गीता ज्ञान दर्शन अध्याय 2 भाग 50

 


 या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।। ६९।।

और हे अर्जुन, संपूर्ण भूत प्राणियों के लिए जो रात्रि है, उसमें भगवत्ता को प्राप्त हुआ संयमी पुरुष जागता है। और जिस नाशवान, क्षणभंगुर सांसारिक सुख में सब भूत प्राणी जागते हैं, तत्व को जानने वाले मुनि के लिए वह रात्रि है।

जो सबके लिए अंधेरी रात है, वह भी ज्ञानी के लिए, संयमी के लिए जागरण का क्षण है। जो निद्रा है सबके लिए, वह भी ज्ञानी के लिए जागृति है। यह महावाक्य है। यह साधारण वक्तव्य नहीं है। यह महावक्तव्य है। इसके बहुआयामी अर्थ हैं। दोत्तीन आयाम समझ लेना जरूरी है। 


एक तो बिलकुल सीधा, जिसको कहना चाहिए लिटरल जो अर्थ है, वह भी इसका अर्थ है। आमतौर से गीता पर किए गए र्वात्तिक उसके तथ्यगत अर्थ को कभी भी नहीं लेते हैं। जो कि बड़ी ही गलत बात है। वे सदा ही उसको मेटाफर बना लेते हैं। वह सिर्फ मेटाफर नहीं है। जब यह बात कही जा रही है कि जो सबके लिए निद्रा है, वह भी संयमी और ज्ञानी के लिए जागरण है, तो इसका पहला अर्थ बिलकुल शाब्दिक है। जब आप रात सोते हैं, तब भी संयमी नहीं सोता है।
इसे पहले समझ लेना जरूरी है, क्योंकि इसे कहने की हिम्मत नहीं जुटाई जा सकी है आज तक। सदा उसका अर्थ मोहरूपी निशा और  सब रूपी बातें कही गई हैं। इसका पहला अर्थ बिलकुल ही तथ्यगत है।
जब आप रात सोते हैं, तब भी ज्ञानी नहीं सोता है। इसका क्या मतलब है? बिस्तर पर नहीं लेटता है! इसका क्या मतलब है? आंख बंद नहीं करता है! इसका क्या मतलब है? रात विश्राम को उपलब्ध नहीं होता है! नहीं, यह सब करता है, फिर भी नहीं सोता है। 
कृष्ण कहते हैं, जो सबके लिए अंधेरी निद्रा है, वह भी ज्ञानी के लिए जागरण है।
आप भी पूरे नहीं सोते हैं। क्योंकि ज्ञान का कोई न कोई कोना तो आप में भी जागा रहता है। यहां हम इतने लोग बैठे हैं, सब सो जाएं, रात कोई आदमी आकर चिल्लाए, राम! सबको सुनाई पड़ेगा, लेकिन सबको सुनाई नहीं पड़ेगा। जिसका नाम राम है, वह कहेगा, कौन बुला रहा है? कान सबके हैं, सब सोए हैं। राम शब्द गूंजा है, तो सबको सुनाई पड़ा है। लेकिन जो राम है, वह कहता है, कौन बुला रहा है? रात में कौन गड़बड़ करता है? सोने नहीं देता!
क्या हुआ! जरूर इसके भीतर चेतना का एक कोना इस रात में भी जागा है; पहरा दे रहा है। पहचानता है कि राम नाम है अपना।
मां सोई है रात, तूफान आ जाए बाहर, आंधी आ जाए, बादल गरजें, बिजली चमके, उसकी नींद नहीं टूटती। उसका बच्चा जरा-सा कुनकुन करे, वह फौरन हाथ रख लेती। भीतर कोई हिस्सा जागा हुआ है मां का, वह देख रहा है कि बच्चे को कोई गड़बड़ न हो जाए। और बच्चे की गड़बड़ इतनी धीमी है कि मां के एक हिस्से को जागा ही रहना होगा।
आकाश में बिजली चमकती है, बादल गरजते हैं, पानी बरस रहा है, उसका कुछ सुनाई नहीं पड़ता उसे। लेकिन बच्चे की जरा-सी आवाज, उसका जरा-सा करवट लेना, उसकी धीमी-सी पुकार उसे तत्काल जगा देती है। एक हिस्सा उसका भी जागा हुआ है। पर एक हिस्सा! जरूरत के वक्त, इमरजेंसी मेजर है वह हमारा। साधारणतः हमारी पूरी चेतना डूबी रहती है अंधेरे में।
कृष्ण कहते हैं, ज्ञानी पुरुष नींद में भी जागा रहता है। पहला अर्थ, पहले आयाम का अर्थ, वास्तविक निद्रा में भी जागरण है।
और मैं आपसे कहता हूं कि यह बहुत कठिन नहीं है। जो आदमी दिन के जागते हिस्से में बारह घंटे जागा हुआ जीएगा, वह रात में जागा हुआ सोता है। आप रास्ते पर चल रहे हैं, जागकर चलें। आप खाना खा रहे हैं, जागकर खाएं। आप किसी से बात कर रहे हैं, जागकर बोलें। सुन रहे हैं, जागकर सुनें। यह नींद-नींद, स्लीपी-स्लीपी न हो। यह सब ऐसे ही चल रहा है।
एक आदमी खाना खा रहा है। हमें लगता है कि नींद में कैसे खाना खा सकता है! लेकिन मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि सब लोग नींद में खाना खा रहे हैं।
इमरसन एक बड़ा विचारक हुआ। सुबह बैठा है। उसकी नौकरानी नाश्ता रख गई। किताब में उलझा है, तो नौकरानी ने बाधा नहीं दी। किताब से छूटेगा, तो नाश्ता कर लेगा।
उसका एक मित्र मिलने आया है। वह किताब में डूबा है। नाश्ता पास है। मित्र ने सोचा, इससे बात पीछे कर लेंगे, पहले नाश्ता कर लें। मित्र ने नाश्ता कर लिया, प्लेट खाली करके बगल में सरका दी। फिर इमरसन ने कहा, अरे कब आए? मित्र को देखा, खाली प्लेट को देखा और कहा कि जरा देर से आए, मैं नाश्ता कर चुका हूं।
इस आदमी ने कभी जागकर नाश्ता किया होगा? नहीं, हमने भी नहीं किया है। एक रूटीन है, जिसको हम नींद में भी कर लेते हैं। आदमी साइकिल चलाता है। पैर साइकिल चलाते रहते हैं, आदमी भीतर कुछ और चलाता रहता है। चलता चला जाता है। नींद है।
सड़क के किनारे खड़े हो जाएं, लोगों को जरा चलते देखें। कोई बातचीत करता दिखाई पड़ेगा किसी से, जो मौजूद नहीं है। किसी के ओंठ हिल रहे हैं। कोई हाथ से किसी को झिड़क रहा है। कोई इशारा कर रहा है। आप बहुत हैरान होंगे कि किससे हो रहा है यह सब! नींद, नींद में चल रहे हैं। जब हम जागे हुए भी सोए हैं, तो सोए हुए जागना बहुत मुश्किल है।
इसलिए मैं कहता हूं कि जिन लोगों ने गीता के इस महावाक्य पर वक्तव्य दिए हैं, उनको खुद का कोई अनुभव नहीं है। अन्यथा यह पहला वक्तव्य चूक नहीं सकता था। उनको साफ पता नहीं है कि नींद में जागा हुआ हुआ जा सकता है। लेकिन जागे हुए ही सोए हुए आदमियों को नींद में जागने का खयाल भी नहीं उठ सकता है! तो वे इसका मेटाफोरिकल अर्थ करते हैं। वह अर्थ ठीक नहीं है।
जो आदमी दिन में जागकर चलेगा, उठेगा, बैठेगा, वह रात में भी जागा हुआ सोएगा।
महावीर ने कहा है--अजीब बात कही है--महावीर ने कहा है, साधुओ! जागकर चलना, जागकर उठना, जागकर बैठना। सब ठीक है। लेकिन आखिर में महावीर कहते हैं, जागकर सोना। पागलपन की बातें कर रहे हैं! तो फिर सोएंगे काहे के लिए! जागकर सोना, जागते रहना और देखना कि नींद कब आई।
आप कितनी दफे सोए हैं, कभी नींद को आते देखा? जिंदगीभर सोए, रोज सोए। आदमी साठ साल जीता है, तो बीस साल सोता है। आठ घंटे सोए अगर, तो बीस साल सोने में चले जाते हैं। जिंदगी का एक तिहाई सोते हैं। बीस साल सोकर भी कभी आपको पता है, नींद कब आती है? कैसे आती है? नींद क्या है?
कैसा अदभुत है यह मामला! बीस साल जिस अनुभव से गुजरते हैं, उस अनुभव की कोई भी पहचान नहीं है! रोज सोते हैं। लेकिन कोई आपसे पूछे कि नींद क्या है? व्हाट इज़ दि स्लीप? कैसे आती है? आते वक्त क्या उसकी शकल है, क्या उसका रूप है? कैसे उतरती है? जैसे सांझ उतरती है अंधकार की, सूरज डूबता है, ऐसा आपके भीतर क्या उतरता है नींद में?
आप कहेंगे कि कुछ पता नहीं है। क्योंकि जब तक जागे रहते हैं, तब तक नींद नहीं आती। जब नींद आ जाती है, उसके पहले तो सो गए होते हैं।
सुबह उठते हैं रोज। कभी देखा है कि नींद का टूटना क्या है, फिनामिनल? नींद कैसे टूटती है? क्या होता है नींद के टूटने में?
आप कहते हैं, कुछ पता नहीं। जब तक नींद नहीं टूटती, तब तक हम नहीं होते। जब नींद टूट जाती है, तब टूट ही चुकी होती है। कोई हमें पता नहीं।
कृष्ण कह रहे हैं, ज्ञानी जागकर सोता है।
और जिस व्यक्ति ने अपनी नींद को जागकर देख लिया, वही व्यक्ति अपनी मृत्यु को भी जागकर देख सकता है, अन्यथा नहीं देख सकता है। इसलिए इस सूत्र को मैं महावाक्य कहता हूं।
मौत तो कल आएगी, नींद तो आज ही आएगी। रात नींद को देखते हुए सोएं। आज, कल, महीना, दो महीना, तीन महीना-- रोज सोते वक्त एक ही प्रार्थना मन में, एक ही भाव मन में आए कि उसे मैं देखूं। जागे रहें, जागे रहें, जागे रहें। देखते रहें, देखते रहें। आज चूकेंगे, कल चूकेंगे, परसों चूकेंगे। महीना, दो महीना, तीन महीना--अचानक किसी दिन आप पाएंगे कि नींद उतर रही है और आप देख रहे हैं। और जिस दिन आप नींद को उतरते देख लेंगे, उस दिन कृष्ण का यह महावाक्य समझ में आएगा; उसके पहले समझ में नहीं आ सकता है। यह इसका वास्तविक अर्थ है।
इसका जो मेटाफोरिकल अर्थ है, वह भी आपसे कहूं। वह भी है, लेकिन वह नंबर दो का मूल्य है उसका। नंबर एक का मूल्य इसी का है। वह भी है। लेकिन वह तो और बहुत-सी बातों में भी कह दिया गया है। उसको कहने के लिए इस वाक्य को कहने की कोई भी जरूरत न थी। वह दूसरा जो मोह-निशा, उसकी तो बहुत चर्चा हो गई। वह जो विषयों की नींद है, वह जो वासना की नींद है, तो उसकी तो काफी चर्चा हो गई है।
और कृष्ण जैसे लोग एक शब्द भी व्यर्थ नहीं बोलते हैं। एक शब्द पुनरुक्त नहीं करते हैं। अगर पुनरुक्ति दिखती हो, तो आपकी समझ में भूल और गलती होती है। कृष्ण जैसे लोग, दे नेवर रिपीट। क्योंकि रिपीट का कोई सवाल नहीं है। दोहराने की कोई जरूरत नहीं है।
क्या आपको पता है कि कौन लोग दोहराते हैं! सिर्फ वे ही लोग दोहराते हैं, जिनमें आत्मविश्वास की कमी होती है। दूसरा आदमी नहीं दोहराता। जिसने एक बात पूरे विश्वास से कह दी पूरी तरह जानकर, बात खत्म हो गई।
तो कृष्ण दोहरा नहीं सकते। इसलिए मैं कहता हूं कि जो आम व्याख्या की गई है कि जहां कामी आदमी कामवासना में, मोह-निद्रा में, विषयों की नींद में, अंधेरे में डूबा रहता है, वहां संयमी आदमी जागा रहता है। इसको दोहराने के लिए इस वाक्य की बहुत जरूरत नहीं है। लेकिन वह अर्थ करें, तो बुरा नहीं है। लेकिन पहला अर्थ पहले समझ लें।
यह नींद है। यह कृष्ण का दूसरा अर्थ है। जागा हुआ पुरुष जो भी करता है, वह नींद में करने वाले आदमी जैसा उसका व्यवहार नहीं है।
क्या फर्क पड़ेगा उसके व्यवहार में? तो उन्होंने इंगित दिए हैं कि नींद से भरा हुआ आदमी मैं के और अहंकार के आस-पास जीएगा। उसका सब कुछ अहंकार से भरा होगा।
अमेरिका में अभी कार के एक्सिडेंट्स का जो सर्वे हुआ है, उससे पता चला है कि पचहत्तर प्रतिशत कार की दुर्घटनाएं भौतिक नहीं, मानसिक घटनाएं हैं। पागलपन की बात मालूम होती है न! कार की दुर्घटना और मानसिक! कार का भी कोई माइंड है, कार का भी कोई मन है कि कार भी कोई मन से दुर्घटना करती है! कार का नहीं है, ड्राइवर का है, वह जो सारथी बैठे रहते हैं भीतर।
कभी आपको पता है कि जब आप क्रोध में होते हैं, तो कार का एक्सेलेरेटर जोर से दबता है--नींद में, होश में नहीं। जल्दी आपको कहीं पहुंचना नहीं है। लेकिन चित्त क्रोध से भरा है। किसी चीज को दबाना चाहता है। इसकी फिक्र नहीं कि किसको दबा रहे हैं। एक्सेलेरेटर को ही दबा रहे हैं। अब एक्सेलेरेटर से कोई झगड़ा नहीं है। अब एक्सेलेरेटर को दबाइएगा क्रोध में, तो खतरा पक्का है। क्योंकि एक तो नींद में दबाया जा रहा है। आपको पता ही नहीं है कि क्यों दबा रहे हैं एक्सेलेरेटर को। पता होना चाहिए कि क्यों दबा रहे हैं, कहां दबा रहे हैं, कितनी भीड़ है, कितने लोग हैं, कितनी कारें दौड़ रही हैं। आपको कुछ पता नहीं है।
आप एक्सेलेरेटर को नहीं दबा रहे हैं। कोई अपनी पत्नी के सिर पर पैर दबा रहा है, कोई अपने बेटे के, कोई अपने बाप के, कोई अपने मालिक के। पता नहीं वह एक्सेलेरेटर किन-किन के लिए काम कर रहा है। पता नहीं कौन एक्सेलेरेटर उस वक्त बना हुआ है। दबाए जा रहे हैं। अब यह आदमी जो नींद में एक्सेलेरेटर दबा रहा है, इस आदमी को सड़क दिखाई पड़ रही होगी!
इसकी हालत ठीक वैसी है, मैंने सुना है, वर्षा हो रही है और एक आदमी अपनी कार चला रहा है। जोर से वर्षा हो रही है, लेकिन वह आदमी वाइपर नहीं चला रहा है कार के। तो उसकी पत्नी उससे कहती है, क्या कर रहे हो! जैसा कि पत्नियां आमतौर से ड्राइवर को गाइड करती रहती हैं। पति चलाता है, पत्नियां चलवाती हैं। वे पूरे वक्त बताती रहती हैं कि यह करो, यह करो।
पूछा, क्यों नहीं चला रहे हैं वाइपर? तो उसने कहा, कोई फायदा नहीं है, क्योंकि चश्मा तो मैं घर ही भूल आया हूं। वैसे ही नहीं दिखाई पड़ रहा है कुछ। पानी गिर रहा है कि नहीं गिर रहा है, इससे क्या मतलब है!
अब यह जो आदमी है, वह जो एक्सेलेरेटर को क्रोध में दबा रहा है, वह भी अंधा है। उसको भी कुछ नहीं दिखाई पड़ रहा है कि बाहर क्या हो रहा है। पचहत्तर प्रतिशत दुर्घटनाएं मानसिक घटनाएं हैं। यह नींद है।
इस नींद में हम उलटा भी करते हैं। वह तीसरा आयाम है। फिर हम आगे बढ़ें।
एक तीसरा अर्थ भी है; नींद का कृत्य हमेशा, जो आप करते हैं और जो होता है, उसका आपको कोई खयाल नहीं होता। जो आप करते हैं, उससे ही होता है। लेकिन जब होता है, तब आप पछताते हैं कि यह कैसे हो गया! क्योंकि हमने तो यह कभी न किया था।
एक स्त्री सज रही है, आईने के सामने सज रही है। अब उसे पता नहीं है कि सजकर वह क्या कर रही है। मैं सज रही हूं और कुछ भी नहीं कर रही! लेकिन वह सज-धजकर सड़क पर आ गई है। उसने चुस्त कपड़े पहन रखे हैं। अब उसको पता नहीं कि वह धक्का निमंत्रित कर रही है। कोई आदमी धक्का मारेगा। जब वह धक्का मारेगा, तब वह कहेगी कि बहुत ज्यादती हो रही है। वह स्त्री कहेगी, बहुत ज्यादती हो रही है, अन्याय हो रहा है, अनीति हो रही है। लेकिन सब तैयारी करके आई है वह। पर वह तैयारी नींद में की गई थी, उसे कोई काज-इफेक्ट दिखाई नहीं पड़ता कि ये इतने चुस्त कपड़े, इतने बेढंगे कपड़े, इतनी सजावट किसी को भी धक्का मारने के लिए निमंत्रण है।
और बड़े मजे की बात है, अगर उसको कोई धक्का न दे और कोई न देखे, तो भी दुखी लौटेगी कि बेकार गई, सब मेहनत बेकार गई। किसी ने देखा ही नहीं! सड़क पर कोई इसे न देखे, कोई इसको ले ही न, कोई अटेंशन न दे, तो यह ज्यादा दुखी लौटेगी। धक्का दे, तो भी दुखी लौटेगी। क्या हो रहा है यह!
मैंने सुना है कि एक बच्चे ने अपने बाप को खबर दी कि मैंने पांच मक्खियां मार डाली हैं। उसके बाप ने कहा, अरे! और उसने कहा कि तीन नर थे, दो मादाएं थीं। उसके बाप ने कहा कि हद कर रहा है, तूने कैसे पता लगाया? तो उसने कहा कि दो मक्खियां आईने-आईने पर ही बैठती थीं। समझ गया कि स्त्रियां होनीं चाहिए!
यह जो नींद में सब चल रहा है, इसमें हम ही कारण होते हैं और जब कार्य आता है, तब हम चौंककर खड़े हो जाते हैं कि यह मैंने नहीं किया! अगर हम नींद में न हों, तो हम फौरन समझ जाएंगे, यह मेरा किया हुआ है। यह धक्का मेरा बुलाया हुआ है। यह धक्का ऐसे ही नहीं आ गया है। इस जगत में कुछ भी आकस्मिक नहीं है, एक्सिडेंटल नहीं है। सब चीजों की हम व्यवस्था करते हैं। लेकिन फिर व्यवस्था जब पूरी हो जाती है, तब पछताते हैं कि यह क्या हो गया! यह क्या हो रहा है?
यह भी नींद का अर्थ है। संयमी, ज्ञानी इस भांति कभी नहीं सोता; जागा ही रहता है। स्वभावतः, जागकर वह वैसा व्यवहार नहीं करता, जैसा सोया आदमी करता है। उसका मैं कभी केंद्र में नहीं होता। मैं सदा नींद के ही केंद्र में होता है। समझ लें कि नींद का केंद्र मैं है। न-मैं, ईगोलेसनेस, निरअहंकार भाव, जागरण का केंद्र है।
यह बड़े मजे की बात है। इसको अगर हम ऐसा कहें तो बिलकुल कह सकते हैं कि सोया हुआ आदमी ही होता है, जागा हुआ आदमी होता नहीं। यह बड़ा उलटा वक्तव्य लगेगा। सोया हुआ आदमी ही होता है--मैं। जागा हुआ आदमी नहीं होता है--न-मैं। जागरण आदमी के अहंकार का विसर्जन है। निद्रा आदमी के अहंकार का संग्रहण है, कनसनटे्रशन है, केंद्रीकरण है।
(भगवान कृष्‍ण के अमृत वचनों पर ओशो के अमर प्रवचन)
हरिओम सिगंल

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