बुधवार, 24 मई 2023

 "आओ, भास्वर ! स्वागत, मुर्त !" अगस्त्य मुस्करा रहे थे।

मुर्त ने चौंककर अगस्त्य को देखा, “आपको मेरा नाम कहां से ज्ञात

हुआ ?"

"क्या वह कोई गोपनीय वस्तु है ?" ऋषि अब भी मुसकरा रहे थे।

"नहीं। पर..." 'मुर्त समझ नहीं पा रहा था कि क्या कहे, आपका इस क्षेत्र के जन-जीवन से इतना अधिक संपर्क है कि किसी एक गांव के किसी एक साधारण व्यक्ति का खोया हुआ बेटा लौट आए, तो उसकी भी सूचना आपको हो जाए ।"

गुरु की मुसकान कुछ और गहरी हुई, "वैसे तो किसी के खोए हुए बेटे का घर लौट आना भी मानव जीवन की बहुत बड़ी घटना है; किंतु इस समाचार को हमारे आश्रम ने दूसरे ही प्रकार से देखा है। समाचार यह नहीं है कि भास्वर का बेटा मुर्त घर लौट आया है।"

"तो क्या समाचार है..?” मुर्त अचकचाता सा गुरु को देख रहा था।

" समाचार है.." गुरु की मुसकान स्निग्ध थी, "कि राक्षसों का एक जलपोत समुद्र में चुपचाप ठहर गया । उसमें से एक नाव जल में उतारी गयी और वह नाव एक व्यक्ति को समुद्र तट पर उतारकर चुपके से लौट गयी । वह व्यक्ति जो तट पर उतारा गया, भास्वर का बेटा मुर्त तो है ही, रावण के अनेक विशाल जलपोतों का निर्माता तथा नियंत्रक रहा है; और जल परिवहन के साधनों का अधिकारी विद्वान है।"

"क्या ?" मुर्त का मुख आश्चर्य से खुल गया, "आप यह कैसे जानते हैं ? ये तथ्य मेरे माता-पिता तक नहीं जानते। उन्होंने कभी यह जानने की चिंता ही नहीं की । ...."

" उन्हें इन बातों की भी चिंता करनी चाहिए, यह मैं उन्हें सिखा रहा हूं ।" " पर आपको ये सूचनाएं कैसी मिलीं ?"

"मेरे अपने साधन हैं, पुत्र ! समय आने पर तुम्हें ज्ञात हो जाएगा गुरु मुसकराए, “बताओ, तुम्हारा कार्यक्रम क्या है ? मेरा तात्पर्य है कि रावण के साम्राज्य का वैभव देखने के पश्चात् तुम इस वानर- यूथ के सदस्य बनकर यहां रहना चाहोगे ? रह सकोगे ? या लौट जाओगे ?"

"बाधा तो मुझे यहां है ही, ऋषिवर!" मुर्त का स्वर अनायास ही सम्मानपूर्ण हो गया, "मुझे यहां रुकने में तो कोई लाभ नहीं दिखता ।"

"लाभ किस दृष्टि से, पुत्र ?" ऋषि ने पूछा, "तुम्हारी आर्थिक समृद्धि की दृष्टि से, तुम्हारे माता-पिता के सुख की दृष्टि से अथवा तुम्हारे जनपद और यूथ की प्रगति की दृष्टि से ?"

मुर्त क्षण-भर के लिए मौन रहा, फिर बोला, "मैंने इस ढंग से सोचा ही नहीं है । मैंने केवल अपने लाभ की बात कही है; और लाभ से मेरा अभिप्राय है सुख, जो भौतिक समृद्धि से ही मिल सकता है।"

"तुमने बहुत ठीक सोचा है, पुत्र !" ऋषि बोले, "रावण के साम्राज्य के किसी भी जलपत्तन में तुम्हें अपने ज्ञान और कौशल को बेचने पर पुष्कल धन प्राप्त होगा। संभव है कि तुम्हारे हाथ में कुछ प्रस्ताव भी हों, और तुम उन्हीं को ध्यान में रखकर सुख-सुविधा को नाप रहे हो ।"

"आप ठीक कह रहे हैं।" मुर्त ने सहज ही स्वीकार कर लिया, "वस्तुतः मेरे पास अनेक जलपत्तनाधिकारियों के ही प्रस्ताव नहीं हैं, साम्राज्य की जल-सेना ने भी मुझसे जलपोतों के निर्माण के लिए अनुरोध किया है। मैं उनमें से किसी एक 'प्रस्ताव को भी मान लूं तो मुझ अकेले के पास इतना धन हो जाएगा, जितना इस सारे जनपद के पास नहीं है ।"

" तुम्हारे सुख के लिए यही उचित भी है ।" अगस्त्य कुछ वक्र होकर बोले, " मेरा परामर्श है कि तुम वापस लौट जाओ । रावण की जल सेना के लिए नये, दृढ़, शक्तिशाली तथा अधिक प्रहारक जलपोतों का निर्माण करो । उसकी सेना उन जलपोतों को लेकर आएगी और इस सारे समुद्र तट पर आक्रमण करेगी। यहां से स्त्रियों, पुरुषों तथा बच्चों का उसी प्रकार अपहरण करेगी, जिस प्रकार उन्होंने एक दिन तुम्हारा अपहरण किया था। यहां की उपज वह लूटकर ले जाएगी। यहां के घर, खेत और उद्यान नष्ट करेगी। यहां किसी को नौका तक का पता नहीं है, युद्धपोतों का क्या कहना। कोई उनको रोक नहीं पाएगा और वे सकुशल लोट जाएंगे। ...."

" ऋषिवर!..." मुर्त ने कुछ कहना चाहा।

"पूरी बात सुन लो, पुत्र !" अगस्त्य शांत स्वर में बोले, "उन अपहृत लोगों में तुम्हारे वृद्ध माता-पिता भी हो सकते हैं। तुम्हारी मां युवती नहीं है, अतः वह किसी की भोग्या नहीं हो सकती। तुम्हारा पिता किसी के यहां श्रमिक नहीं हो सकता। उन्हें या तो वे लोग खरीदेंगे, जो उनकी हत्या कर उनका मांस बेचेंगे, या वे भूखे-प्यासे मरने को छोड़ दिए जाएंगे। उनके पास अन्न के लिए धन नहीं होगा । अतः वे किसी मार्ग पर घिसटते घिसटते संज्ञाशून्य होकर गिर पड़ेंगे और मर जाएंगे। उनके शवों को भी कोई उठाकर ले जाएगा और पशु-मांस में मिलाकर, उनका मांस बेच देगा। तुम्हारा दास उसे खरीदकर लाएगा और पकाकर तुम्हें खिलाएगा..."

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