गीता ज्ञान दर्शन अध्याय 2 भाग 23

  

अथ चेत्त्वमिमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसिततः स्वधर्मं कीघत च हित्वा पापमवाप्स्यसि।। ३३।।


अकीघत चापि भूतानि कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम्
संभावितस्य चाकीर्तिर्मरणादतिरिच्यते।। ३४।।


और यदि तू इस धर्मयुक्त संग्राम को नहीं करेगातो स्वधर्म को और कीर्ति को खोकर पाप को प्राप्त होगा।
और सब लोग तेरी बहुत काल तक रहने वाली अपकीर्ति को भी कथन करेंगे और वह अपकीर्ति माननीय पुरुष के लिए मरण से भी अधिक बुरी होती है।


अभय क्षत्रिय की आत्मा है। कैसा भी भय न पकड़े उसके मन कोकैसे भी भय के झंझावात उसे कंपाएं न। कैसा भी भय होमृत्यु का ही सहीतो भी उसके भीतर हलन-चलन न हो। 

तो कृष्ण अर्जुन को कह रहे हैंतू और भयभीततो कल जो तेरा सम्मान करते थेकल जिनके बीच तेरे यश की चर्चा थीकल जो तेरा गुणगान गाते थेकल तक जो तेरी तरफ देखते थे कि तू एक जीवंत प्रतीक है क्षत्रिय कावे सब हंसेंगे। अपयश की चर्चा हो जाएगीकीर्ति को धब्बा लगेगा। तू यह क्या कर रहा हैतेरा निज-धर्म है जोतेरी तैयारी है जिसके लिएजिसके विपरीत होकर तू जी भी न सकेगाकीर्ति के शिखर से गिरते हीतू श्वास भी न ले सकेगा।

और ठीक कहते हैं कृष्ण। अर्जुन जी नहीं सकता। क्षत्रिय मर सकता है गौरव सेलेकिन पलायन करके गौरव से जी नहीं सकता। वह क्षत्रिय होने की संभावना में ही नहीं है। तो कृष्ण कहते हैंजो तेरी संभावना हैउससे विपरीत जाकर तू पछताएगाउससे विपरीत जाकर तू सब खो देगा।

 कृष्ण क्या युद्धखोर हैं! लग सकता है कि युद्ध की ऐसी उत्तेजना! युद्ध के लिए ऐसा प्रोत्साहन! तो भूल हो जाएगीअगर आपने ऐसा सोचा।


कृष्ण सिर्फ एक मनस-शास्त्री हैं।  अर्जुन क्या हो सकता हैयह समझते हैंऔर अर्जुन क्या होकर तृप्त हो सकता हैयह समझते हैं। और अर्जुन क्या होने से चूक जाएतो सदा के लिए दुख और विषाद को उपलब्ध हो जाएगा और अपने ही हाथ नर्क मेंआत्मघाती हो जाएगायह भी समझते हैं।

वह जो कृष्ण कह रहे हैंवह युद्ध की बात नहीं कह रहे हैंभूलकर भी मत समझ लेना यह। इससे बड़ी भ्रांति पैदा होती है। कृष्ण जब यह कह रहे हैंतो यह बात  विशेष रूप से अर्जुन के टाइप के लिए निवेदित है। यह बातअर्जुन की जो संभावना हैउस संभावना के लिए उत्प्रेरित है। यह बात हर किसी के लिए नहीं है। यह हर कोई के लिए नहीं है।

कृष्ण युद्धखोर नहीं हैं। कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं यह। और आप भूलकर भी यह मत समझ लेना कि सबके लिएअर्जुन से कहा गया सत्यसत्य है। ऐसा भूलकर मत समझ लेना।

हांएक ही बात सत्य है उसमेंजो जनरलाइज की जा सकती हैऔर वह यह है कि प्रत्येक की संभावना ही उसका सत्य है। इससे अगर कोई भी बात निकालनी होतो इतनी ही निकलती है कि प्रत्येक की उसकी निज-संभावना ही उसके लिए सत्य है।
(भगवान कृष्‍ण के अमृत वचनों पर ओशो के अमर प्रवचन) 
हरिओम सिगंल

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