मंगलवार, 4 मई 2021

परमात्मा

 ऐसी भ्रांति प्रचलित है कि संसारी परमात्मा को प्राप्त नहीं कर सकता है। इससे बड़ी और कोई भ्रांति की बात नहीं हो सकतीक्योंकि होने का अर्थ ही संसार में होना है। आप संसार में किस ढंग से होते हैंइससे फर्क नहीं पड़ता। संसार में होना ही पड़ता हैअगर आप हैं। होने का अर्थ ही संसार में होना है। फिर आप घर में बैठते हैं कि आश्रम मेंइससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

घर भी उतना ही संसार में हैजितना आश्रम। और आप पत्नी—बच्चों के साथ रहते हैं या उनको छोड़कर भागते हैंजहां आप रहते हैंवह भी संसार हैजहां आप भागते हैंवह भी संसार है। होना है संसार में ही।
और जब परमात्मा भी संसार से भयभीत नहीं हैतो आप इतने क्यों भयभीत हैं? और जब हम परमात्मा को मानते हैं कि वही कण—कण में समाया हुआ हैइस संसार में भी वही हैसंसार भी वही है...।
संसार से भागकर वह नहीं मिलेगा। क्योंकि गहरे में तो जो भाग रहा हैवह उसे पा ही नहीं सकेगा। उसे तो पाता वह हैजो ठहर गया है। भगोड़ों के लिए नहीं है परमात्मा। ठहर जाने वाले लोगों के लिए है, स्थीर हो जाने वाले लोगों के लिए है।
आप कहां हैंइससे फर्क नहीं पड़ता। अगर आप शात हैं और ठहरे हुए हैंतो वहीं परमात्मा से मिलन हो जाएगा। अगर आप दुकान पर बैठे हुए भी शात हैं और आपके मन में कोई दुविधाकोई अड़चनकोई द्वंद्वकोई संघर्षकोई तनाव नहीं हैतो उस दुकान पर ही परमात्मा उतर आएगा। और आप आश्रम में भी बैठे हो सकते हैंऔर मन में द्वंद्व और दुविधा और परेशानी होतो वहा भी परमात्मा से कोई संपर्क न हो पाएगा।
न तो पत्नी रोकती हैन बच्चे रोकते हैं। आपके मन की ही द्वंद्वग्रस्त स्थिति रोकती है। संसार नहीं रोकताआपके ही मन की विक्षिप्तता रोकती है।
संसार से भागने से कुछ भी न होगा। क्योंकि संसार से भागना एक तो असंभव है। जहां भी जाएंगेपाएंगे संसार है। और फिर आप तो अपने साथ ही चले जाएंगेकहीं भी भागें। घर छूट सकता हैपत्नी छूट सकती हैबच्चे छूट सकते हैं। आप अपने को छोड़कर कहां भागिएगा?
और पत्नी वहां आपके कारण थीऔर बच्चे आपके कारण थे। आप जहां भी जाएंगेवहा पत्नी पैदा कर लेंगे। आप बच नहीं सकते। वह घर आपने बनाया था। और जिसने बनाया थावह साथ ही रहेगा। वह फिर बना लेगा। आप असली कारीगर को तो साथ ले जा रहे हैं। वह आप हैं।
अगर यहां धन को पकड़ते थेतो वहा भी कुछ न कुछ आप पकड़ लेंगे। वह पकड़ने वाला भीतर है। अगर यहां मुकदमा लड़ते थे अपने मकान के लिए तो वहां आश्रम के लिए लडिएगा। लेकिन मुकदमा  आप लडिएगा। यहां कहते थेयह मेरा मकान हैवहा आप कहिएगायह मेरा आश्रम है। लेकिन वह मेरा आपके साथ होगा।
आप भाग नहीं सकते। अपने से कैसे भाग सकते हैंऔर आप ही हैं रोग। यह तो ऐसा हुआ कि टी बी. का मरीज भाग खड़ा हो। सोचे कि भागने से टी. बी से छुटकारा हो जाएगा। मगर वह टी .बी. आपके साथ ही भाग रही है। और भागने में और हालत खराब हो जाएगी।
भागना बचकाना है। भागना नहीं हैजागना है। संसार से भागने से परमात्मा नहीं मिलताऔर न संसार में रहने से मिलता है। संसार में जागने से मिलता है। संसार एक परिस्थिति है। उस परिस्थिति में आप सोए हुए होंतो परमात्मा को खोए रहेंगे। उस परिस्थिति में आप जाग जाएंतो परमात्मा मिल जाएगा।
ऐसा समझें कि एक आदमी सुबह एक बगीचे में सो रहा है। सूरज निकल आया हैऔर पक्षी गीत गा रहे हैंऔर फूल खिल गए हैंऔर हवाएं सुगंध से भरी हैंऔर वह सो रहा है। उसे कुछ भी पता नहीं कि क्या मौजूद है। आंख खोलेजागेतो उसे पता चले कि क्या मौजूद है। जब तक सो रहा हैतब तक अपने ही सपनों में है।
हो सकता है—यह फूलों से भरा बगीचायह आकाशये हवाएंयह सूरजये पक्षियों के गीत तो उसके लिए हैं ही नही—हो सकता हैवह एक दुखस्वप्न देख रहा होएक नरक में पड़ा हो। इस बगीचे के बीचइस सौंदर्य के बीच वह एक सपना देख रहा हो कि मैं नरक में सड़ रहा हूं और आग की लपटों में जल रहा हूं।
जिसे हम संसार कह रहे हैंवह संसार नहीं है। हमारा सपनाहमारा सोया हुआ होना ही संसार है। परमात्मा तो चारों तरफ मौजूद हैपर हम सोए हुए हैं। वह अभी और यहां भी मौजूद है। वही आपका निकटतम पड़ोसी है। वही आपकी धड़कन में हैवही आपके भीतर हैवही आप हैं। उससे ज्यादा निकट और कुछ भी नहीं है। उसे पाने के लिए कहीं भी जाने की जरूरत नहीं है। वह यहां हैअभी है। लेकिन हम सोए हुए हैं।
इस नींद को तोड़े। भागने से कुछ भी न होगा। इस नींद को हटाए। यह मन होश से भरेइस मन के सपने विदा हो जाएंइस मन में विचारों की तरंगें न रहेंयह मन शात और मौन हो जाए तो आपको अभी उसका स्पर्श शुरू हो जाएगा। उसके फूल खिलने लगेंगेउसकी सुगंध आने लगेगीउसका गीत सुनाई पड़ने लगेगाउसका सूरज अभी— अभी आपके अंधेरे को काट देगा और आप प्रकाश से भर जाएंगे।
इसलिए मेरी दृष्टि मेंजो भाग रहा हैउसे तो कुछ भी पता नहीं है। यह हो सकता है कि आप संसार से पीड़ित हो गए हैंइसलिए भागते हों। लेकिन संसार की पीड़ा भी आपका ही सृजन है। तो आप भागकर जहां भी जाइएगावहा आप नई पीड़ा के स्रोत तैयार कर लेंगे।
यह ऊपर से दिखाई नहीं पड़तातो आप जाकर देखें। आश्रमों में बैठे हुए लोगों को देखेंसंन्यासियों को देखें। अगर वे जागे नहीं हैंतो आप उनको पाएंगे वे ऐसी ही गृहस्थी में उलझे हैं जैसे आप। और उनकी उलझनें भी ऐसी ही हैंजैसे आप। उनकी परेशानी भी यही है। वे भी इतने ही चिंतित और दुखी हैं।
इतना आसान नहीं परमात्मा को पाना कि आप घर से निकलकर मंदिर में आ गए और परमात्मा मिल गया! कि आप जंगल में चले गएऔर परमात्मा मिल गया! परमात्मा को पाने के लिए आपकी। जो चित्त—अवस्था हैइससे निकलना पड़ेगा और एक नई चित्त—अवस्था में प्रवेश करना पड़ेगा।
ये ध्यान और प्रार्थनाएं उसके ही मार्ग हैं कि आप कैसे बदलें। आम हमारी मन की यही तर्कना है कि परिस्थिति को बदल लेंतो सब हो जाए। हम जिंदगी भर इसी ढंग से सोचते हैं। लेकिन परिस्थिति हमारी उत्पन्न की हुई है। मनःस्थिति असली चीज हैपरिस्थिति नहीं।
एक आदमी गाली देता हैतो आप सोचते हैंइसके गाली देने से दुख होता हैपीड़ा होती हैक्रोध होता है। इस आदमी से हट जाएंतो न क्रोध होगान पीड़ा होगीन अपमान होगान मन में संताप होगा।
लेकिन जो आदमी गाली देता हैवह क्रोध पैदा नहीं करता। क्रोध तो आपके भीतर हैउसको केवल हिलाता है। आप भाग जाएंक्रोध को आप भीतर ले जा रहे हैं। अगर कोई आदमी न होगातो आप चीजों पर क्रोध करने लगेंगे।
लोग दरवाजे इस तरह लगाते हैंजैसे किसी दुश्मन को धक्का मार रहे हों! लोग जूतों को गाली देते हैं और फेंकते हैं। लोग लिखती हुई कलम को जमीन परफर्श पर पटक देते हैं। क्रोध में चीजें. एक कलम क्या क्रोध पैदा करेगीएक दरवाजा क्या क्रोध पैदा करेगा?
लेकिन क्रोध भीतर भरा है। उसे आप निकालेंगेकोई न कोई बहाना आप खोजेंगे। और बहाने मिल जाएंगे। बहानों की कमी नहीं है। तब फिर आप सोचेंगेइस परिस्थिति से हटूं तो शायद किसी दिन शात हो जाऊं। तो आप जन्मों—जन्मों से यही कर रहे हैंपरिस्थिति को बदलो और अपने को जैसे हो वैसे ही सम्हाले रही!
आप अगर रहेतो आप ऐसा ही संसार बनाते चले जाएंगे। आप स्रष्टा हैं संसार के। मन को बदलेंवह जो भीतर चित्त हैउसको बदलें। अगर कोई गाली देता हैतो उससे यह अर्थ नहीं है कि उसकी गाली आप में क्रोध पैदा करती है। उसका केवल इतना ही अर्थ हैक्रोध तो भीतर भरा थागाली चोट मार देती है और क्रोध बाहर आ जाता है। ऐसे ही जैसे कोई कुएं में बालटी डाले और पानी भरकर बालटी में आ जाए। बालटी पानी नहीं पैदा करतीवह कुएं में भरा हुआ था। खाली कुएं में डालिए बालटीखाली वापस लौट आएगी।
बुद्ध मेंमहावीर में गाली डालिएखाली वापस लौट आएगी। कोई प्रत्युत्तर नहीं आएगा। वहां क्रोध नहीं है।
और आपको जो आदमी गाली देता हैअगर समझ होतो आपको उसका धन्यवाद करना चाहिए कि आपके भीतर जो छिपा थाउसने बाहर निकालकर बता दिया। उसकी बड़ी कृपा है। वह न मिलतातो शायद आप इसी खयाल में रहते कि आप अक्रोधी हैंबड़े शांत आदमी हैं। उसने मिलकर आपकी असली हालत बता दी कि भीतर आप क्रोधी हैंबाहर—बाहरऊपर—ऊपर से रंग—रोगन किया हुआ है। सब व्हाइट—वाश हैभीतर आग जल रही है। यह आदमी मित्र हैक्योंकि इसने आपके रोग की खबर दी। यह आदमी डाक्टर हैइसने आपका निदान कर दिया। इसकी डायग्नोसिस से पता चल गया कि आपके भीतर क्या छिपा है। इसे धन्यवाद दें और अपने को बदलने में लग जाएं।
पत्नी आपको नहीं बांधे हुए है। स्त्री के प्रति आपका आकर्षण हैंवह बांधेगा। पत्नी से क्या तकलीफ है , या पति से क्या तकलीफ हैआप भाग सकते हैं। लेकिन आकर्षण तो भीतर भरा है। कोई दूसरी स्त्री उसे छू लेगीऔर वह आकर्षण फिर फैलना शुरू हो जाएगा। फिर आप संसार खड़ा कर लेंगे।
वह जो बेटा है आपकावह आपको बांधे हुए नहीं है। बेटे से आप बंधे हैंक्योंकि आप अपने को चलाना चाहते हैं मृत्यु के बाद भी। बेटे के कंधों से आप जीना चाहते हैं। आप तो मर जाएंगेयह पता है कि यह शरीर गिरेगातो आप अब बेटे के सहारे इस जगत में रहना चाहते हैं। कम से कम नाम तो रहेगा मेरा मेरे बेटे के साथ! वह आपको बांधे हुए है।
बेटे को छोड़कर भाग जाइएशिष्य मिल जाएगा। फिर आप उसके सहारे संसार में बचने की कोशिश में लग जाएंगे। बाकी कोशिश वही रहेगीजो आप भीतर हैं। नाम बदल जाएंगेरंग बदल जाएंगेलेबल बदल जाएंगेलेकिन आप इतनी आसानी से नहीं बदलते हैं।
तो ध्यान रखेंक्षुद्र धर्म परिस्थिति बदलने की कोशिश करता है। सत्य धर्म मनःस्थिति बदलने की कोशिश करता है। आप बदल जाएंजहां भी हैं। और आप पाएंगेसंसार मिट गया। आप बदले कि संसार खो जाता हैऔर जो बचता हैवही परमात्मा है। यहीं संसार की हर पर्त के पीछे वह छिपा है।
आपको संसार दिखाई पड़ता हैक्योंकि आप संसार को ही देखने वाला मन लिए बैठे हैं। जो आपको दिखाई पड़ रहा हैवह आपके कारण दिखाई पड़ रहा है। जैसे ही आप बदलेआपकी दृष्टि बदलीदेखने का ढंग बदलासंसार तिरोहित हो जाता है और आप पाते हैं कि चारों तरफ वही है। फिर वृक्ष में वही दिखाई पड़ता है और पत्थर में भी वही दिखाई पड़ता है। मित्र में भी वही दिखाई पड़ता है और शत्रु में भी वही दिखाई पड़ता है। फिर जीवन का सारा विस्तार उसका ही विस्तार है।
संसार आपकी दृष्टि के अतिरिक्त और कहीं भी नहीं है। और परमात्मा भी आपकी दृष्टि के ही अनुभव में उतरेगाआपके दृष्टि के परिवर्तन में उतरेगा।
क्रांति चाहिए आंतरिकभीतरीस्वयं को बदलने वाली। भागने में समय खराब करने की कोई भी जरूरत नहीं है। भागने में व्यर्थ उलझने की कोई भी जरूरत नहीं है। संसार परमात्मा को पाने का अवसर हैएक मौका है। उस मौके का उपयोग करना आना चाहिए। सुना है मैंने कि एक घर में एक बहुत पुराना वाद्य रखा थालेकिन घर के लोग पीढ़ियों से भूल गए थे उसको बजाने की कला। वह कोने में रखा था। बड़ा वाद्य था। जगह भी घिरती थी। घर में भीड़ भी बढ़ गई थी। और आखिर एक दिन घर के लोगों ने तय किया कि यह उपद्रव यहां से हटा दें।
वह उपद्रव हो गया था। क्योंकि जब संगीत बजाना न आता हो और उसके तारों को छेड़ना न आता हो.। तो कभी बच्चे छेड़ देते थेतो घर में शोरगुल मचता था। कभी कोई चूहा कूद जाताकभी कोई बिल्ली कूद जाती। आवाज होती। रात नींद टूटती। वह उपद्रव हो गया था।
तो उन्होंने एक दिन उसे उठाकर घर के बाहर कचरेघर में डाल दिया। लेकिन वे लौट भी नहीं पाए थे कि कचरेघर के पास से अनूठा संगीत उठने लगा। देखाराह चलता एक भिखारी उसे उठा लिया है और बजा रहा है। भागे हुए वापस पहुंचे और कहा कि लौटा दो। यह वाद्य हमारा है। पर उस भिखारी ने कहातुम इसे फेंक चुके हो कचरेघर में। अगर यह वाद्य ही थातो तुमने फेंका क्योंऔर उस भिखारी ने कहा कि वाद्य उसका हैजो बजाना जानता है। तुम्हारा वाद्य कैसे होगा?
जीवन एक अवसर है। उससे संगीत भी पैदा हो सकता है। वही संगीत परमात्मा है। लेकिन बजाने की कला आनी चाहिए। अभी तो सिर्फ उपद्रव पैदा हो रहा हैपागलपन पैदा हो रहा है। आप गुस्सा होते हैं कि इस वाद्य को छोड़कर भाग जाओक्योंकि यह उपद्रव है।
यह वाद्य उपद्रव नहीं है। एक ही है जगत का अस्तित्व। जबबजाना आता हैतो वह परमात्मा मालूम पड़ता है। जब बजाना नहीं आतातो वह संसार मालूम पड़ता है।
अपने को बदलें। वह कला सीखें कि कैसे इसी वाद्य से संगीत उठ आए। और कैसे ये पत्थर प्राणवान हो जाएं। और कैसे ये एक—एक फूल प्रभु की मुस्कुराहट बन जाएं। धर्म उसकी ही कला है।
तो जो धर्म भागना सिखाता हैसमझना कि वह धर्म ही नहीं है। कहीं कोई भूल—चूक हो रही है। जो धर्म रूपांतरणआंतरिक क्रांति सिखाता हैवही वास्तविक विज्ञान है।
ओशो रजनीश



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