शनिवार, 22 जुलाई 2023

थिओप्लेसिबो / गॉडप्लेसिबो THEOPLACEBO/GODPLACEBO

 थिओप्लेसिबो / गॉडप्लेसिबो THEOPLACEBO/GODPLACEBO


थिओप्लेसिबो / गॉडप्लेसिबो ठीक मैडिसिन वर्ल्ड प्लेसिबो का जैसे ही काम करता है। प्लेसिबो होता क्या है? प्लेसीबो एक “भ्रामक उपचार" या "झूठी उपचार” या “ठगी उपचार" होता है। कुछ रोग खुद दिमाग या मन और विश्वास का उपज होता है; जो एक तरह की मानसिक विकृति होता है, जो आम दवाओं में ठीक नहीं होता। इन से उत्पन रोग केवल उनकी मन और विश्वास में बदलाव लाकर किया जा सकता है; यानि इसका इलाज दिमाग के साथ छेड़छाड़ करके भी हो सकता है; जो की प्रवंचनशील और भ्रामक भी होता है और ये कभी भी इनसे बिना पैदा के रोगोंपर प्रभावशाली नहीं होता । 

उदाहरण के तौर पर आप एक डॉक्टर के पास जाते हैं, क्यूंकि आपको बहुत दिनों से सिर में दर्द हो रहा था। डॉक्टर आपके सारे टेस्ट करवाता है और फिर आपको केवल एक गोली देता है। । दिन में दो बार, खाना खाने से पहले। आप हफ़्ते भर गोली खाते हैं और एकदम ठीक हो जाते हैं । आप डॉक्टर को शुक्रिया करने जाते हैं, साथ ही पूछते हैं कि वो दवा कौन सी थी, जिससे महीनों से चला आ रहा सिरदर्द महज़ एक हफ्ते में छू-मंतर हो गया? डॉक्टर आपको बताता है कि वो कोई दवा थी ही नहीं। वो तो एक मीठी गोली थी जेम्स की, जिसे उसने दूसरे डब्बे में भरकर आपको दे दिया था। अब आप समझ नहीं पाते कि डॉक्टर को शुक्रिया कहें या उसे इस धोखे के लिए कोसें। 

लेकिन आप उससे कुछ कहें उससे पहले ही डॉक्टर आप को बताना शुरू कर देता है; आपके सारे टेस्ट करवाए। सिर तो छोड़िए, शरीर के किसी कोने में आप की कोई दिक्कत नहीं मिली। दरअसल ये सिरदर्द आपके मस्तिष्क की ही उपज था। आपके दिमाग की विस्तार से बोलूं तो, आपके मन की । आप कभी अख़बार में किसी बीमारी के लक्षण देखते हैं तो लगता है कि ये सारे लक्षण तो आपके शरीर में भी मौजूद हैं। क्योंकि बहुत सारी बीमारियां आपके शरीर की नहीं मन की देन होती हैं। बीमारियां ही नहीं दुनिया में अधिकतर चीजें शरीर की नहीं, मन की देन होती है। आपको ये अजब लगेगा, लेकिन इस यूनिवर्स की बहुत सारी चीजें 'मन' की ही उपज हैं; और जो चीज़ आपके मन की उपज है उसका इलाज बाहर कैसे होगा? उसका तो अंदर ही से इलाज करना पड़ेगा? और इसी 'इंटरनल हीलिंग' यानि "आंतरिक चिकित्सा" को मनोवैज्ञानिकों की भाषा में प्लेसीबो इफेक्ट' कहते हैं। 

18 वीं सदी के उत्तरार्ध में प्लेसीबो चिकित्सा औषधीय शब्दावली का एक अभिन्न हिस्सा बन गया । इस प्रकार की चिकित्सा लोगों को ठीक /स्वस्थ करने के बजाय संतुष्ट/प्रसन्न करने में अधिक उपयोग में आती थी। सदियों से प्लेसीबो को भ्रामक उपचार' माना जाता रहा है। सरल भाषा में कहें तो प्लेसीबो ऐसी चिकित्सा को कहते हैं जिसका कोई वैज्ञानिक आधार न हो। ऐसी चिकित्सा पद्धति या तो प्रभावहीन होती है, या यदि कोई सुधार दिखता भी है तो उसका कारण कोई अन्य चीज ही होती है । और इस पूरे कांसेप्ट या इफ़ेक्ट को कहते हैं प्लेसीबो इफ़ेक्ट” या “प्लेसीबो प्रभाव" । 

अब, जब कहा जाता है कि इनको दवा नहीं दुआ की ज़रूरत है तो दरअसल प्लेसीबो इफ़ेक्ट' की ही बात की जा रही होती है यानि मौजूदा समय में अगर कोई बीमारी का कोई इलाज नहीं है तो इसका इलाज को प्राकृतिक संभावनाएं के उपर छोड़ दिया जाता है और उसको गॉड के नाम पर छोड़ दिया जाता है; अगर कोई बीमारी का कारण "मन" हो तो इसको बिना गॉड के नाम पर प्लेसीबो इफ़ेक्ट से भी इलाज किया जा सकता है जैसे की बाबा की भभूत, झाड़ फूंक, ताबीज, डॉक्टर की झूठी दवा इत्यादि इत्यादि । 

और ये प्लेसीबो इफ़ेक्ट बहुत ही पुरानी सोच है जो गॉड के नाम पे भी होता आ रहा है | ये धूर्तों और बेइमान लोगों से पैदा एक वर्ग की स्वार्थी विचारधारा है जिसका गलत उपयोग होता आ रहा है। जिसको आप अब वैदिक धर्म कहते हो उनके जितने भी प्रमुख देव देवियाँ है उन में कई बस काल्पनिक है और पुजारी उन चरित्रों से आपकी प्लेसिबो इफेक्ट करवाता है और भक्त को अगर मन की उपज कोई बीमारी हो तो वह ठीक हो जाता है और क्रेडिट उस काल्पनिक देव देवियों और पुजारी को जाता है; अगर कुछ नहीं होता है तो कह दिया जाता है वह गॉड की मर्जी थी; लेकिन अगर कोई ठीक भी हो जाता है उसको गॉड की चमत्कार बोल दिया जाता है जब की ये प्राकृतिक रूप से आपके इम्यूनोसिस्टम के  कारण बिना दवा के करता है, क्यों के ये प्लेसिबो इफेक्ट GOD या देव देवियों के नाम पर होता है ये "गॉडप्लेसिबो" है; लेकिन इस में सबसे बड़ा प्रोब्लेम एक सामाजिक विकार है और वह है पुजारीवाद बनाम ब्राह्मणवाद जो बर्चस्ववादी बनने के कारण वह उत्पीड़क वर्ग होनेका भी दृष्टांत दिया है। ब्राह्मणवाद के काल्पनिक देव देवियों का 900AD से पहले कोई अता पता नहीं मिलता। इनका कोई भी पुराने मूर्ति या मंदिर 900AD से पहले पुरातात्विक साक्ष्य के अनुरूप नहीं मिलेंगे ।जिससे ये प्रमाणित होता है कि बहुदेववाद विचारधारा कोई पुरानी विचारधारा नहीं है, लेकिन भांड धूर्त पुजारीवाद अपना काल्पनिक गोपोडवाज मान्यतावादी झूठी इतिहास बनाकर कुछ भी बोलते रहते हैं। पेलसीबो इफेक्ट का प्रमाण आपको बौद्ध धर्म के जातक कथा मिलजाएँगे लेकिन वह लोगों को ठगने के लिए नहीं थी बल्कि मनरोग की उपचार के लिए ही था। बौद्ध विचारधारा के जातक कथा के अनुसार एक बार एक बौद्ध गुरु अपने कुछ शिष्यों के साथ एक गांव से दूसरे गांव जा रहे थे। उन्हें रास्ते में एक नव यौवना दिखाई दी। माने एक सुंदर स्त्री। नव यौवना के पैरों में चोट लगी थी इसलिए वो नदी पार नहीं कर पा रही थी। बौद्ध गुरु ने उसे सहारा देकर नदी पार करवा दी। ये देखकर शिष्यों के मुंह सड़ गए। जब घंटों तक बौद्ध गुरु पीछे चलते शिष्यों की खुसर- फुसर सुनते हुए दुखी हो गए, तो उन्होंने शिष्यों से उनकी परेशानी का कारण पूछा। शिष्यों में से एक ने कहा आपने एक कुंवारी स्त्री को अपने हाथों से छुआ, इससे आपका मन आपकी आत्मा मलीन न हुई ? गुरु ने उत्तर दिया (और गौर कीजिए कि उत्तर देते हुए उन्होंने बहुत ध्यान से शब्दों का चुनाव किया)- मैं उस विपत्ति ग्रस्त' को कब का नदी के तट पर छोड़ आया हूं लेकिन तुम उस 'स्त्री' को अब तक ढो रहे हो । कथा यहां पर समाप्त हो जाती है। वैसे हमारे जिंदगी में कई तरह के समस्याएं होते हैं और उन समस्याओं से भी मन में कई तरह की बीमारी बन जाते हैं और उस बीमारी को केवल मन के द्वारा की जा सकती है इस बीमारी का सबसे पुराना समाधान कुछ लोगों ने साइकोलॉजिकल दवाई "थिओप्लेसिबो / गॉडप्लेसिबो" के उपचार के रूप में बनाया जो विज्ञान संगत यानि वैज्ञानिक तो नहीं लेकिन झूठ, भ्रम, तर्कहीनता और अंधविश्वास आस्था के उपर आधारित था कभी कभी झूठी दिलासा और संतुष्टि मन को दृढ़ बनाता है और क्यों के मन शरीर के साथ सम्पूर्ण रूपसे जुड़ा हुआ होता है, सुदृढ़ मन प्राकृतिक रूपसे शरीर को प्राकृतिक रूप से इम्यूनलोजिकाल सशक्त बनाने को कोशिश करता है जिससे कई समस्या का समाधान हो जाता है लेकिन ये हर समस्या का समाधान नहीं करता इससे और कई मन से जुडी समस्या को भी पैदा कर देता है जिससे इसके कई एडवर्स इफ्फेक्ट पैदा होते रहते हैं; जैसे, जो मन से जुडी हुई रोग नहीं है उससे इंसान का मृत्यु हो जाना; अन्धविश्वाश के कारण अज्ञानता, तर्कहीनता और कुतर्क का शिकार होना, पुजारी वर्ग का वर्चस्ववादी हो जाना और उनसे दूसरों को शाररिक और मानसिक रूपसे उत्पीड़न करना, ठगना और प्रवंचन करना झूठ, भ्रम, अंधविश्वास और तर्कहीनता को बढ़ावा देना और ऐसे कई तरह की हजारों मानसिक और सामाजिक विकृतियाँ इनसे पैदा होने का समस्या बन जाना । इसलिए थिओफिलिआ और थिओप्लेसिबो / गॉडप्लेसिबो के बारे  में जानना सबको जरुरी है।

शुक्रवार, 21 जुलाई 2023

Music credit

 Cooking by Alex-Productions | https://onsound.eu/

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Give Me A Smile by Oleg Mazur | https://soundcloud.com/fm_freemusic
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गुरुवार, 20 जुलाई 2023

हनुमान चालीसा

 श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुर सुधार ।

वर्णौ रघुवर विमल यश जो दायक फल चार ।।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार ।

बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु क्लेश विकार ।।

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर

राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥१॥

महावीर विक्रम बजरंगी
कुमति निवार सुमति के संगी

कंचन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुंडल कुँचित केसा ॥२॥

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे
काँधे मूँज जनेऊ साजे

शंकर स्वयं केसरी नंदन
तेज प्रताप महा जगवंदन ॥३॥

विद्यावान गुनी अति चातुर
राम काज करिबे को आतुर

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
राम लखन सीता मनबसिया ॥४॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा
बिकट रूप धरि लंक जरावा

भीम रूप धरि असुर सँहारे
रामचंद्र के काज सवाँरे ॥५॥

लाय सजीवन लखन जियाए
श्री रघुबीर हरषि उर लाए

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥६॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावै
अस कहि श्रीपति कंठ लगावै

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहीसा ॥७॥

यम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते

तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा
राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥८॥

तुम्हरो मंत्र विभीषण माना
लंकेश्वर भये सब जग जाना

युग सहस्त्र योजन पर भानू
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥९॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही
जलधि लाँघि गए अचरज नाही

दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥१०॥

राम दुआरे तुम रखवारे
होत न आज्ञा बिनु पैसारे

सब सुख लहै तुम्हारी सरना
तुम रक्षक काहू को डरना ॥११॥

आपन तेज सम्हारो आपै
तीनों लोक हाँक ते काँपै

भूत पिशाच निकट नहि आवै
महाबीर जब नाम सुनावै ॥१२॥



नासै रोग हरे सब पीरा

जपत निरंतर हनुमत बीरा

संकट से हनुमान छुडावै

मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥१३॥


सब पर राम राय सिरताजा

तिनके काज सकल तुम साजा

और मनोरथ जो कोई लावै

सोइ अमित जीवन फल पावै ॥१४॥


चारों युग प्रताप तुम्हारा

है परसिद्ध जगत उजियारा

साधु संत के तुम रखवारे

असुर निकंदन राम दुलारे ॥१५॥


अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता

अस बर दीन जानकी माता

राम रसायन तुम्हरे पासा

सादर हो रघुपति के दासा ॥१६॥


तुम्हरे भजन राम को पावै

जनम जनम के दुख बिसरावै

अंतकाल रघुवरपुर जाई

जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥१७॥


और देवता चित्त न धरई

हनुमत सेई सर्व सुख करई

संकट कटै मिटै सब पीरा

जो सुमिरै हनुमत बलवीरा ॥१८॥


जै जै जै हनुमान गोसाईं

कृपा करहु गुरु देव की नाई

यह शत बार पाठ कर जोई

छूटहि बंदि महा सुख होई ॥१९॥


जो यह पढ़े हनुमान चालीसा

होय सिद्धि साखी गौरीसा

तुलसीदास सदा हरि चेरा

कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ॥२०॥


।। दोहा ।।


पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥

रविवार, 16 जुलाई 2023


कृष्ण का व्यक्तित्व बहुत अनूठा है।  मनुष्य अभी भी इस योग्य नहीं हो पाया है कि कृष्ण का समसामयिक बन सके। अभी भी कृष्ण मनुष्य की समझ से बाहर हैं। कृष्ण अकेले ही ऐसे व्यक्ति हैं जो धर्म की परम गहराइयों और ऊंचाइयों पर होकर भी गंभीर नहीं हैं, उदास नहीं हैं, रोते हुए नहीं हैं। साधारणतः संत का लक्षण ही रोता हुआ होना है। जिंदगी से उदास, हारा हुआ, भागा हुआ। कृष्ण अकेले ही नाचते हुए व्यक्ति हैं। हंसते हुए, गीत गाते हुए। अतीत का सारा धर्म दुखवादी था। कृष्ण को छोड़ दें तो अतीत का सारा धर्म उदास, आंसुओं से भरा हुआ था। हंसता हुआ धर्म मर गया है और पुराना ईश्वर, जिसे हम अब तक ईश्वर समझते थे, जो हमारी धारणा थी ईश्वर की, वह भी मर गई है।कृष्ण अकेले ही इस समग्र जीवन को पूरा ही स्वीकार कर लेते हैं। जीवन की समग्रता की स्वीकृति उनके व्यक्तित्व में फलित हुई है। इसलिए, इस देश ने और सभी अवतारों को आंशिक अवतार कहा है, कृष्ण को पूर्ण अवतार कहा है। राम भी अंश ही हैं परमात्मा के, लेकिन कृष्ण पूरे ही परमात्मा हैं। और यह कहने का, यह सोचने का, ऐसा समझने का कारण है। और वह कारण यह है कि कृष्ण ने सभी कुछ आत्मसात कर लिया है।


 वे अकेले दुख के एक महासागर में नाचते हुए एक छोटे-से द्वीप हैं। या ऐसा हम समझें कि उदास और निषेध और दमन और निंदा के बड़े मरुस्थल में एक बहुत छोटे-से नाचते हुए मरूद्यान हैं। वह हमारे पूरे जीवन की धारा को नहीं प्रभावित कर पाए। हम ही इस योग्य न थे, हम उन्हें आत्मसात न कर पाए।


मनुष्य का मन अब तक तोड़कर सोचता रहा, द्वंद्व करके सोचता रहा। शरीर को इनकार करना है, आत्मा को स्वीकार करना है। तो आत्मा और शरीर को लड़ा देना है। परलोक को स्वीकार करना है, इहलोक को इनकार करना है। तो इहलोक और परलोक को लड़ा देना है। स्वभावतः, यदि हम शरीर का इनकार करेंगे, तो जीवन उदास हो जाएगा। क्योंकि जीवन के सारे रस-स्रोत और सारा स्वास्थ्य और जीवन का सारा संगीत और सारी संवेदनाएं शरीर से आ रही हैं। शरीर को जो धर्म इनकार कर देगा, वह पीतवर्ण हो जाएगा, रक्तशून्य हो जाएगा। उस पर से लाली खो जाएगी। वह पीले पत्ते की तरह सूखा हुआ धर्म होगा। उस धर्म की मान्यता भी जिनके मन में गहरी बैठेगी, वे भी पीले पत्ते की तरह गिरने की तैयारी में संलग्न, मरने के लिए उत्सुक और तैयार हो जाएंगे।




पुराना धर्म सिखाता था आदमी को दमन और "सप्रेशन'। काम है, क्रोध है, लोभ है, मोह है, सभी को दबाना है और नष्ट कर देना है। और तभी आत्मा उपलब्ध होगी और तभी परमात्मा उपलब्ध होगा। यह लड़ाई बहुत लंबी चली। इस लड़ाई के हजारों साल के इतिहास में भी मुश्किल से दस-पांच लोग हैं जिनको हम कह पाए कि उन्होंने परमात्मा को पा लिया। एक अर्थ में यह लड़ाई सफल नहीं हुई। क्योंकि अरबों-खरबों लोग बिना परमात्मा को पाए मरे हैं। जरूर कहीं कोई बुनियादी भूल थी। 




फ्रायड के साथ ही एक नई चेतना का जन्म हुआ और वह यह कि दमन गलत है। और दमन मनुष्य को आत्महिंसा में डाल देता है। आदमी अपने से ही लड़ने लगे तो सिर्फ नष्ट हो सकता है। अगर मैं अपने बाएं और दाएं हाथ को लड़ाऊं तो न तो बायां जीतेगा, न दायां जीतेगा, लेकिन मैं हार जाऊंगा। दोनों हाथ लड़ेंगे और मैं नष्ट हो जाऊंगा। तो दमन ने मनुष्य को आत्मघाती बना दिया, उसने अपनी ही हत्या अपने हाथों कर ली।


कृष्ण, फ्रायड के बाद जो चेतना का जन्म हुआ है, जो समझ आई है, उस समझ के लिए कृष्ण ही अकेले हैं जो सार्थक मालूम पड़ सकते हैं। क्योंकि पुराने मनुष्यजाति के इतिहास में कृष्ण अकेले हैं जो दमनवादी नहीं हैं। वे जीवन के सब रंगों को स्वीकार कर लिए हैं। वे प्रेम से भागते नहीं। वे पुरुष होकर स्त्री से पलायन नहीं करते। वे परमात्मा को अनुभव करते हुए युद्ध से विमुख नहीं होते। वे करुणा और प्रेम से भरे होते हुए भी युद्ध में लड़ने की सामर्थ्य रखते हैं। अहिंसक-चित्त है उनका, फिर भी हिंसा के ठेठ दावानल में उतर जाते हैं। अमृत की स्वीकृति है उन्हें, लेकिन जहर से कोई भय भी नहीं है। और सच तो यह है, जिसे भी अमृत का पता चल गया है उसे जहर का भय मिट जाना चाहिए। क्योंकि ऐसा अमृत ही क्या जो जहर से फिर डरता चला जाए। और जिसे अहिंसा का सूत्र मिल गया, उसे हिंसा का भय मिट जाना चाहिए। ऐसी अहिंसा ही क्या जो अभी हिंसा से भी भयभीत और घबड़ाई हुई है! और ऐसी आत्मा भी क्या जो शरीर से भी डरती हो और बचती हो! और ऐसे परमात्मा का क्या अर्थ जो सारे संसार को अपने आलिंगन में न ले सकता हो। तो कृष्ण द्वंद्व को एक-साथ स्वीकार कर लेते हैं और इसलिए द्वंद्व के अतीत हो जाते हैं। "ट्रांसेंडेंस' जो है, अतीत जो हो जाना है, वह द्वंद्व में पड़कर कभी संभव नहीं है; दोनों को एक साथ स्वीकार कर लेने से संभव है।


तो भविष्य के लिए कृष्ण की बड़ी सार्थकता है। और भविष्य में कृष्ण का मूल्य निरंतर बढ़ता ही जाने को है। जब कि सबके मूल्य फीके पड़ जाएंगे और द्वंद्व-भरे धर्म जब कि पीछे अंधेरे में डूब जाएंगे और इतिहास की राख उन्हें दबा देगी, तब भी कृष्ण का अंगार चमकता हुआ रहेगा। और भी निखरेगा क्योंकि पहली दफे मनुष्य इस योग्य होगा कि कृष्ण को समझ पाए। कृष्ण को समझना बड़ा कठिन है। कठिन है इस बात को समझना कि एक आदमी संसार को छोड़कर चला जाए और शांत हो जाए। कठिन है इस बात को समझना कि संसार के संघर्ष में, बीच में खड़ा होकर और शांत हो। आसान है यह बात समझनी कि एक आदमी विरक्त हो जाए, आसक्ति से संबंध तोड़कर भाग जाए और उसमें एक पवित्रता का जन्म हो। कठिन है यह बात समझनी कि जीवन के सारे उपद्रव के बीच, जीवन के सारे उपद्रव में अलिप्त, जीवन के सारे धूल-धवांस के कोहरे और आंधियों में खड़ा हुआ दिया हिलता न हो, उसकी लौ कंपती न हो--कठिन है यह समझना। इसलिए कृष्ण को समझना बहुत कठिन था। निकटतम जो कृष्ण के थे वे भी नहीं समझ सकते हैं। लेकिन पहली दफा एक महान प्रयोग हुआ है। पहली दफा आदमी ने अपनी शक्ति का पूरा परीक्षण कृष्ण में किया है। ऐसा परीक्षण कि संबंधों में रहते हुए असंग रहा जा सके, और युद्ध के क्षण पर भी करुणा न मिटे। और हिंसा की तलवार हाथ में हो, तो भी प्रेम का दिया मन से न बुझे।


इसलिए कृष्ण को जिन्होंने पूजा भी है, जिन्होंने कृष्ण की आराधना भी की है उन्होंने भी कृष्ण के टुकड़े-टुकड़े करके किया है। सूरदास के कृष्ण कभी बच्चे से बड़े नहीं हो पाते। बड़े कृष्ण के साथ खतरा है। सूरदास बर्दाश्त न कर सकेंगे। वह बाल कृष्ण को ही...। क्योंकि बाल कृष्ण अगर गांव की स्त्रियों को छेड़ देता है तो हमें बहुत कठिनाई नहीं है। लेकिन युवा-कृष्ण जब गांव की स्त्रियों को छेड़ देगा तो फिर बहुत मुश्किल हो जाएगा। फिर हमें समझना बहुत मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि हम अपने ही तल पर तो समझ सकते हैं। हमारे अपने तल के अतिरिक्त समझने का हमारे पास कोई उपाय भी नहीं है। तो कोई है जो कृष्ण के एक रूप को चुन लेगा, कोई है जो दूसरे रूप को चुन लेगा। गीता को प्रेम करने वाले गीता की चर्चा में न पड़ेंगे, क्योंकि कहां राग-रंग और कहां रास और कहां युद्ध का मैदान! उनके बीच कोई तालमेल नहीं है। शायद कृष्ण से बड़े विरोधों को एक-साथ पी लेने वाला कोई व्यक्तित्व ही नहीं है। इसलिए कृष्ण की एक-एक शकल लोगों ने पकड़ लिया। है। जो जिसे प्रीतिकर लगी है, उसने छांट लिया है, बाकी शकल को उसने इनकार कर दिया है।


गांधी गीता को माता कहते हैं, लेकिन गीता को आत्मसात नहीं कर सके। क्योंकि गांधी की अहिंसा युद्ध की संभावनाओं को कहां रखेगी? तो गांधी उपाय खोजते हैं; वह कहते हैं यह जो युद्ध है, यह सिर्फ रूपक है, यह कभी हुआ नहीं। यह मनुष्य के भीतर अच्छाई और बुराई की लड़ाई है। यह जो कुरुक्षेत्र है, यह कोई बाहर युद्ध का मैदान नहीं है, और ऐसा नहीं है कि कृष्ण ने कहीं अर्जुन को किसी बाहर के युद्ध में लड़ाया हो। यह तो भीतर के युद्ध की रूपक-कथा है। यह एक "पैरेबल' है, यह एक कहानी है। यह एक प्रतीक है। गांधी को कठिनाई है। क्योंकि गांधी का जैसा मन है, उसमें तो अर्जुन ही ठीक मालूम पड़ेगा। अर्जुन के मन में बड़ी अहिंसा का उदय हुआ है। वह युद्ध छोड़कर भाग जाने को तैयार है। वह कहता है, अपनों को मारने से फायदा क्या? और वह कहता है, इतनी हिंसा करके धन पाकर भी, यश पाकर भी, राज्य पाकर भी मैं क्या करूंगा? इससे तो बेहतर है मैं सब छोड़कर भिखमंगा हो जाऊं। इससे तो बेहतर है कि मैं भाग जाऊं और सारे दुख वरण कर लूं, लेकिन हिंसा में न पडूं। इससे मेरा मन बड़ा कांपता है। इतनी हिंसा अशुभ है।


कृष्ण की बात गांधी की पकड़ में कैसे आ सकती है? क्योंकि कृष्ण समझाते हैं कि तू लड़। और लड़ने के लिए जो-जो तर्क देते हैं, वह ऐसा अनूठा है कि इसके पहले कभी भी नहीं दिया गया था। उसको परम अहिंसक ही दे सकता है, उस तर्क को।


कृष्ण का तर्क यह है कि जब तक तू ऐसा मानता है कि कोई मर सकता है, तब तक तू आत्मवादी नहीं है। तब तक तुझे पता नहीं है कि जो भीतर है, न वह कभी मरा है, न कभी मर सकता है। अगर तू सोचता है कि मैं मार सकूंगा, तो तू बड़ी भ्रांति में है, बड़े अज्ञान में है। क्योंकि मारने की धारणा ही भौतिकवादी की धारणा है। जो जानता है, उसके लिए कोई मरता नहीं है। तो अभिनय है--कृष्ण उससे कह रहे हैं--मरना और मारना लीला है, एक नाटक है।


इस संदर्भ में यह समझ लेना उचित होगा कि राम के जीवन को हम चरित्र कहते हैं। राम बड़े गंभीर हैं। उनका जीवन लीला नहीं है, चरित्र ही है। लेकिन कृष्ण गंभीर नहीं हैं। कृष्ण का चरित्र नहीं है वह, कृष्ण की लीला है। राम मर्यादाओं में बंधे हुए व्यक्ति हैं, मर्यादाओं के बाहर वे एक कदम न बढ़ेंगे। मर्यादा पर वे सब कुर्बान कर देंगे। कृष्ण के जीवन में मर्यादा जैसी कोई चीज ही नहीं है। अमर्याद। पूर्ण स्वतंत्र। जिसकी कोई सीमा नहीं, जो कहीं भी जा सकता है। ऐसी कोई जगह नहीं आती जहां वह रुके, ऐसी कोई जगह नहीं आती जहां भयभीत हो और कदम को ठहराए। यह अमर्यादा भी कृष्ण के आत्म-अनुभव का अंतिम फल है। तो हिंसा भी बेमानी हो गई है वहां, क्योंकि हिंसा हो नहीं सकती। और जहां हिंसा ही बेमानी हो गई हो वहां अहिंसा भी बेमानी हो जाती है। क्योंकि जब तक हिंसा सार्थक है और हिंसा हो सकती है, तभी तक अहिंसा भी सार्थक है। असल में हिंसक अपने को मानना भौतिकवाद है, अहिंसक अपने को मानना भी उसी भौतिकवाद का दूसरा छोर है। एक मानता है मैं मार डालूंगा, एक मानता है मैं मारूंगा नहीं, मैं मारने को राजी नहीं हूं। लेकिन दोनों मानते हैं कि मारा जा सकता है।


ऐसा अध्यात्म युद्ध को भी खेल मान लेता है। और जो जीवन की सारी दिशाओं को--राग की, प्रेम की, भोग की, काम की, योग की, ध्यान की, समस्त दिशाओं को एक साथ स्वीकार कर लेता है, उस समग्रता के दर्शन को समझने की संभावना रोज बढ़ती जा रही है, क्योंकि अब हमें कुछ बातें पता चली हैं, जो हमें कभी पता नहीं थीं। लेकिन कृष्ण को निश्चित ही पता रही हैं।


जैसे हमें आज जाकर पता चला है कि शरीर और आत्मा जैसी दो चीजें नहीं हैं। आत्मा का जो छोर दिखाई पड़ता है, वह शरीर है; और शरीर का जो छोर दिखाई पड़ता है, वह आत्मा है। परमात्मा और संसार जैसी दो चीजें नहीं हैं। परमात्मा और प्रकृति जैसा द्वंद्व नहीं है कहीं। परमात्मा का जो हिस्सा दृश्य हो गया है, वह प्रकृति है। और जो अब भी अदृश्य है, वह परमात्मा है। कहीं भी ऐसी कोई जगह नहीं है जहां प्रकृति खत्म होती है और परमात्मा शुरू होता है। बस प्रकृति ही लीन होते-होते-होते-होते परमात्मा बन जाती है। परमात्मा ही प्रगट होते-होते प्रकृति बन जाता है। अद्वैत का यही अर्थ है। और इस अद्वैत की अगर हमें धारणा स्पष्ट हो जाए, इसकी प्रतीति हो जाए, तो कृष्ण को समझा जा सकता है।


साथ ही भविष्य में और क्यों कृष्ण की सार्थकता बढ़ने को हैं और कृष्ण क्यों मनुष्य के और निकट आ जाएंगे? अब दमन संभव नहीं हो सकेगा। बड़े लंबे संघर्ष और बड़े लंबे ज्ञान की खोज के बाद ज्ञात हो सका है कि जिन शक्तियों से हम लड़ते हैं वे शक्तियां हमारी ही हैं, हम ही हैं। इसलिए उनसे लड़ने से बड़ा कोई पागलपन नहीं हो सकता। और यह भी ज्ञाता हुआ है कि जिससे हम लड़ते हैं, हम सदा के लिए उसी से घिरे रह जाते हैं। और यह भी ज्ञात हुआ है कि जिससे हम लड़ते हैं उसे हम कभी रूपांतरित नहीं कर पाते। उसका "ट्रांसफार्मेशन' नहीं होता।


अगर कोई व्यक्ति यौन से लड़ेगा तो उसके जीवन में ब्रह्मचर्य घटित हो सकता है तो एक ही उपाय है कि वह अपनी काम की ऊर्जा को कैसे रूपांतरित करे। काम की ऊर्जा से मैत्री साधनी है। क्योंकि हम सिर्फ उसी को बदल सकते हैं जिससे हमारी मैत्री है। जिसके हम शत्रु हो गए, उसको बदलने का सवाल नहीं। जिसके हम शत्रु हो गए उसको समझने का भी उपाय नहीं है। समझ भी हम उसे ही सकते हैं जिससे हमारी मैत्री है।


तो जो हमें निकृष्टतम दिखाई पड़ रहा है वह भी श्रेष्ठतम का ही छोर है। पर्वत का जो बहुत ऊपर का शिखर है, वह, और पर्वत के पास की जो बहुत गहरी खाई है, ये दो घटनाएं नहीं हैं। ये एक ही घटना के दो हिस्से हैं। यह जो खाई बनी है, यह पर्वत के ऊपर उठने से बनी है। यह जो पर्वत ऊपर उठ सका है, यह खाई के बनने से ऊपर उठ सका है। ये दो चीजें नहीं हैं। ये पर्वत और खाई हमारी भाषा में दो हैं, अस्तित्व में एक ही चीज के दो छोर हैं।


नीत्शे का एक बहुत कीमती वचन है। नीत्शे ने कहा है कि जिस वृक्ष को आकाश की ऊंचाई छूनी हो, उसे अपनी जड़ें पाताल की गहराई तक पहुंचानी पड़ती हैं। और अगर कोई वृक्ष अपनी जड़ों को पाताल तक पहुंचाने से डरता है, तो उसे आकाश तक पहुंचने की आकांक्षा भी छोड़ देनी पड़ती है। असल में जितनी ऊंचाई, उतने ही गहरे भी जाना पड़ता है। जितना ऊंचा जाना हो उतना ही नीचे भी जाना पड़ता है। नीचाई और ऊंचाई दो चीजें नहीं हैं, एक ही चीज के दो आयाम हैं और वे सदा समानुपाती हैं, एक ही अनुपात में बढ़ते हैं।


मनुष्य के मन ने सदा चाहा कि वह चुनाव कर ले। उसने चाहा कि स्वर्ग को बचा ले और नर्क को छोड़ दे। उसे चाहा कि शांति को बचा ले, तनाव को छोड़ दे। उसने चाहा शुभ को बचा ले, अशुभ को छोड़ दे। उसने चाहा प्रकाश ही प्रकाश रहे, अंधकार न रह जाए। मनुष्य के मन ने अस्तित्व को दो हिस्सों में तोड़कर एक हिस्से का चुनाव किया और दूसरे का इनकार किया। इससे द्वंद्व पैदा हुआ, इससे द्वैत हुआ। कृष्ण दोनों को एक-साथ स्वीकार करने के प्रतीक हैं। और जो दोनों को एक-साथ स्वीकार करता है, वही पूर्ण हो सकता है। नहीं तो अपूर्ण ही रह जाएगा। जितने को चुनेगा, उतना हिस्सा रह जाएगा; और जिसको इनकार करेगा, सदा उससे बंधा रहेगा। उससे बाहर नहीं जा सकता है। जो व्यक्ति काम का दमन करेगा, उसका चित्त कामुक-से-कामुक होता चला जाएगा। इसलिए जो संस्कृति, जो धर्म काम का दमन सिखाता है, वह संस्कृति कामुमता पैदा करवाती है।


काश कृष्ण को माना जा सका होता, तो शायद दुनिया से कामुकता विदा हो गई होती। लेकिन कृष्ण को नहीं माना जा सका। बल्कि हमने न मालूम कितने-कितने रूपों में कृष्ण के उन हिस्सों का इनकार किया जो काम की स्वीकृति हैं। लेकिन अब यह संभव हो जाएगा, क्योंकि अब हमें दिखाई पड़ना शुरू हुआ है कि काम की ऊर्जा, वह जो "सेक्स एनर्जी है, वही ऊर्ध्वगमन करके ब्रह्मचर्य के उच्चतम शिखरों को छू पाती है। जीवन में किसी से भागना नहीं है और जीवन में किसी को छोड़ना नहीं है, जीवन को पूरा ही स्वीकार करके जीना है। उसको जो समग्रता से जीता है वह जीवन की पूर्णता को उपलब्ध होता है। इसलिए मैं कहता हूं कि भविष्य के संदर्भ में कृष्ण का बहुत मूल्य है और हमारा वर्तमान रोज उस भविष्य के करीब पहुंचता है जहां कृष्ण की प्रतिमा निखरती जाएगी और एक हंसता हुआ धर्म, एक नाचता हुआ धर्म जल्दी निर्मित होगा। तो उस धर्म की बुनियादों में कृष्ण का पत्थर जरूर रहने को है।


ओशो रजनीश




दूध और कामवासना—


 मनुष्‍य को छोड़कर पृथ्‍वी पर कोई पशु इतना कामवासना से भरा हुआ नहीं है। और उसका एक कारण दूध है। क्‍योंकि कोई पशु बचपन के कुछ समय के बाद दूध नहीं पीता, सिर्फ आदमी को छोड़ कर। पशु को जरूरत भी नहीं है। शरीर का काम पूरा हो जाता है। सभी पशु दूध पीते है अपनी मां का, लेकिन दूसरों की माताओं का दूध सिर्फ आदमी पीता है और वह भी आदमी की माताओं का नहीं जानवरों की माताओं का भी पीता है। दूध बड़ी अदभुत बात है, और आदमी की संस्‍कृति में दूध ने न मालूम क्‍या-क्‍या किया है, इसका हिसाब लगाना कठिन है। बच्‍चा एक उम्र तक दूध पिये,ये प्राकृतिक है। सच तो यह है, जब तक मां का स्‍तन से बच्‍चे को दूध मिल सके, बस तब तक ठीक है। उसके बाद दूध की आवश्‍यकता प्राकृतिक नहीं है। बच्‍चे का शरीर बन गया। अब सामान्‍य भोजन काफी है। अब भी अगर दूध दिया जाता है तो यह सार दूध कामवासना का निर्माण करता है।  

इसलिए वात्‍सायन ने काम सूत्र में कहा है कि हर संभोग के बाद पत्‍नी को अपने पति को दूध पिलाना चाहिए। ठीक कहा है।  दूध जिस बड़ी मात्रा में वीर्य बनाता है, और कोई चीज नहीं बनाती। क्‍योंकि दूध जिस बड़ी मात्रा में खून बनाता है और कोई चीज नहीं बनाती। खून बनता है, फिर खून से वीर्य बनता है। तो दूध से निर्मित जो भी है, वह कामोतेजक है। इसलिए महावीर ने कहा है,वह उपयोगी नहीं है। खतरनाक है, कम से कम ब्रह्मचर्य के साधक के लिए खतरनाक है। काम सुत्र में और महावीर की बात में कोई विरोध नहीं है। भोग के साधक के लिए सहयोगी है, तो योग के साधक के लिए अवरोध है। फिर पशुओं का दूध है वह, निश्‍चित ही पशुओं के लिए,उनके शरीर के लिए, उनकी वीर्य ऊर्जा के लिए जितना शक्‍ति शाली दूध चाहिए। उतना पशु मादाएं पैदा करती है।

       गाए दूध पैदा करती है तो आदमी के बच्‍चे के लिए पैदा नहीं करती, सांड के लिए पैदा करती है। ओर जब आदमी का बच्‍चा पिये उस दूध को और उसके भीतर सांड जैसी कामवासना पैदा हो जाए, तो इसमें कुछ आश्‍चर्य नहीं है। वह आदमी का आहार नहीं है।  आदमी में बहुत सी पशु प्रवृतियां है तो कहीं उनका कारण पशुओं का दूध तो नहीं है। अगर उसकी पशु प्रवृतियों को बहुत बल मिलता है तो उसका करण पशुओं का आहार तो नहीं है। आदमी का आहार शाकाहारी ही हो सकता है। क्‍योंकि शाकाहारी पशुओं के पेट में जितना बड़ा इंटेस्‍टाइन की जरूरत होती है, उतनी बड़ी इंटेस्टाइन आदमी के भीतर है। मांसाहारी जानवरों की इंटेस्‍टाइन छोटी और मोटी होती है। जैसे शेर, बहुत छोटी होती है। क्‍योंकि मांस पचा हुआ आहार है, अब बड़ी इंटेस्‍टाइन की जरूरत नहीं है। पचा-पचाया है, तैयार है। भोजन। उसने ले लिया, वह सीधा का सीधा शरीर में लीन हो जायेगा। बहुत छोटी पाचन यंत्र की जरूरत है। इसलिए बड़े मजे की बात है कि शेर चौबीस घंटे में एक बार भोजन करता है।


  जो भोजन  शाकाहारी होगा  वज्ञ कम कामोतेजक होगा।जो भोजन जितना मांसाहारी होगा उतना कामोतेजक होता जाएगा। दूध मांसाहार का हिस्‍सा है। दूध मांसाहारी है, क्‍योंकि मां के खून और मांस से निर्मित होता है। शुद्धतम मांसाहार है। लेकिन दूध तो हमारे लिए पवित्रतम है, पूर्ण आहार है। सब उससे मिल जाता है, लेकिन बच्‍चे के लिए, और वह भी उसकी अपनी मां का। दूसरे की मां का दूध खतरनाक है। और बाद की उम्र में तो फिर दूध-मलाई और घी और ये सब और उपद्रव है। दूध से निकले हुए। मतलब दूध को हम और भी कठिन करते चले जाते है, जब मलाई बना लेते है। फिर मक्खन बना लेते है। फिर घी बना लेते है। तो घी शुद्धतम कामवासना हो जाती है। और यह सब अप्राकृतिक है और इनको आदमी लिए चला जाता है। निश्‍चित ही, उसका आहार फिर उसके आचरण को प्रभावित करता है।

       

दाम्पत्य जीवन


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मुझे दाम्पत्य जीवन को स्थायी तथा सुखमय बनाने की टिप चाहिए।टिप पुरुष तथा स्त्री दोनों के लिए हो।

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दाम्पत्य जीवन को स्थायी और सुखमय बनाने के लिए निम्नलिखित टिप्स आपकी मदद कर सकते हैं:


संवाद और सम्मान: एक स्वस्थ दाम्पत्य रिश्ता संवाद और सम्मान पर आधारित होता है। अपने जीवन साथी की बातें ग़ौर से सुने।आपसी संबंधों में सम्मान का बर्ताव करें और एक दूसरे की बात सुनें। आपके साथी की भावनाओं को महत्व दें और उन्हें नजरअंदाज न करें।

संवेदनशीलता और समझदारी: संवेदनशीलता और समझदारी एक दूसरे के भावनाओं को समझने और समर्थन करने का माध्यम होते हैं। जब आपका साथी किसी बात के बारे में बात कर रहा हो, तो ध्यान दें और समझें कि उन्हें क्या चाहिए और कैसे आप मदद कर सकते हैं।

संयुक्त निर्णय लेना: महत्वपूर्ण निर्णयों पर संयुक्त रूप से निर्णय लेना आपके दोनों के बीच सहमति और समझ को बढ़ावा देता है। यह सुनिश्चित करेगा कि दोनों व्यक्ति राजनीतिक, आर्थिक और परिवारिक निर्णयों पर सहमति से काम कर रहे हैं।


संयमित और स्वस्थ व्यक्तिगत जीवन: अपने व्यक्तिगत जीवन को संयमित और स्वस्थ रखने में समय निकालें। ध्यान, योग या साझा शौक जैसी गतिविधियों में संग स्वतंत्र और आपसी समर्थन का आनंद लें।


संप्रेम व्यक्त करें: अपने प्यार और समर्थन को अपने साथी के सामर्थ्य और मान्यताओं का व्यक्तिगत रूप से अभिव्यक्त करें। आपके साथी को अपने आप को प्यार किया और महसूस करने के लिए आपकी आवश्यकताएं जानने में मदद मिलेगी।


संवेदनशीलता और समय निकालें: एक दूसरे के साथ खुश और खेलने के लिए समय निकालें। जीवन में हंसी, रमणीकता और मनोरंजन के लिए साझा क्रियाएं आपके बंधन को मजबूत और प्रिय बनाएंगी।


संचार में महत्वपूर्णता: संचार महत्वपूर्ण अंग है जो एक स्वस्थ रिश्ते के लिए आवश्यक होता है। संभाषण करें, अपने भावनाओं को साझा करें, और विश्राम करने के समय खुलकर सुनें।


ये टिप्स आपको दाम्पत्य जीवन को स्थायी और सुखमय बनाने में मदद कर सकते हैं। सुखी और समृद






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स्त्री पुरुष सम्बन्धों पर प्रकाश डालते।


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श्रीमान/महोदय,


स्त्री-पुरुष सम्बन्धों को निरंतर और सुखद बनाए रखना महत्वपूर्ण है। यहां कुछ प्रमुख मार्गदर्शक विचार हैं जो स्त्री-पुरुष सम्बन्धों को मधुर, संघर्षमुक्त और संतुलित बनाने में मदद कर सकते हैं:


सम्मान करें: सम्मान संबंधों का आधार होता है। आपको अपने साथी की वैल्यू और महत्व को समझना चाहिए और उन्हें सम्मान देना चाहिए। साथी के विचारों, भावनाओं और व्यक्तित्व की इज्जत करें।


संवाद कौशल विकसित करें: अच्छी संवाद क्षमता संबंधों को मजबूत और स्पष्ट बनाती है। सही ढंग से बातचीत करना, वाद-विवाद में सुधार करना और समस्याओं को समझने का प्रयास करना संबंधों को बेहतर बनाता है।


सहयोग और समर्थन का महत्व समझें: आपसी सहयोग और समर्थन एक स्वस्थ सम्बन्ध का माध्यम होता है। अपने साथी के सपनों, उद्देश्यों और कार्यों का समर्थन करें। उनके साथ खड़े होकर उन्हें प्रेरित करें और उनकी प्रगति को सुनिश्चित करने में मदद करें।


समय की महत्वपूर्णता समझें: अपने समय को साथी के साथ बिताने का प्रयास करें। आपसी गतिविधियों, शौकों और यात्राओं को मिलाने के लिए समय निकालें। समय की गुणवत्ता को समझें और अपने साथी के साथ गहराई से जुड़ने का प्रयास करें।


आपसी संबंधों के लिए साझा उद्देश्यों को स्थापित करें: साझा उद्देश्यों को स्थापित करना संबंधों को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण कदम है। स्वयं के और अपने साथी के लिए संगठित योजनाओं और मानचित्रण का अनुसरण करें।


विश्राम और मनोरंजन को महत्व दें: सम्बंधों को स्वस्थ और सुखद बनाए रखने के लिए विश्राम और मनोरंजन का समय निकालें। मिलने की तिथियों, छुट्टियों और आपसी मनोरंजन के लिए संगठित प्लानिंग करें।


ये टिप्स स्त्री-पुरुष सम्बन्धों को मधुर, संघर्षमुक्त और संतुलित बनाने में मदद कर सकते हैं। यदि आपके पास किसी विशेष संदेह या सवाल है, तो कृपया पूछें।






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स्त्री पुरुष सम्बन्धों में सुन्दरता का क्या महत्त्व है।


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स्त्री-पुरुष सम्बन्धों में सुन्दरता का महत्व बहुत होता है। यहां कुछ मुख्य कारण हैं जिनके कारण सुन्दरता महत्त्वपूर्ण होती है:


आकर्षण का आधार: सुन्दरता आकर्षण का महत्वपूर्ण आधार होती है। जब हम किसी को सुंदर या आकर्षक मानते हैं, तो हम उनकी ओर खींच कर लिए जाते हैं और सम्बन्ध शुरू होते हैं। सुंदरता संबंधों को प्रभावी बनाती है और प्रवेश की द्वार सृजित करती है।


स्वाभाविक आत्मविश्वास के विकास: सुन्दरता स्वाभाविक आत्मविश्वास के विकास में मदद करती है। जब हम अपने बाहरी रूप को सुंदर मानते हैं, तो हमें अपने आप पर विश्वास होता है और हम अपने संबंधों को स्वाभाविक रूप से सुखद बना सकते हैं।


आत्म-स्वीकृति और प्रेम: सुन्दरता स्वयं को स्वीकारने और प्रेम करने की क्षमता को बढ़ाती है। जब हम अपने स्वयं को सुंदर और मनोहारी मानते हैं, तो हम खुद के प्रति प्रेम और सम्मान का भाव रखते हैं। इससे हम अपने साथी को भी सुंदरता के साथ देखने और प्रेम करने की क्षमता विकसित करते हैं।


स्वयंसेवा और स्वच्छता: सुन्दरता के माध्यम से हम स्वयंसेवा और स्वच्छता का महत्व समझते हैं। हम अपने शरीर और देखभाल को महत्व देते हैं जो संबंधों को स्वस्थ और सुंदर बनाए रखता है। स्वच्छता और स्वयंसेवा के माध्यम से हम अपने साथी के लिए भी स्वास्थ्य और सुंदरता की देखभाल कर सकते हैं।


संगठितता और व्यवस्था: सुन्दरता के माध्यम से हम संगठितता और व्यवस्था की महत्त्वपूर्णता को समझते हैं। संबंधों को सुंदर और संघटित बनाए रखने के लिए व्यवस्था और संगठन की आवश्यकता होती है।


यहां यह जान लेना महत्त्वपूर्ण है कि सुन्दरता केवल बाहरी रूप से सीमित नहीं होती है, बल्कि आपके अंतर्निहित गुणों, समर्पण के प्रति और प्रेम व्यक्त करने के तरीकों के माध्यम से भी व्यक्त होती है। सुन्दरता आंतरिक और बाहरी दोनों प्रकार से होती है, और यह स्त्री-पुरुष सम्बन्धों के लिए महत्त्वप






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आर्थिक कारणों से दाम्पत्य जीवन पर असर


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आर्थिक कारणों का दाम्पत्य जीवन पर असर हो सकता है। यहां कुछ महत्वपूर्ण आर्थिक कारण हैं जो दाम्पत्य जीवन पर प्रभाव डाल सकते हैं:


आर्थिक स्थिति का दबाव: आर्थिक स्थिति का दबाव दाम्पत्य जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। आर्थिक समस्याएं और दबाव संबंधों में तनाव और तकरारों का कारण बन सकते हैं। वित्तीय संकट से गुजरने पर, आर्थिक असुरक्षा के कारण स्थितिगत सुरक्षा और आत्मविश्वास पर असर पड़ सकता है।


संतुलन की कमी: आर्थिक समस्याएं दाम्पत्य जीवन में संतुलन की कमी ला सकती है। आर्थिक तनाव के कारण, आपको साथी के साथ उचित समय नहीं बिताने की आवश्यकता हो सकती है या आपको संयुक्त निर्णय लेने में कठिनाई हो सकती है। इससे दाम्पत्य संबंधों पर दबाव बढ़ सकता है और अंततः इन संबंधों को प्रभावित कर सकता है।


व्यय और आर्थिक योजना: आर्थिक मुद्दों के कारण, व्यय और आर्थिक योजना पर प्रभाव पड़ सकता है। वित्तीय समस्याओं के कारण, आपको व्यक्तिगत और परिवारिक योजनाओं को बदलने की आवश्यकता हो सकती है और इससे संबंधों में तकरार या समस्या उत्पन्न हो सकती है।


व्यापारिक अथवा पेशेवर दबाव: कई बार व्यापारिक या पेशेवर दबाव दाम्पत्य जीवन पर असर डाल सकता है। अधिक काम का दबाव, अनियमित कार्यकाल, यात्राएं और नौकरी के तनाव संबंधों को प्रभावित कर सकते हैं। इससे संबंधों में समय की कमी और संवाद की कमी हो सकती है, जो दाम्पत्य जीवन को प्रभावित करती है।


वित्तीय सहयोग की आवश्यकता: आर्थिक समस्याएं वित्तीय सहयोग की आवश्यकता उत्पन्न कर सकती हैं। आर्थिक तनाव के कारण, वित्तीय संगठन में सहयोग और समन्वय की जरूरत पड़ सकती है जो संबंधों को प्रभावित कर सकती है।


आपको ध्यान देने की आवश्यकता है कि आर्थिक कारणों के बावजूद, एक संगठित और समर्थ दाम्पत्य जीवन के लिए संघर्ष करना महत्वपूर्ण है। संवेदनशी






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शिक्षा में असमानता का असर 


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शिक्षा में असमानता का असर व्यापक होता है और इसके कई पहलू हो सकते हैं। यहां कुछ महत्वपूर्ण प्रभाव हैं जो शिक्षा में असमानता का कारण बना सकते हैं:


पहुंच की असमानता: शिक्षा में पहुंच की असमानता एक मुख्य मुद्दा है जो असमानता को बढ़ावा देती है। कई लोगों के लिए उच्च गुणवत्ता और पहुंचने के अवसरों की कमी होती है, जबकि दूसरों को सुविधाजनक और गुणवत्ता वाले शिक्षा के अवसर मिलते हैं। इससे विभाजन और समाजिक असमानता का बढ़ना संभव होता है।


विभेदशीलता: शिक्षा में विभेदशीलता एक महत्वपूर्ण असमानता का कारण है। यह विभेदशीलता जाति, धर्म, लिंग, जाति, आर्थिक स्थिति, और क्षेत्रीय असमानताओं के कारण हो सकती है। इससे निराशा, अप्रत्याशितता और अनियमितता के कारण असमानता पैदा होती है और विद्यार्थियों को उच्चतर शिक्षा और संघटनाओं से वंचित कर सकती है।


शिक्षामित्रों की गुणवत्ता: गुणवत्ताहीन शिक्षामित्रों की कमी एक और कारण हो सकती है जो असमानता बढ़ा सकती है। शिक्षामित्रों की गुणवत्ता और प्रशिक्षण की कमी के कारण, शिक्षा सेवाओं की गुणवत्ता भी प्रभावित हो सकती है और इससे विद्यार्थियों के बीच असमानता पैदा हो सकती है।


पाठ्यक्रम और माध्यम की असमानता: शिक्षा पाठ्यक्रम और माध्यम की असमानता भी असमानता का कारण बन सकती है। कुछ क्षेत्रों में, पाठ्यक्रम और माध्यम में असमानता होती है जो छात्रों को विभाजन करती है और उन्हें उच्च गुणवत्ता और अवसरों से महज़बूर करती है।


अर्थव्यवस्था की प्रभाव: आर्थिक असमानता शिक्षा में असमानता का महत्वपूर्ण कारक हो सकती है। आर्थिक स्थिति के कारण, गरीब परिवारों के बच्चों के पास अवसरों और संसाधनों की कमी हो सकती है, जबकि समृद्ध परिवारों के बच्चों के पास अधिक संसाधन और अवसर हो सकते हैं।


असमानता शिक्षा में गुणवत्ता, पहुंच, अवसर और समानता को प्रभावित कर सकती है। स






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पत्नी की आर्थिक स्थिति मजबूत होने से असर


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पत्नी की आर्थिक स्थिति मजबूत होने से दाम्पत्य जीवन पर कई प्रकार के सकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं। यहां कुछ महत्वपूर्ण प्रभाव हैं:


साझा आर्थिक सुरक्षा: पत्नी की मजबूत आर्थिक स्थिति से, दाम्पत्य जीवन में साझा आर्थिक सुरक्षा बढ़ती है। यह विश्वास और सुरक्षा का भाव प्रभावित करता है, जिससे दोनों पति और पत्नी को आर्थिक तनाव से मुक्त होने का अनुभव होता है।


स्वतंत्रता और स्वाधीनता: पत्नी की मजबूत आर्थिक स्थिति से, दाम्पत्य जीवन में स्वतंत्रता और स्वाधीनता की भावना विकसित होती है। पत्नी के पास वित्तीय स्वतंत्रता होने से, उन्हें अपने स्वप्नों को पूरा करने के लिए आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता होती है।


सहयोग की वृद्धि: पत्नी की मजबूत आर्थिक स्थिति से, साझा आर्थिक संघर्ष कम होता है और सहयोग की वृद्धि होती है। पत्नी की सक्षमता से उन्हें अपने पति के सपनों और उद्देश्यों को समर्थन करने का मार्ग मिलता है। यह सहयोग दाम्पत्य संबंधों को मजबूत और संतुलित बनाता है।


व्यक्तिगत विकास: पत्नी की आर्थिक स्थिति के सुधार से, उनके व्यक्तिगत विकास के अवसर बढ़ते हैं। वह शिक्षा, प्रशिक्षण और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए अधिक संसाधनों का उपयोग कर सकती हैं, जिससे उनका स्वयंविकास होता है और उन्हें संघर्षमुक्त और सकारात्मक जीवन का आनंद मिलता है।


परिवार की देखभाल: पत्नी की मजबूत आर्थिक स्थिति से, परिवार की देखभाल में सुधार होता है। उन्हें बच्चों की उचित पालन-पोषण, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने की क्षमता होती है, जिससे परिवार के सदस्यों का आर्थिक और नैतिक विकास होता है।


इन प्रभावों के अलावा, पत्नी की मजबूत आर्थिक स्थिति से विश्वास, सम्मान, और सहयोग के भाव दाम्पत्य जीवन को संघटित और सुखी बनाने में मदद करते हैं।






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बच्चे ने होने का असर


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बच्चे के होने का असर दाम्पत्य जीवन पर व्यापक होता है और इसके कई पहलू हो सकते हैं। नीचे कुछ महत्वपूर्ण प्रभाव हैं:


आनंद और संतोष: बच्चे के होने से दाम्पत्य जीवन में आनंद और संतोष का अनुभव होता है। बच्चे एक नया सदस्य जोड़ते हैं और परिवार को खुशियों के लिए नए समयों का आनंद देते हैं।


संपन्नता का अनुभव: बच्चे के होने से, परिवार में संपन्नता की भावना बढ़ती है। बच्चे परिवार की विकासशीलता और संपन्नता के प्रतीक होते हैं और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।


सहयोग और समन्वय: बच्चे के होने से, दाम्पत्य संबंधों में सहयोग और समन्वय की आवश्यकता बढ़ती है। दोनों पति और पत्नी को एकजुट होने की जरूरत होती है, उनके बीच अनुशासन और समय का प्रबंधन करने की आवश्यकता होती है।


जिम्मेदारी की भूमिका: बच्चे के होने से, दाम्पत्य जीवन में जिम्मेदारी की भूमिका मजबूत होती है। माता-पिता बच्चे की देखभाल, परवरिश और उनके विकास के लिए संगठित होने की जरूरत होती है।


समय और संगठन: बच्चे के होने से, समय और संगठन का महत्त्व बढ़ता है। बच्चे की देखभाल और परवरिश के लिए समय का उपयोग करना और संगठित रहना आवश्यक होता है।


संप्रेम और संवाद: बच्चे के होने से, दाम्पत्य संबंधों में संप्रेम और संवाद का महत्त्व बढ़ता है। माता-पिता के बीच संवाद और संबंध देखभाल के दौरान महत्वपूर्ण होते हैं और इससे उनका साथीत्व मजबूत होता है।


प्राथमिकताओं का परिवर्तन: बच्चे के होने से, प्राथमिकताओं में परिवर्तन होता है। बच्चे की देखभाल और परवरिश के लिए समय और संसाधनों की विनती होती है, जो दाम्पत्य जीवन के अन्य पहलुओं पर असर डालती हैं।


यह जान लेना महत्वपूर्ण है कि बच्चे के होने से जीवन में नई जिम्मेदारियों का आनंद और आर्थिक चुनौतियों का सामना हो सकता है। इसलिए, संघर्ष के साथ और एकजु






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सन्तान न होने की स्मेंथिति  पति पत्नी को क्या करना चाहिए। परिवार को कैसे समझाए।


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जब पति और पत्नी को संतान नहीं होती है, तो यह दुखद और चुनौतीपूर्ण हो सकता है। इस स्थिति में, यहां कुछ सुझाव हैं जिनका पालन करके पति-पत्नी और परिवार को समझाया जा सकता है:


संवेदनशीलता और समर्थन: इस मामले में, संवेदनशीलता और समर्थन पति और पत्नी के बीच अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। दोनों को एक-दूसरे की भावनाओं को समझने और समर्थन करने की जरूरत होती है। इसके साथ ही, दुख का सामना करने के लिए एक दूसरे का समर्थन और प्रेरणा प्रदान करना आवश्यक होता है।


खुली बातचीत: पति और पत्नी को एक दूसरे के साथ खुले और संवेदनशील ढंग से बातचीत करना चाहिए। दुख, चिंता और आक्रोश को साझा करने के साथ ही, उन्हें अपने संघर्ष को समझने और सहयोग करने के लिए आपसी समझदारी और सहयोग करने की जरूरत होती है।


चिकित्सा सलाह: परिवार को एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करने और उचित मेडिकल सलाह लेने की सलाह दी जा सकती है। चिकित्सा सलाह लेने से, संतान प्राप्ति के विभिन्न उपायों और चिकित्सा प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी मिल सकती है।


समूह समर्थन: दुखी स्थिति में, समूह समर्थन का लाभ लिया जा सकता है। यह परिवार या मित्र-जनों के साथ अच्छे संबंध और समर्थन के माध्यम से संतान न होने के दुख को साझा करने का एक माध्यम प्रदान करता है।


स्वास्थ्य और केयर: पति और पत्नी को अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए। स्वस्थ और स्वस्थ शरीर प्राप्त करने के लिए आवश्यक खाद्यान्न खाने, व्यायाम करने और स्वस्थ जीवनशैली को अपनाने की सलाह दी जा सकती है।


आध्यात्मिक समर्थन: कुछ लोगों के लिए, आध्यात्मिक समर्थन एक महत्वपूर्ण तत्व हो सकता है। योग, मेडिटेशन, प्रार्थना या धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने से मानसिक शांति, शक्ति और संतोष की प्राप्ति हो सकती है।


इन सुझावों के साथ, यह महत्वपूर्ण है कि पति और पत्नी एक दूसरे के साथ संघर्ष करने के लिए साझा संकल्प और प्रतिबद्धता






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क्या सन्तान न होने की स्थिति में सिर्फ पत्नी को दोष दिया जाना चाहिए।


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नहीं, सन्तान न होने की स्थिति में सिर्फ पत्नी को ही दोष दिया जाना गलत है। यह एक संयुक्त प्रक्रिया होती है और दोनों पति और पत्नी के बीच अन्यायपूर्ण और अयोग्य होता है। बाल धर्म, जननांग, और बार्याचरण योग्यता द्वारा उनके बीच संतान न होने की स्थिति का कारण देना गलत है।


यह मानव शरीर की नामी संरचना के विषय में आधारित बायोलॉजिकल प्रक्रिया होती है, जिसमें दोनों पति और पत्नी के शारीरिक प्रतिसाद का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसलिए, यह गलत है कि किसी एक व्यक्ति को ही संतान न होने की स्थिति के लिए दोषी ठहराया जाए।


सन्तान न होने की स्थिति में दोनों पति और पत्नी को साथ मिलकर चिकित्सा जांच और उपचार के विकल्पों को विचार करना चाहिए। इसमें आपसी समझदारी, प्रेम और सहयोग बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। विज्ञान और चिकित्सा के विकास के साथ, आजकल कई उपाय उपलब्ध हैं जो इस समस्या के समाधान में मदद कर सकते हैं।


अतः, दोषपूर्ण सोचना और किसी एक व्यक्ति को दोषी ठहराना न करें। इससे बजाय, दोनों पति और पत्नी को एकजुट होने के लिए प्रोत्साहित करें, चिकित्सा सलाह लें, उपयुक्त उपचार का अनुसरण करें और आपसी प्रेम और सहयोग को मजबूत करें।






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क्या पति के असमर्थ होने पर विज्ञान की सहायता से सन्तान प्राप्त की जा सकती है।


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हां, विज्ञान और चिकित्सा की सहायता से पति के असमर्थ होने के मामले में सन्तान प्राप्त की जा सकती है। आजकल विभिन्न प्रगतिशील चिकित्सा तकनीकों और उपचारों का उपयोग किया जा रहा है जो इस प्रकार की समस्याओं को हल करने में मदद कर सकते हैं।


कुछ प्रमुख तकनीकों और उपायों का वर्णन निम्नानुसार है:


जीवनशैली परिवर्तन: अस्वास्थ्यकर जीवनशैली और अनुपयुक्त आहार पति की शुक्राणुओं को प्रभावित कर सकती है। इसलिए, डॉक्टर द्वारा सलाहित परिवर्तनों को अपनाने की सलाह दी जा सकती है, जैसे कि स्वस्थ आहार, नियमित व्यायाम, धूम्रपान और शराब की परहेज़, तनाव कम करना, और नींद की पूर्ति करना।


दांवनिष्ठ निपटान: पति के असामर्थ्य के कारण, आर्टिफिशियल इंसीमिनेशन या एआईयूआई (Assisted Reproductive Technology) की तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है। इसमें इनविट्रो फर्टिलिजेशन (IVF), इंजेक्शन ऑफ स्पर्म (ICSI), और गर्भाधान के लिए दानवीरोधी चिकित्सा (Donor Sperm) शामिल हो सकती हैं।


उपचार दवाओं का उपयोग: डॉक्टर द्वारा परामर्श देकर औषधीय उपचार भी संभव है। यह शुक्राणु उत्पादन और संतान धारण की संभावना को बढ़ा सकती है। आपके डॉक्टर आपके विशेष मामले को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त दवाओं को प्रीस्क्राइब करेंगे।


सर्जिकल इंटरवेंशन: कुछ मामलों में, सर्जिकल इंटरवेंशन का उपयोग किया जा सकता है जैसे कि शुक्राणु निर्माण के लिए वास्कटोमी रिवर्सल और शुक्राणु संग्रह (Sperm Retrieval) की प्रक्रियाएं।


यदि किसी पति को संतान प्राप्ति में समस्या है, तो उन्हें डॉक्टर की सलाह लेना चाहिए और विज्ञान और चिकित्सा के उपायों का उपयोग करना चाहिए। यह तकनीकें उन्हें सहायता प्रदान कर सकती हैं और सन्तान प्राप्ति की संभावना को बढ़ा सकती हैं। हर मामले में सभी विकल्पों के बारे में डॉक्टर की सलाह और विचार लेना जरूरी है।






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इस विधि से प्राप्त सन्तान में पति का अंश रहेगा।


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जी हाँ, विज्ञान और चिकित्सा के उपाय जैसे IVF और ICSI का उपयोग करके प्राप्त सन्तान में पति का अंश रह सकता है।


IVF (In Vitro Fertilization) एक प्रक्रिया है जिसमें गर्भाशय के बाहर, पेट्री डिश में एग्ज़ेर्टिलाइज़्ड डिश (fertilized dish) में एक सेल को पालक प्रदान करने के लिए महिला के अंडों को प्राप्त किया जाता है। इसके बाद एग्ज़ेर्टिलाइज़्ड डिश में उत्पन्न अच्छे गुणवत्ता वाले एम्ब्रियों को गर्भाशय में स्थापित किया जाता है। इस प्रक्रिया में पति के शुक्राणुओं का उपयोग होता है, जिससे पति का जीनेटिक अंश संतान में दिया जा सकता है।


ICSI (Intracytoplasmic Sperm Injection) भी एक IVF की विधि है, जिसमें एक एकल शुक्राणु को चयनित करके महिला के अंडों के साथ उत्पादित एम्ब्रियो में सीधे संयोजन किया जाता है। इसमें शुक्राणु को विशेष टेक्निक के द्वारा एकक शुक्राणु बदलकर प्रविष्ट किया जाता है। इसके बाद अच्छी गुणवत्ता वाले एम्ब्रियों को गर्भाशय में स्थापित किया जाता है।


दोनों IVF और ICSI में पति के शुक्राणुओं का उपयोग होता है, जिससे पति का जीनेटिक अंश संतान में दिया जा सकता है। यह उपाय विज्ञान और चिकित्सा के बढ़ते दायरे का एक उदाहरण है जो संतान प्राप्ति के लिए पति के असमर्थता को नष्ट करने में मदद कर सकता है।


हालांकि, यह पति और पत्नी के बीच में साझा निर्णय होना चाहिए और उन्हें अपने डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए जो उनके विशेष मामले को ध्यान में रखते हुए सबसे उपयुक्त उपाय की सिफारिश करेंगे।






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ऐसी स्थिति में सन्तानोत्पति के बारे में न सोच कर बच्चा गोद लेना ठीक रहेगा।गोद की सन्तान जीवन में सुख देगी।


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जी हाँ, गोद लेना और गोद लिए बच्चे के साथ समय बिताना बहुत महत्वपूर्ण होता है और इससे संतानोत्पति के बारे में सोचने के बजाय आपको आपके वर्तमान क्षण का आनंद लेने में मदद मिलेगी। गोद लेने से बच्चा और आपके बीच एक गहरा आपसी रिश्ता बनता है और इसके द्वारा आप उन्हें स्नेह, सुरक्षा और प्रेम का अनुभव कराते हैं। यह बच्चे के संपूर्ण विकास और आपसी बंध को स्थायी बनाने में मदद कर सकता है।


गोद लेना आपके और बच्चे के बीच में प्यार, संबंध और विश्राम के एक विशेष संवाद का माध्यम भी होता है। यह उन्हें आपकी मातृभावना और स्थायित्व का अनुभव करने का अवसर देता है। गोद में बच्चे को सुकून और आत्मविश्वास का एक अनुभव होता है जो उनके मानसिक और भावनात्मक विकास को प्रभावित करता है।


यदि आप वंचित हैं सन्तान प्राप्ति की स्थिति में, तो गोद लेना आपको और आपके पति को संतोष देने का एक माध्यम भी हो सकता है। यह आपके बीच में समझौते को स्थायी बनाने और आपकी आपूर्ति को पूरा करने के लिए एक साझा अनुबंध के रूप में कार्य कर सकता है।


इसलिए, गोद लेना और बच्चे के साथ समय बिताना आपके और आपके परिवार के लिए सुखद और पूर्णता भरा अनुभव हो सकता है। यदि आपको संतान प्राप्ति में समस्या है, तो अपने डॉक्टर से सलाह लेना और उनके द्वारा सुझाए गए उपायों का पालन करना जरूरी है। इस बीच, गोद लेने का अनुभव आपको मानसिक संतुलन और सुख प्रदान कर सकता है।






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क्या गोद ली गई सन्तान से अपनी सन्तान जैसा जुड़ाव महसूस हो सकता है।


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गोद ली गई सन्तान के साथ जुड़ाव महसूस होना स्वाभाविक है और यह एक मानसिक और भावनात्मक अनुभव हो सकता है। गोद लेने के द्वारा आप अपने और बच्चे के बीच एक गहरा संबंध बनाते हैं, जो उन्हें आपकी मातृभावना और प्रेम का अनुभव कराता है। यह उनके मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक विकास को प्रभावित कर सकता है।


गोद लेना एक स्नेहपूर्ण और सुरक्षापूर्ण अनुभव होता है जो आपके बच्चे को आत्मविश्वास देता है। इसमें वे आपके संरक्षण और प्रेम का अनुभव करते हैं, जिससे उनका भरोसा बढ़ता है और वे सुरक्षित महसूस करते हैं। इसके साथ ही, गोद में बच्चे को आपकी संपूर्ण ध्यान, प्रेम और स्पर्श मिलता है जो उनके विकास में महत्वपूर्ण होता है।


यह महसूस किया जा सकता है कि गोद लेने से बच्चा आपके प्रति अधिक संपन्नता और अभिभावकता की भावना रखता है। इसे प्रतीत हो सकता है कि वे आपके और उनके बीच एक गहरा संबंध महसूस करते हैं और उन्हें आपकी मातृभावना की आवश्यकता होती है।


हालांकि, हर बच्चे और परिवार की यात्रा अद्वितीय होती है और हर किसी के लिए यह अनुभव अलग होता है। इसलिए, गोद लेने से जुड़े महसूस कोई नियमित नियम नहीं है और यह व्यक्ति के आधार पर भिन्न हो सकता है। अपने बच्चे के साथ गोद लेने का आनंद लें, उन्हें आपके प्रेम और समर्पण का अनुभव कराएं और उनके संपूर्ण विकास के लिए उन्हें उचित आपूर्ति प्रदान करें।






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सन्तान का विषय छोड़कर कुछ ओर विषय पर ध्यान केंद्रित करें। दाम्पत्य जीवन में स्थायित्व के लिए सैक्स की अनिवार्यता पर प्रकाश डालते हुए इसको अन्नदाता बनाने के तरीके पर प्रकाश डालते।


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दाम्पत्य जीवन में स्थायित्व के लिए सेक्स की अनिवार्यता एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और इसे "अन्नदाता" बनाने के तरीके पर प्रकाश डालने के लिए यहां कुछ महत्वपूर्ण अंक प्रस्तुत किए जाते हैं:


संप्रेम संबंध बनाएं: सेक्स द्वारा संबंध बनाने के लिए संप्रेम एक महत्वपूर्ण तत्व है। एक दूसरे के साथ प्रेम और सम्बन्ध के मध्य आत्मिक संबंध को बनाए रखने का प्रयास करें। संप्रेम आपके दोनों के बीच आपसी अभिव्यक्ति, संयम और सहयोग का माध्यम हो सकता है।


संवाद का महत्व: स्थायित्व के लिए संवाद बहुत महत्वपूर्ण है। अपनी आवश्यकताओं, प्राथमिकताओं और आशाओं को संयुक्त रूप से बातचीत करें। संवाद आपके बीच संबंध को सुदृढ़ बनाने, समस्याओं को समाधान करने और एक-दूसरे का समर्थन करने का माध्यम हो सकता है।


रूचियों को समझें: दोनों पति और पत्नी की रूचियों को समझें और समर्थन करें। एक दूसरे की आकांक्षाओं और मनोरंजन को समझने के लिए समय निकालें। इससे आप उन्हें महसूस कराएंगे कि आप उनकी प्रतिष्ठा करते हैं और उनके हितों को महत्व देते हैं।


सेक्स शिक्षा: सेक्स शिक्षा के माध्यम से आप दोनों के बीच ज्ञान को बढ़ा सकते हैं और संबंध को सुदृढ़ करने में मदद कर सकते हैं। सेक्स शिक्षा द्वारा आप एक-दूसरे की आवश्यकताओं और पसंदों को समझ सकते हैं और उपयुक्त तकनीकों और आनंद भरे संबंधों का अनुभव कर सकते हैं।


सामरिकता और सहयोग: सेक्स के बाहर, दाम्पत्य जीवन में सामरिकता और सहयो






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दाम्पत्य जीवन में काम के महत्व पर प्रकाश डालते।


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दाम्पत्य जीवन में काम का महत्व एक महत्वपूर्ण विषय है। यहां कुछ पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है जो दाम्पत्य जीवन में काम के महत्व को समझाते हैं:


आर्थिक स्वावलंबन: काम द्वारा आप और आपके पति द्वारा कमाए गए आय का संचय किया जा सकता है और आपको आर्थिक स्वावलंबन प्राप्त होता है। यह आपके द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति, वित्तीय सुरक्षा, और अवसरों के लिए आपकी आत्मनिर्भरता को बढ़ाता है।


स्वास्थ्य और समानता: काम द्वारा आप और आपके पति द्वारा अपने कौशल, क्षमता और उत्पादकता का विकास होता है। यह आपको स्वास्थ्यपूर्ण और सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास करने में मदद करता है। साथ ही, काम करने से आपके बीच समानता बनी रहती है और आपके संबंध में सामान्य जिम्मेदारियां होती हैं।


समय का संयम: काम द्वारा आपको समय का उपयोग विशेष तरीके से संयमित करना सिखाया जाता है। काम के दौरान आपको कार्य नियोजना, समय प्रबंधन और प्राथमिकताओं का महत्व समझने का अवसर मिलता है। इससे आपके दाम्पत्य जीवन में स्थायित्व और संतुष्टि का सामर्थ्य बढ़ता है।


सहयोग और आपसी संवाद: काम द्वारा आपको और आपके पति को साझा मानसिकता और सहयोग के अनुभव का मौका मिलता है। यह आपके बीच एक विशेष जीवन घटक बनता है जो आपके संबंधों को मजबूत और स्थिर बनाए रखता है। साथ ही, काम करने से आपके बीच समझौता, संवाद और टीमवर्क योग्यता बढ़ती है।


आदर्शों का पालन: काम द्वारा आप और आपके पति को आपके आदर्शों, मूल्यों और संबंध के सिद्धांतों का पालन करने का अवसर मिलता है। यह आपको एक साझी संगठनिक मानसिकता विकसित करने में मदद करता है और आपके दाम्पत्य जीवन में स्थायित्व और आत्मविश्वास को बढ़ाता है।


यदि आप और आपके पति द्वारा काम के महत्व को समझा जाता है और इसे उचित तरीके से प्राथमिकता दिया जाता है, तो दाम्पत्य जीवन में स्थायित्व और संतुष्टि को






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सेक्स का दाम्पत्य जीवन में क्या प्रभाव पड़ता है।


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सेक्स दाम्पत्य जीवन में एक महत्वपूर्ण और प्राकृतिक घटक है जो विभिन्न प्रभाव डाल सकता है। यहां कुछ महत्वपूर्ण प्रभाव प्रस्तुत किए जाते हैं:


भावनात्मक संबंध: सेक्स द्वारा दाम्पत्य जीवन में भावनात्मक संबंधों को बढ़ावा मिलता है। यह आपके बीच एक गहरा आपसी जुड़ाव बनाता है, जिससे आपका प्यार, संतुष्टि और सम्बंध स्थायी और सुरक्षित होता है। भावनात्मक संबंधों का अनुभव आपके दाम्पत्य जीवन में समृद्धि और आनंद को लाता है।


दाम्पत्य संबंध की मजबूती: सेक्स द्वारा दाम्पत्य संबंधों की मजबूती में सुधार होता है। यह आपके बीच विश्वास, संवाद और सहयोग को बढ़ाता है। संभोग के द्वारा आप अपने पति या पत्नी के साथ एक साझा और आनंदमयी अनुभव का अनुभव करते हैं, जो आपके संबंध को मजबूत और संतुष्ट रखता है।


मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य: सेक्स दाम्पत्य जीवन में मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है। यह आपको ताजगी, सुख, और आत्मविश्वास प्रदान करता है। सेक्स के दौरान खुशी और सुख के हार्मोन उत्पन्न होते हैं जो आपके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। यह शारीरिक रूप से भी स्वस्थ रहने में मदद करता है और ताजगी और ऊर्जा प्रदान करता है।


बांधिक संबंध: सेक्स द्वारा आपका बांधिक संबंध मजबूत होता है। इसके द्वारा आप एक-दूसरे के साथ नये और गहरे संबंधों का अनुभव करते हैं, जो आपके बीच मजबूती, सम्मान और आत्मविश्वास का संकेत होता है।


आपसी संवाद: सेक्स द्वारा आपसी संवाद को बढ़ावा मिलता है। यह आपके बीच एक खुली बातचीत और संयुक्त विचारधारा का संकेत होता है। संभोग के दौरान, आपको आपसी जरूरतों, प्राथमिकताओं, और आकांक्षाओं को समझने का अवसर मिलता है और आप एक-दूसरे की संतुष्टि के लिए सहयोग कर सकते हैं।


सेक्स दाम्पत्य जीवन में एक महत्वपूर्ण पहलु है,






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सेक्स लाइफ को बेहतर बनाने के उपाय बताए 


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सेक्स लाइफ को बेहतर बनाने के लिए यहां कुछ उपाय दिए जाते हैं:


संवाद: एक-दूसरे के साथ संवाद करें और खुले रहें। आपकी पार्टनर के साथ आपसी मनोभावनाओं, पसंदों, और आकांक्षाओं के बारे में बातचीत करें। यह आपके संबंध को मजबूत और स्थिर बनाएगा।


समय निकालें: सेक्स के लिए समय निकालें और इसे अपनी प्राथमिकता बनाएं। दिनचर्या में विशेष समय निकालकर आप और आपका पार्टनर एक-दूसरे के साथ संबंधों का आनंद ले सकते हैं।


सेक्स शिक्षा: सेक्स शिक्षा प्राप्त करें और ज्ञान को बढ़ाएं। यह आपको अपने और अपने पार्टनर के साथ बेहतर संबंध बनाने के लिए सहायता करेगा।


नया करें: नयापन और आवेश बढ़ाने के लिए नए तरीकों का प्रयोग करें। विभिन्न सेक्स पोजीशन्स, फॉरेप्ले और अफ्टर्प्ले, रोलप्लेय आदि के बारे में जानें और नयी चीजों का अनुभव करें।


स्वास्थ्य रखें: अपने शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें। एक स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं, सही आहार लें, नियमित व्यायाम करें और तंबाकू और अत्यधिक शराब का सेवन न करें। यह सेक्स लाइफ को बेहतर बनाने में मदद करेगा।


प्रेम और देखभाल करें: अपने पार्टनर के साथ प्रेम और देखभाल करें। संभोग के लिए सार्वभौमिक मनोभाव और संप्रेम दिखाएं। एक-दूसरे के आदर्शों, इच्छाओं और गहरी ख्वाहिशों का सम्मान करें।


मनोरंजन का साझा करें: रोमांटिक और मनोहारी मनोरंजन का साझा करें। फिल्म देखें, यात्रा पर जाएं, क्रियाशील खेलें, या साथ में रोमांटिक गतिविधियों का आनंद लें। यह आपके संबंध को फ्रेश और रोमांटिक बनाए रखेगा।


स्नेहपूर्ण छूना: सेक्स के दौरान स्नेहपूर्ण और प्यारभरी छूना दें। यह आपके पार्टनर को महसूस कराएगा कि वे आपके लिए महत्वपूर्ण हैं और उन्हें संतुष्टि प्रदान करेगा।


सेक्स लाइफ को बेहतर बनाने के लिए आप और आपके पार्टनर के बीच खुले मन और आपसी समझ की आव






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सेक्स सामर्थ्य बढ़ाने के लिए भोजन, आयुर्वेद जड़ी-बूटी या एलोपैथिक हानिरहित औषधि बताए।


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सेक्स सामर्थ्य को बढ़ाने के लिए कुछ प्राकृतिक तरीके और सामग्री निम्नानुसार हैं, लेकिन इससे पहले यह महत्वपूर्ण है कि आप किसी भी नई आहार या औषधि का सेवन करने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें और अपनी स्थिति की जांच करें।


भोजन: सेक्स सामर्थ्य को बढ़ाने के लिए आपके आहार में निम्नलिखित तत्व शामिल कर सकते हैं:


प्रोटीन: मसूर दाल, मांस, अंडे, पनीर, सोयाबीन, दही, अंजीर, खजूर और बादाम में प्रोटीन मौजूद होता है, जो सेक्स सामर्थ्य को बढ़ाने में मदद कर सकता है।

विटामिन D: मैखी मछली, दूध, दही, कच्चे अंडे, खुदीरा और धूप में विटामिन D पाया जाता है, जो सेक्स सामर्थ्य को बढ़ाने में मदद कर सकता है।

शिलाजीत: शिलाजीत में प्राकृतिक औषधीय गुण होते हैं, जो सेक्स सामर्थ्य को बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं।

आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी: कुछ आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी या औषधि सेक्स सामर्थ्य को बढ़ाने में मदद कर सकती हैं। यहां कुछ उपाय शामिल हैं:


अश्वगंधा: यह पुरुषों के यौन शक्ति को बढ़ाने में मदद कर सकती है।

सफेद मूसली: इसे शक्तिवर्धक गुणों के लिए जाना जाता है और सेक्स सामर्थ्य को बढ़ाने में मदद कर सकती है।

कौंच बीज: इसे पुरुषों की बांझपन को दूर करन





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आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी


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आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी विज्ञान में प्रयोग होने वाली कई पौधों और जड़ी-बूटियों में सेक्स सामर्थ्य को बढ़ाने के लिए उपयोगी आयुर्वेदिक उपाय शामिल हो सकते हैं। यहां कुछ प्रमुख आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी दी जाती हैं:


अश्वगंधा (Ashwagandha): अश्वगंधा पुरुषों के लिए एक प्रमुख आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है जिसे "भरपूरी" भी कहा जाता है। यह स्तंभन शक्ति को बढ़ाने, यौन इच्छा को उत्तेजित करने, और यौन समस्याओं को दूर करने में मदद कर सकती है। इसका सेवन शक्तिवर्धक और वृष्य के रूप में जाना जाता है।


शतावरी (Shatavari): शतावरी महिलाओं के लिए एक प्रमुख आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है जिसे "स्त्री जीवनी" भी कहा जाता है। यह महिलाओं के प्रजनन सिस्टम को संतुलित करने, यौन समस्याओं को दूर करने, और शक्तिवर्धक के रूप में जाना जाता है।


कौंच बीज (Kaunch Beej): कौंच बीज पुरुषों के यौन स्वास्थ्य को बढ़ाने के लिए उपयोगी होता है। इसमें मौजूद लेवोडोपा और वनिलाइक एसिड के कारण यह शक्तिवर्धक और यौन उत्तेजनाओं को उत्तेजित कर सकता है।


गोखरू (Gokhru): गोखरू पुरुषों के यौन स्वास्थ्य को सुधारने और सेक्स सामर्थ्य को बढ़ाने के लिए प्रयोग होता है। यह ताकतवर्धक और वृष्य गुणों के साथ यौन उत्तेजनाओं को बढ़ाने में मदद कर सकता है।


अकरकरा (Akarkara): अकरकरा में मौजूद एक्टीव इंग्रीडिएंट्स यौन संबंधित समस्याओं को दूर करने में मदद कर सकते हैं। इसे सेक्स स्टिमुलेंट के रूप में भी जाना जाता है और यौन सामर्थ्य को बढ़ा सकता है।


यदि आप किसी भी आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी या औषधि का सेवन करना चाहते हैं, तो सही मात्रा और उपयोग के लिए एक आयुर्वेदिक विशेषज्ञ या चिकित्सक की सलाह लें। वे आपकी व्यक्तिगत स्थिति और आवश्यकताओं के आधार पर आपको सही सलाह दे सकेंगे।






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एलोपैथिक दवाएं 


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एलोपैथिक दवाएं भी सेक्स सामर्थ्य को बढ़ाने में मदद कर सकती हैं। यहां कुछ प्रमुख एलोपैथिक दवाएं दी जाती हैं:


सिल्डेनाफिल (Sildenafil): सिल्डेनाफिल एक पुरुषों के लिए उपयोगी एलोपैथिक दवा है जिसे "वियाग्रा" के नाम से भी जाना जाता है। यह यौन उत्तेजनाओं को बढ़ाने, यौन समस्याओं को दूर करने और सेक्स सामर्थ्य को बढ़ाने में मदद करता है।


टाडालाफिल (Tadalafil): टाडालाफिल भी एक पुरुषों के लिए उपयोगी एलोपैथिक दवा है जिसे "सियालिस" के नाम से भी जाना जाता है। यह यौन उत्तेजनाओं को बढ़ाने, यौन समस्याओं को दूर करने और सेक्स सामर्थ्य को बढ़ाने में मदद करता है।


वर्देनाफिल (Vardenafil): वर्देनाफिल एक और पुरुषों के लिए उपयोगी एलोपैथिक दवा है जिसे "लेवित्रा" के नाम से भी जाना जाता है। यह यौन उत्तेजनाओं को बढ़ाने, यौन समस्याओं को दूर करने और सेक्स सामर्थ्य को बढ़ाने में मदद करता है।


यदि आप किसी एलोपैथिक दवा का सेवन करना चाहते हैं, तो एक प्रमाणित चिकित्सक द्वारा निर्धारित मात्रा और उपयोग के साथ ही उनकी सलाह पर जाएं। वे आपकी व्यक्तिगत स्थिति के आधार पर सही उपचार की सलाह दे सकेंगे। ध्यान दें कि एलोपैथिक दवाओं के साथ भी संभोग से पहले अपने चिकित्सक से सलाह लेना महत्वपूर्ण है, क्योंकि कुछ दवाओं के संयोग अनुकूल नहीं हो सकते और इसके परिणामस्वरूप सामग्री के संयोग से हानिकारक प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं।






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पूरे शारीरिक स्वास्थ्य को ठीक करने वाली औषधि 


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शारीरिक स्वास्थ्य को ठीक करने वाली औषधि विभिन्न तरह की हो सकती हैं, जो आपके शारीर के विभिन्न पहलुओं को संतुलित करने और उन्हें स्वस्थ रखने में मदद कर सकती हैं। यहां कुछ ऐसी प्रमुख औषधियां हैं जो शारीरिक स्वास्थ्य को ठीक करने में सहायता कर सकती हैं:


आयुर्वेदिक रसायन: आयुर्वेदिक रसायन विभिन्न जड़ी-बूटियों, चूर्णों और औषधि संयोगों का उपयोग करता है जो शारीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को सुधारकर शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ाने में मदद करता है। इसमें च्यवनप्राश, त्रिफला, अश्वगंधा, शतावरी, ब्रह्मी, गुडूची, आंवला आदि शामिल हो सकते हैं।


हर्बल टॉनिक: कुछ हर्बल टॉनिक शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ाने के लिए उपयोगी हो सकते हैं। ये टॉनिक विभिन्न जड़ी-बूटियों, औषधियों और पौधों के मिश्रणों से बने होते हैं जो आपके शारीर को ऊर्जा, पोषण और प्रतिरक्षा प्रणाली की मदद से स्वस्थ बनाने में मदद करते हैं।


प्रोबायोटिक्स: प्रोबायोटिक्स शारीर में अच्छी कीटाणुओं की संख्या को बढ़ाने और पाचन प्रणाली को सुधारकर स्वस्थ रखने में मदद करते हैं। ये आपके पेट के स्वास्थ्य को बढ़ाने, इम्यून सिस्टम को मजबूत करने, और शारीर के अन्य अंगों को स्वस्थ रखने में मदद कर सकते हैं।


विटामिन और खनिज सप्लीमेंट: शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारने के लिए विटामिन और खनिज सप्लीमेंट लेना महत्वपूर्ण हो सकता है। इसके माध्यम से आप अपने शारीर की आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं और उत्पादकता, ऊर्जा, इम्यून सिस्टम और अन्य पहलुओं को स्वस्थ रख सकते हैं।


कृपया ध्यान दें कि इन दवाओं का उपयोग करने से पहले अपने चिकित्सक या आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से सलाह लें और वे आपके स्वास्थ्य स्थिति, लेने की मात्रा और समय के बारे में आपको सलाह दे सकेंगे। वे आपके शारीरिक लक्षणों और इत








कुछ फर्ज थे मेरे, जिन्हें यूं निभाता रहा।  खुद को भुलाकर, हर दर्द छुपाता रहा।। आंसुओं की बूंदें, दिल में कहीं दबी रहीं।  दुनियां के सामने, व...