मंगलवार, 26 जुलाई 2022

प्रेग्नेंसी

 प्रेग्नेंसी कोई बीमारी नहीं है। आई रिपीट कोई 'बीमारी' नहीं, नॉर्मल फिज़ियोलॉजिकल प्रोसस है, सृष्टि के आरम्भ से होती आई है और अंत तक होती रहेगी। प्रेग्नेंसी बीमारी नहीं है परन्तु शरीर में हार्मोनल बदलाव के कारण बहुत से परिवर्तनों से गुजरना पड़ता है।इन परिवर्तनों के कारण असहज महसूस हो सकता है। परन्तु यह बीमारी नहीं है। आपके शरीर में एक नया जीवन अस्तित्व में आ रहा है।इस नये जीवन पर आपकी मानसिक तथा शारीरिक अवस्था का बहुत प्रभाव पड़ता है। अगर आपने तनावपूर्ण स्थिति में नये जीवन को जन्म दिया तो उसकी मानसिक स्थिति पर प्रभाव पड़ सकता है।

(वो बच्चे जिनकी माँओं ने गर्भावस्था के दौरान गंभीर तनाव महसूस किया हो उन्हें 30 साल की उम्र तक आते-आते पर्सनैलिटी डिसॉर्डर होने की आशंका लगभग 10 गुना तक बढ़ जाती है.)


प्रेगनेंसी के दौरान आप कई तरह की भावनाओं और एहसासों से गुजरती हैं। जहाँ एक ओर आप की दुनिया में आने वाली नई खुशियों के कारण, आप जोश और उत्साह से भरी होती हैं, वहीं दूसरी ओर अपनी गर्भावस्था को लेकर आप में थोड़ी घबराहट और थोड़ा भय भी होता है। ऐसे में शारीरिक बदलावों के कारण होने वाला तनाव कम लगने लगता है और मानसिक या भावनात्मक बदलाव से होने वाला तनाव ज्यादा परेशानी भरा लगने लगता है। गर्भावस्था के दौरान, जिस प्रकार शारीरिक स्वास्थ्य का महत्व सबसे ज्यादा होता है, उसी प्रकार मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी अति आवश्यक है।

(अपने डॉक्टर को यह बताने से न डरें कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं - वे आपकी बात सुनने और समर्थन करने के लिए हैं।)

आप अपने बच्चे को इस दुनिया में लाने वाली हैं और आप उसके और उसके अच्छे स्वास्थ्य के लिए हर संभव प्रयास कर रही होंगी और यह बहुत जरूरी है, कि इस क्रम में आप अपना ख्याल रखना ना भूलें। अपने आप को भी प्राथमिकता दें और इस बीच में ऐसी चीजें करती रहें, जिनसे आपको खुशी मिलती है। हर दिन अपने लिए थोड़ा समय निकालें और वह हर चीज करें, जिसे करना आपको पसंद है। इसे ‘मी टाइम’ का नाम दें और इसमें वैसी एक्टिविटीज को शामिल करें, जो आपको खुशी और शांति देती हों। 

(अपनी तुलना अन्य गर्भवती महिलाओं से न करें - हर कोई अलग-अलग तरीकों से गर्भावस्था का अनुभव करता है।)

प्रेग्नेंट लेडीज़ ख़ुद को सबसे पहले तो बीमार मानना बन्द कर दें। और घरवाले भी वैसे ट्रीट न करें।

प्रेग्नेंसी के दौरान बहुत से बदलाव होते हैं बॉडी में, हॉर्मोन्स का तूफ़ान आया रहता है। एक नया इंसान बनाना अपने अंदर आसान नहीं है, बिल्कुल आसान नहीं है। अपनी जान का, अपनी आत्मा का, अपने माँस और ख़ून का, अपने शरीर का ही एक हिस्सा है बच्चा, जो हमसे अलग होकर कुछ समय बाद हमारे सामने चल फिर रहा होगा। हमारे बच्चे हमसे ही जन्म लेते हैं। 

अब जितना ख़ुद को बीमार या काँच की गुड़िया टाइप फील करेंगी, उतनी वलनरेबिलिटी बढ़ेगी। कोई भी अनयुज़ुअल बात नोटिस हो, स्पेशली स्पॉटिंग, ब्लीडिंग, शार्प शूटिंग पेन या हल्का भी, लगातार बना रहने वाला, उसको बिल्कुल नज़र अंदाज़ न करें, फौरन कंसल्ट करें अपने डॉक्टर से।

लेकिन बाक़ी न्यूट्रिशियस डाइट लें ।शुरुआती 3 महीने उसकी भी चिंता न करें, जितना पेट में टिक जाए, जो खाया जाए, खाने का दिल करे खाएं। फिर वह मितली उल्टी वाला पीरियड टल ही जाना है। ज़रूरी प्रिकॉशन्स फॉलो करती रहें।

 हर किसी की हर सलाह पर अमल और एक्सपेरिमेंट न करने बैठें ।ख़ासकर ऐसा करने से लड़का पैदा होगा वाले टोटकों का आजमाने की कोशिश न करें। हालांकि कोई स्वीकार नहीं करता, न करने की शर्त है, लेकिन सोचते सभी हैं मन में कि आज़माने में क्या हर्ज है । नम्बर टू पर हैं, ऐसा करने से नॉर्मल डिलीवरी होगी वाले उपाय। डाक्टर की सलाह का पालन करें।वरना नुकसान भी हो सकता है।


जितना हेल्दी फील करेंगी, उतनी हेल्दी रहेंगी। जो चीजें अच्छा फ़ील करने से रोकें, उनकी लिस्ट बनाइये । कारण और निवारण की तलाश कीजिये लेकिन सिर्फ़ दवाओं में हर समाधान मत खोजिए, नहीं मिलेगा। बाक़ी दवाओं के कारोबारी तो चाहेंगे ही कि नौ महीने वाला रेग्युलर कस्टमर चंगुल से आज़ाद न हो पाए।

 पोषक आहार, पूरी नींद और तनावमुक्त रहने का इतना भी प्रेशर न लें कि इसी से तनाव हो जाए । इट्स ओके टू फ़ील नॉट ओके समटाइम्स ।

कुछ लोग इतना डरा देते हैं कि अगर कोई समस्या न भी हो तो भी समस्या बन जाती है।औरत के मां बाप तथा सास ससुर के विचारों में बहुत अन्तर रहता है। कुछ महिलाओं की प्रेग्नेंसी में कुछ समस्याएं होती हैं उन्हें डाक्टर के सम्पर्क में रहना चाहिए। डाक्टर का चुनाव सोच समझ कर करें।

Nazia Khan की पोस्ट पर आधारित 

हरिओम सिगंल 





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