शनिवार, 22 जुलाई 2023

थिओप्लेसिबो / गॉडप्लेसिबो THEOPLACEBO/GODPLACEBO

 थिओप्लेसिबो / गॉडप्लेसिबो THEOPLACEBO/GODPLACEBO


थिओप्लेसिबो / गॉडप्लेसिबो ठीक मैडिसिन वर्ल्ड प्लेसिबो का जैसे ही काम करता है। प्लेसिबो होता क्या है? प्लेसीबो एक “भ्रामक उपचार" या "झूठी उपचार” या “ठगी उपचार" होता है। कुछ रोग खुद दिमाग या मन और विश्वास का उपज होता है; जो एक तरह की मानसिक विकृति होता है, जो आम दवाओं में ठीक नहीं होता। इन से उत्पन रोग केवल उनकी मन और विश्वास में बदलाव लाकर किया जा सकता है; यानि इसका इलाज दिमाग के साथ छेड़छाड़ करके भी हो सकता है; जो की प्रवंचनशील और भ्रामक भी होता है और ये कभी भी इनसे बिना पैदा के रोगोंपर प्रभावशाली नहीं होता । 

उदाहरण के तौर पर आप एक डॉक्टर के पास जाते हैं, क्यूंकि आपको बहुत दिनों से सिर में दर्द हो रहा था। डॉक्टर आपके सारे टेस्ट करवाता है और फिर आपको केवल एक गोली देता है। । दिन में दो बार, खाना खाने से पहले। आप हफ़्ते भर गोली खाते हैं और एकदम ठीक हो जाते हैं । आप डॉक्टर को शुक्रिया करने जाते हैं, साथ ही पूछते हैं कि वो दवा कौन सी थी, जिससे महीनों से चला आ रहा सिरदर्द महज़ एक हफ्ते में छू-मंतर हो गया? डॉक्टर आपको बताता है कि वो कोई दवा थी ही नहीं। वो तो एक मीठी गोली थी जेम्स की, जिसे उसने दूसरे डब्बे में भरकर आपको दे दिया था। अब आप समझ नहीं पाते कि डॉक्टर को शुक्रिया कहें या उसे इस धोखे के लिए कोसें। 

लेकिन आप उससे कुछ कहें उससे पहले ही डॉक्टर आप को बताना शुरू कर देता है; आपके सारे टेस्ट करवाए। सिर तो छोड़िए, शरीर के किसी कोने में आप की कोई दिक्कत नहीं मिली। दरअसल ये सिरदर्द आपके मस्तिष्क की ही उपज था। आपके दिमाग की विस्तार से बोलूं तो, आपके मन की । आप कभी अख़बार में किसी बीमारी के लक्षण देखते हैं तो लगता है कि ये सारे लक्षण तो आपके शरीर में भी मौजूद हैं। क्योंकि बहुत सारी बीमारियां आपके शरीर की नहीं मन की देन होती हैं। बीमारियां ही नहीं दुनिया में अधिकतर चीजें शरीर की नहीं, मन की देन होती है। आपको ये अजब लगेगा, लेकिन इस यूनिवर्स की बहुत सारी चीजें 'मन' की ही उपज हैं; और जो चीज़ आपके मन की उपज है उसका इलाज बाहर कैसे होगा? उसका तो अंदर ही से इलाज करना पड़ेगा? और इसी 'इंटरनल हीलिंग' यानि "आंतरिक चिकित्सा" को मनोवैज्ञानिकों की भाषा में प्लेसीबो इफेक्ट' कहते हैं। 

18 वीं सदी के उत्तरार्ध में प्लेसीबो चिकित्सा औषधीय शब्दावली का एक अभिन्न हिस्सा बन गया । इस प्रकार की चिकित्सा लोगों को ठीक /स्वस्थ करने के बजाय संतुष्ट/प्रसन्न करने में अधिक उपयोग में आती थी। सदियों से प्लेसीबो को भ्रामक उपचार' माना जाता रहा है। सरल भाषा में कहें तो प्लेसीबो ऐसी चिकित्सा को कहते हैं जिसका कोई वैज्ञानिक आधार न हो। ऐसी चिकित्सा पद्धति या तो प्रभावहीन होती है, या यदि कोई सुधार दिखता भी है तो उसका कारण कोई अन्य चीज ही होती है । और इस पूरे कांसेप्ट या इफ़ेक्ट को कहते हैं प्लेसीबो इफ़ेक्ट” या “प्लेसीबो प्रभाव" । 

अब, जब कहा जाता है कि इनको दवा नहीं दुआ की ज़रूरत है तो दरअसल प्लेसीबो इफ़ेक्ट' की ही बात की जा रही होती है यानि मौजूदा समय में अगर कोई बीमारी का कोई इलाज नहीं है तो इसका इलाज को प्राकृतिक संभावनाएं के उपर छोड़ दिया जाता है और उसको गॉड के नाम पर छोड़ दिया जाता है; अगर कोई बीमारी का कारण "मन" हो तो इसको बिना गॉड के नाम पर प्लेसीबो इफ़ेक्ट से भी इलाज किया जा सकता है जैसे की बाबा की भभूत, झाड़ फूंक, ताबीज, डॉक्टर की झूठी दवा इत्यादि इत्यादि । 

और ये प्लेसीबो इफ़ेक्ट बहुत ही पुरानी सोच है जो गॉड के नाम पे भी होता आ रहा है | ये धूर्तों और बेइमान लोगों से पैदा एक वर्ग की स्वार्थी विचारधारा है जिसका गलत उपयोग होता आ रहा है। जिसको आप अब वैदिक धर्म कहते हो उनके जितने भी प्रमुख देव देवियाँ है उन में कई बस काल्पनिक है और पुजारी उन चरित्रों से आपकी प्लेसिबो इफेक्ट करवाता है और भक्त को अगर मन की उपज कोई बीमारी हो तो वह ठीक हो जाता है और क्रेडिट उस काल्पनिक देव देवियों और पुजारी को जाता है; अगर कुछ नहीं होता है तो कह दिया जाता है वह गॉड की मर्जी थी; लेकिन अगर कोई ठीक भी हो जाता है उसको गॉड की चमत्कार बोल दिया जाता है जब की ये प्राकृतिक रूप से आपके इम्यूनोसिस्टम के  कारण बिना दवा के करता है, क्यों के ये प्लेसिबो इफेक्ट GOD या देव देवियों के नाम पर होता है ये "गॉडप्लेसिबो" है; लेकिन इस में सबसे बड़ा प्रोब्लेम एक सामाजिक विकार है और वह है पुजारीवाद बनाम ब्राह्मणवाद जो बर्चस्ववादी बनने के कारण वह उत्पीड़क वर्ग होनेका भी दृष्टांत दिया है। ब्राह्मणवाद के काल्पनिक देव देवियों का 900AD से पहले कोई अता पता नहीं मिलता। इनका कोई भी पुराने मूर्ति या मंदिर 900AD से पहले पुरातात्विक साक्ष्य के अनुरूप नहीं मिलेंगे ।जिससे ये प्रमाणित होता है कि बहुदेववाद विचारधारा कोई पुरानी विचारधारा नहीं है, लेकिन भांड धूर्त पुजारीवाद अपना काल्पनिक गोपोडवाज मान्यतावादी झूठी इतिहास बनाकर कुछ भी बोलते रहते हैं। पेलसीबो इफेक्ट का प्रमाण आपको बौद्ध धर्म के जातक कथा मिलजाएँगे लेकिन वह लोगों को ठगने के लिए नहीं थी बल्कि मनरोग की उपचार के लिए ही था। बौद्ध विचारधारा के जातक कथा के अनुसार एक बार एक बौद्ध गुरु अपने कुछ शिष्यों के साथ एक गांव से दूसरे गांव जा रहे थे। उन्हें रास्ते में एक नव यौवना दिखाई दी। माने एक सुंदर स्त्री। नव यौवना के पैरों में चोट लगी थी इसलिए वो नदी पार नहीं कर पा रही थी। बौद्ध गुरु ने उसे सहारा देकर नदी पार करवा दी। ये देखकर शिष्यों के मुंह सड़ गए। जब घंटों तक बौद्ध गुरु पीछे चलते शिष्यों की खुसर- फुसर सुनते हुए दुखी हो गए, तो उन्होंने शिष्यों से उनकी परेशानी का कारण पूछा। शिष्यों में से एक ने कहा आपने एक कुंवारी स्त्री को अपने हाथों से छुआ, इससे आपका मन आपकी आत्मा मलीन न हुई ? गुरु ने उत्तर दिया (और गौर कीजिए कि उत्तर देते हुए उन्होंने बहुत ध्यान से शब्दों का चुनाव किया)- मैं उस विपत्ति ग्रस्त' को कब का नदी के तट पर छोड़ आया हूं लेकिन तुम उस 'स्त्री' को अब तक ढो रहे हो । कथा यहां पर समाप्त हो जाती है। वैसे हमारे जिंदगी में कई तरह के समस्याएं होते हैं और उन समस्याओं से भी मन में कई तरह की बीमारी बन जाते हैं और उस बीमारी को केवल मन के द्वारा की जा सकती है इस बीमारी का सबसे पुराना समाधान कुछ लोगों ने साइकोलॉजिकल दवाई "थिओप्लेसिबो / गॉडप्लेसिबो" के उपचार के रूप में बनाया जो विज्ञान संगत यानि वैज्ञानिक तो नहीं लेकिन झूठ, भ्रम, तर्कहीनता और अंधविश्वास आस्था के उपर आधारित था कभी कभी झूठी दिलासा और संतुष्टि मन को दृढ़ बनाता है और क्यों के मन शरीर के साथ सम्पूर्ण रूपसे जुड़ा हुआ होता है, सुदृढ़ मन प्राकृतिक रूपसे शरीर को प्राकृतिक रूप से इम्यूनलोजिकाल सशक्त बनाने को कोशिश करता है जिससे कई समस्या का समाधान हो जाता है लेकिन ये हर समस्या का समाधान नहीं करता इससे और कई मन से जुडी समस्या को भी पैदा कर देता है जिससे इसके कई एडवर्स इफ्फेक्ट पैदा होते रहते हैं; जैसे, जो मन से जुडी हुई रोग नहीं है उससे इंसान का मृत्यु हो जाना; अन्धविश्वाश के कारण अज्ञानता, तर्कहीनता और कुतर्क का शिकार होना, पुजारी वर्ग का वर्चस्ववादी हो जाना और उनसे दूसरों को शाररिक और मानसिक रूपसे उत्पीड़न करना, ठगना और प्रवंचन करना झूठ, भ्रम, अंधविश्वास और तर्कहीनता को बढ़ावा देना और ऐसे कई तरह की हजारों मानसिक और सामाजिक विकृतियाँ इनसे पैदा होने का समस्या बन जाना । इसलिए थिओफिलिआ और थिओप्लेसिबो / गॉडप्लेसिबो के बारे  में जानना सबको जरुरी है।

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