बुधवार, 15 मई 2024

 श्रीमद्भागवत की महिमा

श्रीम‌द्भागवत की महिमा मैं क्या लिखूँ? उसके आदि के तीन श्लोकों में जो महिमा कह दी गयी है, उसके बराबर कौन कह सकता है? उन तीनों श्लोकोंको कितनी ही बार पढ़ चुकनेपर भी जब उनका स्मरण होता है, मनमें अद्भुत भाव उदित होते हैं। कोई अनुवाद उन श्लोकों की गम्भीरता और मधुरता को पा नहीं सकता। उन तीनों श्लोकों से मन को निर्मल करके

फिर इस प्रकार भगवान्‌का ध्यान कीजिये -

ध्यायतश्चरणाम्भोजं भावनिर्जितचेतसा ।

 औत्कण्ठ्याश्रुकलाक्षस्य हृद्यासीन्मे शनैर्हरिः ।।

 प्रेमातिभरनिर्भिन्नपुलकाङ्गोऽतिनिर्वृतः । 

आनन्दसम्प्लवे लीनो नापश्यमुभयं मुने ।। 

रूपं भगवतो यत्तन्मनःकान्तं शुचापहम् । 

अपश्यन् सहसोत्तस्थे वैक्लव्याद् दुर्मना इव ।।

मुझ को श्रीमद्भागवत में अत्यन्त प्रेम है। मेरा विश्वास और अनुभव है कि इसके पढ़ने और सुनने से मनुष्य को ईश्वर का सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है और उनके चरणकमलों में अचल भक्ति होती है। इसके पढ़ने से मनुष्य को दृढ़ निश्चय हो जाता है कि इस संसार को रचने और पालन करनेवाली कोई सर्वव्यापक शक्ति है-

एक अनन्त त्रिकाल सच, चेतन शक्ति दिखात । 

सिरजत, पालत, हरत, जग, महिमा बरनि न जात ।।

इसी एक शक्ति को लोग ईश्वर, ब्रह्म, परमात्मा इत्यादि अनेक नामों से पुकारते हैं। भागवत के पहले ही श्लोक में वेदव्यासजी ने ईश्वर के स्वरूप का वर्णन किया है कि जिससे इस संसार की सृष्टि, पालन और संहार होते हैं, जो त्रिकाल में सत्य है- अर्थात् जो सदा रहा भी, है भी और रहेगा भी- और जो अपने प्रकाश से अन्धकार को सदा दूर रखता है, उस परम सत्य का हम ध्यान करते हैं। उसी स्थान में श्रीम‌द्भागवत का स्वरूप भी इस प्रकार से संक्षेप में वर्णित है कि इस भागवत में- जो दूसरों की बढ़ती देखकर डाह नहीं करते, ऐसे साधुजनों का सब प्रकार के स्वार्थ से रहित परम धर्म और वह जानने के योग्य ज्ञान वर्णित है जो वास्तव में सब कल्याण का देने वाला और आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक- इन तीनों प्रकार के तापों को मिटाने वाला है। और ग्रन्थों से क्या, जिन सुकृतियों ने पुण्य के कर्म कर रखे हैं और जो श्रद्धा से भागवत को पढ़ते या सुनते हैं, वे इसका सेवन करने के समय से ही अपनी भक्ति से ईश्वरक्षको अपने हृदय में अविचलरूप से स्थापित कर लेते हैं। ईश्वर का ज्ञान और उनमें भक्ति का परम साधन - ये दो पदार्थ जब किसी प्राणी को प्राप्त हो गये तो कौन-सा पदार्थ रह गया, जिसके लिये मनुष्य कामना करे और ये दोनों पदार्थ श्रीम‌द्भागवत से पूरी मात्रा में प्राप्त होते हैं। इसीलिये यह पवित्र ग्रन्थ मनुष्यमात्रका उपकारी है। जबतक मनुष्य भागवतको पढ़े नहीं और उसकी इसमें श्रद्धा न हो, तबतक वह समझ नहीं सकता कि ज्ञान-भक्ति-वैराग्य का यह कितना विशाल समुद्र है। भागवत के पढ़ने से उसको यह विमल ज्ञान हो जाता है कि एक ही परमात्मा प्राणी-प्राणी में बैठा हुआ है और जब उसको यह ज्ञान हो जाता है, तब वह अधर्म करने का मन नहीं करता; क्योंकि दूसरों को चोट पहुँचाना अपने को चोट पहुँचाने के समान हो जाता है। इसका ज्ञान होने से मनुष्य सत्य धर्म में स्थिर हो जाता है, स्वभाव ही से दया-धर्म का पालन करने लगता लगता है और किसी अहिंसक प्राणी के ऊपर वार करने की इच्छा नहीं करता। मनुष्योंमें परस्पर प्रेम और प्राणिमात्र के प्रति दया का भाव स्थापित करने के लिये इससे बढ़कर कोई साधन नहीं। वर्तमान समय में, जब संसार के बहुत अधिक भागों में भयंकर युद्ध छिड़ा हुआ है, मनुष्य मात्र को इस पवित्र धर्म का उपदेश अत्यन्त कल्याणकारी होगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कुछ फर्ज थे मेरे, जिन्हें यूं निभाता रहा।  खुद को भुलाकर, हर दर्द छुपाता रहा।। आंसुओं की बूंदें, दिल में कहीं दबी रहीं।  दुनियां के सामने, व...