गुरुवार, 12 अक्तूबर 2023

" प्रेमी का प्रेम अस्थिर होता है, आवेशपूर्ण होता है, किसी पहाड़ी नदी के समान ! और पति का प्रेम धीर, गम्भीर होता है, गहरा और मन्थर-गंगा के समान । उसमें आवेश और उफान चाहे न आये, किन्तु वह सदा भरा-पूरा है । वह अकस्मात् ही बहाकर चाहे न ले जाये, किन्तु पार अवश्य उतारता है।” "मैं समझती हूँ।” पारंसवी ने पूर्ण विश्वास के साथ अपना कपोल विदुर की हथेली पर टिका दिया, "किन्तु आर्यपुत्र ! बाढ़ तो गंगा में भी आती है।"


विदुर हँसा, “आती है, मात्र वर्षा ऋतु में; और उससे क्षति ही होती है


प्रिये ! जाने क्या-क्या नष्ट हो जाता है । " पारसवी हतप्रभ नहीं हुई, "बाढ़ उतर जाती है, तो उजड़े परिवार फिर से बस जाते हैं। खेतों में नयी उपजाऊ मिट्टी आ जाती है। समग्र रूप से बहुत हानि नहीं होती ।" विदुर की भुजाएँ, आलिंगन

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