
गीता का एक-एक अध्याय अपने में पूर्ण है। गीता एक किताब नहीं, अनेक किताबें है। गीता का एक अध्याय अपने में पूर्ण है। अगर एक अध्याय भी गीता का ठीक से समझ में आ जाए--समझ का मतलब, जीवन में आ जाए, अनुभव में आ जाए, खून में, हड्डी में आ जाए; मज्जा में, मांस में आ जाए; छा जाए सारे भीतर प्राणों के पोर-पोर में--तो बाकी किताब फेंकी जा सकती है। फिर बाकी किताब में जो है, वह आपकी समझ में आ गया। न आए, तो फिर आगे बढ़ना पड़ता है।
लड़की पन्द्रह-सोलह साल की थी। खूबसूरत बेहिसाब खूबसूरत। गोरी ऐसी कि लगे हाथ लगते ही कहीं रंग ना मैला हो जाये। नैन नक्श ऐसे तीखे कि देखने वाल...