शनिवार, 22 अप्रैल 2023

सूरदास

एक दिन ऐसी घटना हुई कि जिसने सूरदास के मन को मोह लिया। हुआ ये की एक सुन्दर नवयुवती कन्या नदी किनारे कपडे धो रही थी ।

इन  का ध्यान उनकी तरफ चला गया। उस युवती ने इनको ऐसा आकर्षित किया की ये कविता लिखना छोड़-छाड़ के तथा पुरे ध्यान से उस युवती को देखने लगे।

उनको ऐसा लगा मानो यमुना किनारे राधिका स्नान कर के बैठी हो । उस नवयुवती ने भी सूरदास की तरफ देखा और उनके पास आकर बोली आप मदन मोहन जी हो ना?

तो वे बोले हां मैं हीं मदन मोहन हूँ। कविताये लिखता हूँ तथा गाता हूँ आपको देखा तो रुक गया। नवयुवती ने पूछा क्यों ? तो वह बोले आप हो ही इतनी सुन्दर। 

ये सिलसिला कई दिनों तक चला। जब यह बात मदन मोहन के पिता को पता चली तो उनको बहुत क्रोध आया तो लगाई मदन मोहन को तगड़ी फटकार इस पर मदन मोहन ने घर छोड़ दिया। पर उस सुन्दर युवती का चेहरा उनके सामने से नहीं जा रहा था एक दिन वह मंदिर मे बैठे थे तभी वहाँ एक शादीशुदा बहुत ही सुन्दर स्त्री आई। मदन मोहन समझ गये और उनके पीछे पीछे चल दिए। जब वह उसके घर पहुंचे तो उनके पति ने दरवाजा खोला तथा पुरे आदर सम्मान के साथ उन्हें अंदर बिठाया। फिर मदन मोहन ने दो जलती हुए सिलाई मांगी तथा उसे अपनी आँख में डाल दी। इस तरह मदन मोहन बने महान कवि सूरदास।

ऐसा भी माना जाता है कि इनका वास्तविक नाम सूरध्वज था। और इनको सूरदास की उपाधि इनके गुरु वल्लभाचार्य ने दी थी।

कुछ यह भी मानते हैं कि सूरदास जन्म से ही अन्धे थे। परन्तु सूर वास्तव में जन्मान्ध नहीं थे, क्योंकि शृंगार तथा रंग-रुपादि का जो वर्णन उन्होंने किया है वैसा कोई जन्मान्ध नहीं कर सकता।


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