रविवार, 16 जून 2024

विजय की प्राप्ति करने की इच्छा हर एक के अंतःकरण में होती है, परंतु बहुत थोडे लोग जानते हैं, कि विजय प्राप्ति की संभावना मनुष्य के मन की अवस्था पर निर्भर है । विजय प्राप्ति के लिये जिस प्रकार का मन होना आवश्यक है, उस प्रकार का मन बनाने के लिये ही महाभारत लेखक ने यह" जय इतिहास" लिखा है। यह इतिहास इतना उत्साहमय है कि यदि यह इतिहास मनुष्य पढेगा और इसके उपदेश का मनन करेगा, तो निः संदेह वह मनुष्य उत्साह की मूर्ति बन जायगा । निराशावाद का अंश भी इसके पढने के पश्चात् मनुष्य के मन में रह नहीं सकता ।

धर्मराज को अल्पसंतुष्ट न रहते हुए, अपने संपूर्ण शत्रुओं का पूर्ण नाश करके अपना संपूर्ण राज्य पुनः प्राप्त करने की प्रेरणा करने के लिये ही यह इतिहास भगवती माता कुंती देवी ने कहा है और धर्मराजपर उसका अच्छा परिणाम भी हुआ है।

यहां माता का भी कर्तव्य स्पष्ट हो जाता है, कि यदि उनके कोई पुत्र या पुत्री निरु- त्साहित हों, तो उनको पुनः उत्साहित करके अधिक प्रयत्न करने के लिये प्रेरित करना। श्री छत्रपति शिवाजी महाराज की माता जिजाबाईजी का चरित्र इसी प्रकार ओजस्वी था और उनकी प्रेरणा से श्री शिवाजी महाराज को जो अमोल ओजस्वी उपदेश मिलता था वह अपूर्व ही था। इसी प्रकार श्री० विदुलादेवी का उपदेश इस जय इतिहास में है ।

स्वयं महाभारत के लेखक प्रतिज्ञा पूर्वक कहते हैं कि यह इतिहास पढने से ये लाभ होगें-" यह इतिहास विजय चाहने वाले राजा को अवश्य पढना योग्य है, निरुत्साहित और शत्रु से पीडित राजा को यह पढना या सुनना योग्य है। क्योंकि इसके पढने से निरुत्सा- हित राजा ऐसा ओजस्वी बनता है, कि वह अपने संपूर्ण शत्रुओं को पराजित करके संपूर्ण पृथ्वी का राज्य प्राप्त कर सकता है। यदि गर्भवती अवस्था में स्त्री इसको सुनेगी तो उसके गर्भ से पुत्र या पुत्री जो भी उत्पन्न होगा वह तेजस्वी होगा, इसमें कोई संदेह ही नहीं है। यदि अपनी संतान विद्वान, उदार, तपस्वी, उत्साही, तेजस्वी, वलवान, वीर, शूर, धैर्यशाली, विजयी, अपराजित, सज्जनों की रक्षक तथा दुष्टों का शमन करने- वाला इत्यादि गुणों से युक्त बन जाय, ऐसी इच्छा है, तो पति पत्नी को यह इतिहास वारंवार पढना चाहिये । " हमें विश्वास है कि निःसंदेह ऐसा होगा।  आशा है कि इसके पढने से हमारे देश में वीरता बढेगी और हमारा देश वीरों का देश बनेगा । 

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