गुरुवार, 26 दिसंबर 2024

 आदमी हँसता हुआ, खिलखिलाता हुआ रहता है, उसके चारों ओर खुशियाँ छाई रहती हैं। हँसने-हँसाने वाले खुद भी खिलखिलाते रहते हैं और दूसरों को भी हँसाते रहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण को देखिए-हँसने वाले भगवान, हँसाने वाले भगवान, रास करने वाले भगवान, नाचने वाले भगवान, बाँसुरी बजाने वाले भगवान, साहित्यकार और कलाकार भगवान, संगीत से प्रेम करने वाले भगवान। अरे आप इनसे कुछ तो सीखें और अपनी सारी जिंदगी को हलका बनाकर जिएँ। सारी जिंदगी हर समय मुँह फुलाकर रहने से जिंदगी जी नहीं जा सकती। इस तरह से आप खुद भी नाखुश रहेंगे और रोकर जिएँगे। शिकायतों पर जिएँगे, तो आप मर जाएँगे। जिंदगी इतनी भारी हो जाएगी कि उसे फिर ठीक नहीं कर पाएँगे। उसके नीचे आप दब जाएँगे, कुचल जाएँगे। अगर आप लंबी उम्र तक जिंदा और स्वस्थ रहना चाहते हैं, तब आप हँसने हँसाने की कला सीखें। अगर आपको हँसना आता है, तो समझिए कि जिंदगी के राज को आप समझते हैं।

 हँसी के लिए, हँसने हँसाने के लिए ढेरों चीज हमारे पास हैं। आपके पास हर चीज नहीं है, तो क्या आप चिड़चिड़ाते हुए, शिकायत करते हुए बहुमूल्य जीवन को यों ही बरबाद कर देंगे ? क्या आपको निखिल आकाश हँसता हुआ दिखाई नहीं देता। अगर आप कवि हृदय हैं, सरस हृदय हैं, तो आपको सब कुछ हँसता हुआ दिखाई पड़ सकता है। आकाश में बादल आते हैं, घुमड़ते हुए-बरसते हुए दिखाई पड़ते हैं, क्या आप इनका आनंद नहीं ले सकते ? नदियाँ कलकल करती हुई बहती हैं, क्या आप इनका आनंद नहीं ले सकते ? आपको इनका आनंद लेना चाहिए और आपको कलाकार होना चाहिए। जिंदगी जीने की कला को आपको समझना चाहिए। जिंदगी में आनंद के अनुभव होने चाहिए। जीवन में हँसने का समय होना चाहिए, हँसाने का समय होना चाहिए।

भगवान को हम कलाकार कहते हैं। श्रीकृष्ण भगवान ने रासलीला के माध्यम से हलकी-फुलकी जिंदगी, हँसने-हँसाने वाली जिंदगी की कला सिखाई। रासलीला गाने की विद्या है, नृत्य की विद्या है। नहीं साहब ! श्रीकृष्ण भगवान ने तो हँसने-हँसाने की विद्या बहुत छोटेपन में सीखी थी, हम तो उम्र में बड़े हो गए हैं।  बड़ी उम्र के हों तो क्या, योगी हों तो क्या, तपस्वी हों तो क्या, ज्ञानी हों तो क्या, महात्मा हों तो क्या ? हँसना आपको भी आना चाहिए, हँसाना आपको भी आना चाहिए। जिसके चेहरे पर हँसी नहीं आती है, उसे बस मरा ही समझो। श्रीकृष्ण भगवान ने वह कला सिखाई, जिसको हम जिंदगी का प्राण कह सकते हैं, जीवन कह सकते हैं। 'रास' इसी का नाम है। आप महाभारत पढ़ लीजिए, भागवत पढ़ लीजिए, जिस समय तक उन्होंने रासलीला की है, तब उनकी उम्र दस साल की थी। दसवें साल तक सब रासलीला बंद हो गई थी। सात साल की उम्र से प्रारंभ हुई थी और दस साल की उम्र में सब रासलीला खत्म हो गई थी। दस साल से ज्यादा में कोई रासलीला नहीं खेली गई। उसमें कामुकता नहीं थी, ब्याह-शादी की कोई बात नहीं थी।

तब उसमें क्या बात थी ? उसमें था हर्षमय- आनंदमय जीवन, उसमें कन्हैया ने चाहा कि छोटे- छोटे बच्चे हों, साथ-साथ घुल-मिलकर हँसें खेलें।

स्त्री पुरुष के बीच शालीनता का क्या फरक होना चाहिए, शील और आचरण का क्या फरक होना चाहिए, यह जानें। अगर एक दूसरे को अलग कर देंगे, काट देंगे, तो फिर आप किस तरह से जिएँगे ? माँ बेटे साथ साथ नहीं रहेंगे, तो किसके साथ रहेंगे ? बाप बेटी, भाई बहन साथ साथ नहीं रहेंगी। बेटी बाप की गोदी में नहीं जाएगी, क्योंकि वह स्त्री है और ये पुरुष है। दोनों को अलग कीजिए, छूने मत दीजिए। औरत को इस कोने में बिठाइए और मरद को उस कोने में बिठाइए। अरे भाई, ये कहाँ का न्याय है ? स्त्री और पुरुष कंधे से कंधा मिलाकर काम करें, गाड़ी के दो पहियों के तरीके से काम करें, तो ही जीवन में आनंद है, प्रगति है:

श्रीकृष्ण भगवान ने उस जमाने में लड़के लड़कियों की एक सेना पैदा की और उसे एक दिशा दी। उन्होंने कहा कि लड़के और लड़कियों में अंतर करने से क्या होगा ? हम और आप सब बच्चे हैं।

उस जमाने का पुरुषवादी समाज, परस्त्रीगामी समाज, जिसमें पाप और अनाचार का बंधन नहीं लगाया गया था, केवल स्त्री-पुरुष को अलग रखने की व्यवस्था की गई थी। जहाँ शील आँखों में रहता है, उस पर ध्यान नहीं दिया गया था, केवल शारीरिक बंधनों में शील की रक्षा करने की कोशिश की गई थी, श्रीकृष्ण भगवान ने उसे तोड़ने की कोशिश की।

भगवान श्रीकृष्ण का जीवन सिद्धांतों का जीवन था, आदर्शों का जीवन था। उनकी सारी लीलाएँ सिद्धांतों और आदर्शों को प्रख्यात करने वाले जीवन से ओत-प्रोत थीं।

 बात चल रही थी श्रीकृष्ण भगवान की। कृष्ण भगवान का रास्ता दूसरा था। रामावतार में जो अभाव रह गया था, जो कमी रह गई थी, जो अपूर्णता रह गई थी, वह उन्होंने पूरी की। इस बात से फायदा यह हुआ कि यदि शरीफों से वास्ता न पड़े, तब क्या करना चाहिए? खराब लोगों से वास्ता पड़े तब, खराब भाई हो तब, खराब मामा हो तब,खराब रिश्तेदार हों तब, क्या करना चाहिए? तब के लिए श्रीकृष्ण भगवान ने नया रास्ता खोला। इसमें विकल्प हैं। इसमें शरीफों के साथ शराफत से पेश आइए। जहाँ पर न्याय की बात कही जा रही है, उचित बात कही जा रही है, इनसाफ की बात कही जा रही है, वहाँ पर आप समता रखिए और उसको मानिए और आप नुकसान उठाइए। लेकिन अगर आपको गलत बात कही जा रही है, सिद्धांतों की विरोधी बात कही जा रही है, तो आप इनकार कीजिए और उससे लड़िए और यदि जरूरत पड़े, तो उनका मुकाबला कीजिए और मारिए।

कंस श्रीकृष्ण भगवान के रिश्ते में मामा लगता था। लेकिन वह अत्याचारी और आततायी था। अतः उन्होंने यह नहीं देखा कि रिश्ते में कंस हमारा कौन होता है। उन्होंने न केवल स्वयं ऐसा किया वरन अर्जुन से भी कहा कि रिश्तेदार वो हैं, जो सही रास्ते पर चलते है। सही रास्ते पर चलने वालों का सम्मान करना चाहिए, उनकी आज्ञा माननी चाहिए, उनका कहना मानना चाहिए। उनके साथ-साथ चलना चाहिए। लेकिन अगर हमको कोई गलत बात सिखाई जाती है, तो उसे मानने से इनकार कर देना चाहिए।

कृष्ण भगवान की दिशाएँ और शिक्षाएँ यही थीं कि कोई हमारा रिश्तेदार नहीं है। हमारा रिश्तेदार सिर्फ एक है और उसका नाम है- धर्म। हमारा रिश्तेदार एक है और उसका नाम है- कर्त्तव्य। आप ठीक रास्ते पर चलते हैं, तो हम आपके साथ हैं और आपके हिमायती हैं। बाप के साथ हैं, रिश्तेदार के साथ हैं। अगर आप गलत रास्ते पर चलते हैं, तो आप रिश्ते में हमारे कोई नहीं होते। हम आपकी बात को नहीं मानेंगे और आपको उजाड़कर रख देंगे।

ये हैं श्रीकृष्ण भगवान के जीवन की गाथाएँ, जो राम के जीवन की विरोधी नहीं हैं, वरन पूरक हैं। राम के अवतार में जो कमी रह गई थी, उसे कृष्ण अवतार में पूरा किया। राम का वास्ता अच्छे आदमियों से ही पड़ता रहा। अच्छे संबंधी मिलते रहे। उन्हें सुमंत मिले तो अच्छे, कौशल्या मिलीं तो अच्छी, कहना मानना चाहिए। उनके साथ-साथ चलना चाहिए। लेकिन अगर हमको कोई गलत बात सिखाई जाती है, तो उसे मानने से इनकार कर देना चाहिए।

 कृष्ण भगवान की दिशाएँ और शिक्षाएँ यही थीं कि कोई हमारा रिश्तेदार नहीं है। हमारा रिश्तेदार सिर्फ एक है और उसका नाम है- धर्म। हमारा रिश्तेदार एक है और उसका नाम है- कर्त्तव्य। आप ठीक रास्ते पर चलते हैं, तो हम आपके साथ हैं और आपके हिमायती हैं। बाप के साथ हैं, रिश्तेदार के साथ हैं। अगर आप गलत रास्ते पर चलते हैं, तो आप रिश्ते में हमारे कोई नहीं होते। हम आपकी बात को नहीं मानेंगे और आपको उजाड़कर रख देंगे।

ये हैं श्रीकृष्ण भगवान के जीवन की गाथाएँ, जो राम के जीवन की विरोधी नहीं हैं, वरन पूरक हैं। राम के अवतार में जो कमी रह गई थी, उसे कृष्ण अवतार में पूरा किया। राम का वास्ता अच्छे आदमियों से ही पड़ता रहा। अच्छे संबंधी मिलते रहे।  उन्हें सब शरीफ ही मिलते गए। अगर शरीफ आदमी न मिलते तो क्या करते ? तब श्रीकृष्ण भगवान ने जो लीला करके दिखाई, वही वे भी करते। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि तू लड़ चाहे तेरे गुरु हों या कोई भी क्यों न हों।

भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी सारी जिंदगी बादलों के तरीके से जी। उन्होंने कहा- "हमारा कोई गाँव नहीं है। सारा गाँव हमारा है। जहाँ कहीं भी हमारी जरूरत होगी, हम वहाँ पर जाएँगे।" वे कहाँ पैदा हुए ? वे मथुरा में पैदा हुए, फिर गोकुल में बसे, वहाँ गाय चराई। उज्जैन में पढ़ाई लिखाई की। दिल्ली में कुरुक्षेत्र में लड़ाई झगड़े में भाग लिया और फिर न जाने कहाँ कहाँ मारे मारे फिरते रहे। आखिर में कहाँ चले गए ? आखिर में द्वारिका चले गए। आपके ऊपर तो 'होम सिकनेस' हावी हो गई है, जो घर से आपको निकलने नहीं देती। अरे साहब ! घर से बाहर कैसे निकलें, हमें तो घरवालों की याद आती है, हमारा पोता याद करता होगा, पोती याद करती होगी। हम अपने घर से बाहर नहीं जाएँगे, गाँव में ही हवन कर लेंगे। सौ कुंडीय यज्ञ तो हमारे गाँव में ही होगा। मंदिर बनेगा तो हमारे गाँव में ही बनेगा। अस्पताल बनेगा तो हमारे गाँव में ही बनेगा। गाँव- गाँव रट लगाता रहता है। श्रीकृष्ण भगवान ने इस मान्यता को समाप्त किया और कहा कि सारे गाँव हमारे हैं। हर जगह हमारी जन्मभूमि है। वे दो बार मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश गए, दिल्ली गए। वे सब प्रदेशों में गए बादलों के तरीके से। महापुरुषों की कोई जन्मभूमि नहीं होती, कोई गाँव नहीं होता, वरन सारा संसार ही उनका अपना घर होता है।


शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024

पर्सलेन: अधिकतम स्वास्थ्य लाभ वाला कम आंका गया सुपरफूड

पौधों की विशाल और विविधतापूर्ण दुनिया में, एक विनम्र लेकिन अविश्वसनीय रूप से शक्तिशाली जड़ी-बूटी मौजूद है, जो अक्सर अपने उल्लेखनीय स्वास्थ्य लाभों के लिए पहचानी नहीं जाती है। पर्सलेन, जिसे आमतौर पर बगीचों और फुटपाथों में एक साधारण खरपतवार के रूप में गलत समझा जाता है, वास्तव में एक पोषण संबंधी पावरहाउस है और उन लोगों के लिए एक वास्तविक जीवनरक्षक है जो इसकी क्षमता का दोहन करना जानते हैं। अपने साधारण दिखने के बावजूद, यह रसीला पौधा विटामिन, खनिज और जैव सक्रिय यौगिकों का खजाना है, जो इसे सबसे अधिक लाभकारी सागों में से एक बनाता है जिसे अधिकांश लोग अनदेखा करते हैं। विडंबना यह है कि – कई लोग अपने लॉन से जिसे खत्म करने की कोशिश करते हैं, वह वास्तव में एक स्वस्थ जीवन की खोई हुई कुंजी हो सकती है। इसकी गलत समझी गई प्रतिष्ठा से परे, हमारे दैनिक आहार में शामिल होने के लिए गहन स्वास्थ्य लाभों का एक स्रोत है। इस लेख का उद्देश्य पर्सलेन द्वारा प्रदान किए जाने वाले असंख्य लाभों को उजागर करना और आपको इस “सामान्य खरपतवार” को अपनी जीवनशैली में शामिल करने के तरीके के बारे में मार्गदर्शन करना है, इसे एक अनदेखे बगीचे के मेहमान से एक प्रसिद्ध पोषण नायक में बदलना है।

कुलफा के स्वास्थ्य लाभ

ओमेगा-3 फैटी एसिड का स्रोत: पर्सलेन अल्फा-लिनोलेनिक एसिड का एक दुर्लभ शाकाहारी स्रोत है, जो हृदय स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण ओमेगा-3 फैटी एसिड का एक प्रकार है। यह आवश्यक पोषक तत्व सूजन को कम करने, हृदय रोग के जोखिम को कम करने और मस्तिष्क के कार्य को समर्थन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।


एंटीऑक्सीडेंट की भरमार: विटामिन ए, सी और ई के साथ-साथ ग्लूटाथियोन की एक प्रभावशाली श्रृंखला के साथ, पर्सलेन शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट गुण प्रदान करता है। ये यौगिक कोशिकाओं को ऑक्सीडेटिव तनाव के हानिकारक प्रभावों से बचाने में महत्वपूर्ण हैं, जो उम्र बढ़ने और कई बीमारियों में योगदान देता है।


सूजनरोधी गुण: अपने ओमेगा-3 फैटी एसिड और अन्य सूजनरोधी यौगिकों के कारण, पर्सलेन पूरे शरीर में सूजन को कम करने में मदद कर सकता है। यह न केवल गठिया जैसी स्थितियों से होने वाले दर्द और परेशानी को कम करने के लिए बल्कि पुरानी बीमारियों को रोकने के लिए भी आवश्यक है।



त्वचा की देखभाल का पावरहाउस: पर्सलेन में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट सिर्फ़ अंदरूनी तौर पर ही कमाल नहीं करते; इनके बाहरी लाभ भी हैं। त्वचा की देखभाल करने वाले उत्पादों या घरेलू नुस्खों में इसका इस्तेमाल त्वचा के स्वास्थ्य को बढ़ावा दे सकता है, उपचार को तेज़ कर सकता है और त्वचा की समग्र बनावट में सुधार ला सकता है।


खनिज-समृद्ध: पर्सलेन में कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम और आयरन सहित आवश्यक खनिजों की प्रचुरता होती है। ये तत्व हड्डियों के स्वास्थ्य, मांसपेशियों के कार्य और समग्र सेलुलर संचालन के लिए आधारभूत हैं।


विटामिन सी का स्रोत: विटामिन सी के एक महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता के रूप में, कुलफा का पौधा प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाता है, शरीर को संक्रमणों और बीमारियों से बचाने में मदद करता है, साथ ही त्वचा की मरम्मत और पुनर्जनन में भी सहायता करता है।


बीटा-कैरोटीन: विटामिन ए के अग्रदूत बीटा-कैरोटीन का उच्च स्तर, दृष्टि स्वास्थ्य, प्रतिरक्षा कार्य और त्वचा की अखंडता के लिए पर्सलेन को फायदेमंद बनाता है।



मेलाटोनिन सामग्री: पर्सलेन में मेलाटोनिन होता है, जो एक हार्मोन है जो नींद के पैटर्न को नियंत्रित करता है। अपने आहार में पर्सलेन को शामिल करने से नींद की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है और समग्र स्वास्थ्य का समर्थन हो सकता है।


कोलेस्ट्रॉल में कमी: पर्सलेन में बीटालेन एंटीऑक्सीडेंट की उपस्थिति रक्त वाहिकाओं को कोलेस्ट्रॉल से होने वाली क्षति के जोखिम को कम करने में सहायता करती है और एलडीएल कोलेस्ट्रॉल के स्तर को प्रबंधित करने में मदद करती है।


मनोदशा विनियमन: ट्रिप्टोफैन, एक आवश्यक अमीनो एसिड के साथ, पर्सलेन सेरोटोनिन के उत्पादन में योगदान देता है, इस प्रकार मनोदशा स्थिरीकरण और अवसाद से लड़ने में भूमिका निभाता है।


ये लाभ केवल पर्सलेन के लाभों की सतह को खरोंचते हैं। इसका व्यापक पोषण प्रोफ़ाइल इसे किसी भी आहार के लिए एक उत्कृष्ट अतिरिक्त बनाता है, जिसका उद्देश्य समग्र स्वास्थ्य में सुधार करना और कई बीमारियों को रोकना है। आइए आगे बढ़ते हैं कि आप इन उल्लेखनीय लाभों का पूरा लाभ उठाने के लिए पर्सलेन को अपनी दिनचर्या में कैसे शामिल कर सकते हैं।


पर्सलेन के लाभों का लाभ उठाना


पर्सलेन के अपार स्वास्थ्य लाभों को समझना इस सवाल को जन्म देता है: हम इस सुपरफूड को अपने दैनिक जीवन में कैसे शामिल कर सकते हैं ताकि इसकी क्षमता को अधिकतम किया जा सके? सौभाग्य से, पर्सलेन रसोई में जितना बहुमुखी है, उतना ही स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है, जिससे इसे विभिन्न स्वादिष्ट और पौष्टिक तरीकों से अपने आहार में शामिल करना आसान हो जाता है।


कच्चा उपभोग

सलाद: पर्सलेन का आनंद लेने का सबसे सरल तरीका है इसे सलाद में कच्चा शामिल करना। इसकी कुरकुरी बनावट और नींबू का स्वाद किसी भी सलाद के स्वाद और पोषण संबंधी विशेषताओं को बढ़ाता है।

स्मूदी और जूस: जल्दी से पौष्टिकता बढ़ाने के लिए, पर्सलेन के पत्तों को स्मूदी में मिलाएँ या उनका जूस बनाएँ। यह विधि ओमेगा-3 फैटी एसिड और विटामिन को सुरक्षित रखती है, उन्हें सुविधाजनक और पचने योग्य रूप में प्रदान करती है।


पके हुए व्यंजन

तली हुई सब्जियाँ: लहसुन और जैतून के तेल के साथ पर्सलेन को भूनकर एक सरल साइड डिश बनाया जा सकता है, जो मांस और शाकाहारी दोनों मुख्य व्यंजनों के साथ अच्छी तरह से मेल खाता है।

सूप और स्ट्यू: सूप और स्ट्यू में पर्सलेन डालने से न केवल वे प्राकृतिक रूप से गाढ़े हो जाते हैं, बल्कि इसमें स्वास्थ्यवर्धक यौगिक भी मिल जाते हैं।


नवीन उपयोग


पेस्टो: पारंपरिक पेस्टो व्यंजनों में तुलसी के कुछ या सभी भाग को पर्सलेन से प्रतिस्थापित करें, जिससे इस प्रिय सॉस का पोषक तत्वों से भरपूर संस्करण प्राप्त होगा।

अचार: पर्सलेन के रसीले तने और पत्तियों का अचार बनाया जा सकता है, जिससे एक तीखा और स्वास्थ्यवर्धक मसाला तैयार होता है जिसे विभिन्न व्यंजनों में मिलाया जा सकता है।


निगमन के लिए सुझाव

छोटी मात्रा से शुरू करें: यदि आप पर्सलेन के बारे में नए हैं, तो इसे उन व्यंजनों में शामिल करना शुरू करें जहाँ आमतौर पर साग का उपयोग किया जाता है। इसका हल्का, थोड़ा मिर्च जैसा स्वाद इसे एक बेहतरीन व्यंजन बनाता है।

मिश्रण करें: व्यंजनों में अन्य सागों के साथ पर्सलेन को मिलाएं, जिससे विभिन्न प्रकार की बनावट और स्वाद के साथ-साथ पोषक तत्वों की एक विस्तृत श्रृंखला प्राप्त होगी।

इसका प्रयोग शीर्ष रूप से करें: त्वचा की देखभाल के लिए, पर्सलेन का अर्क या अर्क बनाकर चेहरे को धोने के लिए उपयोग करें या इसके एंटीऑक्सीडेंट गुणों के कारण इसे DIY फेस मास्क में मिलाएं।

पर्सलेन इस विचार का प्रमाण है कि कभी-कभी सबसे ज़्यादा फ़ायदेमंद स्वास्थ्य संसाधन सबसे साधारण पैकेज में आते हैं। जिसे कई लोग एक आम खरपतवार समझकर खारिज कर देते हैं, वह वास्तव में एक पोषण नायक है जिसमें हमारे स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती को काफ़ी हद तक बेहतर बनाने की क्षमता है। अपने आहार और यहाँ तक कि अपनी त्वचा की देखभाल की दिनचर्या में पर्सलेन को शामिल करके, हम इस पौधे के असंख्य लाभों का पूरा फ़ायदा उठा सकते हैं। इसके हृदय-स्वस्थ ओमेगा-3 फैटी एसिड से लेकर नींद को बढ़ावा देने वाले मेलाटोनिन तक, पर्सलेन पोषक तत्वों का एक व्यापक समूह प्रदान करता है जो एक स्वस्थ, अधिक जीवंत जीवन का समर्थन कर सकता है। आइए इस “गार्डन वीड” को एक सुपरफ़ूड के रूप में अपनाएँ, और इसे अधिक पौष्टिक और संतुलित आहार की हमारी खोज में एक प्रधान बनाएँ।


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गुरुवार, 21 नवंबर 2024

बालकाण्ड

 तपस्वी वाल्मीकिजी ने तपस्या और स्वाध्याय में लगे हुए विद्वानों में श्रेष्ठ मुनिवर नारदजी से पूछा- 'मुने!इस समय इस संसार में गुणवान्, वीर्यवान्, धर्मज्ञ, उपकार मानने वाला, सत्यवक्ता और दृढ प्रतिज्ञ कौन है? सदाचार से युक्त, समस्त प्राणियों का हितसाधक, विद्वान्, सामर्थ्यशाली और एकमात्र प्रियदर्शन सुन्दर पुरुष कौन है? मन पर अधिकार रखने वाला, क्रोध को जीतने वाला, कान्तिमान् और किसी की भी निन्दा नहीं करनेवाला कौन है? तथा संग्राम में कुपित होने पर किस से देवता भी डरते हैं? महर्षे! मैं यह सुनना चाहता हूँ. इसके लिये मुझे बड़ी उत्सुकता है और आप ऐसे पुरुष को जानने में समर्थ हैं।'

महर्षि वाल्मीकि के इस वचन को सुन कर तीनों लोकों का ज्ञान रखने वाले नारदजी ने उन्हें सम्बोधित करके कहा, अच्छा सुनिये और फिर प्रसन्नता पूर्वक बोले-'मुने ! आपने जिन बहुत-से दुर्लभ गुणों का वर्णन किया है, उन से युक्त पुरुष को मैं विचार करके कहता हूँ, आप सुनें ,'इक्ष्वाकु के वंश में उत्पन्न हुए एक ऐसे पुरुष हैं, जो लोगों में राम-नाम से विख्यात हैं, वे ही मन को वश में रखने वाले, महाबलवान्, कान्तिमान्, धैर्यवान् और जितेन्द्रिय हैं। वे बुद्धिमान्, नीतिज्ञ, वक्ता, शोभायमान तथा शत्रु संहारक हैं। उनके कंधे मोटे और भुजाएँ बड़ी-बड़ी हैं। ग्रीवा शङ्ख के समान और ठोड़ी मांसल पुष्ट है। उनकी छाती चौड़ी तथा धनुष बड़ा है, गले के नीचे की हड्डी हँसली मांस से छिपी हुई है। वे शत्रुओं का दमन करने वाले हैं। भुजाएँ घुटने तक लम्बी हैं, मस्तक सुन्दर है, ललाट भव्य और चाल मनोहर है। उनका शरीर अधिक ऊँचा या नाटा न होकर मध्यम और सुडौल है, देह का रंग चिकना है। वे बड़े प्रतापी हैं। उनका वक्षःस्थल भरा हुआ है, आँखें बड़ी-बड़ी हैं। वे शोभायमान और शुभ लक्षणों से सम्पन्न हैं।धर्म के ज्ञाता, सत्यप्रतिज्ञ तथा प्रजा के हित-साधन में लगे रहने वाले हैं। वे यशस्वी, ज्ञानी, पवित्र, जितेन्द्रिय और मन को एकाग्र रखने वाले हैं। प्रजापति के समान पालक, श्रीसम्पन्न, वैरिविध्वंसक और जीवों तथा धर्म के रक्षक हैं। स्वधर्म और स्वजनोंके पालक, वेद-वेदांगों के तत्त्ववेत्ता तथा धनुर्वेद में प्रवीण हैं। वे अखिल शास्त्रों के तत्त्वज्ञ, स्मरणशक्ति से युक्त और प्रतिभासम्पन्न हैं। अच्छे विचार और उदार हृदय वाले वे श्रीरामचन्द्रजी बातचीत करने में चतुर तथा समस्त लोकों में प्रिय हैं। जैसे नदियाँ समुद्र में मिलती हैं, उसी प्रकार सदा राम से साधु पुरुष मिलते रहते हैं। वे आर्य एवं सबमें समान भाव रखने वाले हैं, उनका दर्शन सदा ही प्रिय मालूम होता है। सम्पूर्ण गुणोंसे युक्त वे श्रीरामचन्द्रजी अपनी माता कौसल्या के आनन्द बढ़ाने वाले हैं, गम्भीरता में समुद्र और धैर्य में हिमालय के समान हैं। वे विष्णु भगवान के समान बलवान् हैं। उनका दर्शन चन्द्रमा के समान मनोहर प्रतीत होता है। वे क्रोध में कालाग्नि के समान और क्षमा में पृथिवी के सदृश हैं, त्याग में कुबेर और सत्य में द्वितीय धर्मराज के समान हैं। इस प्रकार उत्तम गुणों से युक्त और सत्य पराक्रम वाले सद्गुणशाली अपने प्रियतम ज्येष्ठ पुत्र को, जो प्रजा के हित में संलग्न रहने वाले थे, प्रजावर्ग का हित करने की इच्छा से राजा दशरथ ने प्रेमवश युवराज पद पर अभिषिक्त करना चाहा।'

तदनन्तर राम के राज्याभिषेक की तैयारियों देख कर रानी कैकेयी ने, जिसे पहले ही वर दिया जा चुका था, राजा से यह वर माँगा कि राम का निर्वासन (बनवास) और भरत का राज्याभिषेक हो। राजा दशरथ ने सत्य वचन के कारण धर्म-बन्धन में बँध कर प्यारे पुत्र राम को वनवास दे दिया। कैकेयी का प्रिय करने के लिये पिता की आज्ञा के अनुसार उनकी प्रतिज्ञा का पालन करते हुए वीर रामचन्द्र वन को चले । तब सुमित्रा के आनन्द बढ़ाने वाले विनयशील लक्ष्मणजी ने भी, जो अपने बड़े भाई राम को बहुत ही प्रिय थे, अपने सुबन्धुत्वका परिचय देते हुए नेहवश वन को जाने वाले बन्धुवर राम का अनुसरण किया।और जनक के कुल में उत्पन्न सीता भी, जो अवतीर्ण हुई देवमाया की भाँति सुन्दरी, समस्त शुभ लक्षणों से विभूषित, स्त्रियों में उत्तम, राम के प्राणों के समान प्रियतमा पत्नी तथा सदा ही पति का हित चाहनेवाली थी, रामचन्द्रजी के पीछे चली; जैसे चन्द्रमा के पीछे रोहिणी चलती है। उस समय पिता दशरथ ने अपना सारथि भेजकर और पुरवासी मनुष्यों ने स्वयं साथ जाकर दूर तक उनका अनुसरण किया। फिर श्रृंगवेरपुर में गंगा-तट पर अपने प्रिय निषाद राज गुह के पास पहुँचकर धर्मात्मा श्रीरामचन्द्र जी ने सारथि को अयोध्याके लिये बिदा कर दिया। निषादराज गुह, लक्ष्मण और सीता के साथ राम-ये चारों एक वन से दूसरे वन में गये। मार्ग में बहुत जलोंवाली अनेकों नदियों को पार करके भरद्वाज के आश्रमपर पहुँचे और गुह को वहीं छोड़ भरद्वाज मुनि की आज्ञा से चित्रकूट पर्वत पर गये। वहाँ वे तीनों देवता और गन्धर्व के समान वन में नाना प्रकार की लीलाएँ करते हुए एक रमणीय पर्णकुटी बनाकर उसमें सानन्द रहने लगे। राम के चित्रकूट चले जाने पर पुत्रशोक से पीडित राजा दशरथ उस समय पुत्र के लिये उसका नाम ले-लेकर विलाप करते हुए स्वर्गगामी हुए । उन के स्वर्गगमन के पश्चात् वसिष्ठ आदि प्रमुख ब्राह्मणों द्वारा राज्यसंचालन के लिये नियुक्त किये जाने पर भी महाबलशाली वीर भरत ने राज्य की कामना न करके पूज्य राम को प्रसन्न करनेके लिये वन को ही प्रस्थान किया। वहाँ पहुँचकर सद्भावनायुक्त भरतजी ने अपने बड़े भाई सत्यपराक्रमी महात्मा राम से याचना की और यों कहा - धर्मज्ञ ! आप ही राजा हों । परंतु महान् यशस्वी परम उदार प्रसन्नमुख महाबली राम ने भी पिता के आदेश का पालन करते हुए राज्य की अभिलाषा न की और उन भरताग्रज ने राज्य के लिये  चिह्न रूप में अपनी खड़ाऊँ भरत को देकर उन्हें बार-बार आग्रह करके लौटा दिया।

भाग 2

अपनी अपूर्ण इच्छा को लेकर ही भरत ने राम के चरणों का स्पर्श किया और राम के आगमन की प्रतीक्षा करते हुए वे नन्दिग्राम में राज्य करने लगे । भरत के लौट जाने पर सत्यप्रतिज्ञ जितेन्द्रिय श्रीमान् राम ने वहाँ पर पुनः नागरिक जनों का आना-जाना देखकर उनसे बचनेके लिये एकाग्रभाव से दण्डकारण्य में प्रवेश किया। उस महान् वन में पहुँचने पर कमललोचन राम ने विराध नामक राक्षस को मार कर शरभंग, सुतीक्ष्ण, अगस्त्य मुनि तथा अगस्त्य के भ्राता का दर्शन किया।फिर अगस्त्य मुनि के कहने से उन्होंने ऐन्द्र धनुष, एक खंग और दो तूणीर, जिनमें बाण कभी नहीं घटते थे,प्रसन्नतापूर्वक ग्रहण किये। एक दिन वन में वनचरों के साथ रहने वाले श्रीराम के पास असुर तथा राक्षसों के वध के लिये निवेदन करने को वहाँ के सभी ऋषि आये ।उस समय वन में श्रीराम ने दण्डकारण्यवासी अग्नि के समान तेजस्वी उन ऋषियों को राक्षसों को मारने का वचन दिया और संग्राम में उनके वध की प्रतिज्ञा की।वहाँ ही रहते हुए श्रीराम ने इच्छानुसार रूप बनाने वाली जनस्थाननिवासिनी शूर्पणखा नाम की राक्षसी को लक्ष्मण के द्वारा उसकी नाक कटाकर कुरूप कर दिया ।तब शूर्पणखा के कहने से चढ़ाई करने वाले सभी राक्षसों को और खर, दूषण, त्रिशिरा तथा उन के पृष्ठपोषक असुरों को राम ने युद्ध में मार डाला ।उस वन में निवास करते हुए उन्होंने जनस्थान वासी चौदह हजार राक्षसों का वध किया ।तदनन्तर अपने कुटुम्ब का वध सुनकर रावण नाम का राक्षस क्रोध से क्रोधित हो उठा और उसने मारीच राक्षस से सहायता माँगी ।यद्यपि मारीच ने यह कहकर कि 'रावण! उस बलवान् राम के साथ तुम्हारा विरोध ठीक नहीं है।' रावण को अनेकों बार मना कियाः परंतु काल की प्रेरणा से रावण ने मारीच के वाक्यों को टाल दिया और उसके साथ ही राम के आश्रम पर गया।

मायावी मारीच के द्वारा उस ने दोनों राजकुमारों को आश्रम से दूर हटा दिया और स्वयं राम की पत्नी सीता का अपहरण कर लिया, जाते समय मार्ग में विध्न डालने के कारण उसने जटायु नामक गीध का वध किया। तत्पश्चात् जटायु को आहत देखकर और उसी के मुख से सीता का हरण सुनकर रामचन्द्रजी शोक से पीड़ित होकर विलाप करने लगे, उस समय उनकी सभी इन्द्रियाँ व्याकुल हो उठी थीं । फिर उसी शोक में पड़े हुए उन्होंने जटायु गीध का अग्निसंस्कार किया और वन में सीता को ढूँढ़ते हुए कवन्ध नामक राक्षस को देखा, जो शरीर से विकृत तथा भयंकर दीखने वाला था। महाबाहु राम ने उसे मारकर उसका भी दाह किया, अतः वह स्वर्ग को चला गया। जाते समय उसने राम से धर्मचारिणी शबरी का पता बतलाया और कहा- 'रघुनन्दन ! आप धर्मपरायणा संन्यासिनी शबरी के आश्रम पर जाइये ।

शत्रुहन्ता महान् तेजस्वी दशरथकुमार राम शबरी के यहाँ गये, उसने इनका भलीभाँति पूजन किया। फिर वे पम्पासर के तटपर हनुमान् नामक वानर से मिले और उन्हीं के कहने से सुग्रीव से भी मेल किया।तदनन्तर महाबलवान् राम ने आदि से ही लेकर जो कुछ हुआ था वह और विशेषतः सीता का वृत्तान्त सुग्रीव से कह सुनाया । वानर सुग्रीव ने राम की सारी बातें सुन कर उनके साथ प्रेमपूर्वक अग्नि को साक्षी बनाकर मित्रता की। उसके बाद वानरराज सुग्रीव ने नेहवश वाली के साथ वैर होने की सारी बातें राम से दुःखी होकर बतलायीं। उस समय राम ने वाली को मारने की प्रतिज्ञा की, तव वानर सुग्रीव ने वहाँ वाली के बल का वर्णन किया; क्योंकि सुग्रीव को राम के बल के विषय में बराबर शंका बनी रहती थी। राम की प्रतीति के लिये उन्होंने दुन्दुभि दैत्य का महान् पर्वत के समान विशाल शरीर दिखलाया । महाबली महाबाहु श्रीराम ने तनिक मुसकरा कर उस अस्थि समूह को देखा और पैर के अँगूठे से उसे दस योजन दूर फेक दिया।

फिर एक ही महान् बाण से उन्होंने अपना विश्वास दिलाते हुए सात ताल वृक्षों को और पर्वत तथा रसातल को बींध डाला। तदनन्तर राम के इस कार्य से महाकपि सुग्रीव मन-ही-मन प्रसन्न हुए और उन्हें राम पर विश्वास हो गया। फिर वे उनके साथ किष्किन्धा गुहा में गये ।वहाँ पर सुवर्ण के समान पिंगल वर्ण वाले वीरवर सुग्रीव ने गर्जना की, उस महानाद को सुनकर वानर राज वाली अपनी पत्नी तारा को आश्वासन देकर तत्काल घर से बाहर निकला और सुग्रीव से भिड़ गया। वहाँ राम ने वाली को एक ही बाण से मार गिराया ।

सुग्रीव के कथनानुसार उस संग्राम में वाली को मारकर उसके राज्यपर राम ने सुग्रीव को ही बिठा दिया। तब उन वानर राज ने भी सभी वानरों को बुलाकर जानकी का पता लगाने के लिये उन्हें चारों दिशाओं में भेजा।तत्पश्चात् सम्पाति नामक गीध के कहने से बलवान् हनुमानजी सौ योजन विस्तार वाले क्षार समुद्र को कूदकर लाँघ गये ।वहाँ रावण पालित ल‌ङ्कापुरी में पहुँचकर उन्होंने अशोक वाटिका में सीता को चिन्तामग्न देखा। तब उन विदेहनन्दिनी को अपनी पहचान देकर राम का संदेश सुनाया और उन्हें सान्त्वना देकर उन्होंने वाटिका का द्वार तोड़ डाला । फिर पाँच सेनापतियों और सात मन्त्रिकुमारों की हत्या कर वीर अक्षकुमार का भी कचूमर निकाला, इसके बाद वे जान-बूझकर पकड़े गये ।

ब्रह्माजी के वरदान से अपने को ब्रह्म पाश से छूटा हुआ जानकर भी वीर हनुमानजी ने अपने को बाँधनेवाले उन राक्षसों का अपराध स्वेच्छानुसार सह लिया । तत्पश्चात् मिथिलेशकुमारी सीता के स्थान के अतिरिक्त समस्त लङ्का को जलाकर वे महाकपि हनुमानजी राम को प्रिय संदेश सुनाने के लिये लंका से लौट आये ।अपरिमित बुद्धिशाली हनुमानजी ने वहाँ जा महात्मा राम की प्रदक्षिणा करके यों सत्य निवेदन किया- मैंने सीताजी का दर्शन किया है । इसके अनन्तर सुग्रीव के साथ भगवान् राम ने महासागर के तटपर जाकर सूर्य के समान तेजस्वी बाणों से समुद्र को क्षुब्ध किया। तब नदीपति समुद्र ने अपने को प्रकट कर दिया, फिर समुद्र के ही कहने से राम ने नल से पुल निर्माण कराया। उसी पुल से लड्‌ङ्कापुरी में जाकर रावण को मारा, फिर सीता के मिलने पर राम को बड़ी लज्जा हुई।तब भरी सभा में सीता के प्रति वे मर्मभेदी वचन कहने लगे। उनकी इस बात को न सह सकने के कारण साध्वी सीता अग्नि में प्रवेश कर गयीं । इसके बाद अग्नि के कहने से उन्होंने सीता को निष्कलङ्क माना। महात्मा रामचन्द्रजी के इस महान् कर्म से देवता और ऋषियोंसहित चराचर त्रिभुवन संतुष्ट हो गया।

फिर सभी देवताओं से पूजित होकर राम बहुत ही प्रसन्न हुए और राक्षसराज विभीषण को ल‌ङ्का के राज्य पर अभिषिक्त करके कृतार्थ हो गये। उस समय निश्चिन्त होने के कारण उनके आनन्द का ठिकाना न रहा। यह सब हो जाने पर राम देवताओं से वर पाकर और मरे हुए वानरों को जीवन दिलाकर अपने सभी साथियों के साथ पुष्पक विमान पर चढ़कर अयोध्या के लिये प्रस्थित हुए। भरद्वाज मुनि के आश्रम पर पहुँचकर सबकों आराम देनेवाले सत्यपराक्रमी राम ने भरत के पास हनुमान को भेजा ।

फिर सुग्रीव के साथ कथा-वार्ता कहते हुए पुष्पकारूढ़ हो वे नन्दिग्रामको गये । निष्पाप रामचन्द्रजी ने नन्दिग्राम में अपनी जटा कटाकर भाइयों के साथ, सीता को पाने के अनन्तर, पुनः अपना राज्य प्राप्त किया है।अब राम के राज्य में लोग प्रसन्न, सुखी, संतुष्ट, पुष्ट, धार्मिक तथा रोग-व्याधिसे मुक्त रहेंगे, उन्हें दुर्भिक्ष का भय न होगा। कोई कहीं भी अपने पुत्र की मृत्यु नहीं देखेंगे, स्त्रियाँ विधवा न होंगी, सदा ही पतिव्रता होंगी। आग लगने का किंचित् भी भय न होगा, कोई प्राणी जल में नहीं डूबेंगे, बात और ज्वर का भय थोड़ा भी नहीं रहेगा। क्षुधा तथा चोरी का डर भी जाता रहेगा, सभी नगर और राष्ट्र धन-धान्य सम्पन्न होंगे। सत्ययुग की भाँति सभी लोग सदा प्रसन्न रहेंगे।

महायशस्वी राम बहुत-से सुवर्णों की दक्षिणा वाले सौ अश्वमेध यज्ञ करेंगे, उनमें विधिपूर्वक विद्वानों को दस हजार करोड़ (एक खरब) गौ और ब्राह्मणों को अपरिमित धन देंगे तथा सौगुने राजवंशों की स्थापना करेंगे। संसार में चारों वर्णोंको वे अपने-अपने धर्ममें नियुक्त रखेंगे। फिर ग्यारह हजार वर्षों तक राज्य करने के अनन्तर श्रीरामचन्द्रजी अपने परमधाम को पधारेंगे ।

'वेदोंके समान पवित्र, पापनाशक और पुण्यमय इस रामचरितको जो पढ़ेगा, वह सब पापोंसे मुक्त हो जायगा।आयु बढ़ानेवाली इस रामायण-कथा को पढ़नेवाला मनुष्य मृत्यु के अनन्तर पुत्र, पौत्र तथा अन्य परिजनवर्ग के साथ ही स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होगा । इसे ब्राह्मण पढ़ें तो विद्वान् हो, क्षत्रिय पढ़ता हो तो पृथ्वीका राज्य प्राप्त करे, वैश्य को व्यापार में लाभ हो और शूद्र भी प्रतिष्ठा प्राप्त करे ।

इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके बालकाण्डमें पहला सर्ग पूरा हुआ।

मंगलवार, 19 नवंबर 2024

 मेरे जीवन साथी, मेरे अनमोल रत्न,

तुमसे ही है ये संसार सुहाना।


हर पल, हर घड़ी तुम साथ हो मेरे,

तुमसे ही रोशन हैं जीवन के सवेरे।


तुम्हारी हंसी, जैसे फूलों की महक,

तुम्हारा साथ, जैसे जीवन की चहक।


हर मुश्किल राह में तुमने साथ निभाया,

हर दर्द में मुझे अपने सीने से लगाया।


तुमने मेरे सपनों को अपना माना,

मेरे हर फैसले में अपना विश्वास जताया।


तुम हो मेरे हर सुख-दुख के साक्षी,

तुमसे ही पूरा हूं मैं मेरे जीवन साथी।


तुम्हारा प्यार, मेरी ताकत, मेरी शान,

तुमसे जुड़ा है मेरा हर अरमान।


तुमसे ही सीखा मैंने जीने का ढंग,

तुम हो मेरे जीवन का सबसे मीठा रंग।


ओ मेरे साथी, मेरे जीवन का आधार,

तुम हो मेरे दिल का अनमोल उपहार।


साथ जिएंगे, साथ बढ़ेंगे यूं ही हर पल,

तुमसे ही सजेगा हमारा ये जीवन पल।


शशि कांता, मेरी जीवनसंगिनी, मेरी प्राण,

तुम्हारे साथ जीवन है सबसे बड़ा वरदान।


तुम्हारे बिना अधूरी मेरी हर खुशी,

तुम हो मेरे जीवन की सबसे बड़ी पूंजी।

मंगलवार, 5 नवंबर 2024

 हमारे देश में अरबी बोली नही जाती, बल्कि खाई जाती है.!!

चीनी भी बोली नहीं जाती, सिर्फ खाई जाती है..!!

उसी तरह अंग्रेजी भी उतनी बोली नही जाती, जितनी पी जाती है.!!

और हिंदी बहुत ही शक्तिशाली भाषा है..!! क्योंकि जैसे ही कोई कहता है...... हिंदी में समझाऊं क्या तुरंत सारे समझ जाते हैं, इसलिए हिन्दी का सम्मान करें

गुरुवार, 10 अक्टूबर 2024

दस महाविद्या


 लड़की पन्द्रह-सोलह साल की थी। खूबसूरत बेहिसाब खूबसूरत। गोरी ऐसी कि लगे हाथ लगते ही कहीं रंग ना मैला हो जाये। नैन नक्श ऐसे तीखे कि देखने वाल...