शनिवार, 22 मार्च 2025

 लड़की पन्द्रह-सोलह साल की थी।

खूबसूरत बेहिसाब खूबसूरत। गोरी ऐसी कि लगे हाथ लगते ही कहीं रंग ना मैला हो जाये। नैन नक्श ऐसे तीखे कि देखने वाले की नजर अटकी रह जाये। बदन भी उसका बड़ा ही आकर्षक था। भरे-भरे जिस्म पर, सुडौल उभार- पतली कमर हिरनी सी बलखाती चाल। नागिन-सी लहराती जुल्फें।

कुल मिलाकर उस लड़की में वह सब कुछ था जो किसी भी मर्द को दीवाना बना दे- पागल कर दे।

उस लड़की को देख कर आहें भरने वाले आशिक तो हजारों होंगे पर वो फिदा थी अपने ही किरायेदार के लड़के सतीश पर।

सतीश कोई खूबसूरत युवक ना था। फिर भी जवानी की तमाम शाखियां उसमें थीं। लड़कियों को आकर्षित करने वाले सारे लटके झटके जानता था वह। अतः अपने मकान मालिक की कमसिन भोली भाली लड़की अलका को प्रभावित करने में वह अपनी निरन्तर कोशिशों के बाद कामयाब हो ही गया।

अलका के घर में किसी चीज की कमी ना थी- खाते-पीते घर की लड़की थी। बदन जवानी से पहले ही जवान हो चला था। और आज के फिल्मी माहौल असर - ख्वाहिशें भी, वक्त से पहले ही धड़कनें तेज करने लगी थीं।

सतोश पच्चीस वर्षीय देवारा था जब अलका दस साल की थी तभी से सहलाता पुचकारता वह उसे प्यार करता चला आ रहा था। अतः जवानी की डगर पर कदम रखती अलका को बहलाने-फुसलाने व मर्दानगी की आंच के जादुई असर से उसे पिघलाने में सतीश को कोई बहुत ज्यादा दिक्कत नहीं हुई।

लड़की एक बार उसकी बांहों में पहुँच समर्पित हुई तो शारीरिक सुख की जो लज्जत उसे महसूस हुई- उसकी ख्वाहिशों ने युवा जिस्म में जैसे उबाल-सा पैदा कर दिया।

वह सतीश के साथ ही जिन्दगी के सुनहरे ख्वाब संजोने लगी। उसके साथ जीने-मरने की कसमें खाने लगी।

मगर सतीश ने बेबसी के झूठे आंसू बहाये। आत्महत्या कर लेने की धमकी दी यह बता कर कि ये दुनिया वाले उन्हें एक नहीं होने देंगे और बिना अलका के वह जीवित नहीं रह सकेगा इसलिए आत्महत्या कर लेगा तो अलका जैसी मासूम भोली-भाली लड़की को भला यह कैसे अच्छा लगता कि उसका मजनूं अपनी लैला के लिए जान दे दे।

दुनिया वालों से सतीश का मतलब'अलका के माता-पिता के लिए' भी था। और उसकी सोच सही थी- भला अलका के माता-पिता अपनी फूल-सी, नाजों से पली बच्ची को उस जैसे आवारा के साथ बांधना कैसे स्वीकार कर लेते। उन्होंने तो इस बेमेल बन्धन के लिए किसी भी दशा में रजामन्द नहीं होना था और यह बात अलका भी अच्छी तरह जानती थी।

यह और बात थी कि सतीश के आसुंओं- उसके डॉयलाग्स ने मासूम दिल अलका का दिल जीत लिया और वह भला-बुरा सोचे समझे बगैर ही सतीश के साथ भाग निकलने के लिए तैयार हो गई।

समझा दिया था कि वे इस जालिम जमाने से दूर- कहीं दूर चले जायेंगे वहीं अपनी मोहब्बत की रोटी और इश्क की दाल पकायेंगे और जिन्दगी के सभी गमों से मुंह मोड़ खुशियों के ख्वाबों में खो जायेंगे।

और अलका को साथ ले सतीश हिमाचल के एक छोटे शहर में अपने एक दोस्त जीवन के यहां पहुंच गया।

और फिर... सतीश के बहकावे में आकर, घर से माल-मत्ता, जेवर लेकर एक रात वह घर से भाग निकली।

इधर अलका के गायब होने पर उसके मां-बाप ने भाग-दौड़ की तो पता चला उनके किरायेदार का लड़का सतीश भी गायब है। किरायेदार से पूछताछ की। वे अपने लाड़ले के बारे में कुछ ना बता सके। खूब झै-झै हुई। आखिरकार पुलिस में रिपोर्ट की गई। पुलिस ने लड़के का पता जानने के लिए किरायेदार और उसकी पत्नी व दूसरे लड़के को हिरासत में ले लिया।

अगले रोज अखबारों में खबर छपी- मकान मालिक की नाबालिग लड़की किरायेदार के लड़के साथ भागी।

पुलिस ने किरायेदार के रिश्तेदारों के यहां भी दबिश डाली। मगर कहीं पर भी सतीश व अलका बरामद नहीं हो सके।

इधर अपने गायब होने पर अपने-अपने परिवारों के हाल से बेखबर लैला मजनूं अपनी रातें रंगीन करने लगे।

सतीश के दोस्त जीवन को भी अलका की खूबसूरती भा गई। उसने सतीश से कहा "यार! तेरी हूर तो गजब की है- तूने तो बहुत मौज मस्ती कर ली। कुछ मौज मुझे भी मारने दे।".

"नहीं यार! मैं इससे शादी करने की सोच रहा हूं।" सतीश का स्वर मानों नशे में डूबा हुआ था।

"शादी करने की।" जीवन हंसा।

"हां। बड़ी मोटी आसामी है। मेरे मकानमालिक की लड़की है।" सतीश जीवन को बताने लगा- "इसके बाप ने मुझे स्वीकार कर लिया तो समझ लो जिन्दगी भर के दलिद्दर मिट गये सारी गरीबी दूर हो जायेगी।"

"मगर इसका बाप तुझे क्यों अपनाने लगा भई? वो तो तेरे हाथ-पैर तुड़वा देगा।" जीवन ने कहा।

सतीश हंसा- "यही सोचकर तो इसे यहां तेरे पास लेकर आया हूं यार! वरना किसी रिश्तेदार के यहां भी जा सकता था। मालूम था तू अकेला रहता है। तेरे साथ कुछ ना कुछ जुगाड़ बैठा लूंगा यह भरोसा था। और अब तूने मुझे व अलका को अपना दोस्त व उसकी घरवाली कहकर इन्ट्रोड्यूस कर ही दिया है। इसलिए किसी काम में कोई दिक्कत नहीं आनी है।"

"मैं तेरा मतलब नहीं समझा।" जीवन कुछ उलझी हुई नजरों से सतीश की ओर देखने लगा।

"बात यह है यार! मैं चाहता हूं यह खूबसूरत छोकरी जल्द से जल्द प्रेगनेन्ट हो जाये गर्भवती हो जाये।"

"पर वो नाबालिग है- अभी बहुत छोटी है- पन्द्रह साल की है- यह तूने ही कहा था सतीश।"

"हां कहा था- पर प्यारे जो लड़की मर्द के साथ हम बिस्तर होने के लिए छोटी नहीं है। वह भला बच्चा जनने के लिए क्यों छोटी होने लगी।"

"कानून ने तेरी यह दलील नहीं सुननी है बेटा! धर लिया गया तो नप जायेगा।" जीवन ने सतीश को चेताया।

"कुछ नहीं होगा- मैं तब तक किसी के सामने नहीं पहुंचूंगा जब तक मेरा मकसद पूरा नहीं होता।"

"और मकसद क्या है तेरा इस लड़की को प्रेगनेन्ट करना- ताकि इसका बाप इसकी शादी तेरे साथ करने को तैयार हो जाये।" जीवन ने कहा। फिर सतोश कुछ भी जवाब देता, उससे पहले ही वह बोला, "नहीं पार्टनर नहीं! तेरी यह स्कीम कामयाब नहीं होने की इसका बाप इसका एबार्शन करवा कर बच्चा गिरवा भी तो सकता है।"

"ऐसा कुछ नहीं होगा- मैंने इतनी कच्ची स्कीम नहीं बनाई है।" सतीश आत्मविश्वास भरे स्वर में बोला, "मैं तब तक पुलिस के हाथ लगूंगा ही नहीं जब तक कि अलका एक बच्चे की मां ना बन जाये। इसके लिये चाहे मुझे साल भर तक यहीं तेरे पास हो छुपा क्यों ना रहना पड़।"

"पर साल भर तक मैं तुझे कहां से खिलाऊंगा यार?" जीवन ने कहा तो सतीश तुरन्त ही बोल उठा, "हमारे खाने-पीने, खर्चे की तू जरा भी चिन्ता ना कर अव्वल तो जल्दी ही मैं कोई नौकरी कर लूंगा और अगर नौकरी ना भी मिली तो माल बहुत है मेरे पास।"

"अबे फक्कड़ ! क्यों झूठ बोलता है- तेरे पास भला माल कहां से आया?" जीवन ने मजाक उड़ाया।

"इसी लड़की के साथ आया प्यारे! अपने घर से पचास-साठ हजार के जेवर, छः-सात हजार कैश लेकर आई है मेरे साथ।"

"सच।"

"बिल्कुल सच! अबे यार! हमने इसे पट्टी ही ऐसी पढ़ाई थी पुड़िया ही ऐसी दिलाई थी कि थोड़ा-सा समझाने पर, बाप के माल पर भी तबियत से हाथ साफ करके आई है पट्टी।" सतीश ने कहा।

सतीश व जीवन ये बातें टैरेस में खड़े बहुत धीमे-धीमे कर रहे थे। उन्हें स्वप्न् में भी गुमान ना था कि जिस अलका को वे बड़ी गहरी नींद में सोता कमरे में छोड़ आये थे। अचानक लाईट चली जाने से गर्मी के कारण, वह जागकर, टैरेस में प्राकृतिक हवा खाने आ रही थी। किन्तु उन दोनों की बातें सुन ठिठक गई। उसने सारी बातें सुन लीं। सतीश की सोचों ने उसके विचारों ने भोली-भाली अलका को बुरी तरह झिंझोड़ दिया। उसे सतीश की मीठी-मीठी बातें याद आने लगीं। वे बातें जिनकी वजह से वह सतीश की दीवानी हो, उसके साथ भागने की मूर्खता कर बैठी थी। एक बार ऐसी ही डॉयलागबाजी के दौरान कहा था सतीश 

सतीश ने उसे बहला-फुसला कर, ने- यदि कुछ भी ना हुआ तो डार्लिंग हम मोहब्बत की रोटी खायेंगे- इश्क की दाल पकायेंगे अगर हवा भी हमारे खिलाफ हो गई तो भी कोई गम नहीं- हम सांस लेना ही छोड़ देंगे- मगर एक-दूसरे से जुदा नहीं होंगे।

मोहब्बत की रोटी...।

इश्क की दाल...।

बातें याद आते ही अलका की आंखों में आंसू आते चले गये वह दबे पांव पीछे हटी। और...

थोड़ी ही देर बाद वह अपने सारे सामान सहित निकट के पुलिस स्टेशन में थी। लड़की कम उम्र व भोली-भाली अवश्य थी, किन्तु बिल्कुल ही बेवकूफ तो नहीं थी।

उधर अलका को फ्लैट में ना पाकर सतीश व जीवन दोनों ही चकराये, मगर वह कहां चली गई। यह तुरन्त ही अनुमान नहीं लगा सके वह। अलका का सारा सामान भी गायब था। इसलिये उनका माथा तो ठनक गया था कि जरूर कुछ गड़बड़ हो गई है। शायद अलका ने उन दोनों की बातें सुन ली है- यह वह भी समझ गये थे। पर वह गई कहां होगी ये सोचने पर उनके दिमाग में यही आया कि या तो वह रेलवे स्टेशन की तरफ भागी होगी- अथवा रोडवेज की तरफ।

सतीश स्टेशन की तरफ भागा- जीवन रोडवेज की तरफ

मगर दोनों ही निराश होकर जब थोड़ी देर बाद लौटे, तो पुलिस मानों उनके स्वागत को तैयार ही बैठी थी। उन्हें आनन-फानन में ही गिरफ्तार कर लिया गया।

अलका को उसके सामान के साथ उसके पिता के पास पहुंचा दिया गया। माता-पिता से अलका ने कुछ भी नहीं छिपाया। सच-सच बता दिया कि वह बहक गई थी- सतीश के बहकावे में आ गई थी। उसे माफ कर दें। अब वह कभी नहीं बहकेगी। और मां-बाप ने अपनी लाड़ली को दिल

से माफ कर दिया था। जैसे कुछ हुआ ही ना हो।

सतीश आजकल जेल में मोहब्बत की रोटियां पका रहा है।



 पहले तो रावण ने रक्षिकाओं को ही आदेश दिया कि सीता को अशोक-वाटिका तक पहुंचा आएं; किंतु बाद में जाने क्या सोचकर उसने अपना विचार बदल दिया था। ...