अगर आपका या कोई बच्चा, किसी परीक्षा परिणाम को लेकर चिंतित दिखें तो उसे गले से लगाना और कहना, चिंता की आवश्यकता ही नहीं, हाँ माना चिंता होती हैं हम भी निकले हैं इस दौर से, परंतु जो भी होगा हमें स्वीकार्य हैं हमें आपकी मेहनत पर पूर्ण विश्वास हैं... और फिर 90-95 की इस भीड़ में, 70-80 वाला भी कम नहीं होता, इन चंद अंक से पूरा जीवन तय नहीं होता..!
गीता का एक-एक अध्याय अपने में पूर्ण है। गीता एक किताब नहीं, अनेक किताबें है। गीता का एक अध्याय अपने में पूर्ण है। अगर एक अध्याय भी गीता का ठीक से समझ में आ जाए--समझ का मतलब, जीवन में आ जाए, अनुभव में आ जाए, खून में, हड्डी में आ जाए; मज्जा में, मांस में आ जाए; छा जाए सारे भीतर प्राणों के पोर-पोर में--तो बाकी किताब फेंकी जा सकती है। फिर बाकी किताब में जो है, वह आपकी समझ में आ गया। न आए, तो फिर आगे बढ़ना पड़ता है।
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