गृहस्थ जीवन में जितने भी सुख हैं, वे सब दाम्पत्य जीवन की सफलता पर निर्भर हैं। दाम्पत्य जीवन सुखी न हुआ तो अनेक तरह के वैभव होने पर भी मनुष्य सुखी, सन्तुष्ट तथा स्थिरचित्त न रह सकेगा। जिनके दाम्पत्य जीवन में किसी तरह का क्लेश कटुता तथा संघर्ष नहीं होता वे लोग बल, उत्साह और साहसयुक्त बने रहते हैं। गरीबी में भी मौज का जीवन बिताने की क्षमता दाम्पत्य जीवन की सफलता पर निर्भर है, इसे प्राप्त किया ही जाना चाहिए।
गीता का एक-एक अध्याय अपने में पूर्ण है। गीता एक किताब नहीं, अनेक किताबें है। गीता का एक अध्याय अपने में पूर्ण है। अगर एक अध्याय भी गीता का ठीक से समझ में आ जाए--समझ का मतलब, जीवन में आ जाए, अनुभव में आ जाए, खून में, हड्डी में आ जाए; मज्जा में, मांस में आ जाए; छा जाए सारे भीतर प्राणों के पोर-पोर में--तो बाकी किताब फेंकी जा सकती है। फिर बाकी किताब में जो है, वह आपकी समझ में आ गया। न आए, तो फिर आगे बढ़ना पड़ता है।
सोमवार, 29 जुलाई 2024
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
लड़की पन्द्रह-सोलह साल की थी। खूबसूरत बेहिसाब खूबसूरत। गोरी ऐसी कि लगे हाथ लगते ही कहीं रंग ना मैला हो जाये। नैन नक्श ऐसे तीखे कि देखने वाल...
-
यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः । तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसङ्गः समाचर ॥ ९ ॥ यज्ञ - अर्थात् एकमात्र यज्ञ या विष्णु के लिए किया...
-
एक दिन श्यामसुन्दर कह रहे थे, 'मैया! मुझे माखन भाता है; तू मेवा-पकवान के लिये कहती है, परन्तु मुझे तो वे रुचते ही नहीं।' वहीं पीछे ...
-
परमात्मा समर्पित कर्म यस्त्विन्द्रियाणि मनसा नियम्यारभतेऽर्जुन । कर्मेन्द्रियैः कर्मयोगमसक्तः स विशिष्यते ॥ ७ ॥ यः - जो; तु- लेकिन; इन्द्रिय...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें