गीता ज्ञान दर्शन अध्याय 2 भाग 6

  मृत्यु के पीछे अजन्माअमृत और सनातन का दर्शन

न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः।
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्।। १२।।

क्योंकि आत्मा नित्य हैइसलिए शोक करना अयुक्त है। वास्तव में न तो ऐसा ही है कि मैं किसी काल में नहीं थाअथवा तू नहीं थाअथवा ये राजा लोग नहीं थे और न ऐसा ही है कि इससे आगे हम सब नहीं रहेंगे।


अर्जुन ऐसी चिंता दिखाता हुआ मालूम पड़ता है कि ये सब जो आज सामने खड़े दिखाई पड़ रहे हैंयुद्ध में मर जाएंगेनहीं हो जाएंगे। कृष्ण उसे कहते हैंजो हैवह सदा से थाजो नहीं हैवह सदा ही नहीं है।

इस बात को थोड़ा समझ लेना उपयोगी है।

धर्म तो सदा ऐसी बात कहता रहा हैलेकिन विज्ञान ने भी ऐसी बात कहनी शुरू की है। और विज्ञान से ही शुरू करना उचित होगा। क्योंकि धर्म शिखर की बातें करता हैजिन तक सबकी पहुंच नहीं है। विज्ञान आधार की बातें करता हैजहां हम सब खड़े हैं। विज्ञान की गहरी से गहरी खोजों में एक खोज यह है कि अस्तित्व को अनस्तित्व में नहीं ले जाया जा सकता है। जो हैउसे विनष्ट करने का कोई उपाय नहीं है। और जो नहीं हैउसका सृजन करने का भी कोई उपाय नहीं है। रेत के एक छोटे से कण को भी हमारे विज्ञान की सारी जानकारी और सारे जगत की प्रयोगशालाएं और सारे जगत के वैज्ञानिक मिलकर भी विनष्ट नहीं कर सकते हैंरूपांतरित भर कर सकते हैंनए रूप भर दे सकते हैं।

अर्जुन जब कह रहा है कि ये सब मर जाएंगेतब वह   रूप कीआकृति की बात कह रहा है। वह कह रहा हैये सब मिट जाएंगे। उसे आकृति से ज्यादा का कोई भी पता नहीं है।

और जब कृष्ण कहते हैं कि नहींजिन्हें तू आज देख रहा हैवे पहले नहीं थेऐसा नहीं है। वे पहले भी थे। मैं भी पहले थातू भी पहले था। और ऐसा भी नहीं है कि जो हम आज हैंकल नहीं होंगे। कल भी हम होंगेसदा-सदा अनादि से अनंत तक हमारा होना है। यहां कृष्ण और अर्जुन दो अलग चीजों की बात कर रहे हैंयह समझ लेना जरूरी है।


अर्जुन रूप की बात कर रहा हैकृष्ण अरूप की बात कर रहे हैं। अर्जुन उसकी बात कर रहा हैजो दिखाई पड़ता हैकृष्ण उसकी बात कर रहे हैंजो नहीं दिखाई पड़ता है। अर्जुन उसकी बात कर रहा हैजो आंखों और हाथों की पकड़ में आता हैकृष्ण उसकी बात कर रहे हैंजो हाथआंख और कान की पकड़ के पीछे छूट जाता है। अर्जुनजैसा हम सब सोचते हैंवैसा सोच रहा है। कृष्णवैसा कह रहे हैंजैसा हम सब जान सकें कभी, तो सौभाग्य है।

जो दिखाई पड़ता हैवह सदा नहीं था। सदा तो बहुत बड़ा शब्द है। जो दिखाई पड़ता हैवह क्षणभर पहले भी नहीं था। आप मेरे चेहरे को देख रहे हैंक्षणभर पहले यह चेहरा यही नहीं थाक्षणभर बाद यही नहीं होगा। क्षणभर में बहुत कुछ मेरे शरीर में मर गया और बहुत कुछ नया आ गया।

यह भी समझ लेना जरूरी है कि अर्जुन की चिंता एक और दूसरी सूचना भी देती है। अर्जुन कहता हैये सब मर जाएंगे। इसका मतलब है कि अर्जुन अपने को भी रूप ही समझता है। अन्यथा ऐसा नहीं कहेगा। हम दूसरों के संबंध में जो कहते हैंवह हमारे संबंध में ही कहा गया होता है। जब मैं किसी को मरते देखकर सोचता हूं कि मर गयाखो गयामिट गयातब मुझे जानना चाहिए कि मुझे अपने भीतर भी उसका पता नहीं हैजो नहीं मिटता हैनहीं मरता हैनहीं खोता है।

अर्जुन जब चिंता जाहिर कर रहा है कि ये मर जाएंगेतो वह अपनी मृत्यु की ही चिंता जाहिर कर रहा है। वह यह जानता नहीं कि उसके भीतर भी कुछ हैजो नहीं मरता है। और जब कृष्ण कह रहे हैं कि ये नहीं मरेंगेतब कृष्ण अपने संबंध में ही कह रहे हैंक्योंकि वे उसे जानते हैंजो नहीं मरता है।

अब वह अर्जुन बड़े ज्ञान की बातें करता हुआ मालूम पड़ता हैवह बड़े धर्म की बातें करता हुआ मालूम पड़ता हैलेकिन उसे इतना भी पता नहीं है कि अरूप भी है कोईनिराकार भी है कोई। अस्तित्व के आधार में कुछ हैजो अमृत है--इसका उसे कोई भी पता नहीं है। और जिसे अमृत का पता नहीं हैउसके लिए जीवन में अभी ज्ञान की कोई भी किरण नहीं फूटी। जिसे मृत्यु का पता हैवह घने अंधकार और अज्ञान में खड़ा है।

जब कृष्ण कहते हैं कि पहले भी हम थेतू भी थामैं भी थाये जो लोग सामने युद्ध के स्थल पर आकर खड़े हैंये भी थेबाद में भी हम होंगे--तो वे सागर की बात कर रहे हैं। और अर्जुन लहर की बात कर रहा है। और अक्सर सागर और लहर की बात करने वाले लोगों में संवाद बड़ा मुश्किल  है। क्योंकि कोई पूरब की बात कर रहा हैकोई पश्चिम की बात कर रहा है।

इसलिए गीता इतनी लंबी चलेगी। क्योंकि अर्जुन बार-बार लहरों की बातें उठाएगाऔर कृष्ण बार-बार सागर की बात करेंगेऔर उनके बीच कहीं भीकहीं भी कटाव नहीं होता। कहीं वे एक-दूसरे को काटते नहीं। काट दें तो बात हल हो जाए। इसलिए लंबी चलेगी बात। वह फिर दोहरकर लहरों पर लौट आएगा। उसे लहरें ही दिखाई पड़ती हैं। और जिसे लहरें दिखाई पड़ती हैंउसका भी कसूर क्या है! लहरें ही ऊपर होती हैं।

असल में जो देखने पर ही निर्भर हैउसे लहरें ही दिखाई पड़ेंगी। अगर सागर को देखना होतो खुली आंख से देखना जरा मुश्किल है। आंख बंद करके देखना पड़ता है। अगर सागर को देखना होतो सच तो यह है कि आंख से देखना ही नहीं पड़तासागर में डुबकी लगानी पड़ती है। और डुबकी लगाते वक्त आंख बंद कर लेनी होती है। लहरों से नीचे उतरना पड़ता है सागर में। लेकिन जो अभी अपने ही चित्त की लहरों से नीचे न उतरा होवह दूसरे के ऊपर उठी लहरों के नीचे नहीं जा सकता है। अर्जुन की सारी पीड़ा आत्म-अज्ञान है।

(भगवान कृष्‍ण के अमृत वचनों पर ओशो के अमर प्रवचन) हरिओम सिगंल

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