गुरुवार, 20 जुलाई 2023

हनुमान चालीसा

 श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुर सुधार ।

वर्णौ रघुवर विमल यश जो दायक फल चार ।।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार ।

बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु क्लेश विकार ।।

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर

राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥१॥

महावीर विक्रम बजरंगी
कुमति निवार सुमति के संगी

कंचन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुंडल कुँचित केसा ॥२॥

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे
काँधे मूँज जनेऊ साजे

शंकर स्वयं केसरी नंदन
तेज प्रताप महा जगवंदन ॥३॥

विद्यावान गुनी अति चातुर
राम काज करिबे को आतुर

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
राम लखन सीता मनबसिया ॥४॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा
बिकट रूप धरि लंक जरावा

भीम रूप धरि असुर सँहारे
रामचंद्र के काज सवाँरे ॥५॥

लाय सजीवन लखन जियाए
श्री रघुबीर हरषि उर लाए

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥६॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावै
अस कहि श्रीपति कंठ लगावै

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहीसा ॥७॥

यम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते

तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा
राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥८॥

तुम्हरो मंत्र विभीषण माना
लंकेश्वर भये सब जग जाना

युग सहस्त्र योजन पर भानू
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥९॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही
जलधि लाँघि गए अचरज नाही

दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥१०॥

राम दुआरे तुम रखवारे
होत न आज्ञा बिनु पैसारे

सब सुख लहै तुम्हारी सरना
तुम रक्षक काहू को डरना ॥११॥

आपन तेज सम्हारो आपै
तीनों लोक हाँक ते काँपै

भूत पिशाच निकट नहि आवै
महाबीर जब नाम सुनावै ॥१२॥



नासै रोग हरे सब पीरा

जपत निरंतर हनुमत बीरा

संकट से हनुमान छुडावै

मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥१३॥


सब पर राम राय सिरताजा

तिनके काज सकल तुम साजा

और मनोरथ जो कोई लावै

सोइ अमित जीवन फल पावै ॥१४॥


चारों युग प्रताप तुम्हारा

है परसिद्ध जगत उजियारा

साधु संत के तुम रखवारे

असुर निकंदन राम दुलारे ॥१५॥


अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता

अस बर दीन जानकी माता

राम रसायन तुम्हरे पासा

सादर हो रघुपति के दासा ॥१६॥


तुम्हरे भजन राम को पावै

जनम जनम के दुख बिसरावै

अंतकाल रघुवरपुर जाई

जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥१७॥


और देवता चित्त न धरई

हनुमत सेई सर्व सुख करई

संकट कटै मिटै सब पीरा

जो सुमिरै हनुमत बलवीरा ॥१८॥


जै जै जै हनुमान गोसाईं

कृपा करहु गुरु देव की नाई

यह शत बार पाठ कर जोई

छूटहि बंदि महा सुख होई ॥१९॥


जो यह पढ़े हनुमान चालीसा

होय सिद्धि साखी गौरीसा

तुलसीदास सदा हरि चेरा

कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ॥२०॥


।। दोहा ।।


पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥

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