गीता ज्ञान दर्शन अध्याय 3 भाग 11

  

देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः।

परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ।। ११।।


तथा तुम लोग इस यज्ञ द्वारा देवताओं की उन्नति करो और वे देवता लोग तुम लोगों की उन्नति करें। इस प्रकार आपस में कर्तव्य समझकर उन्नति करते हुए परम कल्याण को प्राप्त होओगे।


 कृष्ण कह रहे हैं, इस भांति यज्ञरूपी कर्म करते हुए तुम देवताओं के सहयोगी बनो और वे देवता तुम्हारे सहयोगी बनें। इस भांति तुम कर्तव्य को उपलब्ध हो सकते हो।

यह देवता शब्द को थोड़ा समझना जरूरी है। इस शब्द से बड़ी भ्रांति हुई है। देवता शब्द बहुत पारिभाषिक शब्द है। 

देवता शब्द का अर्थ है...

इस जगत में जो भी लोग हैं, जो भी आत्माएं हैं, उनके मरते ही साधारण व्यक्ति का जन्म तत्काल हो जाता है। उसके लिए गर्भ तत्काल उपलब्ध होता है। लेकिन बहुत असाधारण शुभ आत्मा के लिए तत्काल गर्भ उपलब्ध नहीं होता। उसे प्रतीक्षा करनी पड़ती है। उसके योग्य गर्भ के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है। बहुत बुरी आत्मा, बहुत ही पापी आत्मा के लिए भी गर्भ तत्काल उपलब्ध नहीं होता। उसे भी बहुत प्रतीक्षा करनी पड़ती है। साधारण आत्मा के लिए तत्काल गर्भ उपलब्ध हो जाता है। इसलिए साधारण आदमी इधर मरा और उधर जन्मा। इस जन्म और मृत्यु और मृत्यु और नए जन्म के बीच में बड़ा फासला नहीं होता। कभी क्षणों का भी फासला होता है। कभी क्षणों का भी नहीं होता। चौबीस घंटे गर्भ उपलब्ध हैं; तत्काल आत्मा गर्भ में प्रवेश कर जाती है।

लेकिन एक श्रेष्ठ आत्मा नए गर्भ में प्रवेश करने के लिए प्रतीक्षा में रहती है। इस तरह की श्रेष्ठ आत्माओं का नाम देवता है। निकृष्ट आत्माएं भी प्रतीक्षा में होती हैं। इस तरह की आत्माओं का नाम प्रेतात्माएं हैं। वे जो प्रेत हैं, ऐसी आत्माएं जो बुरा करते-करते मरी हैं; लेकिन इतना बुरा करके मरी हैं।  ऐसे आदमी को तो गर्भ के लिए बहुत प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। लेकिन इसकी आत्मा इस बीच क्या करेगी? इसकी आत्मा इस बीच खाली नहीं बैठी रह सकती। भला आदमी तो कभी खाली भी बैठ जाए, बुरा आदमी बिलकुल खाली नहीं बैठ सकता। कुछ न कुछ करने की कोशिश जारी रहेगी।

तो जब भी आप कोई बुरा कर्म करते हैं, तब तत्काल ऐसी आत्माओं को आपके द्वारा सहारा मिलता है, जो बुरा करना चाहती हैं।  आप साधन बन जाते हो। जब भी आप कोई बुरा कर्म करते हो, तो ऐसी कोई आत्मा अति प्रसन्न होती है और आपको सहयोग देती है, जिसे बुरा करना है, लेकिन उसके पास शरीर नहीं है। इसलिए कई बार आपको लगा होगा कि बुरा काम आपने कोई किया और पीछे आपको लगा होगा, बड़ी हैरानी की बात है, इतनी ताकत मुझमें कहां से आ गई कि मैं यह बुरा काम कर पाया! यह अनेक लोगों का अनुभव है।

आप क्रोध में इतना बड़ा पत्थर उठा सकते हो, जितना आप शांति में नहीं उठा सकते, तब आपको कल्पना भी नहीं हो सकती कि कोई बुरी आत्मा भी आपके लिए सहयोग देती है। जब एक आदमी किसी की हत्या करने जाता है, तो उसकी साधारण स्थिति नहीं रह जाती। अनेक हत्यारे अदालतों में यह कहते हैं कि हम मान नहीं सकते कि हमने हत्या की है, क्योंकि हमें तो खयाल ही नहीं आता कि हम कैसे हत्या कर सकते हैं! असल में आपमें हत्या की वृत्ति उठे, तो हत्या के लिए उत्सुक कोई आत्मा आपके ऊपर सवार हो सकती है, आपका सहयोग कर सकती है।

ठीक इससे उलटा, अर्जुन से कृष्ण कह रहे हैं कि अगर तू एक शुभ कर्म में कर्ता को छोड़कर संलग्न होता है, तो अनेक देवताओं का सहारा तुझे मिलता है। जब आप कोई अच्छा कर्म करते हैं, तब भी आप अकेले नहीं होते। तब भी वे अनेक आत्माएं, जो अच्छा करने के लिए आतुर, अभीप्सित होती हैं, तत्काल आपके आस-पास इकट्ठी और सक्रिय हो जाती हैं। तत्काल आपको उनका सहयोग मिलना शुरू हो जाता है। तत्काल आपके लिए अनंत मार्गों से शक्ति मिलनी शुरू हो जाती है, जो आपकी नहीं है।


इसलिए अच्छा आदमी भी अकेला नहीं है इस पृथ्वी पर और बुरा आदमी भी अकेला नहीं है इस पृथ्वी पर, सिर्फ बीच के आदमी अकेले होते हैं। सिर्फ बीच के आदमी अकेले होते हैं, जो न इतने अच्छे होते हैं कि अच्छों से सहयोग पा सकें, न इतने बुरे होते हैं कि बुरों से सहयोग पा सकें। सिर्फ साधारण, बीच के, मीडियाकर, मिडिल क्लास--पैसे के हिसाब से नहीं कह रहा--आत्मा के हिसाब से जो मध्यवर्गीय हैं, उनको, वे भर अकेले होते  हैं। उनको कोई सहारा-वहारा ज्यादा नहीं मिलता। और कभी-कभी हो सकता है कि या तो वे बुराई में नीचे उतरें, तब उन्हें सहारा मिले; या भलाई में ऊपर उठें, तब उन्हें सहारा मिले। लेकिन इस जगत में अच्छे आदमी अकेले नहीं होते, बुरे आदमी अकेले नहीं होते।

 अब तो वैज्ञानिक आधारों पर भी सिद्ध हो गया है कि शरीरहीन आत्माएं हैं। उनके चित्र भी, हजारों की तादात में चित्र लिए जा सके हैं। अब तो वैज्ञानिक भी अपनी प्रयोगशाला में चकित और हैरान हैं। अब तो उनकी भी हिम्मत टूट गई है यह कहने की कि भूत-प्रेत नहीं हैं। कोई सोच सकता था कि कैलिफोर्निया या इलेनाइस ऐसी युनिवर्सिटीज में भूत-प्रेत का अध्ययन करने के लिए भी कोई डिपार्टमेंट होगा! पश्चिम के विश्वविद्यालय भी कोई डिपार्टमेंट खोलेंगे, जिसमें भूत-प्रेत का अध्ययन चलता होगा! पचास साल पहले पश्चिम पूर्व पर हंसता था कि सुपरस्टीटस हो। हालांकि पूर्व में अभी भी ऐसे नासमझ हैं, जो पचास साल पुरानी पश्चिम की बात अभी दोहराए चले जा रहे हैं।

पचास साल में पश्चिम ने बहुत कुछ समझा है और पीछे लौट आया है। उसके कदम बहुत जगह से वापस लौटे हैं। उसे स्वीकार करना पड़ा है कि मनुष्य के मर जाने के बाद सब समाप्त नहीं हो जाता। स्वीकार कर लेना पड़ा है कि शरीर के बाहर कुछ शेष रह जाता है, जिसके चित्र भी लिए जा सकते हैं। स्वीकार करना पड़ा है कि अशरीरी अस्तित्व संभव है, असंभव नहीं है। और यह छोटे-मोटे लोगों ने नहीं, ओलिवर लाज जैसा नोबल प्राइज विनर गवाही देता है कि प्रेत हैं। सी.डी.ब्राड जैसा वैज्ञानिक चिंतक गवाही देता है कि प्रेत हैं। जे.बी.राइन और मायर्स जैसे जिंदगीभर वैज्ञानिक ढंग से प्रयोग करने वाले लोग कहते हैं कि अब हमारी हिम्मत उतनी नहीं है पूर्व को गलत कहने की, जितनी पचास साल पहले हमारी हिम्मत थी।

कृष्ण कह रहे हैं अर्जुन से कि अगर तू अपने कर्ता को भूलकर परमात्मा के दिए कर्म में प्रवृत्त होता है, तो देवताओं का तुझे साथ है, तुझे सहयोग है। और न केवल तू अपना कर्तव्य निभाने में पूर्ण हो पाएगा, बल्कि बहुत से देवता भी, जो अपना कर्तव्य निभाने के लिए आतुर हैं, तेरे माध्यम से वे भी अपने कर्तव्य को निभाने में पूर्ण हो जाएंगे।

अकेला नहीं है अच्छा आदमी। अकेला नहीं है बुरा आदमी। इसलिए बुरा आदमी भी बड़ा शक्तिशाली हो जाता है और अच्छा आदमी भी बड़ा शक्तिशाली हो जाता है। वह शक्ति चारों तरफ अशरीरी आत्माओं से उपलब्ध होनी शुरू होती है।


(भगवान कृष्‍ण के अमृत वचनों पर ओशो के अमर प्रवचन)

हरिओम सिगंल

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