गीता ज्ञान दर्शन अध्याय 2 भाग 14

  मरणधर्मा शरीर और अमृतअरूप आत्मा

न जायते म्रियते वा कदाचिन्
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे।। २०।।

यह आत्मा किसी काल में भी न जन्मता है और न मरता हैअथवा न यह आत्माहो करके फिर होने वाला हैक्योंकि यह अजन्मानित्यशाश्वत और पुरातन है। शरीर के नाश होने पर भी यह नष्ट नहीं होता है।


जहां हम हैंजो हम हैंवहां सभी कुछ जात हैजन्मता है। जिससे भी हम परिचित हैंवहां अजातअजन्माकुछ भी नहीं है। जो भी हमने देखा हैजो भी हमने पहचाना हैवह सब जन्मा हैसब मरता है। लेकिन जन्म और मरण की इस प्रक्रिया को भी संभव होने के लिए इसके पीछे कोईइस सब मरने और जन्मने की शृंखला के पीछे--जैसे माला के गुरियों को कोई धागा पिरोता हैदिखाई नहीं पड़तागुरिए दिखाई पड़ते हैं--इस जन्म और मरण के गुरियों की लंबी माला को पिरोने वाला कोई अजात धागा भी चाहिए। अन्यथा गुरिए बिखर जाते हैं। टिक भी नहीं सकतेसाथ खड़े भी नहीं हो सकतेउनमें कोई जोड़ भी नहीं हो सकता। दिखती है माला ऊपर से गुरियों कीहोती नहीं है गुरियों की। गुरिए टिके होते हैं एक धागे परजो सब गुरियों के बीच से दौड़ता है।

जन्म हैमृत्यु हैआना हैजाना हैपरिवर्तन हैइस सबके पीछे अजात सूत्र--
 अजातअमृतन जो जन्मतान जो मरता--ऐसा एक सूत्र चाहिए ही। वही अस्तित्व हैवही आत्मा हैवही परमात्मा है। सारे रूपांतरण के पीछेसारे रूपों के पीछेअरूप भी चाहिए। वह अरूप न होतो रूप टिक न सकेंगे।

कृष्ण जब कह रहे हैं कि कोई है अजन्मानहीं जन्मतानहीं मरताजिसे शस्त्रों से छेदा नहीं जा सकता...।

आपकोमुझे छेदा जा सकता है। इसलिए ध्यान रखनाजिसे छेदा जा सकता हैकृष्ण उसके संबंध में बात नहीं कर रहे हैं। वे कहते हैं कि जिसे छेदा नहीं जा सकता शस्त्रों सेआग में जलाया नहीं जा सकतापानी में डुबाया नहीं जा सकता।

हमें तो छेदा जा सकता हैकोई कठिनाई नहीं है छेदे जाने में। आग में जलाए जाने में कोई कठिनाई नहीं है। पानी में डुबाए जाने में कोई कठिनाई नहीं है।


तो जो पानी में डुबाया जा सकताआग में जलाया जा सकताशस्त्रों से छेदा जा सकताउसकी यह चर्चा नहीं है। जिसके ऊपर सर्जन कुछ कर सकता हैउसकी यह चर्चा नहीं है। जिसके लिए डाक्टर कुछ कर सकता हैउसकी यह चर्चा नहीं है। डाक्टर जिससे उलझा हैवह मर्त्य है। और सर्जन जिस पर काम कर रहा हैवह मरणधर्मा है। विज्ञान की प्रयोगशाला में जिस पर खोज-बीन हो रही हैवह मरणधर्मा है। इससे उसका कोई लेना-देना नहीं है।

इसलिए अगर वैज्ञानिक सोचता हो कि अपनी प्रयोगशाला की टेबल पर किसी दिन वह कृष्ण के अजात कोअजन्मे कोअमृत को पकड़ लेगातो भूल में पड़ा है। वह कभी पकड़ नहीं पाएगा। उसके सब सूक्ष्मतम औजार उसको ही पकड़ पाएंगेजो छेदा जा सकता है। लेकिन जो नहीं छेदा जा सकताअगर वह दिखाई पड़ जाए...वह दिखाई पड़ सकता है। वह दिखाई पड़ सकता है।
(भगवान कृष्‍ण के अमृत वचनों पर ओशो के अमर प्रवचन) हरिओम सिगंल

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