गीता ज्ञान दर्शन अध्याय 3 भाग 28

  

अर्जुन उवाच

अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः।

अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः।। ३६।।


श्री भगवानुवाच

काम एष कोध एष रजोगुणसमुद्भवः।

महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम्।। ३७।।

 

इस पर अर्जुन ने पूछा कि हे कृष्ण, फिर यह पुरुष बलात्कार से लगाए हुए के सदृश, न चाहता हुआ भी, किससे प्रेरित हुआ पाप का आचरण करता है?


श्री कृष्ण भगवान बोले, हे अर्जुन, रजोगुण से उत्पन्न हुआ यह काम क्रोध ही है; यही महाअशन अर्थात अग्नि के सदृश, भोगों से तृप्त न होने वाला और बड़ा पापी है।इस विषय में इसको ही तू वैरी जान।



अर्जुन ने एक बहुत ही गहरा सवाल कृष्ण से पूछा। अर्जुन ने कहा, फिर अगर सब कुछ परमात्मा ही कर रहा है, अगर सब कुछ प्रकृति के गुणधर्म से ही हो रहा है, अगर सब कुछ सहज ही प्रवाहित है और अगर व्यक्ति जिम्मेवार नहीं है, तो फिर पाप कर्म न चाहते हुए भी कि करे, आदमी बलात पाप कर्म क्यों कर लेता है? कौन करवा देता है? अगर परमात्मा ही चला रहा है सब कुछ और मैं भी नहीं चाहता कि बुरा कर्म करूं, और परमात्मा चला रहा है सब कुछ, फिर भी मैं बुरे कर्म में प्रवृत्त हो जाता हूं, तो बलात मुझे कौन बुरे कर्म में धक्का दे देता है?


गहरा सवाल है। कहना चाहिए कि मनुष्य जाति में जो गहरे से गहरे सवाल उठाए गए हैं, उनमें से एक है। सभी धर्मों के सामने--चाहे हिब्रू, चाहे ईसाई, चाहे मोहमडन, चाहे हिंदू, चाहे जैन--गहरे से गहरा सवाल यह उठा है कि अगर परमात्मा ही चला रहा है और हम भी नहीं चाहते...। और फिर आप तो कहते हैं कि हमारे चाहने से कुछ होता नहीं। हम चाहें भी, तो भी परमात्मा जो चाहता है, उससे अन्यथा नहीं हो सकता। और हम चाहते भी नहीं कि बुरा कर्म करें और परमात्मा तो चाहेगा क्यों कि बुरा कर्म हो! फिर कौन हमें धक्के देता है और बलात बुरे कर्म करवा लेता है?  यह बुराई कहां से आती है?

अलग-अलग चिंतकों ने अलग-अलग उत्तर खोजे हैं जो बहुत गहरे नहीं गए, उन्होंने कहा, शैतान है, वह करवा लेता है। उत्तर खोजना जरूरी था, लेकिन यह कोई बहुत गहरा उत्तर नहीं है। वे कहते हैं,  एक पापात्मा है, वह सब करवा लेती है। लेकिन यह उत्तर बहुत गहरा नहीं है, क्योंकि अर्जुन को अगर यह उत्तर दिया जाए, तो अर्जुन कहेगा, वह परमात्मा उस पापात्मा पर कुछ नहीं कर पाता? वह परमात्मा उस शैतान को कुछ नहीं कर पाता? तो क्या वह शैतान परमात्मा से भी ज्यादा शक्तिशाली है? और अगर शैतान परमात्मा से ज्यादा शक्तिशाली है, तो मुझे परमात्मा के चक्कर में क्यों उलझाते हो, मैं शैतान को ही नमस्कार करूं!

अनेक चिंतकों ने दूसरा एक तत्व खोजने की कोशिश की है। कि एक दूसरा भी है परमात्मा के अलावा, जो लोगों को पाप में धक्के दे रहा है। लेकिन यह उत्तर न तो मनोवैज्ञानिक है, न बहुत गहरा है। इससे तो केवल वे ही राजी हो सकते हैं, जो किसी भी चीज के लिए राजी हो सकते हैं। इस उत्तर से और कोई राजी नहीं हो सकता।

इसलिए कृष्ण ऐसा उत्तर नहीं देते हैं। कृष्ण बहुत मनोवैज्ञानिक उत्तर देते हैं। वे यह कहते हैं, प्रकृति के तीन गुण हैं, रजस, तमस और सत्व। उनका उत्तर बहुत वैज्ञानिक है। वे कहते हैं, प्रकृति त्रिगुणा है।

और मैं आपको यह कहूं कि यह तीन गुणों की बात जब कृष्ण ने कही थी, तब बड़े वैज्ञानिक आधार रखती थी। लेकिन कृष्ण के बाद पिछले पांच हजार सालों में जितने लोगों ने कही, उनको इसके विज्ञान का कुछ बोध नहीं था। दोहराते रहे। लेकिन अभी पश्चिम में पिछले बीस साल में विज्ञान ने फिर कहा कि प्रकृति त्रिगुणा है। जिस दिन हम आधुनिक सदी में परमाणु का विश्लेषण कर सके, परमाणु को तोड़ सके, उस दिन बड़े चकित होकर हमें पता चला कि परमाणु तीन हिस्सों में टूट जाता है। पदार्थ का जो अंतिम परमाणु है, वह तीन हिस्सों में टूट जाता है, इलेक्ट्रान, न्यूट्रान और प्रोटान में टूट जाता है। और वैज्ञानिक कहते हैं कि इन तीन के बिना परमाणु नहीं बन सकता। और इन तीन के जो गुणधर्म हैं, वे वही गुणधर्म हैं, जो सत, रज और तम के हैं। ये तीन जो काम करते हैं, वे वही काम करते हैं, जो हम बहुत पुराने दिनों से सत, रज और तम शब्दों से लाते थे।

उसमें तमस जो है, इनरशिया, वह अवरोध का तत्व है, स्थिरता का तत्व है। अगर तमस न हो, तो जगत में कोई भी चीज स्थिर नहीं रह सकती। आप एक पत्थर उठाकर फेंकते हैं। अगर जगत में कोई तमस न हो, कोई ग्रेविटेशन न हो, रोकने वाली कोई ताकत, अवरोधक न हो, तो फिर पत्थर कभी भी गिरेगा नहीं। फिर आपने फेंक दिया, फेंक दिया; फिर वह चलता ही रहेगा, अनंत काल तक। फिर वह गिरेगा कैसे? कुछ अवरोध हो, कोई हो जो रोकता हो। आप भी पृथ्वी पर नहीं हो सकेंगे। कभी के हम उड़ गए होते। वह जमीन खींच रही है, तमस, ग्रेविटेशन का भार हमें रोके हुए है।

अभी जो अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष यात्रा पर गए, उनकी बड़ी से बड़ी कठिनाइयों में एक कठिनाई यह है कि जैसे ही जमीन के ग्रेविटेशन के बाहर होते हैं दो सौ मील के पार, वैसे ही कशिश समाप्त हो जाती है, तो आदमी गुब्बारे जैसा हो जाता है, जैसे गैस भरा गुब्बारा उड़ने लगता है। तो अगर बेल्ट न बंधा हो कुर्सी से, तो आप यान की कुर्सी से तत्काल उठकर यान के टप्पर से गुब्बारे की तरह टकराने लगेंगे। फिर नीचे भी उतर नहीं सकते, कोई ताकत काम नहीं करती नीचे उतरने के लिए। चांद पर यही कठिनाई है, क्योंकि तमस चांद का कम है, आठ गुना कम है। इसलिए चांद पर अगर हम मकान बनाएंगे, तो चोर आठ गुना ऊंची छलांग लगा सकता है। फुटबाल को वहां चोट मारेगा खिलाड़ी, तो यहां जमीन पर जितनी ऊंची जाती है, उससे आठ गुनी ऊंची चली जाएगी।

यह जो तमस का अर्थ है इनरशिया, अवरोधक शक्ति। अब बड़े मजे की बात है कि अगर अवरोधक शक्ति न हो, तो गति भी असंभव है। गति भी इसीलिए संभव है कि अवरोधक शक्ति का उपयोग कर पाते हैं। आपकी कार में जैसे ब्रेक न हों, फिर गति भी संभव नहीं है, आप पक्का समझ लेना। फिर कार चलनी भी संभव नहीं है। इसका मतलब यह नहीं कि नहीं चल सकती। चल गई, बस एक ही दफा चल गई। उसमें वह ब्रेक भी चाहिए, जो अवरोधक है। एक्सीलेरेटर ही काफी नहीं है, उसमें अवरोधक...।

जीवन एकदम विस्फोट हो जाए, अगर उसमें रोकने वाली ताकत न हो। इनरशिया, तमस जो है, वह रोकने वाली ताकत है। रजस जो है, वह गति की मूवमेंट की ताकत है। ये उलटी ताकते हैं। तमस रोकता, रजस गति देता। शक्ति है, एनर्जी है। सत्व तीसरा कोण है। जैसे कि हम एक ट्राएंगल बनाएं, दो कोण नीचे हों और एक ऊपर हो। सत्व इन दोनों के ऊपर है, कहें कि इन दोनों का बैलेंस है, संतुलन है। सत्व बैलेंसिंग है, वह संतुलन है। अगर गति भी हो, रोकने वाला भी हो, लेकिन संतुलन न हो...।

जैसे एक कार है, उसमें एक्सीलेरेटर भी है और ब्रेक भी है, लेकिन ड्राइवर नहीं है। वह जो ड्राइवर है, वह पूरे वक्त बैलेंसिंग है। जब जरूरत होती है, तो ब्रेक पर पैर ले जाता है; जब जरूरत होती है, तो एक्सीलेरेटर पर पैर ले जाता है। वह पूरे वक्त बैलेंस कर रहा है। सत्व जो है, वह बैलेंसिंग है।

ये तीन तत्व हैं, जिनको भारत ने ऐसे नाम दिए थे। पश्चिम जिनको इलेक्ट्रान, प्रोटान, न्यूट्रान कहे, कोई और नाम दे, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। एक बात बहुत अनिवार्य रूप से सिद्ध हो गई है कि जीवन का अंतिम विश्लेषण तीन शक्तियों पर टूटता है। इसलिए हमने इन तीन शक्तियों को ये कई तरह से नाम दिए थे। जो लोग वैज्ञानिक ढंग से सोचते थे, उन्होंने रजस, तमस, सत्व ऐसे नाम दिए। जो लोग मेटाफोरिकल, काव्यात्मक ढंग से सोचते थे, उन्होंने कहा, ब्रह्मा, विष्णु, महेश। उनका भी काम वही है। वे तीन नाम भी यही काम करते हैं। उसमें ब्रह्मा सर्जक शक्ति हैं, विष्णु सस्टेनिंग, संभालने वाले और शिव विनाश करने वाले। उन तीन के बिना भी नहीं हो सकता। ये जो इलेक्ट्रान, न्यूट्रान और प्रोटान हैं, ये भी ये तीन काम करते हैं। उसमें जो इलेक्ट्रान है, वह निगेटिव है। वह ठीक शिव जैसा है, निगेट करता है, तोड़ता है, नष्ट करता है। उसमें जो प्रोटान है, वह ब्रह्मा जैसा है, पाजिटिव है, इसलिए प्रोटान उसका नाम है। वह विधायक है, वह निर्माण करता है। और उसमें जो न्यूट्रान है, वह न निगेटिव है, न पाजिटिव है। वह सस्टेनिंग है, वह बीच में है, बैलेंसिंग है।

कृष्ण कहते हैं कि मनुष्य के भीतर--जो भी घटित होता है, बाहर और भीतर--वह इन तीन शक्तियों का खेल है। इन तीन शक्तियों के अनुसार सब घटित होता है। आदमी धकाया जाता, रोका जाता, जन्माया जाता, मरण को उपलब्ध होता, हंसी को उपलब्ध होता, रोने को उपलब्ध होता--वह इन सारी तीन शक्तियों का काम है। ये तीन शक्तियां अपना काम करती रहती हैं। ये परमात्मा के तीन रूप जीवन को सृजन देते रहते हैं।

अर्जुन पूछता है, फिर नहीं भी हम करना चाहते, फिर कौन करवा लेता है? आप तो चाहते हैं कि जमीन पर न गिरें, लेकिन जरा पैर फिसला कि गिर जाते हैं। कोई शैतान गिरा देता है? कोई शैतान नहीं गिरा देता; ग्रेविटेशन अपना काम करता है। आप नहीं गिरना चाहते, माना, स्वीकृत कि आप नहीं गिरना चाहते, लेकिन उलटे-सीधे चलेंगे, तो गिरेंगे। आप नहीं गिरना चाहते थे, तो भी गिरेंगे। पैर पर पलस्तर लगेगा। आप डाक्टर से कहेंगे, मैं नहीं गिरना चाहता था और परमात्मा तो टांग तोड़ता नहीं किसी की, क्यों तोड़ेगा? इतना बुरा तो नहीं हो सकता कि अकारण मुझ भले आदमी की, जो गिरना भी नहीं चाहता, उसकी टांग तोड़ दे। लेकिन मेरी टांग क्यों टूट गई? तो डाक्टर वही उत्तर देगा, जो कृष्ण ने दिया। डाक्टर कहेगा, ग्रेविटेशन की वजह से। जमीन में गुरुत्वाकर्षण है, आप कृपा करके सम्हलकर चलें। उलटे-सीधे चलेंगे, तो ग्रेविटेशन टांग तोड़ देगी। क्योंकि प्रत्येक शक्ति अगर हम उसके अनुकूल न चलें, तो नुकसान पहुंचाने वाली हो जाती है। अगर अनुकूल चलें, तो नुकसान पहुंचाने वाली नहीं होती।

प्रत्येक शक्ति का उपयोग अनुकूल और प्रतिकूल हो सकता है। अब मनुष्य के भीतर कौन-सी शक्तियां हैं, जो उसे बलात--जैसे कि एक आदमी नहीं गिरना चाहता है और गिर जाता है और टांग टूट जाती है। और एक आदमी क्रोध नहीं करना चाहता है और क्रोध हो जाता है और खोपड़ी खुल जाती है। या दूसरे की खुल जाती है या खुद की खुल जाती है। क्या, कौन कर जाता है यह सब? परमात्मा? परमात्मा को क्या प्रयोजन है! और परमात्मा ऐसे काम करे, तो परमात्मा हम उसे कैसे कहेंगे? कोई कहेगा, शैतान। कृष्ण नहीं कहते। कृष्ण कहते हैं, सिर्फ जीवन की शक्तियां काम कर रही हैं।

मनुष्य के भीतर क्रोध है। वह भी अनिवार्य तत्व है। कहें कि वह हमारे भीतर निगेटिव फोर्स है, क्रोध विनाश की शक्ति है हमारे भीतर। प्रेम हमारे भीतर निर्माण की शक्ति है। और विवेक हमारे भीतर बैलेंसिंग फोर्स है। जो आदमी विवेक को छोड़कर सारी शक्ति क्रोध में लगा देगा, वह बलात नर्क की तरफ चलने लगेगा; नहीं चाहेगा, तो भी जाएगा। जो सारी शक्ति प्रेम की ओर लगा देगा, वह बलात स्वर्ग की ओर जाने लगेगा, चाहे चाहे और चाहे न चाहे। उसके जीवन में सुख उतरने लगेगा। और जो आदमी बैलेंस कर लेगा और समझ लेगा कि दुख और सुख और दोनों के बीच में अलग, वह आदमी मुक्ति और मोक्ष की दिशा में यात्रा कर जाएगा।

इसलिए हमारे पास तीन शब्द और समझ लेने जैसे हैं, स्वर्ग, नर्क और मोक्ष। स्वर्ग में वह जाता है, जो अपने भीतर की विधायक शक्तियों के अनुकूल चलता है। नर्क में वह जाता है, जो अपने भीतर विनाशक शक्तियों के अनुकूल चलता है। मोक्ष में वह जाता है, जो दोनों के अनुकूल नहीं चलता है; दोनों को संतुलित करके दोनों को ट्रांसेंड कर जाता है, परे हो जाता है, अतीत हो जाता है।

कृष्ण कह रहे हैं, शक्तियां हैं और इन तीन शक्तियों के बिना जीवन नहीं हो सकता है। इसलिए अर्जुन, कौन तुझे धक्का देता है, ऐसा मत पूछ। यह समझ कि धक्का तेरे भीतर से कैसे निर्मित होता है। क्रोध, काम, अहंकार, अगर उनके प्रति तू अतिशय से झुक जाता है, तो जो तू नहीं चाहता वह तुझे करना पड़ता है।

कभी आपने देखा, कामवासना मन को पकड़ ले--ऐसा कहना ठीक नहीं है कि कामवासना मन को पकड़ ले, कहना यही ठीक होगा कि जब आप कामवासना को मन को पकड़ लेने देते हैं, आप जब पकड़ लेने देते हैं...। और ध्यान रहे, कामवासना आपके बिना पकड़ाए आपको नहीं पकड़ती है।

हां, एक सीमा होती है हर चीज की, उसके पार मुश्किल हो जाता है रोकना। एक सीमा होती है। जगह-जगह हमने कार की ट्रैफिक पर लिखा हुआ है कि यहां पंचास किलोमीटर रफ्तार। क्यों? क्योंकि वहां इतने ज्यादा लोग गुजर रहे हैं कि अगर ज्यादा रफ्तार हो, तो रोकना समय पर मुश्किल है। कम हो, तो समय पर रोकना आसान है। जहां लोग कम गुजर रहे हैं, वहां सत्तर किलोमीटर भी हो, तो कोई हर्ज नहीं। वहां समय पर सत्तर मील भी रोकना आसान है। हर चीज की एक सीमा है।


हमारी प्रत्येक वृत्ति की सीमाएं हैं, जहां तक हम उन्हें रोक सकते हैं, और जहां से फिर हम उन्हें नहीं रोक सकते। एक विचार मेरे मन में उठा, शब्द बना मेरे भीतर। अभी मैं आपको न कहूं, तो रोक सकता हूं। फिर मेरे मुंह से शब्द निकल गया; अब इस शब्द को वापस नहीं ला सकता। एक सीमा थी, एक जगह थी; मेरे भीतर विचार भी था, शब्द भी था, ओंठ पर भी आ गया था, फिर भी मैं रोक सकता हूं। फिर एक सीमा के बाहर बात हो गई, मैंने आपसे बोल दिया, अब मैं इसे वापस नहीं लौटा सकता। अब कोई उपाय इसे वापस लौटाने का नहीं है। एक जगह थी, जहां से यह वापस लौट जाता।

क्रोध, एक जगह है, जहां से वापस लौट सकता है। लेकिन जब उस जगह के बाहर निकल जाता है, उसके बाद वापस नहीं लौटता। काम, एक जगह है, जहां से वापस लौट सकता है। जब उसके आगे चला जाता है, तो फिर वापस नहीं लौट सकता। और ध्यान रहे, बड़े मजे की बात यह है कि उस सीमा तक, जहां तक काम वापस लौट सकता है, उस समय तक आप उसको सहयोग देते हैं। और जब वह वापस नहीं लौटता, तब आप चिल्लाते हैं कि कौन मुझे धकाए जा रहा है परवश! कौन मुझे बलात काम करवा रहा है!

इसे ठीक से भीतर समझेंगे, तो खयाल में आ जाएगा। एक जगह है, जहां तक हर वृत्ति आपके हाथ में होती है। लेकिन जब आप उसे इतना उकसाते हैं कि आप का पूरा शरीर और पूरा यंत्र उसको पकड़ लेता है, फिर आपकी बुद्धि के बाहर हो जाता है। फिर आप कहते हैं कि नहीं-नहीं। और फिर भी घटना घटकर रहती है। तब आप कहते हैं, कौन बलात करवाए चला जाता है, जब कि हम नहीं करते हैं! कोई नहीं करवाता, शक्तियां करती हैं। लेकिन करवाने का अंतिम निर्णय गहरे में आपका ही कोआपरेशन है, आपका ही सहयोग है।

कृष्ण इतना ही कह रहे हैं कि कोई बैठा नहीं है पार, तुम्हें क्रोध में, काम में, युद्ध में, लड़ाई-झगड़े में ले जाने को। प्रकृति के नियम हैं। अगर उन नियमों को तुम समझ लेते हो और समता को, संतुलन को उपलब्ध होते हो; अनासक्ति को, साक्षीभाव को उपलब्ध होते हो; विवेक को, श्रद्धा को उपलब्ध होते हो, तो फिर तुम्हें कोई फिक्र करने की जरूरत नहीं है, फिर जो भी होगा परमात्मा पर। लेकिन जब तक तुम ऐसी समता को और अनासक्ति को उपलब्ध नहीं होते, भीतर तुम आसक्ति को पालते चले जाते हो, बारूद में चिनगारी डालते चले जाते हो, फिर जब आग भड़ककर मकान को पकड़ लेती है, तब तुम कहते हो, मैं तो चाहता नहीं था कि आग लगे, लेकिन यह आग लग गई है। बारूद का नियम है, धर्म है, वह आग लगा देगी। तुमने चिनगारी फेंकी, चिनगारी का धर्म है कि वह आग पकड़ा देगी। और जब बारूद भड़क उठेगी, तब तुम छाती पीटोगे और चिल्लाओगे कि यह तो मैं नहीं चाहता था।


बीज बोते वक्त किसको पता चलता है कि वृक्ष निकलेगा? बीज बोते वक्त किसको पता चलता है कि इतना बड़ा वृक्ष पैदा होगा? फिर बलात वृक्ष पैदा हो जाता है। और बीज हम ही बोते हैं। बीज छोटा होता है, दिखाई भी नहीं पड़ता है। मन में क्रोध के बीज बोते हैं, काम के बीज बोते हैं, फिर शक्तियां पकड़ लेती हैं। फिर वे तीन शक्तियां अपना काम शुरू कर देती हैं। आपने बीज बोया, जमीन काम शुरू कर देती है, पानी काम शुरू कर देता है, रोशनी काम शुरू कर देती है। सूरज की किरणें आकर बीज को बड़ा करने लगती हैं।

एक छोटे-से बीज को आपने बो दिया, फिर सारी दुनिया की ताकत उसको दे रही है और वह बड़ा हो रहा है। आपने इधर क्रोध का बीज बोया, सारी दुनिया से क्रोध को साथ देने वाली ताकतें--तमस की, इनरशिया की ताकतें--आपकी तरफ बहनी शुरू हो जाएंगी। आपने प्रेम बोया, सारी तरफ से दुनिया से शुभ शक्तियां आपकी तरफ बहनी शुरू हो जाएंगी। आपने साक्षीभाव निर्मित किया, दुनिया की सारी ताकतें आपके लिए बैलेंस में हो जाएंगी। कोई आपकी तरफ नहीं बहेगा, कोई आपके बाहर नहीं बहेगा; सब चीजें सम हो जाएंगी; ठहर जाएंगी।

कृष्ण कहते हैं, न तो कोई शैतान, न कोई परमात्मा; ये तीन शक्तियां हैं अर्जुन। और तू जिसका बीज बो देता है अपने भीतर, वही शक्ति सक्रिय होकर काम करने लगती है।

(भगवान कृष्‍ण के अमृत वचनों पर ओशो के अमर प्रवचन)

हरिओम सिगंल

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