रविवार, 29 जून 2025

 पहले तो रावण ने रक्षिकाओं को ही आदेश दिया कि सीता को अशोक-वाटिका तक पहुंचा आएं; किंतु बाद में जाने क्या सोचकर उसने अपना विचार बदल दिया था। सीता को अशोक-वाटिका तक पहुंचाने के लिए वह स्वयं साथ आया था। उसका साथ आना सुरक्षा-व्यवस्था की दृष्टि से आवश्यक नहीं था। जितने सशस्त्र सैनिक सीता के रथ को घेरकर चल रहे थे, उनका विरोध कर, उनके हाथों से निकल जाना, सीता की अपनी कल्पना के लिए भी दुरूह था। किंतु, फिर भी रावण साथ चल रहा था ।

"सीते !" रावण का स्वर अत्यन्त कोमल था ।

सीता ने उसकी बातों तथा संबोधनों के उत्तर प्रायः बंद कर दिए। क्या उत्तर दिया जाए इस षड्यंत्रकारी नीच पुरुष की बातों का !

"सीते ! यदि तुम स्वेच्छा से मुझे अंगीकार कर लो तो मैं राम और लक्ष्मण को जीवित छोड़ दूंगा और उन्हें कोई छोटा-मोटा राज्य भी दे दूंगा।" वह रुका, "और स्त्री के बिना राम यदि अत्यन्त दुःखी हो, तो मैं उसका विवाह शूर्पणखा से कर दूंगा।"

"तुम्हारी बहन तो अपने दहेज में लंका का राज्य और राजाधिराज का शव लाने वाली थी।" सीता का स्वर वितृष्णा से भर उठा।

रावण हतप्रभ रह गया।

उसे अपनी स्थिति में उबरने में कुछ क्षण लगे, "क्या कहा था शूर्पणखा ने ?"

 "उसी से क्यों नहीं पूछ लेते !"

रावण सीता को देखता रह गया। वह सीता को नहीं जानता था, किंतु शूर्पणखा को जानता था। उसकी कामाग्नि वस्तुतः इतनी उग्र थी कि यदि उसका वश चलता तो वह अपनी इच्छापूर्ति के लिए अपने समस्त बंधुओं तथा लंका के साम्राज्य को होम डालती। शूर्पणखा रावण की वास्तविक बहन थी ।

सहसा रावण का ध्यान दूसरी ओर चला गया। यदि किसी प्रकार राम लंका के आस-पास या लंका में आ गया और उसने शूर्पणखा की इच्छा पूर्ण कर दी तो लंका में भयंकर गृह-युद्ध होगा। शूर्पणखा रावण सरीखी योद्धा न सही, किंतु युद्ध-कुशल वह भी है। उसके समर्थक एवं प्रेमी भी अनेक हैं। कालकेय दैत्य आज भी उसके इंगित पर मरने को तत्पर बैठे हैं..

रावण ऐसा गृह-युद्ध नहीं चाहेगा। उसे अनेक लोगों से निबटना है।" और सबसे बड़ी बात, सीता से आत्म-समर्पण करवाना है। ऐसी स्थिति में शूर्पणखा का लंका में अधिक दिन रहना उचित नहीं है। वैसे भी यदि सीता ने रावण को अंगीकार कर लिया तो शूर्पणखा अपनी ईर्ष्या और क्रोध में ही जल मरेगी। उससे सावधान रहना होगा और उसे राम से यथासंभव दूर रखना होगा इसी सीता के कारण, किस झंझट में फंस गया रावण ! एक ओर मंदोदरी क्रुद्ध सिंहनी बनी हुई है, दूसरी ओर शूर्पणखा किसी भी समय घातक हो सकती है !

...और विभीषण ! विभीषण रावण की नीति को कभी स्वीकार नहीं करेगा। इन सारी परिस्थितियों में, रावण को लंका में ही पर्याप्त प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है रावण को पहले अपने घर का व्यूह साधना होगा शूर्पणखा को तो तत्काल ही अश्मद्वीप भेज देना होगा। उसका यहां रहना रावण के लिए घातक है। रावण की ओर से निराश होकर, वह राम को लंका में बुलाने का भी प्रयत्न कर सकती है और यदि राम लंका में आ गया उसने एक बार मुसकराकर शूर्पणखा की ओर देख लिया तो शूर्पणखा उसकी प्रणय-कृपा पाने की एक आशा में ही लंका को फूंक देगी...


कैसे झंझट में फंस गया रावण! केवल इस एक स्त्री के कारण..


रावण ने दृष्टि फेरकर सीता को देखा दासियों में घिरी, गंभीर तथा परेशान सीता ! इसे प्राप्त न किया तो राजाधिराज होने की क्या सार्थकता ? इसे पाने के लिए प्राणन दिए, तो जीवन की क्या उपयोगिता ? शूर्पणखा, राम को पाने के लिए यदि लंका को फूंक सकती है, तो रावण सीता को पाने के लिए संपूर्ण राक्षस साम्राज्य दांव पर लगा सकता है।


तभी प्रतिरावण हंसा, "यह विरोध राम और रावण का है या रावण और


शूर्पणखा का..?"

पर रावण का ध्यान प्रतिरावण से हटकर किन्ही अनजाने मागों पर भटकन भरी यात्राएं करता चला गया। सीता-प्राप्ति तो बाद में होगी, पहले उसे अपने घर में अपना शासन स्थापित करना पड़ेगा।


प्रतिरावण भी विलीन हो गया। इस बार उसने अधिक हठ नहीं ठाना। कदाचित् शूर्पणखा का भय उपजा जाना ही उसे पर्याप्त लगा था ।


सीता से रावण ने कोई विशेष बातचीत करने का प्रयास नहीं किया। वह अन्यमनस्क-सा बैठा, किन्ही गुत्थियों को मन-ही-मन सुलझाता रहा। उसके संकेत पर ही रथ अशोक वाटिका में प्रविष्ट हुआ। उसकी दृष्टि वाटिका के बाह्र स्थापित किए गए सैनिक शिविरों पर पड़ी- एक बार मन में आया भी कि एक साधारण-सी कोमल और कमनीय स्त्री को बन्दी बनाए रखने के लिए इतने सैनिकों की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए पर तत्काल ही उसका मन सशंक हो उठा. सीता के सम्बन्ध में तनिक भी असावधानी नहीं बरती जानी चाहिए। अपने बल पर मीता निकल भागने का प्रयत्न कदाचित् न भी करे, किन्तु शूर्पणखा अपने सहायकों के माध्यम में उसकी हत्या भी कर सकती है। मीता की हत्या ! इस कल्पना से ही रावण का मन क्षुब्ध हो उठता है विभीषण उभे मुका करवाने में गहायक हो सकता है। और मंदोदरी? फिर राम के पक्ष का भी कोई व्यक्ति आ सकता है। इन षड्यंत्रों के विरुद्ध रावण को सावधान रहना होगा पहरे में शिथिलता नहीं करनी होगी...


प्रतिरावण ने अट्टहास किया "राम का भय तेरे रक्त में घुल गया है. उसके यहां आ पहुंचने की ६. कल्पना करने लगा है तू?..."

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 पहले तो रावण ने रक्षिकाओं को ही आदेश दिया कि सीता को अशोक-वाटिका तक पहुंचा आएं; किंतु बाद में जाने क्या सोचकर उसने अपना विचार बदल दिया था। ...