शुक्रवार, 26 मई 2023

 बात ऋषि ने ही आरम्भ की, "राम ! मेरे इस आश्रम के निकट समुद्र में जो अशिमपुरी द्वीप है, उससे कालकेयों के पीछे-पीछे अन्य आततायियों के आने की भी पर्याप्त संभावना थी। उनके कारण इस जनपद के लोगों ने कष्ट भी बहुत सहे हैं । किंतु जब से कालकेयों का नाश हुआ है, तब से यह दिशा सुरक्षित हो गयी है। मैं तब से जमकर यहीं बैठा हूं, कि इधर से और कोई आक्रांता प्रवेश न करे । इधर तुमने चित्रकूट से आरंभ कर, अत्रि आश्रम, शरभंग, सुतीक्ष्ण, आनन्दसागर तथा धर्मभृत्य के आश्रमों के बीच का सारा क्षेत्र एक प्रकार से संगठित और शस्त्र- बद्ध कर दिया है। केवल एक ही दिशा असुरक्षित है— जनस्थान की दिशा । इसको राक्षस भी समझते हैं, इसलिए वे लोग अपना ध्यान वहीं केन्द्रित कर रहे हैं। उनके सर्वश्रेष्ठ योद्धा वहां हैं, उनके उन्नत और विकसित शस्त्र वहां हैं । और जहां राक्षसों का इतना जमघट होगा, वहां जन सामान्य का पक्ष उतना ही दुर्बल होगा। यदि इस समय राक्षसों को वहीं नहीं रोका गया, तो वह सारा क्षेत्र श्मशान में बदल जाएगा। उनकी सेनाएं यदि तुम्हारे द्वारा नाकाबन्दी किए गए क्षेत्र में घुस आयीं तो सारे किए धरे पर पानी फिर जाएगा। छोटे-छोटे आश्रम अपनी आश्रम - वाहिनियों और ग्राम वाहिनियों से साम्राज्य का सामना नहीं कर पाएंगे। अतः आवश्यक है कि इस राक्षसी सेना को वहीं रोक रखने के लिए तुम पंचवटी में एक ऐसा सबल व्यूह रचो कि राक्षसी सेना वहीं उलझकर समाप्त हो जाए ।"

अपने में डूबे - डूबे राम बड़ी तन्मयता से ऋषि की बात सुन रहे थे। यह कहना कठिन था कि वे आत्मलीन अधिक थे, अथवा ऋषि की बात सुनने में अधिक तल्लीन । कदाचित् उनमें दोहरी प्रतिक्रिया चल रही थी । "मैं आपकी योजना भली प्रकार समझ रहा हूं, और उससे सहमत भी हूं । मुझे लगता है कि अब पंचवटी के इधर के क्षेत्र में मेरी आवश्यकता नहीं है ।"

 राम का एक-एक शब्द आत्मबल से भरपूर था ।

"वह तो ठीक है, पुत्र !" ऋषि का स्वर कुछ उदास भी था, "यह बूढ़ा मन तुम्हें वहां भेजना भी चाहता है, और भेजने से डरता भी है ।"

" आप और डर ?" लक्ष्मण अनायास ही बोल पड़े। "वीरता और मूर्खता में भेद है, पुत्र !" ऋषि बोले, "निर्भय होकर तुम लोगों को वहां भेजना चाहता हूं, क्योंकि तुममें वह क्षमता दिखाई पड़ी है, जिस पर भरोसा किया जा सकता है। किंतु कैसे भूल जाऊं कि वहां तुम उन अत्याचारियों का साक्षात्कार करोगे, जिनके मन में न न्याय है, न मानवता । वहां स्वयं रावण के भाई, अपने चुने हुए चौदह सहस्र सैनिकों के साथ टिके हुए हैं। वहां रावण की सगी बहन है - शूर्पणखा, जो भाई के हाथों अपने पति के वध के पश्चात् उद्दंड भी हो चुकी है और शक्ति सम्पन्न भी। वह रावण के द्वारा संरक्षित भी है और रावण के अनुशासन से मुक्त भी। जनस्थान में वे लोग हैं, जिनसे मुठभेड़ होते ही लंका की सेनाएं दौड़ी चली आएंगी। शूर्पणखा अथवा उसकी सेना का विरोध करते ही रावण ही नहीं, शिव तथा ब्रह्मा भी चौकन्ने हो उठते हैं। ऐसे शत्रुओं से प्रजा की रक्षा करने के लिए तुम लोगों को भेज रहा हूं, पुत्र ! वैदेही के लिए भी मन में अनेक प्रकार की आशंकाएं हैं। नारी के प्रति राक्षसों के मन में कोई सम्मान नहीं है । इसीलिए डरता हूं। बाढ़ में चढ़ी हुई नदी के सम्मुख, चार ईंटें रखकर आशा कर रहा हूं कि वे ईंटें प्राचीर का कार्य करेंगी ।" "आप निश्चित रहें, ऋषिवर !" राम अपने आश्वस्त गंभीर स्वर में बोले, "ये ईंटें प्राचीर ही बन जाएंगी, और नदी की बाढ़ को बांध लिया जाएगा।"

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