गीता ज्ञान दर्शन अध्याय 2 भाग 20

  आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन-

माश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः

आश्चर्यवच्चैनमन्यः शृणोति
श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित्।। २९।।


और हे अर्जुनयह आत्मतत्व बड़ा गहन हैइसलिए कोई (महापुरुष) ही इस आत्मा को आश्चर्य की तरह देखता है और वैसे ही दूसरा कोई महापुरुष ही आश्चर्य की तरह इसके तत्व को कहता है और दूसरा कोई ही इस आत्मा को आश्चर्य की तरह सुनता है और कोई सुनकर भी इस आत्मा को नहीं जानता।


बड़ी अदभुत बात है। एक तो कृष्ण कहते हैंइस आत्मा की दिशा में किसी भी मार्ग से गति करने वाला एक आश्चर्य है एक चमत्कार हैं। किसी भी दिशा से उन्मुख होने वाला आत्मा की तरफ--एक चमत्कार है। क्योंकि करोड़ों-करोड़ों में कभी कोई एक उस ऊंचाई की तरफ आंख उठाता है। अन्यथा हमारी आंखें तो जमीन में गड़ी रह जाती हैंआकाश की तरफ कभी उठती ही नहीं। नीचाइयों में उलझी रह जाती हैंऊंचाइयों की तरफ हमारी आंख की कभी उड़ान नहीं होती। कभी हम पंख नहीं फैलाते आकाश की तरफ। कभी करोड़ों-करोड़ों में कोई एक आदमी...।

इस जगत में सबसे बड़ा आश्चर्य शायद यही है कि कभी कोई आदमी स्वयं को जानने के लिए आतुर और पिपासु होता है। होना नहीं चाहिए ऐसालेकिन है ऐसा। मैं कौन हूं? यह कोई पूछता ही नहीं। होना तो यह चाहिए कि यह बुनियादी प्रश्न होना चाहिए प्रत्येक के लिए। क्योंकि जिसने अभी यह भी नहीं पूछा कि मैं कौन हूंउसके और किसी बात के पूछने का क्या अर्थ है! और जिसने अभी यह भी नहीं जाना कि मैं कौन हूंवह और जानने निकल पड़ा हैजिसका खुद का घर अंधेरे से भरा हैजिसने वहां भी दीया नहीं जलायाउससे ज्यादा आश्चर्य का आदमी नहीं होना चाहिए।


लेकिन कृष्ण बडा व्यंग्य करते हैंवे बड़ी मजाक करते  है। वे यह कहते हैं कि अर्जुनबड़े आश्चर्य की बात है कि कभी करोड़ों-करोड़ों में कोई एक आदमी आत्मा के संबंध में खोज परजानने पर निकलता है। लेकिन पीछे और एक मजेदार बात कहते हैं।

वे कहते हैंलेकिन वह आत्मा सोचने-समझनेमनन से नहीं उपलब्ध होता हैविचार से नहीं उपलब्ध होता है। एक तो यही आश्चर्य है कि मुश्किल से कभी कोई उसके संबंध में विचार करता है। लेकिन विचार करने वाला भी उसे पा नहीं लेता है। पाता तो उसे वही हैजो विचार करते-करते विचार का भी अतिक्रमण कर जाता है। जो विचार करते-करते वहां पहुंच जाता हैजहां विचार कह देता है कि बसअब आगे मेरी गति नहीं है।

एक तो करोड़ों में कभी कोई विचार शुरू करता है। और फिर उन करोड़ों मेंजो विचार करते हैंकभी कोई एक विचार की सीमा के आगे जाता है। और विचार की सीमा के आगे जाए बिनाउसका कोई अनुभव नहीं है। क्योंकि आत्मा का होना विचार के पूर्व है। आत्मा विचार के पीछे और पार है। विचार आत्मा के ऊपर उठी हुई लहरें हैंतरंगें हैं। विचार आत्मा की सतह पर दौड़ते हुए हवा के झोंके हैं। विचार से आत्मा को नहीं जाना जा सकता। आत्मा से विचारों को जाना जा सकता है। क्योंकि विचार ऊपर हैंआत्मा पीछे है। विचार को आत्मा से जाना सकता हैविचार से आत्मा को नहीं जाना जा सकता। मैं अपने हाथ से इस रूमाल को पकड़ सकता हूं। लेकिन इस रूमाल से अपने हाथ को नहीं पकड़ सकता। हाथ पीछे है। विचार बहुत ऊपर है।

एक जगत है हमारे बाहरवस्तुओं कावह बाहर है। फिर एक जगत है हमारे भीतरविचारों कालेकिन वह भी बाहर है। हम उसके भी पीछे हैं। हमारे बिना वह नहीं हो सकता। हम उसके बिना भी हो सकते हैं। रात जब बहुत गहरी नींद में सो गए होते हैं--सुषुप्ति में--तब कोई विचार नहीं रह जातालेकिन आप होते हैं। सुबह कहते हैंस्वप्न भी नहीं थाविचार भी नहीं थाबड़ी गहरी थी नींद। लेकिन आप तो थे। विचार के बिना आप हो सकते हैंलेकिन कभी आपका विचार आपके बिना नहीं हो सकता। वह जो पीछे हैवह विचार को जान सकता हैलेकिन विचार उसे नहीं जान सकते।

लेकिन हम विचार से ही जानने की कोशिश करते हैं। पहले तो हम जानने की कोशिश ही नहीं करते। वस्तुओं को जानने की कोशिश करते हैं। वस्तुओं से किसी तरह करोड़ों में एक का छुटकारा होता हैतो विचारों में उलझ जाता है। क्योंकि वस्तुओं के बाद विचारों का जगत है। विचार से भी किसी का छुटकारा होतो स्वयं को जान पाता है।

तो कृष्ण कहते हैंचिंतन सेमनन सेअध्ययन सेप्रवचन से उसे नहीं जाना जा सकता। एक और मजे की बात उन्होंने इसमें कही है कि आश्चर्य है कि कोई आत्मा के संबंध में समझाएउपदेश दे।

पहली तो बात इसलिए आश्चर्य है कि कोई आत्मा के संबंध में उपदेश देक्योंकि आत्मा किसी की भी आवश्यकता नहीं हैउपदेश सुनेगा कौन बाजार में वही चीज बिक सकती हैजो किसी की जरूरत हो। आत्मा किसी की भी जरूरत नहीं है। इसलिए जो आत्मा के संबंध में उपदेश देने की हिम्मत करता हैबिलकुल पागल आदमी है। कोई जिस चीज को लेने को तैयार नहींउसको बेचने निकल पड़े!

वह कृष्ण को खुद भी समझ में आ रहा होगा कि अर्जुन की जो मांग नहींजो उसकी डिमांड नहींवे उसकी सप्लाई कर रहे हैं। वह बेचारा कुछ और मांग रहा है।  वह मांग रहा है पलायन,  वह मांग रहा है सांत्वना। वह कह रहा हैमुझे किसी तरह बचाओनिकालो इस चक्कर से। वह आत्मा वगैरह की बात ही नहीं कर रहा है। वह किसी की जरूरत नहीं है। इसलिए आश्चर्य है कि कभी कोई आदमी आत्मा को बेचने निकल जाता है!

पर कुछ लोग सनकी होते हैंआत्मा को भी समझाने लगते हैं। एक तो यह आश्चर्य है कि कोई समझने को जिसे तैयार नहीं है...।
(भगवान कृष्‍ण के अमृत वचनों पर ओशो के अमर प्रवचन)
हरिओम सिगंल

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