गीता ज्ञान दर्शन अध्याय 2 भाग 31

  यावानर्थ उदपाने सर्वतः संप्लुतोदके

तावान्सर्वेषु वेदेषु ब्राह्मणस्य विजानतः।। ४६।।


क्योंकि मनुष्य कासब ओर से परिपूर्ण जलाशय के प्राप्त होने परछोटे जलाशय में जितना प्रयोजन रहता हैअच्छी प्रकार ब्रह्म को जानने वाले ब्राह्मण का भी सब वेदों में उतना ही प्रयोजन रहता है।


कृष्ण कह रहे हैं कि जैसे छोटे-छोटे नदी तालाब हैंकुएं-पोखर हैंझरने हैंइन झरनों में नहाने से जो आनंद होता हैजो शुचिता मिलती हैऐसी शुचिता तो सागर में नहाने से मिल ही जाती है अनेक गुना होकर। शब्दों के पोखर मेंशास्त्रों के पोखर में जो मिलता हैउससे अनेक गुना ज्ञान के सागर में मिल ही जाता है। वेद में जो मिलेगा--संहिता मेंशास्त्र मेंशब्द में--वह ज्ञानी को ज्ञान में तो अनंत गुना होकर मिल ही जाता है।

इसमें दो बातें ध्यान रखने जैसी हैं। एक तो यह कि जो सीमा में मिलता हैवह असीम में मिल ही जाता है। इसलिए असीम के लिए सीमित को छोड़ने में भय की कोई भी आवश्यकता नहीं है। अगर ज्ञान के लिए वेद को छोड़ना होतो कोई चिंता की बात नहीं है। सत्य के लिए शब्द को छोड़ना होतो कोई चिंता की बात नहीं है। अनुभव के लिए शास्त्र को छोड़ना होतो कोई चिंता की बात नहीं है--पहली बात। क्योंकि जो मिलता है यहांउससे अनंत गुना वहां मिल ही जाता है।


दूसरी बातसागर में जो मिलता हैज्ञान में जो मिलता हैअसीम में जो मिलता हैउस असीम में मिलने वाले को सीमित के लिए छोड़ना बहुत खतरनाक है। अपने घर के कुएं के लिए सागर को छोड़ना बहुत खतरनाक है। माना कि घर का कुआं हैअपना हैबचपन से जानापरिचित हैफिर भी कुआं है। घरों में कुएं से ज्यादा सागर हो भी नहीं सकते। सागरों तक जाना हो तो घरों को छोड़ना पड़ता है। घरों में कुएं ही हो सकते हैं।

हम सबके अपने-अपने घर हैंअपने-अपने वेद हैंअपने- अपने शास्त्र हैंअपने-अपने धर्म हैंअपने-अपने संप्रदाय हैंअपने-अपने मोहग्रस्त शब्द हैं। हम सबके अपने-अपने--कोई मुसलमान हैकोई हिंदू हैकोई ईसाई है--सबके अपने वेद हैं। कोई इस मूर्ति का पूजककोई उस मूर्ति का पूजककोई इस मंत्र का भक्तकोई उस मंत्र का भक्त है। सबके अपने-अपने कुएं हैं।

कृष्ण यहां कह रहे हैंइनके लिए सागर को छोड़ना खतरनाक है। हांइससे उलटावाइस-वरसा हो सकता है। सागर के लिए इनको छोड़ने में कोई भी हर्ज नहीं है। क्योंकि जो इनमें मिलेगावह अनंत गुना होकर सागर में मिल ही जाता है।

इसलिए वह व्यक्ति अभागा हैजो अपने घर के कुएं के लिए--बाइबिलकुरानवेदगीता...गीता भी! गीता का कृष्ण ने उल्लेख नहीं कियाकैसे करते! क्योंकि जो वे कह रहे थेवही गीता बनने वाला था। गीता तब तक थी नहीं। मैं उल्लेख करता हूंगीता भी! जो इनमें मिलता हैइससे अनंत गुना होकर ज्ञान में मिल ही जाता है। इसलिए जो इनके कारण ज्ञान के लिए रुकावट बनाएइनके पक्ष में ज्ञान को छोड़ेवह अभागा है। लेकिन जो ज्ञान के लिए इन सबको छोड़ देवह सौभाग्यशाली है। क्योंकि जो इनमें मिलेगावह ज्ञान में मिल ही जाने वाला है।

लेकिन क्या मतलब हैज्ञान का और वेद काज्ञान का और शास्त्र का फासला क्या हैभेद क्या है?

गहरा फासला है। जो जानते हैंउन्हें बहुत स्पष्ट दिखाई पडता है। जो नहीं जानते हैंउन्हें दिखाई पड़ना बहुत मुश्किल हो जाता है। क्योंकि किन्हीं भी दो चीजों का फासला जानने के लिए दोनों चीजों को जानना जरूरी है। जो एक ही चीज को जानता हैदूसरे को जानता ही नहींफासला कैसे निर्मित करेकैसे तय करे?

हम शास्त्र को ही जानते हैंइसलिए हम जो फासले निर्मित करते हैंज्यादा से ज्यादा दो शास्त्रों के बीच करते हैं। हम कहते हैंकुरान कि बाइबिलवेद कि गीताकि महावीर कि बुद्धकि जीसस कि जरथुस्त्र। हम जो फासले तय करते हैंवे फासले ज्ञान और शास्त्र के बीच नहीं होतेशास्त्र और शास्त्र के बीच होते हैं। क्योंकि हम शास्त्रों को जानते हैं। असली फासला शास्त्र और शास्त्र के बीच नहीं हैअसली फासला शास्त्रों और ज्ञान के बीच है। उस दिशा में थोड़ी-सी सूचक बातें खयाल ले लेनी चाहिए।

ज्ञान वह हैजो कभी भीकभी भी अनुभव के बिना नहीं होता है। ज्ञान यानी अनुभवऔर अनुभव तो सदा अपना ही होता हैदूसरे का नहीं होता। अनुभव यानी अपना। शास्त्र भी अनुभव हैलेकिन दूसरे का। शास्त्र भी ज्ञान हैलेकिन दूसरे का। ज्ञान भी ज्ञान हैलेकिन अपना।

मैं अपनी आंख से देख रहा हूंयह ज्ञान है। मैं अंधा हूंआप देखते हैं और मुझे कहते हैंयह शास्त्र है। नहीं कि आप गलत कहते हैं। ऐसा नहीं कि आप गलत ही कहते हैं। लेकिन आप कहते हैंआप देखते हैं। आप जो आंख से करते हैंवह मैं कान से कर रहा हूं। फर्क पड़ने वाला है। कान आंख का काम नहीं कर सकता।

इसलिए शास्त्र के जो पुराने नाम हैंवे बहुत बढ़िया हैं। श्रुतिसुना हुआ--देखा हुआ नहीं। स्मृतिसुना हुआस्मरण किया हुआयाद किया हुआमेमोराइज्ड--जाना हुआ नहीं। सब शास्त्र श्रुति और स्मृति हैं। किसी ने जाना और कहा। हमने जाना नहीं और सुना। जो उसकी आंख से हुआवह हमारे कान से हुआ। शास्त्र कान से आते हैंसत्य आंख से आता है। सत्य दर्शन हैशास्त्र श्रुति हैं।

दूसरे का अनुभवकुछ भी उपाय करूं मैंमेरा अनुभव नहीं है। हांदूसरे का अनुभव उपयोगी हो सकता है। इसी अर्थ में उपयोगी हो सकता है--इस अर्थ में नहीं कि मैं उस पर भरोसा कर लूंविश्वास कर लूंअंधश्रद्धालु हो जाऊंइस अर्थ में तो दुरुपयोग ही हो जाएगाहिन्ड्रेंस बनेगाबाधा बनेगा--इस अर्थ में उपयोगी हो सकता है कि दूसरे ने जो जाना हैउसे जानने की संभावना का द्वार मेरे लिए भी खुलता है। जो दूसरे को हो सका हैवह मेरे लिए भी हो सकता हैइसका आश्वासन मिलता है। जो दूसरे के लिए हो सकावह क्यों मेरे लिए नहीं हो सकेगाइसकी प्रेरणा। जो दूसरे के लिए हो सकावह मेरे भीतर छिपी हुई प्यास को जगाने का कारण हो सकता है। लेकिन बस इतना ही। जानना तो मुझे ही पड़ेगा। जानना मुझे ही पड़ेगाजीना मुझे ही पड़ेगाउस सागरत्तट तक मुझे ही पहुंचना पड़ेगा

एक और मजे की बात है कि घर में जो कुएं हैंवे बनाए हुए होते हैंसागर बनाया हुआ नहीं होता। आपके पिता ने बनाया होगा घर का कुआंउनके पिता ने बनाया होगाकिसी ने बनाया होगा। जिसने बनाया होगाउसे एक सीक्रेट का पता हैउसे एक राज का पता है कि कहीं से भी जमीन को तोड़ोसागर मिल जाता है। कुआं है क्याजस्ट ए होलसिर्फ एक छेद है। आप यह मत समझना कि पानी कुआं है। पानी तो सागर ही हैकुआं तो सिर्फ उस सागर में झांकने का आपके आंगन में उपाय है। सागर तो है ही नीचे फैला हुआ। वही है। जहां भी जल हैवहीं सागर है। 

हांआपके आंगन में एक छेद खोद लेते हैं आप। कुएं से पानी नहीं खोदतेकुएं से सिर्फ मिट्टी अलग करते हैंपरत तोड़ देते हैंएक छेद हो जाता हैअपने ही घर में सागर को झांकने का उपाय हो जाता है।

लेकिन कुआं बनाया हुआ है। और अगर कुआं इसकी खबर लाए--रिमेंबरेंस--कि सागर भी है और सागर की यात्रा करवा देतब तो कुआं सहयोगी हो जाता है। और अगर कुआं ही सागर बन जाए और हम सोचें कि यही रहा सागरतो फिर सागर कीअसीम की यात्रा नहीं हो पातीफिर हम कुएं के किनारे ही बैठे समाप्त होते हैं।

शास्त्र कुएं हैं। जो जानते हैंखोदते हैं। और शब्द की सीमा में छेद बनाते हैं। जो कहा जा सकता हैउसकी सीमा में छेद बनाते हैं। और अनकहे की थोड़ी-सी झलकथोड़ा-सा दर्शन करवाते हैं। इस आशा में कि इसको देखकर अनंत की यात्रा पर कोई निकलेगा। इसलिए नहीं कि इसे देखकर कोई बैठ जाएगा और तृप्त हो जाएगा।

कुआं सागर हैसीमा में बंधा। सागर कुआं हैअसीम में मुक्त। शास्त्र ज्ञान हैसीमा में बंधा। ज्ञान शास्त्र हैअसीम में मुक्त।

तो कृष्ण जब वेद कीशब्द की बात कर रहे हैंतो निंदा नहीं हैसिर्फ निर्देश है। और निर्देश स्मरण में रखने योग्य है।
(भगवान कृष्‍ण के अमृत वचनों पर ओशो के अमर प्रवचन)
हरिओम सिगंल

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