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रामशरण का एक ही बेटा था—अमन।
छोटा सा घर, बड़ी मुश्किलें, लेकिन पिता–बेटे का प्यार इतना गहरा कि दुनिया की कोई ताकत उसे हिला नहीं सकती थी।
अमन शहर में रहकर नौकरी करता था।
हर रात वीडियो कॉल पर कहता—
“पापा, बस एक साल और… फिर आपको अपने साथ ले आऊँगा।”
रामशरण हँसकर जवाब देते—
“तू खुश है ना? मुझे किसी और चीज़ की जरूरत नहीं।”
अमन उनके जीने का कारण था।
उनकी हर धड़कन, हर उम्मीद उसी से बंधी हुई थी।
एक दिन… खबर आई।
शाम के वक्त गाँव में फोन आया—
आवाज़ काँप रही थी।
“काका… अमन का सड़क एक्सीडेंट हो गया है। हालत बहुत गंभीर है। शायद…”
वाक्य पूरा भी नहीं हुआ था कि रामशरण के हाथ से फोन छूट गया।
उन्हें लगा जैसे किसी ने उनकी छाती में घूंसा मार दिया हो।
गाँव की पगडंडी पर चलते हुए उनके होंठ बस एक ही बात दोहरा रहे थे—
**“बाप तब नहीं मरता, जब उसकी उम्र खत्म होती है…
बाप तब मरता है… जब उसको बेटे के मरने की खबर मिलती है।”**
उनकी आँखें सूख चुकी थीं।
दिल से आवाज़ नहीं निकल रही थी।
कदम कांप रहे थे।
पर वो भाग रहे थे—उसी शहर की ओर, जहाँ उनका बेटा मौत से लड़ रहा था।
अस्पताल में…
जब रामशरण पहुँचे, डॉक्टर बोले—
“हम कोशिश कर रहे हैं… लेकिन संभावना कम है।”
रामशरण बेटे के बेड के पास बैठ गए।
अमन ऑक्सीजन मास्क में था, चेहरे पर चोटें, शरीर पर पट्टियाँ।
रामशरण ने उसके हाथ को पकड़कर धीरे से कहा—
“बेटा… तू नहीं जाएगा।
तेरे बिना मेरा कौन है?”
एक बूढ़े बाप के शब्द कमरे की हवा तक हिला रहे थे।
उन्होंने रोते हुए कहा—
**“अगर तुझे कुछ हो गया…
तो समझ लेना, मैं तो उसी पल मर जाऊँगा।
क्योंकि बाप की मौत उम्र से नहीं होती…
बेटे की खबर से होती है…”**
उनकी आवाज़ टूट गई।
चमत्कार…
कई घंटे बाद, अमन की उँगली हल्की सी हिली।
मशीन की बीप बदली।
डॉक्टर तुरंत अंदर आए।
धीरे-धीरे अमन ने आंखें खोलीं।
“पा…पा…”
उसकी कमजोर आवाज़ सुनते ही रामशरण की आँखों में जीवन लौट आया।
उन्होंने बेटे को सीने से लगाया और फूट-फूटकर रो पड़े।
“तू जिंदा है… तो मैं भी जिंदा हूँ, बेटा।”
अंत…
घर लौटते वक्त, रामशरण सोच रहे थे—
उम्र तो बहुत पहले की गुजर चुकी थी…
पर आज जान वापस आई है।
कहानी यहीं खत्म नहीं होती,
बल्कि एक सच्चाई छोड़ जाती है—
**“बाप की मौत सांस रुकने से नहीं होती…
बाप तब मरता है,
जब उसे बेटे के मरने की खबर मिलती है।”**
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