बुधवार, 5 जून 2024

 जाम्बवान् ने श्री हनुमानजी से कहा- हे हनुमान् ! हे बलवान्! सुनो, तुमने यह क्या चुप्पी साध रखी है? तुम पवन के पुत्र हो और बल में पवन के समान हो। तुम बुद्धि-विवेक और विज्ञान की खान हो। 

जगत् में कौन सा ऐसा कठिन काम है जो हे तात ! तुमसे न हो सके। श्री रामजी के कार्य के लिए ही तो तुम्हारा अवतार हुआ है। यह सुनते ही हनुमानजी पर्वत के आकार के अत्यंत विशालकाय हो गए। 

हनुमान ने कहा -हे जाम्बवान्! मैं तुमसे पूछता हूँ, तुम मुझे उचित सीख देना कि मुझे क्या करना चाहिए। 

जाम्बवान् ने कहा- हे तात ! तुम जाकर इतना ही करो कि सीताजी को देखकर लौट आओ और उनकी खबर कह दो। फिर कमलनयन श्री रामजी अपने बाहुबल से ही राक्षसों का संहार कर सीताजी को ले आएँगे, केवल लीला के लिए ही वे वानरों की सेना साथ लेंगे।

जाम्बवान् के सुंदर वचन सुनकर हनुमानजी के हृदय को बहुत ही भाए। वे बोले- हे भाई ! तुम लोग दुःख सहकर,कन्द-मूल-फल खाकर तब तक मेरी राह देखना। जब तक मैं सीताजी को देखकर लौट न आऊँ। काम अवश्य होगा, क्योंकि मुझे बहुत ही हर्ष हो रहा है। यह कहकर और सबको मस्तक नवाकर तथा हृदय में श्री रघुनाथजी को धारण करके हनुमानजी हर्षित होकर चले ।

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