शनिवार, 30 जुलाई 2022

ओम नाम जाप

 ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् ।

यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम् ।। १३ ।। 

जो पुरुष 'ओम् इति' - ओम् इतना ही, जो अक्षय ब्रह्म का परिचायक है, इसका जप तथा मेरा स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग कर जाता है, वह पुरुष परमगति को प्राप्त होता है।

श्रीकृष्ण एक योगेश्वर, परमतत्त्व में स्थित महापुरुष, सद्गुरु थे। योगेश्वर श्रीकृष्ण ने बताया कि 'ओम्' अक्षय ब्रह्म का परिचायक है, तू इसका जप कर और ध्यान मेरा कर । प्राप्ति के हर महापुरुष का नाम वही होता है जिसे वह प्राप्त है, जिसमें वह विलय है इसलिये नाम ओम् बताया और रूप अपना । योगेश्वर ने 'कृष्ण-कृष्ण' जपने का निर्देश नहीं दिया लेकिन कालान्तर में भावुकों ने उनका भी नाम जपना आरम्भ कर दिया और अपनी श्रद्धा के अनुसार उसका फल भी पाते हैं; जैसा कि, मनुष्य की श्रद्धा जहाँ टिक जाती है वहाँ मैं ही उसकी श्रद्धा को पुष्ट करता तथा मैं ही फल का विधान भी करता हूँ ।

भगवान शिव ने 'राम' शब्द के जपने पर बल दिया। 'रमन्ते योगिनो यस्मिन् स रामः ' 'रा और म के बीच में कबिरा रहा लुकाय । ' रा और म इन दो अक्षरों के अन्तराल में कबीर अपने मन को रोकने में सक्षम हो गये ।

श्रीकृष्ण ओम् पर बल देते हैं। ओ अहं स ओम् अर्थात् वह सत्ता मेरे भीतर है, कहीं बाहर न ढूँढ़ने लगे। यह ओम् भी उस परम सत्ता का परिचय देकर शान्त हो जाता है। वास्तव में उन प्रभु अनन्त नाम हैं; किन्तु जप के लिये वही नाम सार्थक है जो छोटा हो, श्वास में ढल जाय और एक परमात्मा का ही बोध कराता हो। उससे भिन्न अनेक देवी-देवताओं की अविवेकपूर्ण कल्पना में उलझकर लक्ष्य से दृष्टि न हटा दें।

प्राण- अपान के चिन्तन में 'कृष्ण' नाम का क्रम पकड़ में नहीं आता। बहुत से लोग कोरी भावुकतावश केवल 'राधे-राधे' कहने लगे हैं। आजकल अधिकारियों से काम न होने पर उनके सगे-सम्बन्धियों से, प्रेमी या पत्नी से 'सोर्स' लगाकर काम चला लेने की परम्परा है। लोग सोचते हैं कि कदाचित् भगवान के घर में भी ऐसा चलता होगा, अतः उन्होंने 'कृष्ण' कहना बन्द करके 'राधे-राधे' कहना आरम्भ कर दिया। वे कहते हैं- 'राधे-राधे ! श्याम 'मिला दे।' राधा एक बार बिछुड़ी तो स्वयं श्याम से नहीं मिल पायी, वह आपको कैसे मिला दे ? अतः अन्य किसी का कहना न मानकर श्रीकृष्ण के आदेश को आप अक्षरशः मानें, ओम् का जप करें। हाँ, यहाँ तक उचित है कि राधा हमारा आदर्श हैं, उतनी ही लगन से हमें भी लगना चाहिये । यदि पाना है तो राधा की तरह विरही बनना है।

प्रारम्भिक साधक नाम तो जपते हैं; किन्तु कृष्ण के स्वरूप का ध्यान करने में हिचकते हैं। वे अपनी अर्जित मान्यताओं का पूर्वाग्रह छोड़ नहीं पाते। वे किसी अन्य देवता का ध्यान करते हैं, जिसका योगेश्वर श्रीकृष्ण ने निषेध किया है । अत: पूर्ण समर्पण के साथ किसी अनुभवी महापुरुष की शरण लें। पुण्य-पुरुषार्थ सबल होते ही कुतर्कों का शमन और यथार्थ क्रिया में प्रवेश मिल जायेगा। योगेश्वर श्रीकृष्ण के अनुसार इस प्रकार 'ॐ' के जप और परमात्मस्वरूप कृष्ण के स्वरूप का निरन्तर ध्यान करने से मन का निरोध और विलय हो जाता है और उसी क्षण शरीर के सम्बन्ध का त्याग जाता है। केवल मरने से शरीर पीछा नहीं छोड़ता ।

 अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः ।

तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः । । १४ । ।

"मेरे अतिरिक्त और कोई चित्त में है ही नहीं।"- अन्य किसी का चिन्तन न करता हुआ अर्थात् अनन्य चित्त से स्थिर हुआ जो अनवरत मेरा स्मरण करता है, उस नित्य मुझमें युक्त योगी के लिये मैं सुलभ हूँ । आपके सुलभ होने से क्या मिलेगा?


मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम्।

नाप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धिं परमां गताः । । १५ ।।


मुझे प्राप्त कर वे दुःखों के स्थानस्वरूप क्षणभंगुर पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होते, बल्कि परमसिद्धि को प्राप्त होते हैं अर्थात् मुझे प्राप्त होना अथवा परमसिद्धि को प्राप्त होना एक ही बात है। केवल भगवान ही ऐसे हैं, जिन्हें पाकर उस पुरुष का पुनर्जन्म नहीं होता। फिर पुनर्जन्म की सीमा कहाँ तक है?

यथार्थ गीता 



मंगलवार, 26 जुलाई 2022

धर्म परिवर्तन

 मध्यकालीन भारत में बाहर से आनेवाले मुसलमान मात्र बारह हजार थे, आज अट्ठाइस करोड़ हैं। बारह हजार से बढ़कर लाखों हो जाते, अधिक-से-अधिक करोड़ के लगभग हो जाते, और कितने हो जाते? यह अट्ठाइस करोड़ से भी आगे बढ़ रहे हैं। सब हिन्दू ही तो हैं। आपके सगे भाई हैं, जो छूने और खाने से नष्ट हो गये। वे नष्ट नहीं हुए बल्कि उनका सनातन अपरिवर्तनशील धर्म नष्ट हो गया।

जब मैटर (Matter) क्षेत्र में पैदा होनेवाली कोई वस्तु इस सनातन का स्पर्श नहीं कर सकती, तो छूने-खाने से सनातन-धर्म नष्ट कैसे हो सकता है? यह धर्म नहीं, एक कुरीति - परिस्थिति थी, जिससे भारत में साम्प्रदायिक वैमनस्य बढ़ा, देश का विभाजन हुआ और राष्ट्रीय एकता की आज भी समस्या बनी हुई है।

इन कुरीतियों के कथानक इतिहास में भरे पड़े हैं। किसी जिले में पचास-साठ परिवार कुलीन क्षत्रिय थे। आज वे सब मुसलमान हैं। न उन पर तोप का हमला हुआ, न तलवार का हुआ क्या? अर्द्धरात्रि में दो-एक मौलवी उस गाँव के एकमात्र कुएँ के समीप छिप गये कि कर्मकाण्डी ब्राह्मण सबसे पहले यहाँ स्नान करने आयेगा। जहाँ वे आये तो उन्हें पकड़ लिया, उनका मुँह बन्द कर दिया। उनके सामने उन्होंने कुएँ से पानी निकाला, मुँह लगाकर पिया और बचा हुआ पानी कुएँ में डाल दिया । रोटी का एक टुकड़ा भी डाल दिया। पण्डितजी देखते ही रह गये, विवश थे। तत्पश्चात् पण्डितजी को भी साथ लेकर वे चले गये। अपने घर में उन्हें बन्द कर दिया।

दूसरे दिन उन्होंने हाथ जोड़कर पण्डितजी से भोजन के लिये निवेदन किया तो वे बिगड़ पड़े- 

“अरे, तुम यवन हो मैं ब्राह्मण, भला कैसे खा सकता हूँ?" 

उन्होंने कहा- 

"महाराज! हमें आप जैसे विचारवान् लोगों की बड़ी आवश्यकता है। क्षमा करें। " 

पण्डितजी को छोड़ दिया गया। पण्डितजी अपने गाँव आये। देखा, लोग कुएँ का प्रयोग पूर्ववत् कर रहे थे। वे अनशन करने लगे। लोगों ने कारण पूछा तो बोले- यवन इस कुएँ की जगत पर चढ़ गये थे। मेरे सामने उन्होंने इस कुएँ को जूठा किया और इसमें रोटी का टुकड़ा भी डाल दिया। गाँव के लोग स्तब्ध रह गये । पूछा " अब क्या होगा?" पण्डित जी ने बताया- “अब क्या? धर्म तो नष्ट हो गया।"

उस समय लोग शिक्षित नहीं थे। स्त्रियों और शूद्रों से पढ़ने का अधिकार न जाने कब से छीन लिया गया था । वैश्य धनोपार्जन ही अपना धर्म मान बैठे थे। क्षत्रिय चारणों के प्रशस्ति-गायन में खोये थे कि अन्नदाता की तलवार चमकी तो बिजली कौंधने लगी, दिल्ली का तख्त डगमगाने लगा। सम्मान वैसे ही प्राप्त है तो पढ़ें क्यों? धर्म से उन्हें क्या लेना-देना? धर्म केवल ब्राह्मणों की वस्तु बनकर रह गया था। वे ही धर्मसूत्रों के रचयिता, वे ही उसके व्याख्याकार और वही उसके झूठ-सच के निर्णायक थे जबकि प्राचीनकाल में स्त्रियों,शूद्रों, वैश्यों, क्षत्रियों और ब्राह्मणों को, सबको वेद पढ़ने का अधिकार था। प्रत्येक वर्ग के ऋषियों ने वैदिक मन्त्रों की रचना की है, शास्त्रार्थ - निर्णय में भाग लिया है। प्राचीन राजाओं ने धर्म के नाम पर आडम्बर फैलानेवालों को दण्ड दिया, धर्मपरायणों का समादर किया था । किन्तु मध्यकालीन भारत में सनातन-धर्म की यथार्थ जानकारी न रखने से उपर्युक्त गाँव के निवासी भेड़ की तरह एक कोने में खड़े होते गये कि धर्म नष्ट हो गया। कई लोगों ने इस अप्रिय शब्द को सुनकर आत्महत्या कर ली; किन्तु सब कहाँ तक प्राणान्त करते । अटूट श्रद्धा के पश्चात् भी विवश होकर अन्य हल खोजना पड़ा। आज भी वे बाँस गाड़कर, मूसल रखकर हिन्दुओं की तरह विवाह करते हैं, बाद में एक मौलवी निकाह पढ़ाकर चला जाता है। सब-के-सब शुद्ध हिन्दू हैं, सब - सब मुसलमान बन गये।

हुआ क्या था? पानी पिया था, अनजाने में मुसलमानों का छुआ खा लिया था इसलिये धर्म नष्ट हो गया। धर्म तो हो गया छुईमुई ( लाजवन्ती)। यह एक पौधा होता है | आप छू दें तो उसकी पत्तियाँ संकुचित हो जाती हैं और हाथ हटाते ही पुनः विकसित हो जाती हैं। यह पौधा हाथ हटाने पर विकसित हो जाता है; किन्तु धर्म तो ऐसा मुरझाया कि कभी विकसित नहीं होगा। वे मर गये, सदा के लिये उनके राम, कृष्ण और परमात्मा मर गये। जो शाश्वत थे, वे मर गये। वास्तव में वह शाश्वत के नाम पर कोई कुरीति थी, जिसे लोग धर्म मान बैठे थे।

धर्म की शरण हम क्यों जाते हैं? क्योंकि हम मरणधर्मा ( मरने जीनेवाले) हैं और धर्म कोई ठोस चीज है, जिसकी शरण जाकर हम भी अमर हो जायँ । हम तो मारने से मरेंगे और यह धर्म केवल छूने और खाने से मर जायेगा, तो हमारी क्या रक्षा करेगा? धर्म तो आपकी रक्षा करता है, आपसे शक्तिशाली है। आप तलवार से मरेंगे और धर्म? वह छूने से नष्ट हो गया। कैसा है आपका धर्म ? कुरीतियाँ नष्ट होती हैं, न कि सनातन । सनातन तो ऐसी ठोस वस्तु है जिसे शस्त्र नहीं काटते, अग्नि जला नहीं सकती, जल इसे गीला नहीं कर सकता। खानपान तो दूर, प्रकृति में उत्पन्न कोई वस्तु उसका स्पर्श भी नहीं कर पाती तो वह सनातन नष्ट कैसे हो गया?ऐसी ही कतिपय कुरीतियाँ अर्जुनकाल में भी थीं। उनका शिकार अर्जुन भी था। उसने विलाप करते हुए गिड़गिड़ाकर कहा कि कुलधर्म सनातन है । युद्ध से सनातन-धर्म नष्ट हो जायेगा। कुलधर्म नष्ट होने से हम अनन्तकाल तक नरक में चले जायेंगे। किन्तु श्रीकृष्ण ने कहा- "तुझे यह अज्ञान कहाँ से उत्पन्न हो गया?" सिद्ध है कि वह कोई कुरीति थी, तभी तो श्रीकृष्ण ने उसका निराकरण किया और बताया कि आत्मा ही सनातन है। यदि आप आत्मिक पथ नहीं जानते तो सनातन-धर्म में आपका अभी तक प्रवेश नहीं हुआ है। जब यह सनातन - शाश्वत आत्मा सबके अन्दर व्याप्त हैं तो खोजा किसे जाय?

श्रीमद्भगवद्गीता यथार्थ गीता

 द्वितीय अध्याय श्लोक न:24

प्रत्यक्षानुभूत व्याख्या : 

परमपूज्य श्री परमहंस महाराज का

 कृपा प्रसाद स्वामी श्री अड़गड़ानन्द जी



प्रेग्नेंसी

 प्रेग्नेंसी कोई बीमारी नहीं है। आई रिपीट कोई 'बीमारी' नहीं, नॉर्मल फिज़ियोलॉजिकल प्रोसस है, सृष्टि के आरम्भ से होती आई है और अंत तक होती रहेगी। प्रेग्नेंसी बीमारी नहीं है परन्तु शरीर में हार्मोनल बदलाव के कारण बहुत से परिवर्तनों से गुजरना पड़ता है।इन परिवर्तनों के कारण असहज महसूस हो सकता है। परन्तु यह बीमारी नहीं है। आपके शरीर में एक नया जीवन अस्तित्व में आ रहा है।इस नये जीवन पर आपकी मानसिक तथा शारीरिक अवस्था का बहुत प्रभाव पड़ता है। अगर आपने तनावपूर्ण स्थिति में नये जीवन को जन्म दिया तो उसकी मानसिक स्थिति पर प्रभाव पड़ सकता है।

(वो बच्चे जिनकी माँओं ने गर्भावस्था के दौरान गंभीर तनाव महसूस किया हो उन्हें 30 साल की उम्र तक आते-आते पर्सनैलिटी डिसॉर्डर होने की आशंका लगभग 10 गुना तक बढ़ जाती है.)


प्रेगनेंसी के दौरान आप कई तरह की भावनाओं और एहसासों से गुजरती हैं। जहाँ एक ओर आप की दुनिया में आने वाली नई खुशियों के कारण, आप जोश और उत्साह से भरी होती हैं, वहीं दूसरी ओर अपनी गर्भावस्था को लेकर आप में थोड़ी घबराहट और थोड़ा भय भी होता है। ऐसे में शारीरिक बदलावों के कारण होने वाला तनाव कम लगने लगता है और मानसिक या भावनात्मक बदलाव से होने वाला तनाव ज्यादा परेशानी भरा लगने लगता है। गर्भावस्था के दौरान, जिस प्रकार शारीरिक स्वास्थ्य का महत्व सबसे ज्यादा होता है, उसी प्रकार मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी अति आवश्यक है।

(अपने डॉक्टर को यह बताने से न डरें कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं - वे आपकी बात सुनने और समर्थन करने के लिए हैं।)

आप अपने बच्चे को इस दुनिया में लाने वाली हैं और आप उसके और उसके अच्छे स्वास्थ्य के लिए हर संभव प्रयास कर रही होंगी और यह बहुत जरूरी है, कि इस क्रम में आप अपना ख्याल रखना ना भूलें। अपने आप को भी प्राथमिकता दें और इस बीच में ऐसी चीजें करती रहें, जिनसे आपको खुशी मिलती है। हर दिन अपने लिए थोड़ा समय निकालें और वह हर चीज करें, जिसे करना आपको पसंद है। इसे ‘मी टाइम’ का नाम दें और इसमें वैसी एक्टिविटीज को शामिल करें, जो आपको खुशी और शांति देती हों। 

(अपनी तुलना अन्य गर्भवती महिलाओं से न करें - हर कोई अलग-अलग तरीकों से गर्भावस्था का अनुभव करता है।)

प्रेग्नेंट लेडीज़ ख़ुद को सबसे पहले तो बीमार मानना बन्द कर दें। और घरवाले भी वैसे ट्रीट न करें।

प्रेग्नेंसी के दौरान बहुत से बदलाव होते हैं बॉडी में, हॉर्मोन्स का तूफ़ान आया रहता है। एक नया इंसान बनाना अपने अंदर आसान नहीं है, बिल्कुल आसान नहीं है। अपनी जान का, अपनी आत्मा का, अपने माँस और ख़ून का, अपने शरीर का ही एक हिस्सा है बच्चा, जो हमसे अलग होकर कुछ समय बाद हमारे सामने चल फिर रहा होगा। हमारे बच्चे हमसे ही जन्म लेते हैं। 

अब जितना ख़ुद को बीमार या काँच की गुड़िया टाइप फील करेंगी, उतनी वलनरेबिलिटी बढ़ेगी। कोई भी अनयुज़ुअल बात नोटिस हो, स्पेशली स्पॉटिंग, ब्लीडिंग, शार्प शूटिंग पेन या हल्का भी, लगातार बना रहने वाला, उसको बिल्कुल नज़र अंदाज़ न करें, फौरन कंसल्ट करें अपने डॉक्टर से।

लेकिन बाक़ी न्यूट्रिशियस डाइट लें ।शुरुआती 3 महीने उसकी भी चिंता न करें, जितना पेट में टिक जाए, जो खाया जाए, खाने का दिल करे खाएं। फिर वह मितली उल्टी वाला पीरियड टल ही जाना है। ज़रूरी प्रिकॉशन्स फॉलो करती रहें।

 हर किसी की हर सलाह पर अमल और एक्सपेरिमेंट न करने बैठें ।ख़ासकर ऐसा करने से लड़का पैदा होगा वाले टोटकों का आजमाने की कोशिश न करें। हालांकि कोई स्वीकार नहीं करता, न करने की शर्त है, लेकिन सोचते सभी हैं मन में कि आज़माने में क्या हर्ज है । नम्बर टू पर हैं, ऐसा करने से नॉर्मल डिलीवरी होगी वाले उपाय। डाक्टर की सलाह का पालन करें।वरना नुकसान भी हो सकता है।


जितना हेल्दी फील करेंगी, उतनी हेल्दी रहेंगी। जो चीजें अच्छा फ़ील करने से रोकें, उनकी लिस्ट बनाइये । कारण और निवारण की तलाश कीजिये लेकिन सिर्फ़ दवाओं में हर समाधान मत खोजिए, नहीं मिलेगा। बाक़ी दवाओं के कारोबारी तो चाहेंगे ही कि नौ महीने वाला रेग्युलर कस्टमर चंगुल से आज़ाद न हो पाए।

 पोषक आहार, पूरी नींद और तनावमुक्त रहने का इतना भी प्रेशर न लें कि इसी से तनाव हो जाए । इट्स ओके टू फ़ील नॉट ओके समटाइम्स ।

कुछ लोग इतना डरा देते हैं कि अगर कोई समस्या न भी हो तो भी समस्या बन जाती है।औरत के मां बाप तथा सास ससुर के विचारों में बहुत अन्तर रहता है। कुछ महिलाओं की प्रेग्नेंसी में कुछ समस्याएं होती हैं उन्हें डाक्टर के सम्पर्क में रहना चाहिए। डाक्टर का चुनाव सोच समझ कर करें।

Nazia Khan की पोस्ट पर आधारित 

हरिओम सिगंल 





कुछ फर्ज थे मेरे, जिन्हें यूं निभाता रहा।  खुद को भुलाकर, हर दर्द छुपाता रहा।। आंसुओं की बूंदें, दिल में कहीं दबी रहीं।  दुनियां के सामने, व...