मंगलवार, 31 अगस्त 2021

 अगर ईश्वर के राज्य में पहुंचना ही लक्ष्य हो, तो ईश्वर ने हमें पटका क्यों है? वह हमें पहले से ही राज्य(स्वर्ग) में बसा सकता था! अगर ईसाइयत कहती है कि चूंकि आदमी ने बगावत की ईश्वर के खिलाफ, अदम ने आज्ञा नहीं मानी और आदमी को संसार में भटकाना पड़ा। तो भी बड़ी हैरानी की बात लगती है कि अदम अवज्ञा कर सका, इसका मतलब यह है कि ईश्वर की ताकत अदम की ताकत से कम है। अदम बगावत कर सका, इसका मतलब यह होता है कि अदम जो है, वह ईश्वर से भी ज्यादा ताकत रखता है, बगावत कर सकता है, स्वतंत्र हो सकता है।


और बड़ी कठिनाई है कि अदम में यह बगावत का खयाल किसने डाला? क्योंकि ईसाइयत कहती है कि सभी कुछ का निर्माता ईश्वर है, तो इस आदमी को यह बगावत का खयाल किसने डाला? वे कहते हैं, शैतान ने। लेकिन शैतान को कौन बनाता है?


बड़ी मुसीबत है। धर्मों की भी बड़ी मुसीबत है। जो उत्तर देते हैं, उससे और मुसीबत में पड़ते हैं। शैतान को भी ईश्वर ने बनाया। इबलीस जो है, वह भी ईश्वर का बनाया हुआ है, और उसी ने इसको भड़काया!


तो ईश्वर को क्या इतना भी पता नहीं था कि इबलीस को मैं बनाऊंगा, तो यह आदमी को भड़कायेगा! और आदमी भड़केगा, तो पतित होगा। पतित होगा, तो संसार (जमीन) में जाएगा। और फिर ईसा मसीह को भेजो, साधु—संन्यासियों को भेजो, अवतारों को भेजो, कि मुक्त हो जाओ। यह सब उपद्रव! क्या उसे पता नहीं था इतना भी? क्या भविष्य उसे भी अज्ञात है? अगर भविष्य अज्ञात है, तो वह भी आदमी जैसा अज्ञानी है। और अगर भविष्य उसे ज्ञात है, तो सारी जिम्मेवारी उसकी है। फिर यह उपद्रव क्यों?

नहीं। हिंदुओं के पास एक अनूठा उत्तर है, जो जमीन पर किसी ने भी नहीं खोजा। वह दूसरा उत्तर है। वे कहते हैं, इस जगत का कोई प्रयोजन नहीं है, यह लीला है।


इसे थोड़ा समझ लें।


वे कहते हैं, इसका कोई प्रयोजन नहीं है, यह सिर्फ खेल है— जस्ट ए प्ले। यह बड़ा दूसरा उत्तर है। क्योंकि खेल में और काम में एक फर्क है। काम में प्रयोजन होता है, खेल में प्रयोजन नहीं होता।



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