आदमी हँसता हुआ, खिलखिलाता हुआ रहता है, उसके चारों ओर खुशियाँ छाई रहती हैं। हँसने-हँसाने वाले खुद भी खिलखिलाते रहते हैं और दूसरों को भी हँसाते रहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण को देखिए-हँसने वाले भगवान, हँसाने वाले भगवान, रास करने वाले भगवान, नाचने वाले भगवान, बाँसुरी बजाने वाले भगवान, साहित्यकार और कलाकार भगवान, संगीत से प्रेम करने वाले भगवान। अरे आप इनसे कुछ तो सीखें और अपनी सारी जिंदगी को हलका बनाकर जिएँ। सारी जिंदगी हर समय मुँह फुलाकर रहने से जिंदगी जी नहीं जा सकती। इस तरह से आप खुद भी नाखुश रहेंगे और रोकर जिएँगे। शिकायतों पर जिएँगे, तो आप मर जाएँगे। जिंदगी इतनी भारी हो जाएगी कि उसे फिर ठीक नहीं कर पाएँगे। उसके नीचे आप दब जाएँगे, कुचल जाएँगे। अगर आप लंबी उम्र तक जिंदा और स्वस्थ रहना चाहते हैं, तब आप हँसने हँसाने की कला सीखें। अगर आपको हँसना आता है, तो समझिए कि जिंदगी के राज को आप समझते हैं।
हँसी के लिए, हँसने हँसाने के लिए ढेरों चीज हमारे पास हैं। आपके पास हर चीज नहीं है, तो क्या आप चिड़चिड़ाते हुए, शिकायत करते हुए बहुमूल्य जीवन को यों ही बरबाद कर देंगे ? क्या आपको निखिल आकाश हँसता हुआ दिखाई नहीं देता। अगर आप कवि हृदय हैं, सरस हृदय हैं, तो आपको सब कुछ हँसता हुआ दिखाई पड़ सकता है। आकाश में बादल आते हैं, घुमड़ते हुए-बरसते हुए दिखाई पड़ते हैं, क्या आप इनका आनंद नहीं ले सकते ? नदियाँ कलकल करती हुई बहती हैं, क्या आप इनका आनंद नहीं ले सकते ? आपको इनका आनंद लेना चाहिए और आपको कलाकार होना चाहिए। जिंदगी जीने की कला को आपको समझना चाहिए। जिंदगी में आनंद के अनुभव होने चाहिए। जीवन में हँसने का समय होना चाहिए, हँसाने का समय होना चाहिए।
भगवान को हम कलाकार कहते हैं। श्रीकृष्ण भगवान ने रासलीला के माध्यम से हलकी-फुलकी जिंदगी, हँसने-हँसाने वाली जिंदगी की कला सिखाई। रासलीला गाने की विद्या है, नृत्य की विद्या है। नहीं साहब ! श्रीकृष्ण भगवान ने तो हँसने-हँसाने की विद्या बहुत छोटेपन में सीखी थी, हम तो उम्र में बड़े हो गए हैं। बड़ी उम्र के हों तो क्या, योगी हों तो क्या, तपस्वी हों तो क्या, ज्ञानी हों तो क्या, महात्मा हों तो क्या ? हँसना आपको भी आना चाहिए, हँसाना आपको भी आना चाहिए। जिसके चेहरे पर हँसी नहीं आती है, उसे बस मरा ही समझो। श्रीकृष्ण भगवान ने वह कला सिखाई, जिसको हम जिंदगी का प्राण कह सकते हैं, जीवन कह सकते हैं। 'रास' इसी का नाम है। आप महाभारत पढ़ लीजिए, भागवत पढ़ लीजिए, जिस समय तक उन्होंने रासलीला की है, तब उनकी उम्र दस साल की थी। दसवें साल तक सब रासलीला बंद हो गई थी। सात साल की उम्र से प्रारंभ हुई थी और दस साल की उम्र में सब रासलीला खत्म हो गई थी। दस साल से ज्यादा में कोई रासलीला नहीं खेली गई। उसमें कामुकता नहीं थी, ब्याह-शादी की कोई बात नहीं थी।
तब उसमें क्या बात थी ? उसमें था हर्षमय- आनंदमय जीवन, उसमें कन्हैया ने चाहा कि छोटे- छोटे बच्चे हों, साथ-साथ घुल-मिलकर हँसें खेलें।
स्त्री पुरुष के बीच शालीनता का क्या फरक होना चाहिए, शील और आचरण का क्या फरक होना चाहिए, यह जानें। अगर एक दूसरे को अलग कर देंगे, काट देंगे, तो फिर आप किस तरह से जिएँगे ? माँ बेटे साथ साथ नहीं रहेंगे, तो किसके साथ रहेंगे ? बाप बेटी, भाई बहन साथ साथ नहीं रहेंगी। बेटी बाप की गोदी में नहीं जाएगी, क्योंकि वह स्त्री है और ये पुरुष है। दोनों को अलग कीजिए, छूने मत दीजिए। औरत को इस कोने में बिठाइए और मरद को उस कोने में बिठाइए। अरे भाई, ये कहाँ का न्याय है ? स्त्री और पुरुष कंधे से कंधा मिलाकर काम करें, गाड़ी के दो पहियों के तरीके से काम करें, तो ही जीवन में आनंद है, प्रगति है:
श्रीकृष्ण भगवान ने उस जमाने में लड़के लड़कियों की एक सेना पैदा की और उसे एक दिशा दी। उन्होंने कहा कि लड़के और लड़कियों में अंतर करने से क्या होगा ? हम और आप सब बच्चे हैं।
उस जमाने का पुरुषवादी समाज, परस्त्रीगामी समाज, जिसमें पाप और अनाचार का बंधन नहीं लगाया गया था, केवल स्त्री-पुरुष को अलग रखने की व्यवस्था की गई थी। जहाँ शील आँखों में रहता है, उस पर ध्यान नहीं दिया गया था, केवल शारीरिक बंधनों में शील की रक्षा करने की कोशिश की गई थी, श्रीकृष्ण भगवान ने उसे तोड़ने की कोशिश की।
भगवान श्रीकृष्ण का जीवन सिद्धांतों का जीवन था, आदर्शों का जीवन था। उनकी सारी लीलाएँ सिद्धांतों और आदर्शों को प्रख्यात करने वाले जीवन से ओत-प्रोत थीं।
बात चल रही थी श्रीकृष्ण भगवान की। कृष्ण भगवान का रास्ता दूसरा था। रामावतार में जो अभाव रह गया था, जो कमी रह गई थी, जो अपूर्णता रह गई थी, वह उन्होंने पूरी की। इस बात से फायदा यह हुआ कि यदि शरीफों से वास्ता न पड़े, तब क्या करना चाहिए? खराब लोगों से वास्ता पड़े तब, खराब भाई हो तब, खराब मामा हो तब,खराब रिश्तेदार हों तब, क्या करना चाहिए? तब के लिए श्रीकृष्ण भगवान ने नया रास्ता खोला। इसमें विकल्प हैं। इसमें शरीफों के साथ शराफत से पेश आइए। जहाँ पर न्याय की बात कही जा रही है, उचित बात कही जा रही है, इनसाफ की बात कही जा रही है, वहाँ पर आप समता रखिए और उसको मानिए और आप नुकसान उठाइए। लेकिन अगर आपको गलत बात कही जा रही है, सिद्धांतों की विरोधी बात कही जा रही है, तो आप इनकार कीजिए और उससे लड़िए और यदि जरूरत पड़े, तो उनका मुकाबला कीजिए और मारिए।
कंस श्रीकृष्ण भगवान के रिश्ते में मामा लगता था। लेकिन वह अत्याचारी और आततायी था। अतः उन्होंने यह नहीं देखा कि रिश्ते में कंस हमारा कौन होता है। उन्होंने न केवल स्वयं ऐसा किया वरन अर्जुन से भी कहा कि रिश्तेदार वो हैं, जो सही रास्ते पर चलते है। सही रास्ते पर चलने वालों का सम्मान करना चाहिए, उनकी आज्ञा माननी चाहिए, उनका कहना मानना चाहिए। उनके साथ-साथ चलना चाहिए। लेकिन अगर हमको कोई गलत बात सिखाई जाती है, तो उसे मानने से इनकार कर देना चाहिए।
कृष्ण भगवान की दिशाएँ और शिक्षाएँ यही थीं कि कोई हमारा रिश्तेदार नहीं है। हमारा रिश्तेदार सिर्फ एक है और उसका नाम है- धर्म। हमारा रिश्तेदार एक है और उसका नाम है- कर्त्तव्य। आप ठीक रास्ते पर चलते हैं, तो हम आपके साथ हैं और आपके हिमायती हैं। बाप के साथ हैं, रिश्तेदार के साथ हैं। अगर आप गलत रास्ते पर चलते हैं, तो आप रिश्ते में हमारे कोई नहीं होते। हम आपकी बात को नहीं मानेंगे और आपको उजाड़कर रख देंगे।
ये हैं श्रीकृष्ण भगवान के जीवन की गाथाएँ, जो राम के जीवन की विरोधी नहीं हैं, वरन पूरक हैं। राम के अवतार में जो कमी रह गई थी, उसे कृष्ण अवतार में पूरा किया। राम का वास्ता अच्छे आदमियों से ही पड़ता रहा। अच्छे संबंधी मिलते रहे। उन्हें सुमंत मिले तो अच्छे, कौशल्या मिलीं तो अच्छी, कहना मानना चाहिए। उनके साथ-साथ चलना चाहिए। लेकिन अगर हमको कोई गलत बात सिखाई जाती है, तो उसे मानने से इनकार कर देना चाहिए।
कृष्ण भगवान की दिशाएँ और शिक्षाएँ यही थीं कि कोई हमारा रिश्तेदार नहीं है। हमारा रिश्तेदार सिर्फ एक है और उसका नाम है- धर्म। हमारा रिश्तेदार एक है और उसका नाम है- कर्त्तव्य। आप ठीक रास्ते पर चलते हैं, तो हम आपके साथ हैं और आपके हिमायती हैं। बाप के साथ हैं, रिश्तेदार के साथ हैं। अगर आप गलत रास्ते पर चलते हैं, तो आप रिश्ते में हमारे कोई नहीं होते। हम आपकी बात को नहीं मानेंगे और आपको उजाड़कर रख देंगे।
ये हैं श्रीकृष्ण भगवान के जीवन की गाथाएँ, जो राम के जीवन की विरोधी नहीं हैं, वरन पूरक हैं। राम के अवतार में जो कमी रह गई थी, उसे कृष्ण अवतार में पूरा किया। राम का वास्ता अच्छे आदमियों से ही पड़ता रहा। अच्छे संबंधी मिलते रहे। उन्हें सब शरीफ ही मिलते गए। अगर शरीफ आदमी न मिलते तो क्या करते ? तब श्रीकृष्ण भगवान ने जो लीला करके दिखाई, वही वे भी करते। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि तू लड़ चाहे तेरे गुरु हों या कोई भी क्यों न हों।
भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी सारी जिंदगी बादलों के तरीके से जी। उन्होंने कहा- "हमारा कोई गाँव नहीं है। सारा गाँव हमारा है। जहाँ कहीं भी हमारी जरूरत होगी, हम वहाँ पर जाएँगे।" वे कहाँ पैदा हुए ? वे मथुरा में पैदा हुए, फिर गोकुल में बसे, वहाँ गाय चराई। उज्जैन में पढ़ाई लिखाई की। दिल्ली में कुरुक्षेत्र में लड़ाई झगड़े में भाग लिया और फिर न जाने कहाँ कहाँ मारे मारे फिरते रहे। आखिर में कहाँ चले गए ? आखिर में द्वारिका चले गए। आपके ऊपर तो 'होम सिकनेस' हावी हो गई है, जो घर से आपको निकलने नहीं देती। अरे साहब ! घर से बाहर कैसे निकलें, हमें तो घरवालों की याद आती है, हमारा पोता याद करता होगा, पोती याद करती होगी। हम अपने घर से बाहर नहीं जाएँगे, गाँव में ही हवन कर लेंगे। सौ कुंडीय यज्ञ तो हमारे गाँव में ही होगा। मंदिर बनेगा तो हमारे गाँव में ही बनेगा। अस्पताल बनेगा तो हमारे गाँव में ही बनेगा। गाँव- गाँव रट लगाता रहता है। श्रीकृष्ण भगवान ने इस मान्यता को समाप्त किया और कहा कि सारे गाँव हमारे हैं। हर जगह हमारी जन्मभूमि है। वे दो बार मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश गए, दिल्ली गए। वे सब प्रदेशों में गए बादलों के तरीके से। महापुरुषों की कोई जन्मभूमि नहीं होती, कोई गाँव नहीं होता, वरन सारा संसार ही उनका अपना घर होता है।