संजय उवाच
तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः।। १।।
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन।। २।।
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परंतप।। ३।।
संजय ने अर्जुन के लिए, दया से भरा हुआ, दया के आंसू आंख में लिए, ऐसा कहा है। दया को थोड़ा समझ लेना जरूरी है। संजय ने नहीं कहा, करुणा से भरा हुआ; कहा है, दया से भरा हुआ।
साधारणतः शब्दकोश में दया और करुणा पर्यायवाची दिखाई पड़ते हैं। साधारणतः हम भी उन दोनों शब्दों का एक-सा प्रयोग करते हुए दिखाई पड़ते हैं। उससे बड़ी भ्रांति पैदा होती है। दया का अर्थ है, परिस्थितिजन्य; और करुणा का अर्थ है, मनःस्थितिजन्य। उनमें बुनियादी फर्क है।
करुणा व्यक्ति की अंतस चेतना का स्रोत है। वहां सुगंध की भांति करुणा उठती है। इसलिए बुद्ध को या महावीर को दयावान कहना गलत है, वे करुणावान हैं, महाकारुणिक हैं।
इस स्वर को कृष्ण ने पकड़ा है। इसलिए मैंने कहा कि कृष्ण इस पृथ्वी पर पहले मनोवैज्ञानिक हैं। क्योंकि दूसरा सूत्र कृष्ण का सिर्फ अर्जुन के अहंकार को और बढ़ावा देने वाला सूत्र है।
दूसरे सूत्र में कहते हैं, कैसे अनार्यों जैसी तू बात करता है? आर्य का अर्थ है श्रेष्ठजन, अनार्य का अर्थ है निकृष्टजन। आर्य का अर्थ है अहंकारीजन, अनार्य का अर्थ है दीन-हीन। तू कैसी अनार्यों जैसी बात करता है!
सभी स्वयं को पीड़ा देने वाले लोग जल्दी सज्जन हो सकते हैं। अगर मैं आपको भूखा मारूं, तो दुर्जन हो जाऊंगा। कानून, अदालत मुझे पकड़ेंगे। लेकिन मैं खुद ही अनशन करूं, तो कोई कानून, अदालत मुझे पकड़ेगा नहीं; आप ही मेरा जुलूस निकालेंगे।
हरिओम सिगंल
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