गीता ज्ञान दर्शन अध्याय 2 भाग 19

  जातस्य हि धु्रवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।

तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।। २७।।
अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत।
अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना।। २८।।


क्योंकि ऐसा होने से तो जन्मने वाले की निश्चित मृत्यु और मरने वाले का निश्चित जन्म होना सिद्ध हुआ। इससे भी तू इस बिना उपाय वाले विषय में शोक करने को योग्य नहीं है। (और यह भीष्मादिकों के शरीर मायामय होने से अनित्य हैंइससे शरीरों के लिए शोक करना उचित नहीं हैक्योंकि) हे अर्जुनसंपूर्ण प्राणी जन्म से पहले बिना शरीर वाले और मरने के बाद भी बिना शरीर वाले ही हैं। केवल बीच में ही शरीर वाले (प्रतीत होते) हैं। फिर उस विषय में क्या चिंता है?


खयाल आपको आया होगा कि कृष्ण जब अपनी तरफ से बोल रहे थेतब उन्होंने अर्जुन को मूर्ख भी कहा। जब वे अपनी सतह से बोल रहे थेतब अर्जुन को मूढ़ कहने में भी उन्हें कठिनाई न हुई। लेकिन जब वे अर्जुन की तरफ से बोल रहे हैंतब उसे महाबाहोभारत...तब उसे बड़ी प्रतिष्ठा दे रहे हैंबड़े औपचारिक शब्दों का उपयोग कर रहे हैं। जब अपनी तरफ से बोल रहे थेतब उसे निपट मूढ़ कहाकि तू निपट गंवार हैतू बिलकुल मूढ़ हैतू बिलकुल मंद-बुद्धि है। लेकिन अब उसी मंद-बुद्धि अर्जुन को वे कहते हैंहे महाबाहो!



अब उसकी ही जगह उतरकर बात कर रहे हैं। अब ठीक उसके कंधे पर हाथ रखकर बात कर रहे हैं। अब ठीक मित्र जैसे बात कर रहे हैं। क्योंकि इतनी बात से लगा है कि जिस शिखर की उन्होंने बात कहीवह उसकी पकड़ में शायद नहीं आती। बहुत बार ऐसा हुआ है।

कृष्ण अर्जुन के पास वापस आकर खड़े हो गए हैं। ठीक वहीं खड़े थेभौतिक शरीर तो वहीं खड़ा था पूरे समयलेकिन पहले वे बोल रहे थे बहुत ऊंचाई से। वहां सेजहां आलोकित शिखर है। तब वे अर्जुन को कह सकेतू नासमझ है। अब वे अर्जुन को कह रहे हैं कि तेरी समझ ठीक है। तू अपनी ही समझ का उपयोग कर। अब मैं तेरी समझ से ही कहता हूं।

लेकिन अब वे जो कह रहे हैंवह सिर्फ तर्क और दलील की बात है। क्योंकि जो अनुभव को न पकड़ पाएफिर उसके लिए तर्क और दलील के अतिरिक्त पकड़ने को कुछ भी नहीं रह जाताकोई उपाय नहीं रह जाता। जो तर्क और दलील को ही पकड़ पाएतो फिर तर्क और दलील की ही बात कहनी पड़ती है। लेकिन उस बात में प्राण नहीं हैवह बल नहीं है। वह बल हो नहीं सकता। क्योंकि कृष्ण जानते हैं कि वे जो कह रहे हैंअब सिर्फ तर्क हैअब सिर्फ दलील है। अब वे यह कह रहे हैं कि तुझे ही ठीक मान लेते हैं। लेकिन यह जो शरीर बना हैजिन भौतिक तत्वों सेजिस माया सेखो जाएगा उसमें। विद्वान पुरुष इसके लिए चिंता नहीं किया करते।

विद्वान और ज्ञानी के फर्क को भी ठीक से समझ लेना चाहिए। क्योंकि पहले कृष्ण पूरे समय कह रहे हैं कि जो ऐसा जान लेता हैवह ज्ञान को उपलब्ध हो जाता है। लेकिन अब वे कह रहे हैं--ज्ञानी नहीं--अब वे कह रहे हैंविद्वान पुरुष चिंता को उपलब्ध नहीं होते। विद्वान का वह तल नहीं हैजो ज्ञानी का है। विद्वान तर्क के तल पर जीता हैयुक्ति के तल पर जीता है। ज्ञानी अनुभूति के तल पर जीता है। ज्ञानी जानता हैविद्वान सोचता है।

लेकिन यही सहीकृष्ण कहते हैंनहीं ज्ञानी होने की तैयारी तेरीतो विद्वान ही हो जा। सोच मत करचिंता मत कर। क्योंकि सीधी-सी बात है कि जब सब खो ही जाता हैइतना तो तू सोच ही सकता हैयह तो विचार में ही आ जाता है कि सब खो जाता हैसब मिट जाता हैतो फिर चिंता मत करमिट जाने दे। तू बचाएगा कैसेतू बचा कैसे सकेगातो जो अपरिहार्य है----जो अपरिहार्य हैजो होगा हीहोकर ही रहेगाउसमें तू ज्यादा से ज्यादा निमित्त हैअपने को निमित्त समझ ले। विद्वान हो जाचिंता से मुक्त हो।

लेकिन इसे समझ लेना। कृष्ण ने जब अर्जुन को मूढ़ भी कहातब भी इतना अपमान न थाजितना अब विद्वान होने के लिए कहकर हो गया है। मूढ़ कहातब तक भरोसा था उस पर अभी। अभी आशा थी कि उसे खींचा जा सकता है शिखर पर। उसे देखकर वह आशा छूटती है। अब वे उसे प्रलोभन दे रहे हैं विद्वान होने का। वे कह रहे हैं कि कम से कमबुद्धिमान तो तू है ही। और बुद्धिमान पुरुष को चिंता का कोई कारण नहींक्योंकि बुद्धिमान पुरुष ऐसा मानकर चलता है कि सब चीजें बनी हैंमिट जाती हैं। कुछ बचता ही नहीं है पीछेबात समाप्त हो जाती है।
  
कृष्ण बड़ा अपमान करते हैं अर्जुन का! कभी मूर्ख कहते हैंकभी नपुंसक कह देते हैं उसकोयह बात ठीक नहीं है।

अब वे बड़ा सम्मान कर रहे हैं। वे कह रहे हैंहे महाबाहोहे भारतविद्वान पुरुष शोक से मुक्त हो जाते हैं। तू भी विद्वान है। लेकिन मैं आपसे कहता हूंअपमान अब हो रहा है। जब उसे मूढ़ कहा थातो बड़ी आशा से कहा था कि शायद यह चिनगारीशायद यह चोट...वह ठीक शॉक ट्रीटमेंट था। वह बेकार चला गया। वह ठीक शॉक ट्रीटमेंट थाबड़ा धक्का था। अर्जुन को काफी क्रोध चढ़ा देते हैं वे। लेकिन उसको क्रोध भी नहीं चढ़ा। उसे सुनाई ही नहीं पड़ा कि वे क्या कह रहे हैं। वह अपनी ही रटे चला जाता है। तब वे अबअब यह बिलकुल निराश हालत में कृष्ण कह रहे हैं।

ऐसे बहुत उतार-चढ़ाव गीता में चलेंगे। कभी आशा बनती है कृष्ण कोतो ऊंची बात कहते हैं। कभी निराशा आ जाती हैतो फिर नीचे उतर आते हैं। इसलिए कृष्ण भी इसमें जो बहुत-सी बातें कहते हैंवे एक ही तल पर कही गई नहीं हैं। कृष्ण भी चेतना के बहुत से सोपानों पर बात करते हैं। कहीं से भी--लेकिन अथक चेष्टा करते हैं कि अर्जुन कहीं से भी--कहीं से भी उस यात्रा पर निकल जाएजो अमृत और प्रकाश को उसके अनुभव में ला दे।

(भगवान कृष्‍ण के अमृत वचनों पर ओशो के अमर प्रवचन)
हरिओम सिगंल

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