गीता ज्ञान दर्शन अध्याय 2 भाग 22

 



 यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम्

सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम्।। ३२।।


हे पार्थअपने आप प्राप्त हुए और खुले हुए स्वर्ग के द्वाररूप इस प्रकार के युद्ध को भाग्यवान क्षत्रिय लोग ही पाते हैं।


इस दूसरे सूत्र में भी वे क्षत्रिय की धन्यता की स्मृति दिला रहे हैं। क्षत्रिय की क्या धन्यता है।  वह कैसे आप्तकाम हो सकता है, कैसे भर सकता है पूरा।

युद्ध ही उसके लिए अवसर है। वहीं वह कसौटी पर है। वहीं चुनौती है, वहीं संघर्ष है, वहां मौका है जांच का; उसके क्षत्रिय होने की अग्निपरीक्षा है। कृष्ण कह रहे हैं कि जैसे स्वर्ग और नर्क के द्वार पर कोई खड़ा हो और चुनाव हाथ में हो। युद्ध में उतरता है तू, चुनौती स्वीकार करता है, तो स्वर्ग का यश तेरा है। भागता है, पलायन करता है, पीठ दिखाता है, तो नर्क का अपयश तेरा है। यहां स्वर्ग और नर्क किसी भौगोलिक स्थान के लिए सूचक नहीं हैं। क्षत्रिय का स्वर्ग ही यही है...।

वह जो कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि स्वर्ग और नर्क, जिसके सामने दोनों के द्वार खुले हों, ऐसा क्षत्रिय के लिए युद्ध का क्षण है। वहीं है कसौटी उसकी, वहीं है परीक्षा उसकी। जिसकी तू प्रतीक्षा करता था, जिसके लिए तू तैयार हुआ आज तक, जिसकी तूने अभीप्सा और प्रार्थना की, जो तूने चाहा, वह आज पूरा होने को है। और ऐन वक्त पर तू भाग जाने की बात करता है! अपने हाथ से नर्क में गिरने की बात करता है!

क्षत्रिय के व्यक्तित्व को उसकी पहचान कहां है? उस मौके में, उस अवसर में, जहां वह जिंदगी को दांव पर ऐसे लगाता है, जैसे जिंदगी कुछ भी नहीं है। इसके लिए ही उसकी सारी तैयारी है। इसकी ही उसकी प्यास भी है। यह मौका चूकता है वह, तो सदा के लिए तलवार से धार उतर जाएगी; फिर तलवार जंग खाएगी, फिर आंसू ही रह जाएंगे।

अवसर है प्रत्येक चीज का। ज्ञानी का भी अवसर है, धन के यात्री का भी अवसर है, सेवा के खोजी का भी अवसर है। अवसर जो चूक जाता है, वह पछताता है। और जब व्यक्तित्व को उभरने का आखिरी अवसर हो, जैसा अर्जुन के सामने है, शायद ऐसा अवसर दोबारा नहीं होगा, तो कृष्ण कहते हैं, उचित ही है कि तू स्वर्ग और नर्क के द्वार पर खड़ा है। चुनाव तेरे हाथ में है। स्मरण कर कि तू कौन है! स्मरण कर कि तूने अब तक क्या चाहा है! स्मरण कर कि यह पूरी जिंदगी, सुबह से सांझ, सांझ से सुबह, तूने किस चीज की तैयारी की है! अब वह तलवार की चमक का मौका आया है और तू जंग देने की इच्छा रखता है?

(भगवान कृष्‍ण के अमृत वचनों पर ओशो के अमर प्रवचन) 
हरिओम सिगंल

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