बुधवार, 15 मई 2024

 श्रीमद्भागवत के श्रोताओं के नियम 

श्रोता प्रतिदिन एक बार हविष्यान्न भोजन करें। पतित, दुर्जन आदि का संग तो दूर रहा, उनसे वार्तालाप भी न करें। ब्रह्मचर्य पालन, भूमिशयन (नीचे आसन बिछा कर या तख्त पर सोना) सबके लिये अनिवार्य है। एकाग्रचित्त होकर कथा सुननी चाहिये। जितने दिन कथा सुनें- धन, स्त्री, पुत्र, घर एवं लौकिक लाभ की समस्त चिन्ताएँ त्याग दें। मल-मूत्र पर काबू रखने के लिये हल्का आहार सुखद होता है। यदि शक्ति हो तो सात दिन तक उपवास करके कथा सुनें। अन्यथा दूध पीकर सुखपूर्वक कथा सुनें। इससे भी काम न चले तो फलाहार या एक समय अन्न-भोजन करें। जिस तरह भी सुखपूर्वक कथा सुनने की सुविधा हो, वैसे कर लें। प्रतिदिन कथा समाप्त होनेपर ही भोजन करना उचित है। दाल, शहद, तेल, गरिष्ठ अन्न, भाव दूषित अन्न तथा बासी अन्न का परित्याग करें। काम, क्रोध, मद, मान, ईर्ष्या, लोभ, दम्भ, मोह तथा द्वेष से दूर रहें। वेद, वैष्णव, ब्राह्मण, गुरु, गौ, व्रती, स्त्री, राजा तथा महापुरुषों की कभी भूलकर भी निन्दा न करें। रजस्वला, चाण्डाल, म्लेच्छ, पतित, व्रतहीन, ब्राह्मणद्रोही तथा वेद-बहिष्कृत मनुष्यों से वार्तालाप न करें। मनमें सत्य, शौच, दया, मौन, सरलता, विनय तथा उदारताको स्थान दें। श्रोताओं को वक्ता से ऊँचे आसन पर कभी नहीं बैठना चाहिये ।

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