मंगलवार, 16 मई 2023

घोस्ट राइटिंग

 

हिंदी में जो लोकप्रिय साहित्य की दुनिया रही है, उसमें योगेश मित्तल दशकों से सक्रिय रहे हैं। मगर उन्होंने अपने नाम से नहीं, दूसरे कई ट्रेड नामों से लेखन किया है- यानी गोस्ट राइटिंग। 'प्रेत लेखन' और 'वेद प्रकाश शर्माः यादें, बातें और अनकहे किस्से' शीर्षक से हाल में उन्होंने दो किताबें लिखी है, जो पॉकेट बुक्स, गोस्ट राइटिंग और लुगदी उपन्यास के संसार की अंतरंग कहानी कहती हैं। प्रस्तुत हैं अमितेश कुमार की योगेश मित्तल से हुई लंबी बातचीत के मुख्य अंशः

■ आपने गोस्ट राइटिंग की शुरुआत कैसे की ?

 मुझे 1970 में पॉकेट बुक पब्लिशर जानने लगे थे। मैंने गर्ग एंड कंपनी, मनोज पॉकेट बुक्स और मेरठ के कई पब्लिशर के लिए लिखना शुरू कर दिया था। एक बहुत मशहूर लेखक हुए विमल चटर्जी। उन्हें तब मनोज पॉकेट बुक्स वालों ने बाल कहानियों के लिए प्रेरित किया और लिखने से पहले कहानियों की हेडिंग दे दी। विमल बड़े परेशान थे। मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने माजरा बयान किया। मैंने कहा बड़ा आसान है। उन्होंने कहा कि इतना आसान है तो आप लिख दो। मैंने उन्हें कहानी लिखकर दे दी। उसके बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उससे पहले मेरी कहानियां गर्ग एंड कंपनी की गोलगप्पा मैगजीन में छपती थीं। उन्होंने बच्चों के नॉवेल लिखने का ऑर्डर दिया। मेरा पहला नॉवेल 'खूनी शैतान की बस्ती' मेरे नाम से ही छपा था। लेकिन नाम से छपने का कोई फायदा नहीं मिला, तब उसे लिखने के सिर्फ 25 रुपये मिले थे।

 हिंदी जगत में गोस्ट राइटिंग इंडस्ट्री कब और कैसे शुरू हुई?

 1970 के बाद स्टार पॉकेट बुक्स और हिंद पॉकेट बुक्स ने लगभग साथ ही इसकी शुरुआत की। तब स्टार वालों और कई दूसरे पब्लिशरों का कहना था कि लेखक टाइम पर स्क्रिप्ट नहीं देते। नाम से छपने वाले लेखक पैसों के लिए परेशान करते थे, एकदम से रेट बढ़ा देते थे। पंजाबी पुस्तक भंडार वाले स्टार पॉकेट बुक्स ने सामाजिक उपन्यास लिखने के लिए एक नए नाम 'राजवंश' का प्रयोग किया। उन्होंने आरिफ माहरवीं को चुना, जो जासूसी उपन्यास लिखते थे। मैंने अपनी किताब 'प्रेत लेखन' में आरिफ माहरवीं को गोस्ट राइटिंग का शहंशाह बताया है। उन्हीं दिनों हिंद पॉकेट बुक्स वालों ने दो नाम रखे- कर्नल रंजीत और शेखर। कर्नल के लिए उन्होंने बात की मख्मुर जालंधरी नाम के शायर से । वह पेरी मेसन के नॉवेल से विचार लेते थे, नकल नहीं करते थे मेजर बलवंत उसमें पात्र था और सोनिया उसकी साथी। दूसरे नाम शेखर के लिए उन्होंने चुना राम कुमार भ्रमर को, जो उस समय डाकुओं पर उपन्यास लिखते थे। मखमुर साहब कर्नल रंजीत के लिए आजीवन लिखते रहे। वहीं शेखर के जितने उपन्यास छपे, वे राम कुमार ने ही लिखे।

 ■ दूसरे कौन लोग लिखते थे और किन-किन नामों के लिए?

राजवंश के बाद स्टार वालों ने कई काल्पनिक नाम तय किए, जैसे- लोकदर्शी, समीर सब आरिफ माहरवीं से लिखवाया। आरिफ ने बहुत सारे नामों को स्थापित किया। मनोज पॉकेट बुक्स के लिए उन्होंने सूरज के नाम से लिखा। भारत नाम से भी लिखा। राजेश्वर नाम के टाइटल पर उनकी फोटो भी लगती थी। सामाजिक नॉवेल लिखने के लिए उन्होंने सैमुअल अंजुम अर्शी को पकड़ा, जो सफदरजंग हॉस्पिटल के 28 नंबर वॉर्ड के इंचार्ज थे। अंजुम ने मनोज में दो नॉवेल लिखे- 'खामोशी' और 'जलती चिता'। फिर एक नया लड़का दिनेश श्रीवास्तव आया। वह मुझसे करेक्शन कराता था। उसने मनोज में एक उपन्यास लिखा और अपना नाम दिनेश पाठक बताया क्योंकि उस समय सुरेंद्र मोहन पाठक का नाम चल गया था। वह नॉवेल था 'फूल और काटे'। फिर आए जमील अंजुम, जिन्होंने 30-32 उपन्यास लिखे। इसके बाद इन्होंने विनय प्रभाकर जैसे कई और नाम चलाए, जिसके लिए परशुराम शर्मा, विमल चटर्जी और असित चटर्जी ने लिखा। मैंने भी कई नामों से रायजादा, मनोज, भारत के लिए लिखा। टाइगर ट्रेड नेम के लिए यशपाल वालिया भारती पॉकेट बुक्स में लिखते थे। बाद में विजय पॉकेट बुक्स में अपनी पत्नी मीनू वालिया के नाम से लिखा, जिसमें फोटो पत्नी का होता था। गोस्ट राइटिंग में सबसे ज्यादा ईमानदारी बरती स्टार वालों ने राजवंश नाम से आरिफ माहरवीं के अलावा दूसरे लोगों को न छापा। हिंद वालों ने मख्मुर जालंधरी के असली नाम ही लिखवाया।

■ नए-नए ट्रेड नेम पैदा करने के पीछे क्या कारण थे?


जिन लेखकों के नाम से नॉवेल छपे थे, पब्लिशर को उनको मुंहमांगी रकम देनी पड़ती थी। लेकिन पब्लिशर कई बार उतनी बड़ी रकम देना नहीं चाहते थे। इसी वजह से ना नए ट्रेड नेम आए। 

# आप बता सकते हैं कि सबसे ज्यादा गोर राइटिंग किस ट्रेड नेम के लिए हुई ?

यह बताना मुश्किल है क्योंकि कई पब्लिशरों ने बाद नाम चलाए। इधर मनोज वालों ने चलाए भारत, सूरज धीरज वगैरह। बाद में सूरज नाम का पहला उपन्यास राज बाबू ने मुझे लिखने का ऑर्डर दिया था, लेकिन मेरा नॉवेल आधा हुआ था तो उन्होंने कहा कि आरिफ साहब ने नॉवेल दे दिया। यह प्रकाशकों का खेल था। सबसे ज्यादा प्रसिद्ध नाम था राजवंश और कर्नल रंजीत का।

 ■ स्थापित लेखकों से भी कोई अपने लिए गोस्ट राइटिंग कराता था ?

ओम प्रकाश शर्मा और वेद प्रकाश कांबोज नाम के लिए सबसे ज्यादा गोस्ट राइटिंग हुई है। एक जमाना आया हर प्रकाशक के यहां हर महीने ओम प्रकाश शर्मा ओर वेद प्रकाश कांबोज की दो-दो किताबें छप रही थीं। इतनी किताबें कोई भी नहीं लिख सकता। मेरठ में एक प्रकाशक थे, जंग बहादुर वह ओम प्रकाश शर्मा के पास नॉवेल ले गए तो उनके पास समय नहीं था। जंग बहादुर खुराफाती थे उनके टच में कोई और ओम प्रकाश शर्मा नाम का व्यक्ति था तो उन्होंने उससे बात की और हम जैसे गोस्ट राइटर ओम प्रकाश शर्मा के कैरेक्टर पर उपन्यास लिखवा लिया और यही काम वेद प्रकाश कांबोज नाम के लिए भी किया।



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