मंगलवार, 26 जुलाई 2022

धर्म परिवर्तन

 मध्यकालीन भारत में बाहर से आनेवाले मुसलमान मात्र बारह हजार थे, आज अट्ठाइस करोड़ हैं। बारह हजार से बढ़कर लाखों हो जाते, अधिक-से-अधिक करोड़ के लगभग हो जाते, और कितने हो जाते? यह अट्ठाइस करोड़ से भी आगे बढ़ रहे हैं। सब हिन्दू ही तो हैं। आपके सगे भाई हैं, जो छूने और खाने से नष्ट हो गये। वे नष्ट नहीं हुए बल्कि उनका सनातन अपरिवर्तनशील धर्म नष्ट हो गया।

जब मैटर (Matter) क्षेत्र में पैदा होनेवाली कोई वस्तु इस सनातन का स्पर्श नहीं कर सकती, तो छूने-खाने से सनातन-धर्म नष्ट कैसे हो सकता है? यह धर्म नहीं, एक कुरीति - परिस्थिति थी, जिससे भारत में साम्प्रदायिक वैमनस्य बढ़ा, देश का विभाजन हुआ और राष्ट्रीय एकता की आज भी समस्या बनी हुई है।

इन कुरीतियों के कथानक इतिहास में भरे पड़े हैं। किसी जिले में पचास-साठ परिवार कुलीन क्षत्रिय थे। आज वे सब मुसलमान हैं। न उन पर तोप का हमला हुआ, न तलवार का हुआ क्या? अर्द्धरात्रि में दो-एक मौलवी उस गाँव के एकमात्र कुएँ के समीप छिप गये कि कर्मकाण्डी ब्राह्मण सबसे पहले यहाँ स्नान करने आयेगा। जहाँ वे आये तो उन्हें पकड़ लिया, उनका मुँह बन्द कर दिया। उनके सामने उन्होंने कुएँ से पानी निकाला, मुँह लगाकर पिया और बचा हुआ पानी कुएँ में डाल दिया । रोटी का एक टुकड़ा भी डाल दिया। पण्डितजी देखते ही रह गये, विवश थे। तत्पश्चात् पण्डितजी को भी साथ लेकर वे चले गये। अपने घर में उन्हें बन्द कर दिया।

दूसरे दिन उन्होंने हाथ जोड़कर पण्डितजी से भोजन के लिये निवेदन किया तो वे बिगड़ पड़े- 

“अरे, तुम यवन हो मैं ब्राह्मण, भला कैसे खा सकता हूँ?" 

उन्होंने कहा- 

"महाराज! हमें आप जैसे विचारवान् लोगों की बड़ी आवश्यकता है। क्षमा करें। " 

पण्डितजी को छोड़ दिया गया। पण्डितजी अपने गाँव आये। देखा, लोग कुएँ का प्रयोग पूर्ववत् कर रहे थे। वे अनशन करने लगे। लोगों ने कारण पूछा तो बोले- यवन इस कुएँ की जगत पर चढ़ गये थे। मेरे सामने उन्होंने इस कुएँ को जूठा किया और इसमें रोटी का टुकड़ा भी डाल दिया। गाँव के लोग स्तब्ध रह गये । पूछा " अब क्या होगा?" पण्डित जी ने बताया- “अब क्या? धर्म तो नष्ट हो गया।"

उस समय लोग शिक्षित नहीं थे। स्त्रियों और शूद्रों से पढ़ने का अधिकार न जाने कब से छीन लिया गया था । वैश्य धनोपार्जन ही अपना धर्म मान बैठे थे। क्षत्रिय चारणों के प्रशस्ति-गायन में खोये थे कि अन्नदाता की तलवार चमकी तो बिजली कौंधने लगी, दिल्ली का तख्त डगमगाने लगा। सम्मान वैसे ही प्राप्त है तो पढ़ें क्यों? धर्म से उन्हें क्या लेना-देना? धर्म केवल ब्राह्मणों की वस्तु बनकर रह गया था। वे ही धर्मसूत्रों के रचयिता, वे ही उसके व्याख्याकार और वही उसके झूठ-सच के निर्णायक थे जबकि प्राचीनकाल में स्त्रियों,शूद्रों, वैश्यों, क्षत्रियों और ब्राह्मणों को, सबको वेद पढ़ने का अधिकार था। प्रत्येक वर्ग के ऋषियों ने वैदिक मन्त्रों की रचना की है, शास्त्रार्थ - निर्णय में भाग लिया है। प्राचीन राजाओं ने धर्म के नाम पर आडम्बर फैलानेवालों को दण्ड दिया, धर्मपरायणों का समादर किया था । किन्तु मध्यकालीन भारत में सनातन-धर्म की यथार्थ जानकारी न रखने से उपर्युक्त गाँव के निवासी भेड़ की तरह एक कोने में खड़े होते गये कि धर्म नष्ट हो गया। कई लोगों ने इस अप्रिय शब्द को सुनकर आत्महत्या कर ली; किन्तु सब कहाँ तक प्राणान्त करते । अटूट श्रद्धा के पश्चात् भी विवश होकर अन्य हल खोजना पड़ा। आज भी वे बाँस गाड़कर, मूसल रखकर हिन्दुओं की तरह विवाह करते हैं, बाद में एक मौलवी निकाह पढ़ाकर चला जाता है। सब-के-सब शुद्ध हिन्दू हैं, सब - सब मुसलमान बन गये।

हुआ क्या था? पानी पिया था, अनजाने में मुसलमानों का छुआ खा लिया था इसलिये धर्म नष्ट हो गया। धर्म तो हो गया छुईमुई ( लाजवन्ती)। यह एक पौधा होता है | आप छू दें तो उसकी पत्तियाँ संकुचित हो जाती हैं और हाथ हटाते ही पुनः विकसित हो जाती हैं। यह पौधा हाथ हटाने पर विकसित हो जाता है; किन्तु धर्म तो ऐसा मुरझाया कि कभी विकसित नहीं होगा। वे मर गये, सदा के लिये उनके राम, कृष्ण और परमात्मा मर गये। जो शाश्वत थे, वे मर गये। वास्तव में वह शाश्वत के नाम पर कोई कुरीति थी, जिसे लोग धर्म मान बैठे थे।

धर्म की शरण हम क्यों जाते हैं? क्योंकि हम मरणधर्मा ( मरने जीनेवाले) हैं और धर्म कोई ठोस चीज है, जिसकी शरण जाकर हम भी अमर हो जायँ । हम तो मारने से मरेंगे और यह धर्म केवल छूने और खाने से मर जायेगा, तो हमारी क्या रक्षा करेगा? धर्म तो आपकी रक्षा करता है, आपसे शक्तिशाली है। आप तलवार से मरेंगे और धर्म? वह छूने से नष्ट हो गया। कैसा है आपका धर्म ? कुरीतियाँ नष्ट होती हैं, न कि सनातन । सनातन तो ऐसी ठोस वस्तु है जिसे शस्त्र नहीं काटते, अग्नि जला नहीं सकती, जल इसे गीला नहीं कर सकता। खानपान तो दूर, प्रकृति में उत्पन्न कोई वस्तु उसका स्पर्श भी नहीं कर पाती तो वह सनातन नष्ट कैसे हो गया?ऐसी ही कतिपय कुरीतियाँ अर्जुनकाल में भी थीं। उनका शिकार अर्जुन भी था। उसने विलाप करते हुए गिड़गिड़ाकर कहा कि कुलधर्म सनातन है । युद्ध से सनातन-धर्म नष्ट हो जायेगा। कुलधर्म नष्ट होने से हम अनन्तकाल तक नरक में चले जायेंगे। किन्तु श्रीकृष्ण ने कहा- "तुझे यह अज्ञान कहाँ से उत्पन्न हो गया?" सिद्ध है कि वह कोई कुरीति थी, तभी तो श्रीकृष्ण ने उसका निराकरण किया और बताया कि आत्मा ही सनातन है। यदि आप आत्मिक पथ नहीं जानते तो सनातन-धर्म में आपका अभी तक प्रवेश नहीं हुआ है। जब यह सनातन - शाश्वत आत्मा सबके अन्दर व्याप्त हैं तो खोजा किसे जाय?

श्रीमद्भगवद्गीता यथार्थ गीता

 द्वितीय अध्याय श्लोक न:24

प्रत्यक्षानुभूत व्याख्या : 

परमपूज्य श्री परमहंस महाराज का

 कृपा प्रसाद स्वामी श्री अड़गड़ानन्द जी



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