सोमवार, 30 अगस्त 2021

श्रीमद्भागवत

 जो लोग श्रीमद्भागवत को या गीता को केवल साहित्य मानते हैं, लिटरेचर मानते हैं, ऐतिहासिक घटनाएं नहीं, जो ऐसा नहीं मानते कि कृष्‍ण और अर्जुन के बीच जो घटना घटी है, वह वस्तुत: घटी है; जो ऐसा भी नहीं मानते कि संजय ने किसी वास्तविक घटना की खबर दी है या कि धृतराष्ट्र कोई वास्तविक व्यक्ति हैं, बल्कि जो मानते हैं कि वे चारों, व्यास ने जो महासाहित्य लिखा है, उसके चार पात्र हैं।

जो ऐसा मानते हैं, उनके लिए तो व्यास की प्रतिभा मौलिक हो जाती है, मूल आधार हो जाती है और शेष सब पात्र हो जाते हैं। तब तो सारा व्यास की ही प्रतिभा का खेल है।  इस महाकाव्य में  सब पात्र हैं और व्यास की प्रतिभा से जन्मे हैं।

ऐसा भारतीय परंपरा का मानना नहीं है। और न ही जो धर्म को समझते हैं, वे ऐसा मानने को तैयार हो सकते हैं। तब स्थिति बिलकुल उलटी हो जाती है। तब व्यास केवल लिपिबद्ध करने वाले रह जाते हैं। तब घटना तो कृष्‍ण और अर्जुन के बीच घटती है। उस घटना को पकड़ने वाला संजय है। वह पकड़ने की घटना संजय और धृतराष्ट्र के बीच घटती है। लेकिन उसे लिपिबद्ध करने का काम हमारे और व्यास के बीच घटित होता है। वह तीसरा तल है। जो हुआ है, उसे संजय ने कहा है। जो संजय ने कहा है धृतराष्ट्र को, उसे व्यास ने संगृहीत किया है, उसे लिपिबद्ध किया है।

अगर साहित्य है केवल, तब तो व्यास निर्माता हैं, और कृष्ण, अर्जुन, संजय, धृतराष्ट्र, सब उनके हाथ के खिलौने हैं। अगर यह वास्तविक घटना है, अगर यह इतिहास है, न केवल बाहर की आंखों से देखे जाने वाला, बल्कि भीतर घटित होने वाला भी, तब व्यास केवल लिपिबद्ध करने वाले रह जाते हैं। वे केवल लेखक हैं। और पुराने अर्थों में लेखक का इतना ही अर्थ था, वह लिपिबद्ध कर रहा है।

हमारे और व्यास के बीच गहरा संबंध है। क्योंकि संजय ने जो कहा है, वह धृतराष्ट्र से कहा है। अगर बात कही हुई ही होती, तो खो गई होती। हमारे लिए संगृहीत व्यास ने किया। हमारे तो निकटतम व्यास हैं। लेकिन मूल घटना कृष्ण और अर्जुन के बीच घटी, और मूल घटना को शब्दों में पकड़ने का काम संजय और धृतराष्ट्र के बीच हुआ है। हमारे और व्यास के बीच भी कुछ घट रहा है—उन शब्दों को संगृहीत करने का।

और इसीलिए व्यास के नाम से बहुत से ग्रंथ हैं। और जो लोग पाश्चात्य शोध के नियमों को मानकर चलते हैं, उन्हें बड़ी कठिनाई होती है कि एक ही व्यक्ति ने, एक ही व्यास ने इतने ग्रंथ कैसे लिखे होंगे

सच तो यह हैं कि व्यास से व्यक्ति के नाम का कोई संबंध नहीं है। व्यास तो लिखने वाले को कहा गया है। किसी ने भी लिखा हो, व्यास ने लिखा है, लिखने वाले ने लिखा है। कोई एक व्यक्ति ने ये सारे शास्त्र नहीं लिखे हैं। लेकिन लिखने वाले ने अपने को कोई मूल्य नहीं दिया, क्योंकि वह केवल लिपिबद्ध कर रहा है। उसके नाम की कोई जरूरत भी नहीं है। जैसे टेप—रिकार्डर रिकार्ड कर रहा हो, ऐसे ही कोई व्यक्ति लिपिबद्ध कर रहा हो, तो लिपिबद्ध करने वाले ने अपने को कोई मूल्य नहीं दिया। और इसलिए एक सामूहिक संबोधन, व्यास, जिसने लिखा। वह सामूहिक संबोधन है; वह किसी एक व्यक्ति का नाम भी नहीं है।

लेकिन हमारे लिए तो लिखी गई बात अत्यंत महत्वपूर्ण है, इसलिए व्यास को हमने महर्षि कहा है। जिसने लिखा है, उसने हमारे लिए संगृहीत किया है, अन्यथा बात खो जाती।

निश्चित ही, संजय के कहने में और व्यास के लिखने में कोई अंतर नहीं है, क्योंकि लिखने में और कहने में किसी अंतर की कोई जरूरत नहीं है। अंतर तो घटित हुआ है, कृष्ण के देखने में और संजय के कहने में। जो कहा जा सकता है, वह लिखा भी जा सकता है। लिखना और कहना दो विधियां हैं। कहने में और लिखने में कोई अंतर पड़ने की जरूरत नहीं है।

 वे परिधि के बाहर हैं। हमारे लिए उनकी बहुत जरूरत है। हमारे पास गीता बचती भी नहीं। व्यास के बिना बचने का कोई उपाय न था।  ये चार व्यक्ति ही घटना के भीतर गहरे हैं। व्यास का होना बाहर है, परिधि पर है।

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