गीता ज्ञान दर्शन अध्याय 1 भाग 12

  


अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कलीस्प्रय:।

     स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसंकर: ।।41।।


            संकरो नरकायैव कुलध्नानां कुलस्य च ।

            पतन्ति यितरो ह्योषां लुप्तपिण्डोदकक्रिया: ।।42।।


 


      तथा हे कृष्ण पाप के अधिक बढ़ जाने से कुल की स्त्रियां दूषित हो जाती हैं। और हे वार्ष्णेय, स्त्रियों के दूषित होने पर वर्णसंकर उत्पन्न होता है।


और वह वर्णसंकर कुलधातियों को और कुल को नर्क में ले जाने के लिए ही (होता) है। लोप हुई पिंड और जल की क्रिया वाले इनके पितर लोग भी गिर जाते हैं।


 


            दोषैरेतैः कुलध्नानां वर्णस्थ्यंस्कारकै: ।

            उत्साद्यन्तेजातिधर्मा कुलधर्माश्च शाश्वता: ।।43।।


            उत्‍सन्‍नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन ।

            नरकेऽनियतं वासी भवतींत्यनुशुश्रुम ।।44।।


और इन वर्णसंकरकारक दोषों से कुलघातियों के सनातन कुलधर्म और जातिधर्म नष्ट हो जाते हैं।

हे जनार्दन, नष्ट हुए कुलधर्म वाले मनुष्यों का अनंत काल तक नर्क में वास होता है, ऐसा हमने सुना है।




अर्जुन बहुत—बहुत मार्गों से क्या—क्या बुरा हो जाएगा युद्ध में, उसकी खोजबीन कर रहा है। उसके मन में बहुत—बहुत बुराइयां दिखाई पड़ रही हैं। अभी ही नहीं, आगे भी, संतति कैसी हो जाएगी, वर्ण कैसे विकृत हो जाएंगे, सनातन धर्म कैसे नष्ट हो जाएगा, वह सब खोज रहा है। यह बहुत अजीब—सा लगेगा कि उसे इस सब की चिंता क्यों है!

वह पलायन चाहता है अर्जुन, तो वह यह सब खोज रहा है। कल तक उसने यह बात नहीं कही थी कभी भी। कल तक उसे आने वाली संतति को क्या होगा, कोई मतलब न था। युद्ध के आखिरी क्षण तक उसे कभी इन सब बातों का खयाल न आया, आज सब खयाल आ रहा है! आज उसके मन को पलायन पकड रहा है, तो वह सब दलीलें खोज रहा है।

अब यह बड़े मजे की बात है कि कुल मामला इतना है कि वह अपनों को मारने से भयभीत हो रहा है। लेकिन दलीलें बहुत दूसरी खोज रहा। वह सब दलीलें खोज रहा है। मामला कुल इतना है कि वह ममत्व से पीड़ित है, मोह से पीड़ित है, अपनों को मारने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। इतनी—सी बात है, लेकिन इसके आस—पास वह बड़ा जाल, फिलासफी खड़ी कर रहा है।

हम सब करते हैं। छोटी—सी बात जो होती है, अक्सर ऐसा होता है कि वह बात हम छोड़ ही देते हैं, जो होती है, उसके आस—पास जो जाल हम खड़ा करते हैं, वह बहुत दूसरा होता है। एक आदमी को किसी को मारना है, तो वह बहाने खोज लेता है। एक आदमी को क्रोध करना है, तो वह बहाने खोज लेता है। एक आदमी को क्रोध करना है, तो वह बहाने खोज लेता है। एक आदमी को भागना है, तो वह बहाने खोज लेता है। आदमी को जो करना है, वह पहले आता है; और बहाने खोजना पीछे आता है।

वह कृष्ण देख रहे हैं और हंस रहे हैं। समझ रहे हैं कि ये सब जो दलीलें वह दे रहा है; ये चालबाजी की दलीलें हैं; ये दलीलें  वास्तविक नहीं हैं; ये सही नहीं हैं। यह उसकी अपनी दृष्टि नहीं है। क्योंकि उसने कभी आज तक किसी को मारते वक्त नहीं सोचा। कोई ऐसा पहला मौका नहीं है कि वह मार रहा है। वह निष्णात योद्धा है। मारना ही उसकी जिंदगीभर का अनुभव और कुशलता है। मारना ही उसका बल है, तलवार ही उसका हाथ है, धनुष—बाण ही उसकी आत्मा है। ऐसा आदमी नहीं है कि कोई तराजू पकड़े बैठा रहा हो और अचानक युद्ध पर लाकर खड़ा कर दिया गया हो।  इसलिए उसकी बातों पर कृष्ण जरूर हंस रहे होंगे। वे जरूर देख रहे होंगे कि आदमी कितना चालाक है!

सब आदमी चालाक हैं। जो कारण होता है, उसे हम भुलाते हैं। और जो कारण नहीं होता है, उसके लिए हम दलीलें इकट्ठी करते हैं। और अक्सर ऐसा होता है कि खुद को ही दलीलें देकर हम  समझा लेते हैं और मूल कारण छूट जाता है।

लेकिन कृष्ण चाहेंगे कि उसे मूल कारण खयाल में आ जाए। क्योंकि मूल कारण अगर खयाल में हो, तो समझ पैदा हो सकती है। और अगर मूल कारण छिपा दिया जाए और दूसरे झूठे कारण इकट्ठे कर लिए.......।

अर्जुन को क्या मतलब है कि आगे क्या होगा? धर्म की उसे कब चिंता थी कि धर्म विनष्ट हो जाएगा! कब उसने फिक्र की थी कि  कहीं कुल विकृत न हो जाएं? कब उसने फिक्र की थी? इन सब बातों की कोई चिंता न थी कभी। आज अचानक सब चिंताए उसके मन पर उतर आई हैं!

यह समझने जैसा है कि ये सारी चिंताएं क्यों उतर रही हैं, क्योंकि वह भागना चाहता है। भागना चाहता है, तो ऐसा नहीं दिखाएगा कि कायर है। वजह से भागेगा। जायज होगा उसका भागना। कहेगा कि इतने कारण थे, इसलिए भागता हूं। अगर बिना कारण भागेगा, तो दुनिया हंसेगी। यहीं उसकी चालाकी है। यहीं हम सब की भी चालाकी है। हम जो भी कर रहे हैं, उसके लिए पहले कारण का एक जाल खड़ा करेंगे। जैसे मकान को बनाते हैं, तो एक स्ट्रक्चर खड़ा करते हैं, ऐसे हम एक जाल खड़ा करेंगे। उस जाल से हम दिखाएंगे कि यह ठीक है। लेकिन मूल कारण बिलकुल और होगा।

अगर कृष्ण को यह साफ दिखाई पड़ जाए कि अर्जुन जो कह रहा है, वही कारण है, तो मैं नहीं मानता कि वे धर्म का विनाश करवाना चाहेंगे, मैं नहीं मानता कि वे चाहेंगे कि बच्चे विकृत हो जाएं; मैं नहीं सोचता कि वे चाहेंगे कि संस्कृति, सनातन— धर्म नष्ट हो जाए। नहीं वे चाहेंगे। लेकिन ये कारण नहीं हैं। ये  झूठे परिपूरक कारण हैं। इसलिए कृष्ण इनको गिराने की कोशिश करेंगे। इनको काटने की कोशिश करेंगे। वे अर्जुन को वहां लाएंगे, जहां मूल कारण है। क्योंकि मूल कारण से लड़ा जा सकता है, लेकिन झूठे कारणों से लड़ा नहीं जा सकता। और इसलिए हम मूल को छिपा लेते हैं और झूठे कारणों में जीते हैं।

यह अर्जुन की मनोदशा ठीक से पहचान लेनी जरूरी है।  यह बुद्धि की चालाकी है। सीधा नहीं कहता कि मैं भाग जाना चाहता हूं; नहीं होता मन अपनों को मारने का, यह तो आत्मघात है, मैं जा रहा हूं। सीधा नहीं कहता। दुनिया में कोई आदमी सीधा नहीं कहता। जो आदमी सीधा कहता है, उसकी जिंदगी में क्रांति हो जाती है, जो इरछा—तिरछा कहता रहता है, उसकी जिंदगी में कभी क्रांति नहीं होती। वह जिसको कहते हैं झाड़ी के आसपास पीटना,  बस, ऐसे ही वह पीटेगा पूरे वक्त। झाड़ी बचाएगा, आसपास पिटाई करेगा। अपने को बचाएगा और हजार—हजार कारण खोजेगा। छोटी—सी बात है सीधी उसकी, हिम्मत खो रहा है, ममत्व के साथ हिम्मत जा रही है। उतनी सीधी बात नहीं कहेगा और सारी बातें इकट्ठी कर रहा है। उसके कारण सुनने और समझने जैसे हैं। हमारा चित्त भी ऐसा करता है, इसलिए समझना उपयोगी है।

  (भगवान कृष्‍ण के अमृत वचनों पर ओशो के अमर प्रवचन)

हरिओम सिगंल

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