मौन के उस पार
एक मनोवैज्ञानिक उपन्यास
लेखक: (काल्पनिक)
भूमिका
यह उपन्यास प्रेम की नहीं,
आकर्षण की गलतफहमी की कथा है।
यह उस सच की कहानी है जहाँ
देह की हलचल को मन प्रेम समझ लेता है,
और समझदारी के बावजूद
मन बार-बार उसी भ्रम की ओर खिंचता है।
यह किसी को दोषी ठहराने का प्रयास नहीं—
यह मानव मन को समझने की एक कोशिश है।
अध्याय 1 : खोया हुआ सचिन
सचिन भीतर से शांत था,
पर उसकी खामोशी में थकान थी।
परिवार ने उसे “सामान्य” बनाने के लिए
भावना को चुना।
भावना सरल थी,
पर उसके भीतर एक अधूरा अध्याय था।
अध्याय 2 : सच का स्वीकार
भावना ने राहुल के बारे में बताया।
सचिन ने अतीत नहीं खोदा—
उसने वर्तमान की ईमानदारी को चुना।
यहीं से यह रिश्ता
सामान्य विवाह से अलग हो गया—
यह समझदारी का समझौता था।
अध्याय 3 : विवाह — एक चेतन निर्णय
यह प्रेम-विवाह नहीं था,
यह जागरूकता-विवाह था।
दोनों जानते थे—
यह रिश्ता तभी टिकेगा
जब सच छुपाया नहीं जाएगा।
अध्याय 4 : इच्छा और स्मृति
राहुल का अचानक आना
भावना के भीतर
एक पुरानी स्मृति जगा गया।
यह प्रेम नहीं था—
यह देह की याद थी।
भावना ने सीमा चुनी,
और रात को सचिन को सब बताया।
अध्याय 5 : पुरुष की भूमिका
सचिन का निर्णय महत्वपूर्ण था।
वह नहीं चाहता था कि भावना छुपे,
क्योंकि छुपाव
स्त्री को असुरक्षित बना देता है।
यहाँ सचिन पति नहीं,
संरक्षक और साथी बनता है।
अध्याय 6 : आकर्षण बनाम प्रेम
राहुल से मिलना
भावना के भीतर उत्तेजना जगाता था,
पर हर बार उसके बाद
एक खालीपन आता।
सचिन के साथ उसे
सुरक्षा, सम्मान और पूर्णता मिलती थी।
यहीं उपन्यास का
मनोवैज्ञानिक केंद्र है:
स्त्री कभी-कभी आकर्षण को प्रेम समझ लेती है,
जबकि वह सिर्फ़ देह की प्रतिक्रिया होती है।
अध्याय 7 : समय का अंतर
राहुल का आना सीमित था,
छुपा हुआ था,
डर से भरा हुआ।
सचिन का साथ निरंतर था—
हर सुबह, हर रात, हर बीमारी, हर डर में।
अध्याय 8 : द्वंद्व
भावना स्वयं से लड़ती रही।
उसे समझ आने लगा कि
जिसे वह “चाह” समझ रही है
वह सिर्फ़ अधूरी उत्तेजना है।
और प्रेम?
वह तो स्थिर होता है।
अध्याय 9 : सचिन का प्रेम
सचिन ने कभी रोका नहीं,
पर कभी छोड़ा भी नहीं।
यह पुरुष-स्वामित्व नहीं था—
यह परिपक्व प्रेम था।
अध्याय 10 : भावना का आत्मबोध (अंतिम अध्याय)
भावना ने एक रात
अपने आप से सच कहा—
“मैं प्रेम में थी ही नहीं।
मैं केवल उस एहसास की आदी थी
जो अधूरा था, इसलिए तीव्र था।”
“सचिन के साथ मुझे जो मिला
वह शांति थी—
और शांति उत्तेजना से शांत होती है,
पर गहरी होती है।”
उसने राहुल को अंतिम बार
मन में विदा किया—
बिना नफ़रत, बिना लालसा।
उपन्यास का अंतिम वाक्य
“आकर्षण तेज़ होता है,
प्रेम गहरा।
और जो गहरा हो,
वही जीवन बनता है।”
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