गीता ज्ञान दर्शन अध्याय 2 भाग 2

  अर्जुन उवाच

कथं भीष्ममहं संख्ये द्रोणं च मधुसूदन।
ईषुभिः प्रति योत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन।। ४।।

तब अर्जुन बोलाहे मधुसूदनमैं रणभूमि में भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य के प्रति किस प्रकार बाणों को करके युद्ध करूंगाक्योंकि हे अरिसूदनवे दोनों ही पूजनीय हैं।



लेकिन अर्जुन नहीं पकड़ पाता। वह फिर वही दोहराता है दूसरे कोण से। वह कहता हैमैं द्रोण और भीष्म से कैसे युद्ध करूंगावे मेरे पूज्य हैं। बात फिर भी वह विनम्रता की बोलता है।
लेकिन अहंकार अक्सर विनम्रता की भाषा बोलता है। और अक्सर विनम्र लोगों में सबसे गहन अहंकारी पाए जाते हैं। असल में विनम्रता डिफेंसिव ईगोइज्म हैवह सुरक्षा करता हुआ अहंकार है। आक्रामक अहंकार मुश्किल में पड़ सकता है। विनम्र अहंकार पहले से ही सुरक्षित  है।
इसलिए जब कोई कहता हैमैं तो कुछ भी नहीं हूंआपके चरणों की धूल हूंतब जरा उसकी आंखों में देखना। तब उसकी आंखें कुछ और ही कहती हुई मालूम पड़ेंगी। उसके शब्द कुछ और कहते मालूम पड़ेंगे।
कृष्ण ने अर्जुन की रग पर हाथ रखा हैलेकिन अर्जुन नहीं समझ पा रहा है। वह दूसरे कोने से फिर बात शुरू करता है। वह कहता हैद्रोण कोजो मेरे गुरु हैंभीष्म कोजो मेरे परम आदरणीय हैंपूज्य हैं--उन पर मैं कैसे आक्रमण करूंगा!
यहां ध्यान में रखने जैसी बात हैयहां भीष्म और द्रोण गौण हैं। अर्जुन कह रहा हैमैं कैसे आक्रमण करूंगा? इतना बुरा मैं नहीं कि द्रोण पर और बाण खींचूं! कि भीष्म की और छाती छेदूं! नहींयह मुझसे न हो सकेगा। यहां वह कह तो यही रहा है कि वे पूज्य हैंयह मैं कैसे करूंगालेकिन गहरे में खोजें और देखें तो पता चलेगावह यह कह रहा है कि यह मेरी जो इमेज हैमेरी जो प्रतिमा हैमेरी ही आंखों में जो मैं हूंउसके लिए यह असंभव है। इससे तो बेहतर है मधुसूदन कि मैं ही मर जाऊं। इससे तो अच्छा हैप्रतिमा बचेशरीर खो जाएअहंकार बचेमैं खो जाऊं। वह जो इमेज है मेरीवह जो सेल्फ इमेज है उसकी...।
हर आदमी की अपनी-अपनी एक प्रतिमा है। जब आप किसी पर क्रोध कर लेते हैं और बाद में पछताते हैं और क्षमा मांगते हैंतो इस भ्रांति में मत पड़ना कि आप क्षमा मांग रहे हैं और पछता रहे हैं। असल में आप अपने सेल्फ इमेज को वापस निर्मित कर रहे हैं। आप जब किसी पर क्रोध करते हैंतो आपने निरंतर अपने को अच्छा आदमी समझा हैवह प्रतिमा आप अपने ही हाथ से खंडित कर लेते हैं। क्रोध के बाद पता चलता है कि वह अच्छा आदमीजो मैं अपने को अब तक समझता थाक्या मैं नहीं हूं! अहंकार कहता हैनहींआदमी तो मैं अच्छा ही हूं। यह क्रोध जो हो गया हैयह बीच में आ गई भूल-चूक है। मेरे बावजूद हो गया है। यह कोई मैंने नहीं किया हैहो गयापरिस्थितिजन्य है। पछताते हैंक्षमा मांग लेते हैं।

अगर सच में ही क्रोध के लिए पछताए हैंतो दुबारा क्रोध फिर जीवन में नहीं आना चाहिए। नहींलेकिन कल फिर क्रोध आता है।
नहींक्रोध से कोई अड़चन न थी। अड़चन हुई थी कोई और बात से। यह कभी सोचा ही नहीं था कि मैं और क्रोध कर सकता हूं! तो जब पछता लेते हैंतब आपकी अच्छी प्रतिमाआपका अहंकार फिर सिंहासन पर विराजमान हो जाता है।
वह कहता हैदेखो माफी मांग लीक्षमा मांग ली। विनम्र आदमी हूं। समय नेपरिस्थिति नेअवसर नेमूड नहीं थाभूखा थादफ्तर से नाराज लौटा थाअसफल थाकुछ काम में गड़बड़ हो गई थी--परिस्थितिजन्य था। मेरे भीतर से नहीं आया था क्रोध। मैंने तो क्षमा मांग ली है। जैसे ही होश आयाजैसे ही मैं लौटामैंने क्षमा मांग ली है। आप अपनी प्रतिमा को फिर सजा संवारकरफिर गहने-आभूषण पहनाकर सिंहासन पर विराजमान कर दिए। क्रोध के पहले भी यह प्रतिमा सिंहासन पर बैठी थीक्रोध में नीचे लुढ़क गई थीफिर बिठा दिया। अब आप फिर पूर्ववत पुरानी जगह आ गएकल फिर क्रोध करेंगे। पूर्ववत अपनी जगह आ गए। क्रोध के पहले भी यहीं थेक्रोध के बाद भी यहीं आ गए। जो पश्चात्ताप हैवह इस प्रतिमा की पुनर्स्थापना है।
लेकिन ऐसा लगता हैक्षमा मांगता आदमी बड़ा विनम्र है। सब दिखावे सच नहीं हैं। सच बहुत गहरे हैं और अक्सर उलटे हैं। वह आदमी आपसे क्षमा नहीं मांग रहा है। वह आदमी अपने ही सामने निंदित हो गया है। उस निंदा को झाड़ रहा हैपोंछ रहा हैबुहार रहा है। वह फिर साफ-सुथरास्नान करके फिर खड़ा हो रहा है।
यह जो अर्जुन कह रहा है कि पूज्य हैं उस तरफउन्हें मैं कैसे मारूं ?  शंका यहां उनके पूज्य होने पर नहीं है। शंका  यहां अर्जुन के मैं पर है कि मैं कैसे मारूंनहीं-नहींयह अपने मैं की प्रतिमा खंडित करने सेकि लोक-लोकांतर में लोग कहें कि अपने ही गुरु पर आक्रमण कियाकि अपने ही पूज्यों को माराइससे तो बेहतर है मधुसूदन कि मैं ही मर जाऊं। लेकिन लोग कहें कि मर गया अर्जुनलेकिन पूज्यों पर हाथ न उठाया। मर गयामिट गयालेकिन गुरु पर हाथ न उठाया।
उसके मैं को पकड़ लेने की जरूरत है। अभी उसकी पकड़ में नहीं है। किसी की पकड़ में नहीं होता है। जिसका मैं अपनी ही पकड़ में आ जाएवह मैं के बाहर हो जाता है। हम अपने मैं को बचा-बचाकर जीते हैं। वह दूसरी-दूसरी बातें करता जाएगा। वह सब्स्टीटयूट खोजता चला जाएगा। कभी कहेगा यहकभी कहेगा वह। सिर्फ उस बिंदु को छोड़ता जाएगाजो है। कृष्ण ने छूना चाहा थावह उस बात को छोड़ गया है। अनार्य-आर्य की बात वह नहीं उठाता। कातरता की बात वह नहीं उठाता। लोक में यशपरलोक में भटकावउसकी बात वह नहीं उठातावह दूसरी बात उठाता है। जैसे उसने कृष्ण को सुना ही नहीं। उसके वचन कह रहे हैं कि बीच में जो कृष्ण ने बोला हैअर्जुन ने नहीं सुना।
सभी बातें जो बोली जाती हैंहम सुनते नहीं। हम वही सुन लेते हैंजो हम सुनना चाहते हैं। सभी जो दिखाई पड़ता हैवह हम देखते नहीं। हम वही देख लेते हैंजो हम देखना चाहते हैं। सभी जो हम पढ़ते हैंवह पढ़ा नहीं जाताहम वही पढ़ लेते हैंजो हम पढ़ना चाहते हैं। हमारा देखनासुननापढ़नासब सिलेक्टिव हैउसमें चुनाव है। हम पूरे वक्त वह छांट रहे हैंजो हम नहीं देखना चाहते।
एक नया मनोविज्ञान हैगेस्टाल्ट। यह जो अर्जुन ने उत्तर दिया वापसयह गेस्टाल्ट का अदभुत प्रमाण है। गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिक कहते हैंआकाश में बादल घिरे होंतो हर आदमी उनमें अलग-अलग चीजें देखता है। डरा हुआ आदमी भूत-प्रेत देख लेता हैधार्मिक आदमी भगवान की प्रतिमा देख लेता हैफिल्मी दिमाग का आदमी अभिनेता-अभिनेत्रियां देख लेता है। वह एक ही बादल आकाश में हैअपना-अपना देखना हो जाता है।
प्रत्येक आदमी अपनी ही निर्मित दुनिया में जीता है। और हम अपनी दुनिया में...इसलिए इस पृथ्वी पर एक दुनिया की भ्रांति में मत रहना आप। इस दुनिया में जितने आदमी हैंकम से कम उतनी दुनियाएं हैं। अगर साढ़े तीन अरब आदमी हैं आज पृथ्वी परतो पृथ्वी पर साढ़े तीन अरब दुनियाएं हैं। और एक आदमी भी पूरी जिंदगी एक दुनिया में रहता होऐसा मत सोच लेना। उसकी दुनिया भी रोज बदलती चली जाती है।

अब एक आदमी के अनेक संसार कैसे होंगेरोज बदल रहा है। और प्रत्येक व्यक्ति अपनी दुनिया के आस पास बाड़ेदरवाजेसंतरीपहरेदार खड़े रखता है। और वह कहता हैइन-इन को भीतर आने देनाइन-इन को बाहर से ही कह देना कि घर पर नहीं हैं। यह हम लोगों के साथ ही नहीं करतेसूचनाओं के साथ भी करते हैं।
अब अर्जुन ने बिलकुल नहीं सुना हैकृष्ण ने जो कहावह बिलकुल नहीं सुना है। वह जो उत्तर दे रहा हैवह बताता है कि उसकी कोई संगति नहीं है।
हम भी नहीं सुनते। दो आदमी बात करते हैंअगर आप चुपचाप साक्षी बनकर खड़े हो जाएं तो बड़े हैरान होंगे। लेकिन साक्षी बनकर खड़ा होना मुश्किल है। क्योंकि पता नहीं चलेगा और आप भी तीसरे आदमी भागीदार हो जाएंगे बातचीत में। अगर आप दो आदमियों की साक्षी बनकर बात सुनें तो बहुत हैरान होंगे कि ये एक-दूसरे से बात कर रहे हैं या अपने-अपने से बात कर रहे हैं! एक आदमी जो कह रहा हैदूसरा जो कहता है उससे उसका कोई भी संबंध नहीं है।
अर्जुन और कृष्ण की चर्चा में यह मौका बार-बार आएगाइसलिए मैंने इसे ठीक से आपसे कह देना चाहा। अर्जुन ने बिलकुल नहीं सुना कि कृष्ण ने क्या कहा है। नहीं कहा होताऐसी ही स्थिति है। वह अपने भीतर की ही सुने चला जा रहा है। वह कह रहा हैये पूज्यये द्रोणये भीष्म...। वह यह सोच रहा होगा भीतर। इधर कृष्ण क्या बोल रहे हैंवे जो बोल रहे हैंवह परिधि के बाहर हो रहा है। उसके भीतर जो चल रहा हैवह यह चल रहा है। वह कृष्ण से कहता है कि मधुसूदनये पूज्यये प्रियइन्हें मैं मार सकता हूंमैं अर्जुन। इसे ध्यान रखना। उसने कृष्ण की बात नहीं सुनी।
(भगवान कृष्‍ण के अमृत वचनों पर ओशो के अमर प्रवचन) हरिओम सिगंल

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