शनिवार, 11 नवंबर 2023

 अमृत बीज हालो, हलीम,चन्द्रशूर के फायदे गुण और उपयोग 

आयुर्वेद में कई ऐसे मसालों के बारे में बताया गया है, जो सुपरफूड की तरह काम करते हैं। आपने आज तक तरबूज के बीज, अलसी के बीज और मेथी के बीज के बारे में सुना होगा।  इनसे आपने कुछ मसालों का प्रयोग भी किया होगा। गार्डन क्रेस सीड्स को हिंदी में हलीम बीज के नाम से भी जाना जाता है, और महाराष्ट्र में यह हलीम सीड्स के नाम से भी लोकप्रिय है। यह छोटे लाल रंग के बीज आयरन, फोलेट, स्टार्च, विटामिन सी, ई, ई और प्रोटीन जैसे पोषक तत्वों का एक शक्तिशाली घर हैं।

हलीम के बीज में आयरन का उच्च स्तर लाल रक्त पाउडर के उत्पादन को बढ़ावा मिलता है और शरीर में हिमोग्लोबिन के स्तर को बनाने में भी मदद मिलती है। लंबे समय में वे कुछ हद तक बीमारी के इलाज में भी मदद कर सकते हैं। इस बीज की तासीर गर्म होती है। यही कारण है कि हलीम के बीजों का सेवन पानी में भिगोने के बाद ही किया जाता है।

1 खून की कमी को ठीक करता है:–

हलीम के यंत्र में लौह की प्रचुर मात्रा पाई जाती है। आयरन का अच्छा प्रोटीन प्रोटीन की वजह से यह बीज शरीर में होने वाली कमी को पूरा करने में मदद करता है।

2. वेट लॉस में है पोषक तत्व

हलीम के बीज में स्टार्च और प्रोटीन होता है। यह दोनों ही पोषक तत्व वेट लॉस में अपनी अहम भूमिका साझा करते हैं। ईसाइयों के अनुसार, हलीम के बीजों का सेवन करने से पेट लंबे समय तक भरा रहता है, इसके कारण भूख को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।

3. यह स्तन में दूध के उत्पादन को पुनःप्राप्त करता है :–

हलीम के बीज में प्रोटीन और आयरन की प्रचुरता होती है और इसमें गुणकारी गैलोगॉग गुण होते हैं। इसलिए यह बोतल से दूध  पिलाने वाली महिलाओं के लिए बेहद की लाभकारी होती हैं। गैलेक्टोगोग ऐसे खाद्य पदार्थ हैं जो स्तन ग्रंथि से स्तन के दूध के उत्पादन को प्रेरित करते हैं, उसे बनाए रखते हैं और बढ़ाने के लिए उपयोग किए जाते हैं।

4. मासिक धर्म को नियमित करने में मदद करता है :–

महिलाओं को गर्भधारण योजना के लिए मासिक धर्म चक्र को नियमित करना  बहुत जरूरी है। हलीम बीज फाइटोकेमिकल्स में समृद्ध है, जो एस्ट्रोजन हार्मोन की उत्पादन करता हैं, मासिक धर्म नियमित रूप से करते हैं।

इम्यूनिटी बूस्ट करें

फ्लेवो करोनोइड्स (एंटीऑक्सिडेंट्स), फोलिक एसिड और विटामिन-ए, सी और ई सेपेरिटन हलीम के बीज, शरीर की प्रतिरक्षा में सुधार के लिए एक बेहतरीन भोजन है जो आपको विभिन्न संक्रमणों और दवाओं से राहत दिलाने में मदद कर सकता है। इसके रोगाणुरोधी  बुखार, आंख और गले में खराश जैसे विभिन्न संक्रमणों को रोकने में मदद करते हैं।

ऐसे और भी कई फायदे हैं जो इस छोटे बीज को अपने आहार में शामिल करने से निश्चित रूप मिलते हैं ये । इस प्रकार  से आपके शरीर के पोषण को बढ़ाने वाला है।

इसका सेवन करने के लिए एक गिलास पानी में 1चमच हलीम के बीज को रात भर के लिए छोड़ दें। सुबह खाली पेट का सेवन करें।

इसके अलावा हलीम के मसाले को रोटी और सब्जी में मिलाकर भी शामिल किया जा सकता है।

काला जीरा,मेथी, अजवायन, हालों के बीज इन चारों को मिलाकर दवाई बनाई जाती है जो बहुत उपयोगी है।


मंगलवार, 7 नवंबर 2023

"कृष्णे !”

द्रौपदी का, अब तक का सहेजकर रखा गया संयम टूट गया। इतने दिनों से वह जिसकी प्रतीक्षा कर रही थी, उसका वह सखा आ गया था पहले उसकी आँखें भर आईं, और फिर टप-टप आँसू गिरने लगे । स्वयं को सँभालने के, उसके सारे प्रयत्न निष्फल हो गए, तो वह सशब्द रो उठी ।

"पांचाली !” कृष्ण का स्वर शीतल वयार का सा प्रभाव लिये हुए था । “मैं अब और नहीं सह सकती केशव ! असहनीय है, यह सब कुछ मेरे लिए ।" द्रौपदी हिचकियों के मध्य बोली, “जिसका कोई न हो, उस अनाथा का भी, इतना अपमान नहीं होता। वह अपमान ।"

"मैं समझता हूँ कृष्णे !” कृष्ण बोले, "और यह भी कहा कि निश्चय ही, कौरव इस पाप का भीषण दंड पाएँगे। धर्म उनको कभी क्षमा नहीं करेगा ।"

लगा, द्रौपदी के शरीर पर जैसे कशाघात हुआ सारा शरीर झकोला खा गया। भीतरी ताप से उसके अश्रु सूख गए । हिचकियां बंद हो गई। आँखों से चिंगारियाँ फूटने लगीं, “नाम मत लो धर्म का उसके लिए ये धर्मराज ही बहुत हैं ।"

कृष्ण, उस स्थिति में भी मुस्करा पड़े "धर्मराज !...." 'धार्तराष्ट्रों के विरुद्ध मेरे  मन में क्या  है, वह कहने की बात नहीं ।"

 द्रौपदी आवेश भरे स्वर में बोली, “मैं धिक्कारती  हूँ अपने इन पाँच पतियों को, इनके क्षत्रियत्व को, इनके युद्ध-कौशल इनके दिव्यास्त्रों को ..." द्रौपदी अग्नि-शिखा- सी जल रही थी, “केशों से पकड़, दुःशासन, मुझे भरी सभा में घसीट लाया; और ये लोग बैठे देखते रहे । वे मुझे निर्वस्त्र करने का प्रयत्न करते रहे, काम-भोग का निमंत्रण देते रहे; और ये सिर झुकाए धर्म-चिंतन करते रहे। क्या करूँ मैं धर्मराज के धर्म का, मध्यम के बल का, धनंजय के गांडीव का, सहदेव की खड्ग का तथा नकुल की अश्व संचालन क्षमताओं का ? ये सब मिलकर भी अपनी पत्नी के सम्मान की रक्षा नहीं कर सके ! एक साधारण-सा अपंग पुरुष भी, अपनी पत्नी के सम्मान की रक्षा के लिए दहाड़ता और चिंघाड़ता है और दिव्यास्त्रों से सज्जित ये विश्वविख्यात् क्षत्रिय योद्धा मुँह लटकाए बैठे, अपने पैरों के अंगूठों से भूमि कुरेदते रहे । धर्म- ।"

"मैं तुम्हारा कष्ट समझता हॅू कृष्णा !" कृष्ण धीरे से बोले, "यदि मैं वहाँ उपस्थित होता, तो निश्चित् रूप से दुर्योधन यह सब नहीं कर पाता । "

" पर तुम वहाँ उपस्थित नहीं थे केशव !” द्रौपदी का स्वर पुनः आरोह की ओर बढ़ा, "और धर्मराज आज भी क्षमा को प्रतिशोध से अधिक वरेण्य बता रहे हैं । अब तुम ही कहो, मैं यह सारा अत्याचार कैसे भूल जाऊँ ?”

"तुम भूल भी जाओ, तो मैं नहीं भूलूँगा । धर्म इसे नहीं भूलेगा, प्रकृति इसे नहीं भूलेगी। प्रकृति कुछ नहीं भूलती । धार्तराष्ट्रों को उनके कृत्य का फल अवश्य मिलेगा। कौरव दंडित होंगे ।"

"कौन दंड देगा उन्हें ?" द्रौपदी का अविश्वास जैसे मूर्तिमंत हो उठा, "धर्मराज ?"

"हाँ ! धर्मराज उन्हें दंडित करेंगे। पाँचों पांडव मिलकर उन्हें दंडित करेंगे ।" कृष्ण की आँखों में एक असाधारण ज्योति थी, "वे नहीं करेंगे, तो मैं कौरवों को दंडित करूँगा । यदि धर्मराज को आपत्ति न हो, तो मैं यहीं से, हस्तिनापुर चलने को प्रस्तुत हूँ । उन सारे पापियों का संहार मैं स्वयं अपने हाथों से, वैसे ही कर दूँगा, जैसे शिशुपाल का किया था ।"

द्रौपदी उन आँखों को देख नहीं रही थी, वह तो उनके तेज का पान कर रही थी । उसके चेहरे पर उभर आई उग्र रेखाएँ कुछ शांत हुईं। नयनों में कुछ विश्वास जागा, "मैं तुम्हारे वचन पर अविश्वास नहीं करूँगी केशव मै तो मानती हूँ कि कौरवों की उस सभा में, मेरी रक्षा, तुमने ही की है। द्रौपदी का स्वर शांत था, “तुम वहाँ उपस्थित चाहे नहीं थे, किंतु तुम वर्तमान थे । दुःशासन के मन में तुम्हारा ही भय था, जिसने मेरी रक्षा ली; नहीं तो उन पिशाचों ने अपनी ओर से कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी।"

"बहन !" धृष्टद्युम्न ने पहली बार मुंह खोला, "जब वासुदेव ने कह दिया तो निश्चित् जानों कि कौरवों को इसका दंड अवश्य दिया जाएगा। इन नीचों को अपने रक्त से, अपने पिशाच कृत्यों का मूल्य चुकाना होगा। इनमें से एक भी क्षमा नहीं किया जायेगा ।"

द्रौपदी चुप रही, किंतु उसकी आँखों से पुनः अश्रु बह निकले, जैसे उसके भीतर का दुख रह-रहकर, हृदय से उठकर आँखों में आ जाता था ।

"मैं क्या करूँ ! मैं उस दृश्य को भूल नहीं पाती । और जब-जब मुझे उसकी याद आती है, मैं जैसे फिर से उस सभा में खड़ी कर दी जाती हूँ। मेरे कानों में उन दुष्टों के अट्टहास और अपशब्द गूँजने लगते हैं। उनकी दृष्टियाँ मेरे शरीर को भेदने लगती हैं। कैसे बताऊँ कि मेरे मन में अपने पतियों के लिए, कैसे-कैसे धिक्कार उठने लगते हैं । मेरे मन में इतनी भयंकर प्रतिहिंसा जागती है कि, इच्छा होती है, सारी सृष्टि को जलाकर क्षार कर दूँ ।"

"नहीं द्रौपदी ! यह मानव-धर्म नहीं है ।" कृष्ण की वाणी सांत्वना देकर, रक्त के तप्त कणों को शांत ही नहीं करती थी, सारे शरीर में जैसे बल का संचार कर जाती थी ।

द्रौपदी की उग्रता, उस वाणी से क्षीण होकर भी, पुनः भड़क उठी, "फिर वही धर्म ! धर्म की चर्चा मुझसे मत करो। मुझे धर्म से घृणा हो गई है । 

नरेंद्र कोहली 



सोमवार, 6 नवंबर 2023

 अब धृष्टद्युम्न स्वयं को रोक नहीं पाया। बोला, “कृष्णे ! तुम्हें अपने इन महावीर पतियों पर तनिक भी क्रोध नहीं आता ? ये अपना इतना अपमान सहकर क्लीवों के समान चुपचाप वहाँ से चले आए और अब तपस्वी-मुनियों के समान यहाँ शांतिपूर्वक बैठे, साधना कर रहे हैं।"

द्रौपदी के चेहरे पर सहमति नहीं उभरी। बोलीं , "मैं अपने भाई को यह अधिकार नहीं दे सकती, कि वह मेरे सम्मुख मेरे पतियों की निन्दा करे। वे साधारण जन नहीं हैं । वे अपने धर्म पर अटल हैं; और मैं भी अपने धर्म पर दृढ़ हूँ। मैं अपने भाई अथवा पिता के द्वारा अपने पतियों को अपमानित होते नहीं देखना चाहती ।"

 धृष्टद्युम्न सँभल गया कृष्णा केवल उसकी बहन ही नहीं, पांडवों की पत्नी भी थी। पति से अधिक घनिष्ठ और विश्वसनीय और कोई व्यक्ति नहीं होता, भाई भी नहीं ! 

"मैं उनका अपमान करना नहीं चाहता। वे अपने धर्म पर अटल हैं, यह तो उचित ही है; किंतु धर्मराज को द्यूत में अपनी पत्नी को दाव पर लगाने की क्या आवश्यकता थी ?" इच्छा होते हुए भी, धृष्टद्युम्न स्वयं को रोक नहीं पाया, "नारी पर इतना अत्याचार !और तुम उसे धर्म कह रही हो।"

द्रौपदी की आँखें, अपने भाई की ओर उठीं। उनमें कटाक्ष था, "क्या अब परिवार को भी नारी और पुरुष में विभक्त कर देखा जायेगा ? जब महाराज शांतनु की पट्टमहिषी गंगा ने अपने सात-सात पुत्र देव-सरिता में प्रवाहित कर जीवन- मुक्त कर दिया था, तब तो किसी ने नहीं पूछा था कि वे नारी होकर पुरुषों पर इतना अत्याचार क्यों कर रही माँ और पुत्र का संबंध भी क्या 'नारी' और 'पुरुष' के रूप में वर्गीकृत हो सकता है ?"

"नहीं !" धृष्टद्युम्न को द्रौपदी की उक्ति में ही अपना समर्थन मिल गया, “किंतु पति और पत्नी का संबंध तो स्त्री और पुरुष का ही है ।"

“नहीं ! वह दो समुदायों के प्रतिनिधियों का मिलन नहीं है । वह दो व्यक्तियों का एक हो जाने का प्रयत्न है ।" द्रौपदी बोली, "और जहाँ तक धर्मराज के द्यूत का संबंध है, उन्होंने पहले अपने भाइयों को दाव पर लगाया, जो पुरुष हैं।" द्रौपदी का स्वर कुछ उग्र हो उठा,

 “वे कभी न चाहते कि उनके भाई और उनकी पत्नी दाव पर लगें; किंतु वे द्यूत-शास्त्र, द्यूत-परंपरा और धृतराष्ट्र के आदेश का क्या करते ! संपत्ति शेष रहते, कोई पक्ष द्यूत से उठ नहीं सकता था। अब बताओ, तुम्हारे अर्थशास्त्र के अनुसार, परिवार के सदस्य, परिवार के मुखिया की संपत्ति हैं या नहीं ? तुम पिताजी की संपत्ति हो या नहीं ? तुम्हारी पत्नी और संतान, तुम्हारी संपत्ति हैं या नहीं ? गंगा के पुत्र उनकी संपत्ति थे या नहीं ?"

“तुम सत्य कह रही हो ।" धृष्टद्युम्न का स्वर मंद हो गया । " मैंने अपने पिता के संकल्प के कारण हवन कुंड से पुनर्जन्म ग्रहण किया था; और वीर्य-शुल्का बन गई थी," द्रौपदी की आँखों में तेज लहरा रहा था, "अब जब मैं अपने पति के धर्म के कारण दावँ पर लगी, तो स्थिति बदल गई ? तब 'पुत्री' थी, तो अब 'पत्नी' क्यों नहीं हूँ ? अब मैं पत्नी न रहकर 'स्त्री' हो गई ? क्या तुम नहीं समझते भैया ! कि मैंने कांपिल्य के धनुर्यज्ञ में कर्ण का जो तिरस्कार किया था, कर्ण उसका प्रतिशोध ले रहा है। जो पीड़ा मैंने उसे दी, वह उससे शतगुणित पीड़ा पांडवों को दे रहा है ? पांडव, महाराज द्रुपद के जामाता हैं, इसलिए वे भीष्म और द्रोण के द्वारा तिरस्कृत हो रहे है ? मैं उनके कारण कष्ट नहीं पा रही; वे मेरे कारण अपमानित और प्रताड़ित हो रहे हैं ।"

धृष्टद्युम्न कुछ क्षण मौन खड़ा, द्रौपदी के इस रूप को देखता रहा। पंडिता तो वह पहले भी थी। तर्क भी किया करती थी । किंतु इतनी सहिष्णु तो वह कभी नहीं थी...." मैंने कभी इस रूप में नहीं सोचा कृष्णे !" अंततः धृष्टद्युम्न बोला, "तुम जानती हो, मैं योद्धा हूँ, तुम्हारे समान दार्शनिक कभी नहीं रहा। जब चर्चा होती है, विश्लेषण होता है, तो मैं भी कुछ-कुछ समझने लगता हूँ कि धर्मराज युधिष्ठिर असाधारण हैं, हमसे, सब सामान्य लोगों से भिन्न हैं, उदात्त हैं, किंतु मेरी प्रकृति इससे विद्रोह करती है । मैं अपने विपक्षी के विरुद्ध, तत्काल शस्त्र उठा लेना चाहता हूँ, धर्मराज के समान, उसे क्षमा नहीं कर देना चाहता । तुम जानती हो कृष्णा ! मैं अपनी प्रकृति को बदल नही सकता। मैं हवन- में से उत्पन्न हुआ हूँ, अग्नि के रथ पर । मैं जिस धर्म को जानता और हूँ, वह क्षत्रिय धर्म है-- ।"

"तुम कहना चाहते हो भैया ! कि पांडव क्षत्रिय धर्म का पालन नहीं कर रहे ? भीम और अर्जुन क्षत्रिय नहीं धृष्टद्युम्न ने कोई उत्तर नहीं दिया वह यह कैसे कह सकता था कि भीम और अर्जुन क्षत्रिय नहीं हैं" न यह कह सकता था कि वे अपने धर्म का आचरण नहीं कर रहे" 

" वस्तुतः मात्र हिंसा करने वाला क्षत्रिय नहीं है ।" द्रौपदी का स्वर एक गहरी गूँज लिये हुए था, "कई बार तो धर्म, शस्त्र न उठाने में होता है ।"

धृष्टद्युम्न समझ गया । बहन से तर्क-वितर्क करना व्यर्थ था। अग्नि कुंड में से, उसके साथ जन्मी, उसकी यह सहोदरा, अब कदाचित् अग्नि-धर्मा नहीं रह गई थी । वह धर्मराज के प्रभाव में शीतलमना हो गई थी. "तो फिर अब तुम लोगों की क्या योजना है ?" 

धृष्टद्युम्न का स्वर, कुछ उत्तेजना लिये हुआ था, “क्या तुम लोग मोक्ष प्राप्ति तक यहीं साधना करना चाहते हो ?..." और सहसा, उसे जैसे कुछ नया सूझ गया, "वैसे तुम्हें यह भी बता दूँ कृष्णे ! यदि धर्मराज शांतिपूर्वक यहाँ, वन में, तपस्वी का जीवन व्यतीत करना चाहें, तो वह दुष्ट दुर्योधन, उन्हें वह भी नहीं करने देगा। तुम लोग यहाँ तनिक भी सुरक्षित नहीं हो ।"

नरेंद्र कोहली 

 

कुछ फर्ज थे मेरे, जिन्हें यूं निभाता रहा।  खुद को भुलाकर, हर दर्द छुपाता रहा।। आंसुओं की बूंदें, दिल में कहीं दबी रहीं।  दुनियां के सामने, व...