जहां भी तुम प्रीति को उंडेल दोगे, वहीं क्रांति घट जाती है। प्रेम क्रांति है। प्रेम पत्थर को रूपांतरित कर देता है। और जहा प्रेम नहीं है, वहा जीवंत व्यक्ति भी पत्थर होकर रह जाता है। तुमने देखा? जिस व्यक्ति से तुम्हारा प्रेम नहीं है, वह व्यक्ति है या नहीं है, तुम्हें कोई अंतर नहीं पड़ता। पड़ोस में कोई मर गया, तुम सुन भी लेते हो, कहते हो बुरा हुआ, मगर वह भी सब औपचारिक है। तुम्हारे भीतर कोई रेखा नहीं खिंचती। लेकिन तुमने अगर किसी पत्थर की मूर्ति को भी प्रेम किया और वह टूट गयी, तो तुम रोओगे। तुम्हारा हृदय टुकड़े—टुकड़े हो जाएगा। जीवन वहीं होता है जहा तुम्हारा प्रेम होता है। जीवन वहीं दिखायी पड़ता है जहा तुम प्रेम की आंख से देखते हो। नहीं तो कहीं जीवन दिखायी नहीं पड़ता।
गीता का एक-एक अध्याय अपने में पूर्ण है। गीता एक किताब नहीं, अनेक किताबें है। गीता का एक अध्याय अपने में पूर्ण है। अगर एक अध्याय भी गीता का ठीक से समझ में आ जाए--समझ का मतलब, जीवन में आ जाए, अनुभव में आ जाए, खून में, हड्डी में आ जाए; मज्जा में, मांस में आ जाए; छा जाए सारे भीतर प्राणों के पोर-पोर में--तो बाकी किताब फेंकी जा सकती है। फिर बाकी किताब में जो है, वह आपकी समझ में आ गया। न आए, तो फिर आगे बढ़ना पड़ता है।
रविवार, 14 जुलाई 2024
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