गीता ज्ञान दर्शन अध्याय 4 भाग 11

 


 कांक्षन्तः कर्मणां सिद्धिं यजन्त इह देवताः।

क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा।। 12।।


और जो मेरे को तत्व से नहीं जानते हैं, वे पुरुष, इस मनुष्य लोक में, कर्मों के फल को चाहते हुए देवताओं को पूजते हैं और उनके कर्मों से उत्पन्न हुई सिद्धि भी शीघ्र ही होती है।


जीवन के परम सत्य को भी जो नहीं जानते, वे भी जीवन की बहुत-सी शुभ शक्तियों से लाभान्वित हो सकते हैं। परमात्मा परम शक्ति है, लेकिन शक्ति और छोटे रूपों में भी बहुत-बहुत मार्गों से प्रकट होती है।

कृष्ण अर्जुन को इस सूत्र में कह रहे हैं कि जो मुझे उपलब्ध हो जाते हैं, जो मेरी देह को उपलब्ध हो जाते हैं, वे जन्म-मरण से मुक्त हो जाते हैं। लेकिन जो मुझे नहीं भी उपलब्ध होते सीधे, जो परम ऊर्जा से परम स्रोत से सीधे संबंधित नहीं होते, वे भी देवताओं से, उनकी पूजा कर, उनकी सन्निधि में आ, शुभ को उपलब्ध होते हैं। यहां दोत्तीन बातें समझ लेने जैसी हैं।

साधारणतः परम शक्ति के संपर्क में आना अति कठिन है। परम शक्ति के संपर्क में आने के लिए बड़ी छलांग, बड़े साहस की जरूरत है। परम शक्ति के संपर्क में आने का अर्थ अपने को पूरी तरह जलाकर भस्म, राख कर डालना है। जो अपने मैं को जरा भी बचाना चाहे, वह परम शक्ति के संपर्क में नहीं आ सकता। जैसे सूर्य के पास कोई पहुंचना चाहे, तो भस्म हो ही जाएगा। ऐसे ही परम शक्ति के पास कोई पहुंचना चाहे, तो स्वयं को मिटाए बिना कोई रास्ता नहीं है। इसलिए परम साहस है, करेज है।

धार्मिक व्यक्ति ठीक अर्थों में अपने को मिटाने के साहस से ही पैदा होता है। इसलिए अधिक धार्मिक लोग इतना साहस तो नहीं कर पाते हैं। लेकिन फिर भी सूर्य के पास कोई न जा पाए, तो भी अंधेरे में ही रहे, ऐसा जरूरी नहीं है। छोटे मिट्टी के दीए भी जलाए जा सकते हैं। और मिट्टी के छोटे से दीए में जो ज्योति जलती है, वह भी महासूर्यों का ही हिस्सा है। लेकिन वह जलाती नहीं, वह मिटाती नहीं; वह आपके हाथ में उपयोग की जा सकती है।

देवता परम शक्ति के समक्ष दीयों की तरह हैं, छोटे दीयों की तरह हैं। देवता उन आत्माओं का नाम है...इसे थोड़ा-सा समझ लेना जरूरी होगा, तभी यह बात ठीक से खयाल में आ सकेगी।

जैसे ही कोई व्यक्ति मरता है, इस शरीर को छोड़ता है, साधारणतः सौ में निन्यानबे मौकों पर तत्काल ही जन्म हो जाता है। कभी-कभी, यदि व्यक्ति बहुत बुरा रहा हो, तो तत्काल जन्म मुश्किल होता है; या व्यक्ति बहुत भला रहा हो, तो भी तत्काल जन्म मुश्किल होता है। बहुत भले व्यक्ति के लिए भी गर्भ खोजने में समय लग जाता है। वैसा गर्भ उपलब्ध होना चाहिए। बहुत बुरे व्यक्ति को भी। मध्य में जो हैं, उन्हें तत्काल गर्भ उपलब्ध हो जाता है। जो बहुत बुरे व्यक्ति हैं, उन्हें कुछ समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है, करनी पड़ती है; जब तक उनके योग्य उतना बुरा गर्भ उपलब्ध न हो सके। ऐसी आत्माओं को प्रेत पारिभाषिक शब्द है--ऐसी प्रतीक्षा कर रही आत्माओं का, जो नई देह को उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं--बहुत बुरी हैं इसलिए। बहुत भली आत्माएं भी शीघ्र जन्म को उपलब्ध नहीं हो पातीं। ऐसी प्रतीक्षा करती आत्माओं का नाम देवता है। वह भी पारिभाषिक शब्द है।

जो सीधे परमात्मा से संबंधित नहीं हो पाते, वे भी चाहें तो देवताओं से संबंधित हो सकते हैं। बुरी आत्माएं बुरा करने के लिए आतुर रहती हैं, देह न हो तो भी। अच्छी आत्माएं अच्छा करने के लिए आतुर रहती हैं, देह न हो तब भी। इन आत्माओं का साथ मिल सकता है। इसका पूरा अलग ही विज्ञान है कि इन आत्माओं का साथ कैसे मिल सके! लेकिन आमंत्रण से, इनवोकेशन से, निमंत्रण से इन आत्माओं से संबंधित हुआ जा सकता है। समस्त यज्ञ आदि शुभ आत्माओं से संबंध स्थापित करने की मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाएं थीं। जिसे दुनिया में ब्लैक मैजिक कहते हैं, उस तरह की प्रक्रियाएं बुरी आत्माओं से संबंध स्थापित करने की प्रक्रियाएं थीं।

कृष्ण कहते हैं, जो सीधा मुझको न भी उपलब्ध हो, वह भी देवताओं की पूजा और अर्चना से शुभ कर्मों को करता हुआ, शुभ को उपलब्ध हो सकता है। जो परम सत्य को उपलब्ध न भी हो, वह भी शुभ को उपलब्ध हो सकता है।

दो कारणों से वह शुभ को उपलब्ध होगा। एक तो, जो शुभ की आकांक्षा करता है, वह शुभ कर्म करता है। आकांक्षा का सबूत और कुछ भी नहीं है सिवाय कर्मों के। हम जो करते हैं, वही गवाही है हमारी आकांक्षाओं की। हमारी डीड, हमारा कर्म ही हमारे प्राणों की प्यास की खबर है।

शुभ कर्मों को करता हुआ।

लेकिन आदमी बहुत कमजोर है और शुभ कर्म भी आदमी अकेला करना चाहे, तो अति कठिन है। वह अपने चारों तरफ व्याप्त जो शुभ की शक्तियां हैं, उनका सहारा ले सकता है। और कई बार जब आप कोई बड़ा शुभ कर्म करते हैं, तो आप खुद भी अनुभव करते हैं, जैसे कोई और बड़ी शक्ति भी आपके साथ खड़ी हो गई। जब आप कोई बहुत बुरा कर्म करते हैं, तब भी आपको अनुभव होता है कि जैसे आप अकेले नहीं हैं। कोई और बुरी शक्ति भी आपके साथ संयुक्त हो गई है।

हत्यारों ने अदालतों में बहुत बार बयान दिए हैं, और उनके बयान कभी भी ठीक से नहीं समझे जा सके, क्योंकि अदालतों की समझ की सीमा है। अदालतों में हत्यारों ने सारी पृथ्वी पर अनेक बार यह कहा है कि यह हत्या हमने नहीं की; जैसे हमसे करवा ली गई है। लेकिन अदालत तो इस बात को नहीं मानेगी। मानेगी कि झूठ है वक्तव्य। झूठ बहुत मौकों पर हो भी सकता है; बहुत मौकों पर झूठ नहीं है।

जो लोग प्रेतात्म-विज्ञान पर थोड़ा-सा श्रम उठाए हैं, उनको इस बात का अनुभव होना शुरू हुआ है कि बुरी आत्माएं दूसरे व्यक्तियों को कमजोर क्षण में प्रभावित कर लेती हैं।




ऐसे मकान हैं पृथ्वी पर, जिन मकानों में निरंतर हत्या होती रही है, पीढ़ियों से। और जब उन मकानों के लंबे इतिहास को खोजा गया है, तो जानकर बड़ी हैरानी हुई कि हर बार हत्या का क्रम वही रहा है, जो पिछली बार हत्या का था। उन घरों में उन आत्माओं का वास है, जो उस घर में आने वाले नए लोगों से हत्या करवाने का प्रयास फिर से करवा लेती हैं।

ऐसे स्थान हैं, जहां आदमी के मन में शुभ फलित होता है। जिन्हें हम तीर्थ कहते थे, उन तीर्थों का कोई और अर्थ नहीं है। जिन स्थानों पर भली आत्माओं के संघट की संभावना अनेक-अनेक रास्तों से निर्मित की गई है, उन स्थानों पर आदमी जाकर अचानक भला कर्म कर पाता है, जो उसके वश के बाहर दिखाई पड़ता है।

हम अकेले नहीं हैं। हमारे चारों ओर और बहुत शक्तियां काम कर रही हैं। जब हम बुरा होना चाहते हैं, तो बुरी शक्तियां हमारे साथ खड़ी हो जाती हैं और हमारे हाथों का बल बन जाती हैं। और जब हम अच्छा कुछ करना चाहते हैं, तब भी अच्छी शक्तियां हमारे साथ खड़ी हो जाती हैं और हमारे हाथों का बल बन जाती हैं।

तो कृष्ण कह रहे हैं, अच्छा कर्म करते हुए, देवताओं की अर्चना, प्रार्थना, पूजा से, जो व्यक्ति सीधा मुझ तक न भी पहुंचे वह भी शुभ को उपलब्ध होता है।

(भगवान कृष्‍ण के अमृत वचनों पर ओशो के अमर प्रवचन)
हरिओम सिगंल

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