सोमवार, 21 अगस्त 2023

सृष्टि की रचना

 परमात्‍मा ने दुनियां को बनाया। अब इस प्रश्‍न का उठना स्‍वाभाविक है: और वेद भी यही पूछते हैं कि उसने दुनियां को क्‍यों बनाया? इस अर्थ में वेद महान है। वे कहते है कि शायद उसे भी मालूम नहीं है क्‍यों? उस से उनका तात्‍पर्य  परमात्‍मा  से है। शायद इसका सृजन भोलेपन में ही हुआ, ज्ञान से नहीं। शायद वह सृजन नहीं कर रहा था। शायद वह उस बच्‍चे की तरह खेल रहा था जो रेत के घरौंदे बनाता है। क्‍या बच्‍चों को मालूम होता है कि वे घरौंदे किसके लिए बना रहे है। 

परमात्‍मा ने इस दुनिया को बनाया। उसने यह काम छह दिनों में समाप्‍त किया। अंत में उसने स्‍त्री को बनाया। स्‍वभावत: प्रश्‍न उठता है कि क्‍यों? उसने स्‍त्री को अंत में क्‍यों बनाया। स्‍त्री परमात्‍मा की सर्वश्रेष्‍ठ कृति है, परिपूर्ण है। पुरूष के सृजन के अनुभव के बाद ही उसने स्‍त्री की रचना की। पुरूष तो पुराना मॉडल है। परमात्‍मा ने स्‍त्री के रूप में अधिक परिष्‍कृत मॉडल तैयार किया।

 कुछ का मानना है कि पुरूष तो परमात्‍मा की अंतिम रचना है। परंतु पुरूष ने उससे इस प्रकार के प्रश्न पूछने शुरू किए, कि तुमने दुनिया को क्‍यों बनाया। या तुमने मुझे क्‍यों बनाया। परमात्‍मा इतना परेशान हो गया कि पुरूष को परेशान करने के लिए, उसने उलझन में डालने के लिए उसने स्त्री का सृजन किया।जब से परमात्‍मा ने पुरूष से कुछ नहीं सुना। 

परमात्‍मा ने स्‍त्री की रचना पुरूष के बाद क्‍यों की। पुरूष कहते है कि पुरूष तो परमात्‍मा की परिपूर्ण कृति है। तुमने यूनानी और रोमन मूर्ति कला में पुरूषों की मूर्तियां तो अवश्‍य देखी होगी, किंतु स्‍त्री की नग्‍न मूर्ति बहुत कम दिखाई देती है। सिर्फ पुरूष, अजीब बात है। इसका कारण क्‍या था। क्‍या उन लोगों को स्‍त्री में सौंदर्य दिखाई नहीं देता था। वास्‍तव में वे पुरूष-तानाशाह थे।

 परमात्‍मा ने पुरूष को बनाया और पुरूष ने दार्शनिक प्रश्‍न पूछने शुरू कर दिए। परमात्‍मा ने स्‍त्री को बनाया, ताकि वह पुरूष को व्‍यस्‍त रख सके। बस तब से पुरूष कद्दू या केले ख़रीदता रहता हे। और जब तक वह घर पहुंचता है वह इतना थक जाता है कि जब  उसकी पत्‍नी उसके साथ महत्‍वपूर्ण विषयों पर चर्चा करना चाहती है,तो वह मोबाइल के पीछे अपने को छिपा लेता है। स्‍त्री उसको निरंतर भगाती रहती है कि अब यह करो, वह करो।

आपने कभी ऊंची एड़ी की जूती पहने हुए  महिलाओं को देखा है। वह एड़ी इतनी ऊंची होती है कि रस्‍सी पर चलने वाला आदमी भी उन जूतियों को पहन कर चलने की कोशिश करे तो चल नहीं सकेगा, गिर जाएगा। क्‍या आपको मालूम है कि ऊंची एड़ी वाली जूतियों को क्‍यों चुना गया? एक अति धार्मिक समाज ने बहुत ही अधार्मिक कारण के लिए, अश्‍लीलता के लिए इनको चुना है। क्‍योंकि जब एड़िया ऊंची होती है तो नितंब उभरे रहते है। हम कारण को जानने की तो कोई कोशिश ही नहीं करते। महिलाएं ऊंची एड़ी की जूती पहन कर सोचती है कि वे बहुत ही सभ्‍य और शालीन दिखाई देती है। यह बहुत ही अभद्र है। उनको समझ में यह नहीं आता कि वह अपने नितंब का मुफ्त-प्रदर्शन कर रही है। और दूसरे इसका मजा ले रहे है, और तंग कपड़ों में तो उनकी नग्‍नता स्‍पष्‍ट प्रदर्शित होती है। तंग कपड़ों में स्त्रीयां नग्‍नता से ज्‍यादा अच्‍छी दिखाई देती है। क्‍योंकि चमड़ी तो चमड़ी है। अगर काई तीस साल की है तो चमड़ी भी तीस साल की होगी। तीस साल को गुजरते उसने देखा है। इसी लिए वह बाजार से खरीदी गई नई पोशाक की तरह कसी हुई नहीं हो सकती। अब तो कपड़े बनाने वाले चमत्‍कार कर रहे है। वे स्‍त्रियों को इतना मनमोहक बना रहे है कि परमात्‍मा भी सेब खा लेता।

समझ रहे हैं आप, समझने में कुछ देर लगती है। हां,सांप की तो जरूरत ही न पड़ती, कपड़े बेचने वाला सेल्‍समैन ही काफी था। बस, मिसेस ईव के लिए एक तंग पोशाक और परमात्‍मा खुद ही सेब खा लेता और मिसेस ईव के साथ शाम को ड्राइव के लिए चला जाता।

परमात्‍मा ने पुरूष की रचना की, और क्‍योंकि पुरूष अकेला था, उसे एक साथी की जरूरत थी, तो परमात्‍मा ने ईव को बनाया। ऐसा कहानी में बताया जाता है मूल स्‍त्री का नाम ईव नहीं था। उसका नाम लिलिथ था। परमात्‍मा ने लिलिथ को बनाया परंतु लिलिथ ने तो पहले क्षण से ही समस्‍या उत्‍पन्‍न कर दी। 

 शुरूआत ऐसे हुई कि सूर्य अस्‍त हो रहा था। रात हो रही थी और उनके पास केवल एक ही पलंग था, यह समस्‍या थी। उस समय आनं लाइन पर सामान मगांने की सुविधा उपलब्ध नहीं थी।

 झगडा तो बिस्‍तर में जाने से पहले ही शुरू हो गया। भले ही उसकी जानकारी उसको हो या न हो। उसने झगड़ा किया और अदम को बिस्‍तर से बाहर फेंक दिया। कितनी महान औरत थी वह, अदम ने उसको बाहर फेंकने की बार-बार कोशिश की। पर फायदा क्‍या था। अगर वह सफल हो भी जाता तो भी वह वापस आकर उसे बाहर फेंक ही देती। उसने कहा: इस बिस्‍तर में केवल एक ही सो सकता है, यह दो के लिए नहीं बना है।भगवान ने इसको दो के लिए नहीं बनाया था, यह डबल बेड़ नहीं था। 

वह सारी रात झगड़ते रहे और सुबह अदम ने भगवान से कहा: मैं तो बहुत खुश था...  हालाकि वह था नहीं। परंतु रात भर के दुःख के कारण उसको अपना विगत जीवन सुखी लग रहा था। उसने कहा: इस स्‍त्री के आने के पहले मैं इतना सुखी था। और लिलिथ ने भी  कहा: मैं भी बहुत सुखी थी। मैं तो जीना ही नहीं चाहती। बहुत सी बातों का आरंभ उसी से हुआ होगा।  क्‍योंकि उसने कहा, मैं जीना नहीं चाहती। एक जीवन के लिए एक रात ही  काफी है। मुझे मालूम है कि हर रात बार-बार उसी की पुनरावृति होगी। अगर तुम मुझे डबल बेड भी दे दो तब भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। हम दोनों में झगड़ा होता ही रहेगा। क्‍योंकि प्रश्‍न तो यह कि मालिक कौन है। इस बर्बर व्‍यक्‍ति को मैं अपना मालिक नहीं बनने दूंगी।

परमात्‍मा ने कहा: अच्‍छा, उन दिनों, ये बिलकुल आरंभ के दिन थे, सृष्‍टि के बाद का यह पहला ही दिन था। जरूर रविवार रहा होगा, ईसाइयों के अनुसार। परमात्‍मा रविवार की छुटटी के मूड में ही रहा होगा क्‍योंकि उसने कहा: ठीक है, मैं तुम्‍हें गायब कर दूँगा। लिलिथ गायब हो गई, और तब परमात्‍मा ने आम की पसली से ईव को बनाया।

यह पहला आपरेशन था। देवराज इसको नोट कर लो। परमात्‍मा पहला सर्जन था। आज के तथाकथित वैज्ञानिक इसे माने या न माने, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उसने बहुत बड़ा काम किया। उसके बाद से अब तक ओर किसी सर्जन ने ऐसा नहीं किया, कोई कर भी नहीं सकता। केवल एक पसली से उसने स्‍त्री को बना दिया। भगवान को ऐसा नहीं करना चाहिए। केवल एक पसली.....।अब बाकी की कहानी यह है कि हर रात सोने से पहले ईव आदतन ही पसलियों को गिनती है यह देखने के लिए कि बाकी सब पसलियाँ सही सलामत है या नहीं। और दुनिया में दूसरी कोई औरत तो नहीं है। यह जानने के बाद वह अच्‍छी तरह से सो जाती है।

बड़ी अजीब बात है.....अगर दूसरी औरत हो तो वह अच्‍छी तरह से क्‍यों सो नहीं सकती? किंतु कहानी का यह अंत ठीक नहीं है। पहली बात तो यह है कि इसमें पुरूष ताना शाही है। दूसरी बात यह है कि यह परमात्‍मा के अनुरूप नहीं है। तीसरी बात यह है कि इसमें कल्‍पना की कोई उड़ान नहीं है। और बहुत अधिक तथ्‍यात्‍मक है। कभी-कभी तो केवल इशारा ही करना चाहिए। निष्‍कर्ष यह है कि परमात्‍मा ने पहले पुरूष को बनाया क्‍योंकि वह नहीं चाहता था कि सृजन के समय किसी प्रकार की कोई दखलंदाजी हो।

परमात्‍मा ने जगत न तो पुरूष प्रधान समाज के अनुसार बनाया है और न ही नारी मुक्‍ति आंदोलनकारीयों के अनुसार बनाया है। इन दोनों के मत परस्‍पर विरोधी है। उसने स्‍त्री को सही मॉडल के रूप में बनाया। और हर कलाकार का यही विचार है कि स्‍त्री बहुत अच्‍छी मॉडल है। अगर तुम उनके चित्रों को देखो तो तुम्‍हे भी यह विश्‍वास हो जाएगा कि वह बढ़िया मॉडल है। किंतु बस वहीं पर रूक जाओ। वास्‍तविक स्‍त्री को छूना मत। चित्र ठीक है, प्रतिमाएं भी ठीक हैं। परंतु वास्‍तविक स्‍त्री तो उतनी अपूर्ण है जितना कि उसे होना चाहिए। स्त्रीयां अपूर्ण है, पुरूष अपूर्ण है। और जब दो अपूर्णताएं मिलती है तो तुम अंदाज लगा सकते हो कि उसका परिणाम क्‍या होगा।

परमात्‍मा है या नहीं है, यह तो एक कहानी है। जीवन सरल भी है और जटिल भी, दोनों। ओस की बूंद की तरह सरल और ओस की बूंद की तरह जटिल। क्‍योंकि ओस की बूंद सारे आकाश को प्रतिबिंबित करती है। और उस के भीतर सारे सागर समाए हुए है। और वह हमेशा तो रहेगी नहीं, बस कुछ क्षण और फिर मिट जाएगी सदा के लिए। मैं सदा के लिए, जोर दे रहा हूं। फिर उसको वापस नहीं लाया जा सकता उन सब तारों और साग़रों के साथ।

ओशो रजनीश के प्रवचनों पर आधारित

हरिओम सिंगल 

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