी इतना तर्कपूर्ण और अर्थपूर्ण है कि ये हमारे राजनैतिक शिकंजों में ना आ सकेगा ... ना हम इसका कभी विरोध कर सकेंगे क्योंकि हम आधारहीन हैं!


और अंततः CIA ने थैलियम नाम का धीमा ज़हर देकर उन्हें अत्यधिक दर्दनाक और यातनापूर्ण ढंग से मार दिया ... 1985 में दिया गये जहर से वे 5 सालों में 1990 में शरीर मुक्त हुए ..

क्योंकि जिसका तुम जवाब नहीं दे सकते, उसे मारना ही बेहतर लगता है। लेकिन शिष्यों ने तो फिर भी कोई विरोध नहीं किया। नाच गाकर, नृत्य में डूबकर ओशो को विदा किया ... कोई रोया नहीं। ना किसी ने किसी पर दोषारोपण किया। ना कोई विरोध, ना चक्काजाम, ना लोग मरे, ना शहर जलाए गए ..!


एक गुरु को इससे अधिक क्या चाहिए..

शिष्य ही गुरु का प्रतिबिंब होते हैं ..

जैसा शिष्य करेंगे दरअसल वही

गुरु की दी हुई शिक्षा होगी!


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 Yogesh Mittal Friend: 

   *भगवान का मंगल विधान*  

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          *(सत्य घटना पर आधारित)*


*पुरानी बात है - कलकत्ते में सर कैलाशचन्द्र वसु प्रसिद्ध डॉक्टर हो गये हैं। उनकी माता बीमार थीं। एक दिन श्रीवसु महोदय ने देखा—माता की बीमारी बढ़ गयी हैं, कब प्राण चले जायँ, कुछ पता नहीं।*


*रात्रि का समय था। कैलाश बाबू ने बड़ी नम्रता के साथ माताजी से पूछा- 'माँ, तुम्हारे मन में किसी चीज की इच्छा हो तो बताओ, मैं उसे पूरी कर दूँ।'*


*माता कुछ देर चुप रहकर बोलीं- 'बेटा! उस दिन मैंने बम्बई के अंजीर खाये थे। मेरी इच्छा है अंजीर मिल जायँ तो मैं खा लूँ।' उन दिनों कलकत्ते के बाजार में हरे अंजीर नहीं मिलते थे। बम्बई से मँगाने में समय अपेक्षित था । हवाई जहाज थे नहीं। रेल के मार्ग से भी आजकल की अपेक्षा अधिक समय लगता था।*


*कैलाश बाबू बड़े दुखी हो गये - माँ ने अन्तिम समय में एक चीज माँगी और मैं माँ की उस माँग को पूरी नहीं कर सकता, इससे बढ़कर मेरे लिये दु:ख की बात और क्या होगी ? पर कुछ भी उपाय नहीं सूझा । रुपयों से मिलने वाली चीज होती तो कोई बात नहीं थी ।*


*कलकत्ते या बंगाल में कहीं अंजीर होते नहीं, बाजार में भी मिलते नहीं। बम्बई से आने में तीन दिन लगते हैं। टेलीफोन भी नहीं, जो सूचना दे दें। तब तक पता नहीं - माता जी जीवित रहें या नहीं, अथवा जीवित भी रहें तो खा सकें या नहीं। कैलाश बाबू निराश होकर पड़ गये और मन-ही-मन रोते हुए कहने लगे—'हे भगवन्! क्या मैं इतना अभागा हूँ कि माँ की अन्तिम चाह को पूरी होते नहीं देखूँगा।*


*रात के लगभग ग्यारह बजे किसी ने दरवाजा खोलने के लिये बाहर से आवाज दी। डॉक्टर वसु ने समझा, किसी रोगी के यहाँ से बुलावा आया होगा। उनका चित्त बहुत खिन्न था। उन्होंने कह दिया-'इस समय मैं नहीं जा सकूँगा।*


 *बाहर खड़े आदमी ने कहा- 'मैं बुलाने नहीं आया हूँ, एक चीज लेकर आया हूँ-दरवाजा खोलिये।' दरवाजा खोला गया। सुन्दर टोकरी हाथ में लिये एक दरवान ने भीतर आकर कहा-'डॉक्टर साहब! हमारे बाबूजी अभी बम्बई से आये हैं, वे सबेरे ही रंगून चले जायँगे, उन्होंने आपको यह अंजीर की टोकरी भेजी है, वे बम्बई से लाये हैं। उन्होंने मुझसे कहा कि वे सबेरे जल्दी ही रंगून चले जाएंगे इसलिये अभी अंजीर दे आओ । इसीलिये मैं अभी लेकर आ गया। कष्ट के लिये क्षमा कीजियेगा ।*

     

*कैलाश बाबू अंजीर का नाम सुनते ही उछल पड़े। उन्हें उस समय कितना और कैसा अभूतपूर्व आनन्द हुआ, इसका अनुमान कोई नहीं लगा सकता। उनकी आँखों में हर्ष के आँसू आ गये, शरीर  आनन्द से रोमांचित हो गया। अंजीर की टोकरी को लेकर वे माताजी के पास पहुँचे और बोले—‘माँ! लो - भगवान् ने अंजीर तुम्हारे लिये भेजे हैं।'*


*उस समय माता का प्रसन्न मुख देखकर कैलाश बाबू इतने प्रसन्न हुए, मानो उन्हें जीवन का परम दुर्लभ महान् फल प्राप्त हो गया हो ।*


*बात यह थी कि, एक गुजराती सज्जन, जिनका फार्म कलकत्ते और रंगून में भी था, डॉक्टर कैलाश बाबू के बड़े प्रेमी थे। वे जब भी बम्बई से आते, तब अंजीर लाया करते थे।*


*भगवान्‌ के मंगल विधान का आश्चर्य देखिये, कैलाश बाबू की मरणासन्न माता आज रात को अंजीर चाहती है और उसकी चाह को पूर्ण करने की व्यवस्था बम्बई में चार दिन पहले ही हो जाती है और ठीक समय पर अंजीर कलकत्ते उनके पास आ पहुँचते हैं! एक दिन पीछे भी नहीं, पहले भी नहीं।*


🙏

*आप भगवान को मानते हों या न मानते हों! कोई तो है - जो इस दुनिया को चलाता है और अपने कालचक्र के अनुसार बुरों को भी उनके अन्जाम तक पहुँचाता है और अच्छों को उनकी अच्छाई का पुरुस्कार भी देता है!*


*इसे कहते हैं कि परमात्मा जिसको जो चीज देना चाहते हैं उसके लिए किसी न किसी को निमित्त बना ही देते हैं। इसलिए यदि कभी किसी की मदद करने को मिल जाये तो अहंकार न कीजियेगा।*

*बस इतना समझ लीजियेगा कि परमात्मा आपको निमित्त बनाकर किसी की सहायता करना चाह रहे हैं....। इसका अर्थ ये हुआ कि आप परमात्मा की नजर में हैं।*


By :

*अरुण कुमार शुक्ला*


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