गुरुवार, 26 अक्तूबर 2023

 आज की हिन्दी 1960 के दशक की हिन्दी से बहुत भिन्न है। तब हिन्दी में कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग शब्दों में अनुस्वार अर्थात बिन्दी का प्रयोग भिन्न-भिन्न ढंग से भिन्न भिन्न शब्दों पर किया जाता था। चन्द्र बिन्दी का उपयोग भी बहुत सारे शब्दों पर किया जाता था, किन्तु हिन्दी को भारत के सभी अहिन्दीभाषी राज्यों तथा विदेशों में भी लोकप्रिय बनाने के लिए दिल्ली प्रेस के संस्थापक विश्वनाथ जी के पदचिन्हों का अनुकरण बहुत से भाषाई विद्वानों ने किया और हिन्दी को सरल और सरलता से पठनीय बनाने के लिए हिन्दी लेखन में कुछ विशेष परिवर्तन किये गये, जो कि आज बहुतायत में नज़र आते हैं।

हिन्दी में विराम चिह्नों के रूप में पहले तीन चिह्न प्रयोग किये जाते थे। कौमा (, अल्प विराम) सैमी कौमा (; अर्द्ध विराम) और पूर्ण विराम। हिन्दी को सरल बनाने के लिए अर्द्ध विराम का प्रयोग अब लगभग समाप्त कर दिया गया है। एक वाक्य है. उसे अपने घर जाना था, लेकिन अचानक उसके एक दोस्त का फोन आया, जिसकी तबियत बहुत खराब थी, इसलिए अपने घर जाने का इरादा त्याग कर, वह फौरन दोस्त के घर गया। इस सम्पूर्ण पैराग्राफ में जहाँ-जहाँ हमने कौमा (अल्प विराम) लगाया है, वहाँ पुरानी हिन्दी में सैमी कौमा (अर्द्ध विराम) लगाया जाता था। कौमा (अल्प विराम) वहाँ लगाया जाता था, जहाँ वाक्य बहुत हल्की सी रुकावटों के साथ बोला जा रहा हो। उदाहरण- राम, कृष्ण, सीता, गीता और राधा अच्छे मित्र हैं।

कौमा लगाने और न लगाने में कुछ और बातें ध्यान रखने योग्य हैं।उन बातों को हम बताते हैं।

1. जब दो वाक्यों के बीच 'तो' अथवा 'कि' शब्द आते हैं तो 'तो' और 'कि' से पहले या बाद में कौमा नहीं लगाया जाता। कुछ व्याकरण की पुस्तकों में भी इस तरह निरन्तर गलतियाँ हैं।

2. जब एक दूसरे से सम्बद्ध दो वाक्यों में से दूसरे वाक्य का पहला शब्द * लेकिन, किन्तु,, परन्तु, पर, क्योंकि, जो, जैसा, जिसे, जिसने, जिन्हें, जिन्होंने, जिनके, इसलिए, बल्कि, बशर्ते, वरना, अन्यथा, जबकि आदि हो तो उपरोक्त किसी भी शब्द से पहले वाले वाक्य के अन्तिम शब्द के बाद कौमा () लगाया जाना चाहिए।

3. एक बात यह भी ध्यान में रखनी चाहिए कि जब हम भविष्य काल का संकेत देता कोई वाक्य लिखते हैं तो उस वाक्य का अन्तिम अक्षर यदि * 'गा, गे, गी* हो तो उस पर अनुस्वार या बिन्दी का प्रयोग नहीं किया जाता।

*'गा' से पहले के अक्षर पर कभी अनुस्वार का प्रयोग नहीं किया जाता, लेकिन ** से पहले वाले अक्षर पर हमेशा अनुस्वार का उपयोग किया जाता है, जबकि *'गी'* से पहले के अक्षर पर अनुस्वार का उपयोग तभी किया जाता है, जब वाक्य बहुवचन का बोध करा रहा हो अथवा जिसके लिए वाक्य लिखा जा रहा हो, उसे सम्मान दिया जा रहा हो। उदाहरण-

(क) * वे सब कुतुबमीनार देखने जायेंगी । *(बहुवचन)

(ख) * दादीजी आज व्रत का खाना खायेंगी । *(सम्मान सूचक)

यदि हम किसी एक ही स्त्री के लिए * 'गी'* का प्रयोग करेंगे तो उससे पहले के अक्षर पर अनुस्वार नहीं आयेगा।

उदाहरण - *सीता स्कूल जायेगी। * 

* गीता खाना खायेगी। *।

समझ जाइये कि जब आप खायेगा, गायेगा, जायेगा, चलेगा, बोलेगा, कहेगा, सुनेगा, देखेगा, लिखेगा '* आदि शब्द लिखेंगे तो 'गा'* से पहले वाले अक्षर पर अनुस्वार अर्थात बिन्दी का प्रयोग नहीं होगा। किन्तु जब आप *'खायेंगे, गायेंगे, जायेंगे, चलेंगे, बोलेंगे, कहेंगे, सुनेंगे, देखेंगे, लिखेंगे'* आदि शब्द लिखेंगे तो *'गे'* से पहले वाले अक्षर पर सदैव अनुस्वार अर्थात बिन्दी लगाई जायेगी। मगर जब आप भविष्य काल के वाक्य में * 'गी'* का प्रयोग करेंगे तो * 'गी'* से पहले वाले अक्षर पर अनुस्वार का प्रयोग तभी होगा, जब वाक्य का प्रारम्भिक शब्द बहुवचनीय हो अथवा किसी महिला के सम्मान में प्रयुक्त हो, जबकि एकवचनीय स्थिति में * 'गी'* से पहले के अक्षर पर अनुस्वार अर्थात बिन्दी नहीं लगाई जायेगी।

गौर कीजिये -

हमने आरम्भ में एक वाक्य लिखा है- परन्तु कौमा लगाने और न लगाने में कुछ और बातें ध्यान में रखने योग्य हैं..... यहाँ हमने *'परन्तु'* से एक स्वतंत्र वाक्य आरम्भ किया है, इसलिए यहाँ परन्तु से पहले कौमा होने का कोई मतलब नहीं है, लेकिन जब * किन्तु, परन्तु, लेकिन ' * किन्हीं दो वाक्यों को जोड़ने का काम करते हैं और ये शब्द जुड़ने वाले दूसरे वाक्य का पहला शब्द होते हैं तो इन शब्दों से पहले, पहले वाक्य के अन्तिम शब्द के बाद बिना किसी स्पेस के कौमे का उपयोग किया जाना चाहिए।

यह सब जो मैंने इस पोस्ट में लिखा है,  निसन्देह आप विद्यार्थियों के साथ  कुछ नये लेखकों को शुद्ध-अशुद्ध का सही ज्ञान हो सकेंगा।

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