शुक्रवार, 27 मई 2022

श्री कृष्ण

 कन्हैया की सभी लीला निराली हैं, बहुत गहन है। कन्हैया कभी किसी से ऐसा कहते नही कि तुम मेरी माँ से कहो। ये आने देगी तो मैं तुम्हारे घर आऊंगा । कन्हैया को तो किसी के आमन्त्रण की जरूरत ही क्या थी ? कन्हैया तो कहते है, मुझे कौन निमन्त्रण देगा ? मैं तो घर धनी हूँ। इसलिए मुझे तो सबको इकट्ठा करके ले जाना है। लाला आमन्त्रण की बाट क्या कभी देखता है ? कन्हैया तो बगैर बुलाये ही गोपियो के घर जाते हैं परन्तु लाला का ऐसा नियम था कि जिस घर का मालिक है, जिसने अपना सर्वस्व मन से लाला को अर्पण कर दिया है, उसी के ही घर लाला जाता है। यह किसी अन्य के घर नही जाता, चाहे जिसके घर जाकर यह माखन नही खाता। लाला तो जहाँ प्रेम है, वही जाता है। श्री कृष्ण की लीला मे अतिशय प्रेम है।


एक गोपीके घर लाला माखन खा रहे थे। उस समय गोपी ने लाला को पकड़ लिया। तब कन्हैया बोले- तेरे धनी की सौगन्ध खाकर कहता हूँ, अब फिर कभी भी तेरे घर मे नही आऊँगा ।

गोपी ने कहा- मेरे घनी की सौगन्ध क्यों खाता है ?

कन्हैया ने कहा – तेरे बाप की सौगन्ध, बस ? गोपी और ज्यादा खीझ जाती है और लाला को धमकाती है परन्तु तू मेरे घर आया ही क्यों ?

कन्हैया ने कहा—अरी सखी ! तू रोज कथा मे जाती है, फिर भी तू मेरा-तेरा छोड़नी नही चाहती- इस घरका मैं धनी हूँ, यह घर मेरा है ।


गोपी को आनन्द हुआ कि मेरे घर को कन्हैया अपना घर मानता है। कन्हैया तो सबका मालिक है। सभी घर उसी के हैं। उसको किसीकी आज्ञा लेने की जरूरत नही ।

गोपी कहती है - तूने माखन क्यों खाया ।

लाला ने कहा – माखन किसने खाया है ? इस माखन मे चीटी चढ़ गई थी, उसे निकालने को हाथ डाला। इतने में ही तू टपक पड़ी। गोपी कहती है – परन्तु, लाला ! तेरे ओंठके ऊपर भी तो माखन चिपक रहा है।


कन्हैया ने कहा— चींटी निकालता था, तभी ओठ के ऊपर मक्खी बैठ गयी, उसको उड़ाने लगा तो माखन ओठ पर लग गया होगा।


कन्हैया जैसा बोलते है, ऐसा बोलना किसीको आता नही। कन्हैया जैसे चलते है, वैसा चलना भी किसीको आता नही । गोपी ने तो पीछे लाला को घरमें खम्भ के साथ ढोरी से बाँध दिया। कन्हैया का श्रीअङ्ग बहुत ही कोमल है। गोपी ने जब डोरी कसकर बाँधी तो लाला की आँख में पानी आ गया। गोपी को दया आयी, उसने लालासे पूछा लाला ! तुझे कोई तकलीफ है क्या ?

लाला ने गर्दन हिलाकर कहा- मुझे बहुत दुःख हो रहा है, डोरी जरा ढीली कर । गोपी ने विचार किया कि लाला को डोरी से कसकर बांधना ठीक नही मेरे लाला को दुःख होगा । इसलिए गोपी ने डोरी थोड़ी ढोली रखी और पीछे सखियो को खबर देने गयी कि मैंने लाला को बाँधा है।


तुम लाला को बाँधो परन्तु किसीसे कहना नहीं । तुम खूब भक्ति करो परन्तु उसे प्रकाशित मत करो। भक्ति प्रकाशित हो जायेगी तो भगवान सटक जायेगे। भक्तिका प्रकाश होनेसे भक्ति बढ़ती नही, भक्तिमें आनन्द आता नहीं।


बालकृष्ण सूक्ष्म शरीर कर के डोरीमें से बाहर निकल गये और गोपी को अंगूठा दिखाकर कहा, तुझे बाँधना ही कहाँ आता है ?

गोपी कहती है - तो मुझे बता, किस तरह से बांधना चाहिये ।


गोपी को तो लालाके साथ खेल करना है, लाला गोपी को बाँधते हैं।


योगीजन मनसे श्री कृष्ण का स्पर्श करते है तो समाधि लग जाती है। यहाँ तो गोपीको प्रत्यक्ष श्रीकृष्ण का स्पर्श हुआ है। गोपी लाला के दर्शनमे तल्लीन हो जाती है। गोपी का ब्रह्म-सम्बन्ध हो जाता है। लाला ने गोपीको बाँध दिया।


गोपी कहती है कि लाला छोड़ ! छोड़ ! लाला कहते है-मुझे बाँधना आता है, छोड़ना तो आता ही नहीं ।


यह जीव एक ऐसा है, जिसको छोड़ना आता है। चाहे जितना प्रगाढ़ सम्बन्ध हो परन्तु स्वार्थ सिद्ध होनेपर उसको भी छोड़ सकता है। परमात्मा एक बार बाँधने बाद छोड़ते नहीं ।

श्री कृष्ण की लीला अटपटी है। लाला कृपा करे, उसे ही यह लीला समझ पड़ती है । श्रीकृष्ण-लीलामें विनोद है, प्रेम है. गूढ तत्त्व है। श्रीकृष्ण की वाणी का रहस्य समझना कठिन है। श्रीकृष्णको पहचानना कठिन है। 

श्री राम बहुत शर्मीले है। कौशल्या माँ माखन-मिश्री देना भूल जायँ तो रामजी मांगते नही। बहुत मर्यादामे रहते है। अनेक बार ऐसा हुआ कि कौशल्याजी लक्ष्मीनारायण की सेवामें ऐसी तन्मय हो जाती है कि रामजी कौशल्या मांका वन्दन करने आवे, पास बैठ जायें परन्तु माँ रामजीको माखन मिश्री देना भूल जाती है परन्तु रामजी कभी भी माँगते नही ।


कन्हैया तो यशोदा माँके पीछे पड़ जाते थे कि 'मां ! माखन-मिश्री मुझे दो ।' लालाकी सभी लीला विचित्र है। ये तो प्रेम मूर्ति है।






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