गीता ज्ञान दर्शन अध्याय 2 भाग 12

  

अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः।

अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत।। १८।।


औरइस नाशरहितअप्रमेयनित्यस्वरूप जीवात्मा के ये शरीर नाशवान कहे गए हैं। इसलिएहे भरतवंशी अर्जुन, तू युद्ध कर।


अर्जुन को युद्ध बड़ा सत्य मालूम पड़ रहा हैदेह बहुत सत्य मालूम पड़ रही हैमृत्यु बहुत सत्य मालूम पड़ रही हैउसकी अड़चन स्वाभाविक है। उसकी अड़चन हमारी सबकी अड़चन है। जो हमें सत्य मालूम पड़ता हैवही उसे सत्य मालूम पड़ रहा है। कृष्ण उसे बड़ी दूसरी दुनिया की बातें कह रहे हैं। वे कह रहे हैं कि यह देहये शरीरधारी लोगयह दिखाई पड़ने वाला सारा जाल--यह स्वप्न है। तू इसकी फिक्र मत कर और लड़।

कृष्ण का लड़ने के लिए यह आह्वान तथाकथित धार्मिक लोगों कोसो काल्ड रिलीजस

लोगों को
सदा ही कष्ट का कारण रहा हैसमझ के बाहर रहा है। क्योंकि एक तरफ समझाने वाले लोग हैंजो कहते हैंचींटी पर पैर पड़ जाए तो बचानाअहिंसा है। पानी छानकर पीना। दूसरी तरफ यह कृष्ण हैजो कह रहा है कि लड़क्योंकि यहां न कोई मरतान कोई मारा जाता। यह सब देह स्वप्न है।

अर्जुन साधारणतः ठीक कहता मालूम पड़ता है। गांधी ने चाहा  कि अर्जुन की बात कृष्ण मान लेतेअहिंसावादियों ने चाहा  कि कृष्ण की बात न चलतीअर्जुन की चल जाती। लेकिन कृष्ण बड़ी अजीब बात कह रहे हैं। वे कह रहे हैंजो स्वप्न हैउसके लिए तू दुखी हो रहा है! जो नहीं हैउसके लिए तू पीड़ित और परेशान हो रहा है! साधारण नीति के बहुत पार चली गई बात।

(भगवान कृष्‍ण के अमृत वचनों पर ओशो के अमर प्रवचन) हरिओम सिगंल

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