शनिवार, 27 अगस्त 2022

बच्चे का जन्म

 दो पुरुष और स्त्री के मिलने पर जिस बच्चे का जन्म होता है, वह उन दोनों व्यक्तियों में कितना गहरा प्रेम है, कितनी आध्यात्मिकता है, कितनी पवित्रता है, कितने प्रेयरफुल, कितने प्रार्थनापूर्ण हृदय से वे एक—दूसरे के पास आए हैं, इस पर निर्भर करेगा कि कितनी ऊंची आत्मा उनकी तरफ आकर्षित होती है। कितनी विराट आत्मा उनकी तरफ आकर्षित होती है, कितनी महान दिव्य चेतना उस घर को अपना अवसर बनाती है, यह इस पर निर्भर करेगा।

मनुष्य —जाति क्षीण और दीन और दरिद्र और दुखी होती चली जा रही है। उसके बहुत गहरे में कारण मनुष्य के दांपत्य का विकृत होना है। और जब तक हम मनुष्य के दांपत्य जीवन को सुकृत सुसंस्कृत नहीं कर लेते, जब तक उसे हम स्पिचुलाइज नहीं कर लेते, तब तक हम मनुष्य के भविष्य को सुधार नहीं सकते हैं। और इस दुर्भाग्य में उन लोगों का भी हाथ है, जिन लोगों ने गृहस्थ जीवन की निंदा की है और संन्यासी जीवन का बहुत ज्यादा शोरगुल मचाया है। उनका हाथ है। क्योंकि एक बार जब गृहस्थ जीवन कंडेम्ह हो गया, निंदित हो गया, तो उस तरफ हमने विचार करना छोड़ दिया। 

नहीं, मैं आपसे कहना चाहता हूं संन्यास के रास्ते से बहुत थोड़े से लोग ही परमात्मा तक पहुंच सकते हैं। बहुत थोड़े से लोग, कुछ विशिष्ट तरह के लोग, कुछ अत्यंत भिन्न तरह के लोग, संन्यास के रास्ते से परमात्मा तक पहुंचते हैं ।अधिकतम लोग गृहस्थ के रास्ते से और दांपत्य के रास्ते से ही परमात्मा तक पहुंचते हैं। और आश्चर्य की बात है यह कि गृहस्थ के मार्ग से पहुंच जाना अत्यंत सरल और सुलभ है, लेकिन उस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया। आज तक का सारा धर्म संन्यासियों के अति प्रभाव से पीड़ित है। आज तक का पूरा धर्म गृहस्थ के लिए विकसित नहीं हो सका। और अगर गृहस्थ के लिए धर्म विकसित होता, तो हमने जन्म के पहले क्षण से विचार किया होता कि कैसी आत्मा को आमंत्रित करना है, कैसी आत्मा को पुकारना है, कैसी आत्मा को प्रवेश देना है जीवन में।

अगर धर्म की ठीक —ठीक शिक्षा हो सके और एक—एक व्यक्ति को अगर धर्म की दिशा में ठीक विचार, कल्पना और भावना दी जा सके, तो बीस वर्षों में आनेवाली मनुष्य की पीढ़ी को बिलकुल नया बनाया जा सकता है।

वह आदमी पापी है जो आदमी आने वाली आत्मा के लिए प्रेमपूर्ण निमंत्रण भेजे बिना भोग में उतरता है। वह आदमी अपराधी है, उसके बच्चे नाजायज हैं—चाहे उसने बच्चे विवाह के द्वारा पैदा किये हों —जिन बच्चों के लिए उसने अत्यंत प्रार्थना और पूजा से और परमात्मा को स्मरण करके नहीं बुलाया है। वह आदमी अपराधी है, सारी संततियों के सामने वह अपराधी रहेगा।

कौन हमारे भीतर प्रविष्ट होता है, इस पर निर्भर करता है सारा भविष्य। हम शिक्षा की फिक्र करते हैं, हम वस्त्रों की फिक्र करते हैं, हम बच्चों के स्वास्थ्य की फिक्र करते हैं, लेकिन बच्चों की आत्मा की फिक्र हम बिलकुल ही छोड़ दिये हैं। इससे कभी भी कोई अच्छी मनुष्य —जाति पैदा नहीं हो सकती।

वह जो पहले दिन अणु बनता है मां के पेट में, वह अणु आपके पूरे शरीर की रूपाकृति अपने में छिपाए हुए है। पचास साल बाद आपके बाल सफेद हो जाएंगे, यह संभावना भी उस छोटे —से बीज में छिपी हुई है। आपकी आख का रंग कैसा होगा, यह संभावना भी उस बीज में छिपी हुई है। आपके हाथ कितने लंबे होंगे, आप स्वस्थ होंगे कि बीमार, आप गोरे होंगे कि काले, कि बाल घुंघराले होंगे, ये सारी बातें उस छोटे —से बीज में पोटेंशियली छिपी हुई हैं। वह छोटी देह है, एटामिक बाडी है, अणु शरीर है, उस अणु शरीर में आत्मा प्रविष्ट होती है। उस अणु शरीर की जो संरचना है, उस अणु शरीर की जो स्थिति है, जो सिचुएशन है, उसके अनुकूल आत्मा उसमें प्रवष्टि होती है।

और दुनिया में जो मनुष्य —जाति का जीवन और चेतना रोज नीचे गिरती जा रही है, उसका एक मात्र कारण है कि दुनिया के दंपति श्रेष्ठ आत्माओं के जन्म लेने की सुविधा पैदा नहीं कर रहे हैं। जो सुविधा पैदा की जा रही है, वह अत्यंत निकृष्ट आत्माओं के पैदा होने की सुविधा है। आदमी के मर जाने के बाद जरूरी नहीं है कि उस आत्मा को जल्दी ही जन्म लेने का अवसर मिल जाए। साधारण आत्माएँ जो न बहुत श्रेष्ठ होती हैं, न बहुत निकृष्ट होती हैं, तेरह दिन के भीतर नए शरीर की खोज कर लेती हैं। लेकिन बहुत निकृष्ट आत्माएं भी रुक जाती हैं, क्योंकि उतना निकृष्ट अवसर मिलना मुश्किल होता है। उन निकृष्ट आत्माओं को ही हम प्रेत और भूत कहते हैं। बहुत श्रेष्ठ आत्माएं भी रुक जाती हैं, क्योंकि उतने श्रेष्ठ अवसर का उपलब्ध होना मुश्किल होता है। उन श्रेष्ठ आत्माओं को ही हम देवता कहते हैं।

पहली पुरानी दुनिया में भूत—प्रेतों की संख्या बहुत ज्यादा थी और देवताओं की संख्या बहुत कम। आज की दुनिया में भूत —प्रेतों की संख्या बहुत कम हो गई है और देवताओं की संख्या बहुत। क्योंकि देव पुरुषों को पैदा होने का अवसर कम हो गया है, भूत—प्रेतों को पैदा होने का अवसर बहुत तीव्रता से उपलब्ध हुआ है। तो जो भूत—प्रेत रुके रह जाते थे मनुष्य के भीतर प्रवेश करने से, वे सारे के सारे मनुष्य —जाति में प्रविष्ट हो गए हैं। इसीलिए आज भूत—प्रेतों का दर्शन मुश्किल हो गया है, क्योंकि उसके दर्शन की कोई जरूरत नहीं। आप आदमी को ही देख लें और उसके दर्शन हो जाते हैं। और देवता पर हमारा विश्वास कम हो गया है, क्योंकि देव पुरुष ही जब दिखाई न पड़ते हों, तो देवता पर विश्वास करना बहुत कठिन है।

एक जमाना था कि देवता उतनी ही वास्तविकता थी, उतनी ही एक्चुअलटी थी जितना कि, हमारे जीवन के और दूसरे सत्य हैं। अगर हम वेद के ऋषियों को पढ़ें, तो ऐसा नहीं मालूम पड़ता कि वे देवताओं के संबंध में जो बात कह रहे हैं, वह किसी कल्पना के देवता के संबंध में बात कह रहे हों। नहीं, वे ऐसे देवता की बात कर रहे हैं जो उनके साथ गीत गाता है, हंसता है, बात करता है। वे ऐसे देवता की बात कर रहे हैं जो जैसे पृथ्वी पर चलता है, उनके अत्यंत निकट है। हमारा देव लोक से सारा संबंध विनष्ट हुआ है, क्योंकि हमारे बीच ऐसे पुरुष नहीं जो सेतु बन सकें, जो ब्रिज बन सकें, जो देवताओं और मनुष्यों के बीच में खड़े होकर घोषणा कर सकें कि देवता कैसे होते हैं। और इसका सारा जिम्मा मनुष्य—जाति के दांपत्य की जो व्यवस्था है, उस पर निर्भर है। विवाह हम बिना प्रेम के कर रहे हैं। जो विवाह बिना प्रेम के होगा, उस दंपति के बीच कभी भी वह आध्यात्मिक संबंध उत्पन्न नहीं होता जो प्रेम से संभव था। उन दोनों के बीच कभी भी वह हार्मनी, कभी भी वह एकरूपता और संगीत पैदा नहीं होता, जो एक श्रेष्ठ आत्मा के जन्म के लिए जरूरी है। उनका प्रेम केवल साथ रहने की वजह से पैदा हो गया साहचर्य होता है। उनके प्रेम में वह आत्मा का आंदोलन नहीं होता, जो दो प्राणों को एक कर देता है। प्रेम के बिना जो बच्चे पैदा होते हैं पृथ्वी पर, वे बच्चे प्रेमपूर्ण नहीं हो सकते, वे देवता जैसे नहीं हो सकते। उनकी स्थिति भूत—प्रेत जैसी ही होगी, उनका जीवन घृणा, क्रोध और हिंसा का ही जीवन होगा। जरा सी बात फर्क पैदा करती है। अगर व्यक्तित्व की बुनियादी हार्मनी, अगर व्यक्तित्व की बुनियादी लयबद्धता नहीं है तो अदभुत परिवर्तन होते हैं।


हरिओम सिगंल 

ओशो रजनीश के प्रवचनो पर आधारित 



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