रविवार, 9 अक्तूबर 2022

 मेरा एक दोस्त है , शादीशुदा हैं। दो वर्ष पहले  शादीशुदा न था। तब मुझसे सलाह मांगने आए था कि शादी करनी है।

मैंने उनको समझाया भी था कि जल्दी न करो, थोड़े दिन साथ रह लो, एक-दूसरे से परिचित हो जाओ, फिर कर लेना । पर बड़ी जल्दी में थे। प्रेम साधारणतः पागलपन जैसा होता है। नहीं, हम तो सदा एक-साथ रहेंगे। देरी क्या करनी है! कल क्या छोड़ना- शादी कर ली, ...

अब दो साल में एक-दूसरे से ऊब गए, फिर आए। अब वे कहते हैं किसी तरह हमारा छुटकरा करवा दें। तो मैंने कहा कि पहले भी तुमने न मानी। तब भी जल्दी की, अब भी जल्दी मत करो। छुटकारे की इतनी जल्दी क्या है? तुम ऐसा करो कि दोनों अलग-अलग दो-चार महीने के लिए हो ही जाओ।

पति को गोआ भेज दिया। दूसरे सप्ताह वापस हाजिर कि अकेले मन नहीं लगता। पत्नी के बिना नहीं रह सकते।

मैंने कहा पहले भी तुमने भूल की थी, अब अगर तुम्हारा तलाक करवा दिया होता ? तीन दिन अलग रहे, फिर हाजिर। 

 साथ नहीं बनता । अब हम साथ नहीं रह सकते, दूसरे के साथ नहीं रह सकते! अपने से ऊबते हो, दूसरे को पकड़ते हो। दूसरे को पकड़ते हो, दूसरे से ऊब जाते हो। 

*जब अपने से ही ऊब जाते हो तो दूसरे से कैसे न ऊबोगे । * *

 थोड़ा सोचो, अब अपने से ही मन नहीं भरता, तो दूसरे से क्या खाक भरेगा !

जब तुम अपने को ही इतना प्रेम नहीं कर पाते कि अपने संग रह सको, तो तुम किसको इतना प्रेम कर पाओगे कि उसके संग रह सको...?

जो व्यक्ति अपने साथ रहना सीख गया, उसकी ज्योति जग गयी ।  अब वह किसी की तलाश में नहीं हैं। कोई न आए तो मजे में है, कोई आए तो मजे में है। अकेला हो तो उतने ही मजे में है, जितना पूरे संसार में हो तो मजे में है।

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