गीता ज्ञान दर्शन अध्याय 2 भाग 11

  अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम्।

विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति।। १७।।

इस न्याय के अनुसार नाशरहित तो उसको जानो कि जिससे यह संपूर्ण जगत व्याप्त हैक्योंकि इस अविनाशी का विनाश करने को कोई भी समर्थ नहीं है।


जिसने इस सारे जगत को व्याप्त किया हैवह सूक्ष्मतम अविनाशी है। लेकिन जिससे यह सारा जगत व्याप्त हुआ हैवह वस्तु स्थूल है और विनाशवान है। इसे ऐसा समझेंएक कमरा हैखाली हैकुछ भी सामान नहीं है। वह जो कमरे का खालीपन हैवह पूरा का पूरा व्याप्त किए है कमरे को। उचित तो यही होगा कि जब कमरा नहीं थातब भी वह खालीपन था। पीछे हमने दीवारें उठाकर उस खालीपन को चारों तरफ से बंद किया है। कमरा नहीं थातब भी वह खालीपन था। कमरा नहीं होगातब भी वह खालीपन होगा। कमरा हैतब भी वह खालीपन है। कमरा बना हैमिटेगाकभी नहीं थाकभी नहीं हो जाएगापर वह जो खालीपन हैवह जो स्पेस हैवह जो अवकाश हैवह जो आकाश है--वह थाहैरहेगा।



उसके लिए थाहैइस तरह के शब्द उचित नहीं हैं। क्योंकि जो कभी भी नहीं नहीं हुआउसके लिए है कहना ठीक नहीं है। है सिर्फ उसी चीज के लिए कहना ठीक हैजो नहीं है भी हो सकती है। वृक्ष हैकहना ठीक हैआदमी हैकहना ठीक हैपरमात्मा हैकहना ठीक नहीं है। परमात्मा के साथ यह कहना कि परमात्मा हैपुनरुक्ति हैरिपिटीशन है। परमात्मा का अर्थ ही है कि जो है। उसको दोहराने की कोई जरूरत नहीं है कि परमात्मा है। इसका मतलब यह हुआ कि जो हैवह है। कोई और मतलब नहीं हुआ। जो नहीं नहीं हो सकताउसके लिए है कहना बिलकुल बेमानी है।
(भगवान कृष्‍ण के अमृत वचनों पर ओशो के अमर प्रवचन)
हरिओम सिगंल

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